भारत में नगरीय प्रशासन के संरचनात्मक संगठन का वर्णन कीजिए।
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भारत में नगरीय स्थानीय शासन (Urban Local Administration in India)
आधुनिक नगरीय संस्थाओं का उद्भव लार्ड रिपन के शासन काल से माना जाता है। संविधान में 74वें संविधान संशोधन द्वारा नगर निकायों को संवैधानिक दर्जा दिया गया है। संविधान के भाग 9-क में अनुच्छेद 243-त से अनुच्छेद 243-य तक नगरपालिका के लिए उपबन्धों का समावेश किया गया है, इसके साथ ही संविधान में बारहवीं अनुसूची को जोड़ा गया है जिसमें इसके कार्यक्षेत्र से सम्बन्धित 18 विषय सम्मिलत किये गये हैं। संविधान में भाग 9 -ञ म्यूनिसिपलिटीज शीर्षक से नया जोड़ा गया है।
भारत में नगरीय स्थानीय शासन संरचना के निम्नलिखित भाग हैं-
(i) नगर निगम – यह शहरी क्षेत्रों में स्थानीय प्रशासन की सर्वोच्च इकाई है। इसका सर्वोच्च होने का अर्थ रहा है कि इसकी रचना महानगरों में की जाती है और नगरीय स्थानीय प्रशासन के क्षेत्र में इससे अधिक शक्तिशाली और अधिकार प्राप्त कोई अन्य निकाय नही है। इसकी स्थापना राज्य विधान-मंडल द्वारा पारित विशेष अधिनियम के अन्तर्गत की जाती है। भारत में निगम में निम्नलिखित तत्व सम्मिलित हैं-
1. नगर परिषद् – नगर परिषद् का प्रकार से स्थानीय विधान सभा है। प्रायः सभी नगर निगमों में दो प्रकार के सदस्य होते हैं। एक वे जो सीधे निर्वाचित होते हैं और दूसरे वे जो निर्वाचित पार्षदों द्वारा नगर प्रमुख (मेयर या महापौर) तथा नगर आयुक्त के रूप में सहवरित किये जाते हैं। सम्पूर्ण नगर को चुनाव की दृष्टि से वाडों में विभाजित कर दिया जाता है और प्रत्येक वार्ड में से एक प्रतिनिधि उस क्षेत्र में वयस्क नागरिकों द्वारा चुना जाता है। परिषद् के चुने हुए प्रतिनिधियों को पार्षद कहते हैं। उनकी स्थिति ग्राम प्रधानों के समतुल्य होती है।
2. मेयर (Mayor) – नगर निगम का औपचारिक अध्यक्ष मेयर होता है। नगर निगम की कार्यपालक शक्तियाँ उसमें औपचारिक रूप से उस तरह निहित होता है, जिस तरह राज्य प्रशासन में ये शक्तियाँ राज्यपाल में और राष्ट्रीय प्रशासन में राष्ट्रपति में निहित होती हैं।
3. नगर आयुक्त (City Commissioner) – वह नगर निगम का मुख्य कार्यपालक अधिकारी होता है। इसे नगरपालक भी कहा जाता है। नगर आयुक्त की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। यदि नगर निगम किसी केन्द्र शासित प्रदेश में है, तो उसकी नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है। इस पद पर नियुक्त किये जाने वाला अधिकारी भारतीय प्रशासनिक सेवा या राज्य की प्रशासनिक सेवा का अधिकारी होता है।
4. समितियाँ (Committees) – नगर निगम में प्रायः दो प्रकार की समितियाँ होती हैं-
(क) सांविधिक समितियाँ- इनकी रचना उस संविधि के अन्तर्गत की जाती हैं, जिसके द्वारा नगर निगम का रचना होती है। इसी अधिनियम में ही इन समितियों के गठन, शक्तियाँ, कार्यों और अधिकारों के बारे में स्पष्ट प्रावधान किये जाते हैं।
(ख) गैर-सांविधिक समितियाँ- यह ऐसी समितियाँ होती हैं, जिसकी रचना नगर निगम की परिषद् अपने प्रस्ताव के द्वारा करती है। यह निश्चित नियमों का पालन करती है।
(ii) नगरपालिका संरचना- नगरपालिकाएँ गैर-संप्रभु शासकीय संस्थाएँ मानी जाती है। इनकी रचना, संगठन, शक्तियाँ और कार्य सम्बन्धित राज्य सरकार द्वारा पारित अधिनियम से निर्धारित होते हैं। नगरपालिकाओं की संरचना नगर निगम की भाँति ही निम्नलिखित प्रकार की होती है-
1. नगरपालिका परिषद्- नगरपालिका का विचार-विमर्शकारी निकाय ‘परिषद्’ इस प्रणाली की प्रमुख संस्था होती है। इसमें नगर के वयस्क निवासियों द्वारा निर्वाचित सदस्य तथा उनके द्वारा सहवरित सदस्य और कुछ सदस्य सरकार द्वारा मनोनीत होते हैं। सम्पूर्ण नगर को चुनाव के लिए वार्डों में विभक्त कर दिया जाता है और प्रत्येक वार्ड से वयस्क मताधिकार के आधार पर सदस्यों का चुनाव होता है। चुने सदस्य पार्षद कहलाते हैं।
2. अध्यक्ष व उपाध्यक्ष ( Chairman and Deputy Chairman )- निर्वाचित परिषद् अपने सदस्यों में से ही अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का निर्धारित अवधि के लिए निर्वाचन करती है। अध्यक्ष नगर का प्रथम नागरिक होता है। वह परिषद् की बैठकी की अध्यक्षता करता है तथा कार्यकारी उत्तरदायित्व का निर्वाह भी करता है। उपाध्यक्ष उसके कार्यों में सहायता देता है।
3. अधिशासी अधिकारी (Executive Officer) – नगरपालिका में, परिषद् द्वारा निर्धारित नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए नियुक्त प्राधिकारी को अधिशासी अधिकारी कहा जाता है। प्रायः सभी राज्यों में इस प्राधिकारी की नियुक्ति सम्बन्धित राज्य सरकार द्वारा की जाती है। नगरपालिका का मुख्य अधियासी अधिकारी अपनी प्रशासनिक शक्तियों का उपयोग नगरपालिका के अध्यक्ष के अध्यक्ष के साथ संयुक्त रूप से करता है।
समितियाँ (Committees) – नगर निगम की भाँति ही नगर परिषद् में भी कार्य सुविधा की दृष्टि से विभिन्न प्रकार की समितियों का निर्माण किया जाता है। ये स्थानीय नगरीय प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है।
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