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महात्मा गाँधी के अनुसार पाठ्यचर्या (Curriculum According to Mahatma Gandhi)
महात्मा गाँधी ने एक नवीन शिक्षा प्रणाली का सूत्रपात किया जिसे बेसिक शिक्षा प्रणाली या बुनियादी शिक्षा के नाम से जाना जाता है। इस शिक्षा की पाठ्यचर्या क्रिया-प्रधान है। महात्मा गाँधी के अनुसार, पाठ्यचर्या में हस्त शिल्प को केन्द्रीय स्थान दिया जाना चाहिए इसके लिए उन्होंने आधारभूत शिल्प जैसे-कृषि, कताई, बुनाई, गत्ते का काम, लकड़ी का काम, चमड़े का काम, मत्स्य पालन आदि को महत्त्व दिया।
1) मातृभाषा – महात्मा गाँधी ने पाठ्यचर्या में मातृभाषा को प्रमुख स्थान दिया।
2) गणित
3) सामान्य विज्ञान
- जीव – विज्ञान
- वनस्पति विज्ञान
- शरीर विज्ञान
- स्वास्थ्य विज्ञान
- रसायन शास्त्र
- प्रकृति अध्ययन
- भौतिक-संस्कृति
- नक्षत्र – ज्ञान
4) कला – ड्राइंग व संगीत
5) सामाजिक अध्ययन इतिहास, भूगोल व नागरिक शास्त्र
6) हिन्दी (जहाँ पर मातृभाषा न हो)
7) शारीरिक शिक्षा – खेलकूद और व्यायाम
महात्मा गाँधी ने प्राथमिक व निम्न माध्यमिक स्तर तक के बालकों के लिए पाठ्यचर्या का निर्धारण किया।
शिक्षक (Teacher)
गाँधी जी के अनुसार शिक्षा की सफलता शिक्षक पर निर्भर करती है। अतः शिक्षक को विद्वान, सदाचारी, विषय के प्रति प्रवीणता तथा मानवीयता का गुण अवश्य होना चाहिए ताकि वह छात्रों का योग्य मार्गदर्शन कर सके। शिक्षकों को बालकों का विश्वास पात्र होना चाहिए।
छात्र (Student)
गाँधी जी के अनुसार बालक शिक्षा प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु होता है। बालक को स्वाध्यायी व लगनशील होना चाहिए। गाँधी जी सादा जीवन व उच्च विचार में विश्वास करते थे। अतः वे छात्रों से भी यही अपेक्षा करते थे। छात्रों को वैयक्तिक विकास के पूर्ण अवसर मिलने चाहिए।
महात्मा गाँधी के अनुसार अनुशासन (Discipline According to Mahatma Gandhi)
गाँधी जी ने अनुशासन को व्यक्ति के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है परन्तु उन्होंने छात्रों को स्वतन्त्र एवं आत्मानुशासन अर्थात् स्वयं अनुशासित रहने पर बल दिया है-
1) प्रभावात्मक अनुशासन- प्रभावात्मक अनुशासन से गाँधी जी का तात्पर्य, ऐसे अनुशासन से है जिससे बालक आत्मानुशासित होकर कार्य करे। इसके लिए उन्होंने शिक्षकों को अनुशासन में रहने का सुझाव दिया ।
2) दण्डरहित अनुशासन- गाँधी जी के अनुसार दण्ड व्यवस्था आवश्यक है परन्तु दण्ड ऐसा होना चाहिए जिससे बालकों को यह अनुभव हो कि उन्हें दण्ड उनकी भलाई के लिए दिया जा रहा है न कि किसी द्वेषवश।
3) स्नेहयुक्त व विश्वासयुक्त अनुशासन- गाँधी जी दमनात्मक अनुशासन के कठोर आलोचक थे, उनका मानना था कि बालकों को स्नेहपूर्वक बात को समझाना चाहिए। गाँधी जी के अनुसार अनुशासन बालकों को सही मार्ग दिखाने व उनका बौद्धिक व सामाजिक विकास करने के लिए होना चाहिए।
4) आत्मानुशासन- गाँधी जी ने आत्मानुशासन को प्रमुख स्थान दिया है। उनके अनुसार, बालक में जब तक स्वयं अनुशासन की भावना नहीं जाग्रत होगी, तब तक वह अनुशासित नहीं हो सकता है।
गाँधी जी की शिक्षा के अन्य पक्ष (Other Aspects of Education of Gandhiji)
गाँधी जी की शिक्षा के अन्य पक्ष निम्नलिखित हैं-
1) जन शिक्षा- उस समय साक्षरता का प्रतिशत काफी कम था। लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता नहीं थी। अतः गाँधी जी ने जन शिक्षा के सम्बन्ध में अपने विचार प्रस्तुत किए तथा प्रौढ़ शिक्षा, के साथ जन शिक्षा पर बल दिया।
2) स्त्री शिक्षा- गाँधी जी ने स्त्री शिक्षा के पक्ष में भी विचार प्रस्तुत किए हैं उन्होंने स्त्री को विभिन्न उत्तरदायित्वों के निर्वाह के लिए शिक्षित होना आवश्यक माना है, अतः उन्होंने अपनी शिक्षा में स्त्री शिक्षा को महत्त्व दिया है।
3) व्यावसायिक शिक्षा- गाँधी जी व्यक्ति का विकास उसके कर्म को मानते थे। उन्होंने कहा, “मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हस्तकौशल का प्रयोग करना चाहिए।” जिसके लिए उन्होंने कृषि एवं कुटीर उद्योग, बागवानी एवं हस्त कौशलों की शिक्षा को प्रोत्साहन दिया।
4) धार्मिक शिक्षा- गाँधी जी ने शिक्षा में धार्मिक शिक्षा के लिए, शिक्षा में पूजा, प्रार्थना, भजन एवं गीता पाठ को दैनिक कार्यों में सम्मिलित किया।
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