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भर्ती की पद्धतियाँ या विधियाँ | Methods of Recruitment in Hindi

भर्ती की पद्धतियाँ या विधियाँ | Methods of Recruitment in Hindi
भर्ती की पद्धतियाँ या विधियाँ | Methods of Recruitment in Hindi

भर्ती की पद्धतियाँ या विधियाँ (Methods of Recruitment)

कर्मचारियों की भर्ती के लिए सामान्यतया निम्नलिखित पद्धतियाँ अपनायी जाती है-

(I) प्रत्यक्ष विधियाँ –

इसके अन्तर्गत निम्न विधियाँ सम्मिलित हैं-

(1) जनता से कर्मचारियों का सम्पर्क – प्रबन्धकों द्वारा कम्पनी के कर्मचारियों को कम्पनी में विभिन्न स्तर के रिक्त पदों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान कर दी जाती है तथा कर्मचारियों को इस बारे में जनता से सम्पर्क करने के लिए कहा जाता है। कर्मचारियों के माध्यम से यह सूचना उनके मित्रों, रिश्तेदारों तथा परिचतों तक पहुँचती है और इच्छुक उम्मीदवार वांछित पद के लिए आवेदन करते हैं।

(2) विद्यालय एवं कॉलेज – इस विधि के अन्तर्गत कम्पनियों के भर्ती अधिकारी विभिन्न स्तरों के विद्यालयों, कॉलेजों, तकनीकी शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थानों से निरन्तर सम्पर्क बनाये रखते हैं और इन संस्थाओं के इस प्रकार के कार्यों के लिए तैनाती प्रभारी अधिकारियों के माध्यम से योग्यतम एवं इच्छुक युवाओं का चयन कर लिया जाता है।

(3) प्रतीक्षा सूची- प्रत्येक संगठन को वांछित अभ्यर्थियों द्वारा समय-समय पर आवेदन प्राप्त होते रहते हैं। कम्पनियाँ इन आवेदन-पत्रों के आधार पर एक प्रतीक्षा सूची बना लेती हैं जिनमें से आवश्यकतानुसार कर्मचारियों का चयन किया जाता है।

(4) प्रदर्शनियाँ – संगठनों द्वारा अपनी भर्ती अधिकारियों को विभिन्न सम्मेलनों एवं संगोष्ठियों में ‘भाग लेने के लिए भेजा जाता है जहाँ वे विभिन्न पदों के बारे में प्रतिभागियों की जानकारी उपलब्ध कराते हैं तथा उन्हें आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। मेलों आदि में प्रदर्शनियाँ लगायी जाती हैं तथा वांछित केन्द्रों पर सचल भर्ती दल भेजे जाते हैं।

(II) अप्रत्यक्ष विधियाँ-

जब संगठन को अन्य स्रोतों से वांछित संख्या में उम्मीदवार नहीं मिल पाते तो पद के लिए निर्धारित अनिवार्य एवं ऐच्छिक अर्हताएं दर्शाते हुए समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में विज्ञापन देकर आवेदन-पत्र आमन्त्रित किये जाते हैं तथा उपयुक्तों का चयन किया जाता है। एक सुविचारित एवं नियोजित विज्ञापन अयोग्य व्यक्तियों द्वारा आवेदन किये जाने की सम्भावनाओं को काफी हद तक कम कर देता है। यदि विज्ञापन सुस्पष्ट तथा बिन्दुवार है तो उम्मीदवार उस पर नियुक्त किये जाने के बारे में अपनी योग्यताओं और क्षमताओं का अनुमान स्वयं लगा लेने के उपरान्त ही आवेदन करेगा।

(III) मध्यस्थों के माध्यम से भर्ती विधियाँ-

इसके अन्तर्गत निम्न विधियों को सम्मिलित किया जाता है-

(1) राज्य के एवं सार्वजनिक सेवायोजन केन्द्र – राज्य सरकारों ने प्रत्येक जिला मुख्यालय एवं अन्य प्रमुख नगरों में सेवायोजन केन्द्रों की स्थापना की है जहाँ विभिन्न प्रकार के बेरोजगार अभ्यर्थी अपना पंजीकरण कराते हैं। पंजीकरण में अभ्यर्थी की आयु, शैक्षणिक एवं तकनीकी योग्यताएँ, अभिरुचियों आदि का विवरण रहता है। जब भी कोई सेवायोजक किसी पद विशिष्ट के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति करना चाहता है तो वह पद के लिए निहित अर्हताएँ एवं पदों की संख्या के बारे में सेवायोजन केन्द्रों को सूचित कर देता है।

(2) निजी रोजगार संस्थाएँ – विशिष्ट प्रकार के व्यवसायों में विशिष्टता प्राप्त निजी संस्थाएँ, जैसे- सामान्य कार्यालयीन सहायक, विक्रय व्यक्ति, तकनीकी कार्मिक, लेखाकार, कम्प्यूटर कर्मचारी, इंजीनियर्स एवं प्रशासक आदि। ये संस्थाएँ सेवायोजन एवं अभ्यर्थियों को निकट लाती हैं तथा सेवायोजकों को चयन करने में सहायता प्रदान करती हैं। सेवायोजन केन्द्र अपने रजिस्टर में पूर्व पंजीकृत ऐसी अर्हताएँ रखने वाले व्यक्तियों को उक्त पर आवेदन करने के लिए सूचना दे देता है।

(3) कॉलेज प्राध्यापकों के लिए संगोष्ठियाँ- बड़े-बड़े संगठनों द्वारा समय-समय पर संगठन की समस्याओं पर विचार-विमर्श करने के लिए संगोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। जहाँ भोज आदि आयोजित किये जाते हैं। इन सबके पीछे एक उद्देश्य यह भी होता है कि ये प्राध्यापक संगठन की गतिविधियों से प्रभावित हो सकें तथा कॉलेज के इच्छुक छात्रों को इन संगठनों में आवेदन करने के लिए प्रेरित कर सकें।

(4) प्रशासनिक खोज संस्थाएँ- उच्च शिक्षित एवं प्रशिक्षित प्रबन्धकों, विपणन प्रबन्धकों, उत्पादक इंजीनियरों एवं प्रशासकों के बारे में पूरी सूचना कुछ संस्थाओं द्वारा रखी जाती हैं। ये संस्थाएँ संगठनों को आवश्यकतानुसार उच्च योग्यता प्राप्त व्यक्तियों की सुविधाएँ उपलब्ध कराती हैं।

(5) प्रतिनियुक्ति- सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों द्वारा विभिन्न स्तरों से योग्य व्यक्तियों को अपने यहाँ प्रतिनियुक्ति पर एक निश्चित अवधि के लिए रोजगार प्रदान किया जाता है।

(6) अन्य विधियाँ- उपर्युक्त विधियों के साथ-साथ निम्न विधियाँ भी प्रयुक्त की जाती हैं- (क) कर्मचारियों के मित्र एवं रिश्तेदार, (ख) श्रम संघ, (ग) विभिन्न व्यावसायिक संघ, (घ) अस्थायी सहायता संस्थाएँ, (ङ) कारखाना आदि।

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Anjali Yadav

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