राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 की प्रमुख संस्कृतियाँ
जनवरी 1985 में भारत सरकार ने एक नई शिक्षा नीति के प्रस्तुति की घोषणा की और 1986 में यह नीति घोषित हुई। इस नीति के अन्तर्गत प्रमुख संस्कृतियाँ निम्न थी-
अध्यापक शिक्षा एक निरन्तरगामी प्रक्रिया है और सेवापूर्व और सेवाकालीन अवश्य इसके अविच्छिन्न अंग है। इस सम्पूर्ण प्रणाली का नवीनीकरण जरूरी है। अनौपचारिक शिक्षा प्रौढ़ शिक्षा और प्रारम्भिक विद्यालयी अध्यापक हेतु सेवापूर्व एवं सेवाकालीन पाठ्यक्रम का संचालन जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान द्वारा किया जाना चाहिए। चयनित माध्यमिक अध्यापक प्रशिक्षण महाविद्यालय स्तरोन्नत किये जायें। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद अध्यापक शिक्षा संस्थानों को मान्यता प्रदान करे, पाठ्यक्रम और विधि के सन्दर्भ में मार्गदर्शन प्रदान करे तथा अध्यापक शिक्षा संस्थान एवं विश्वविद्यालयीय शिक्षा विभागों के मध्य परिसंचार प्रबन्ध (Networking Arrangements) किये जाये।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर क्रियात्मक कार्यक्रम 1986 (Programme of Action NPE 1986) के माध्यम से अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त व्यावहारिक सुधारों के लिए सुझाव आदि दिये गये।
प्रारम्भिक अध्यापक शिक्षा-पुनर्व्यवस्थापन – प्रमुख कार्य-औपचारिक विद्यालय प्रणाली के लिए अध्यापकीय सेवापूर्व एवं सेवाकालीन शिक्षा को व्यवस्थित करना अनौपचारिक तथा प्रौढ़ शिक्षा अनुदेशक और पर्यवेक्षक के लिए प्रारम्भिक और निरन्तर शिक्षा का प्रबन्ध करना संस्थान नियोजन और प्रबन्धन हेतु संस्थानों के प्रमुखों के लिए दिशा-निर्देशन और प्रशिक्षण की व्यवस्था करना, सामुदायिक नेता स्वैच्छिक संगठन कार्मिक आदि जो विद्यालयीय शिक्षा को प्रभावित करते हों, के लिए दिशा-निर्देशन हेतु प्रबन्ध करना विद्यालय संकुल और जिला शिक्षा बोर्ड को शैक्षिक सहायता देना, क्रियात्मक शोध और प्रयोग करना प्राथमिक उच्च प्राथमिक विद्यालय अनौपचारिक तथा प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम हेतु मूल्यांकन केन्द्र का कार्य करना अध्यापक और अनुदेशकों के लिए संसाधन और अधिगम केन्द्र के रूप में कार्य करना जिला शिक्षा बोर्ड के लिए परामर्श और सुझाव देना आदि है। इन कार्यों का सम्पादन जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों के द्वारा हो यह जरूरी है, जिनके प्रमुख प्रारम्भिक शिक्षा से संलग्न उच्च स्तरीय व्यक्ति हों। आधुनिक तकनीकी, जैसे- संगणक आधारित प्रणाली दृश्य कैसेट रिकार्डर, दूरदर्शन आदि की सुविधा अदेशानात्मक संसाधन निर्माण हेतु ही जानी चाहिए।
माध्यमिक अध्यापक शिक्षा- इसका दायित्व विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त शिक्षा महाविद्यालयों पर ही हो, लेकिन राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की देखरेख में ही कार्य करें परीक्षा संचालन उपाधि प्रदान स्तर नियन्त्रण आदि भी उनके द्वारा नियन्त्रित हों। माध्यमिक स्तर के अध्यापकों के लिए निरन्तर शिक्षा हेतु प्रबन्ध करना भी उनके ही दायित्व होंगे। कुछ व्यापक संस्थान (Comprehensive intuitions) विकसित किये जाने चाहिए जो प्राथमिक अध्यापक शिक्षा और उच्च माध्यमिक स्तरोपरान्त चारवर्षीय एकीकृत पाठ्यक्रम भी संचालित कर सके जो बी०एड०एम०एड० कोर्स के साथ ही हो। शोध कार्य और एस० सी० ई० आर०टी० के कार्यों में पूरक के रूप में सहयोग करना भी इनके कार्य होंगे। उत्तम शिक्षा महाविद्यालयों को नवाचार प्रयोगीकरण आदि के लिए स्वायत्तशासी का दर्जा भी दिया जा सकता है।
सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा – समस्त स्तरीय अध्यापकों के लिए सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा का दायित्व एस०सी०ई० आर०टी० पर होगा जो नियोजन आर्थिक सहयोग नियन्त्रण और मूल्यांकन हेतु सभी कार्य करेंगे। डी० आई०ई०टी० प्राथमिक स्तर पर उन कार्यों को करने के लिए उत्तरदायी होंगे माध्यमिक स्तर के लिए अध्यापक प्रशिक्षण संस्थान और निरन्तर शिक्षा केन्द्र को जिला शिक्षा अधिकारी के तत्वावधान में दायित्व दिया जायेगा। दूरस्थ शिक्षा प्रणाली को प्रयोग में लाया जायेगा जिसके लिए अधिगम सामग्री निर्माण का दायित्व पहले एस०सी० ई० आर० टी० पर ही होगा और क्रमशः संसाधन और सुविधाएँ व्यापक महाविद्यालय तथा डी०आई० ई०टी० को दिये जायेंगे। विभिन्न स्वैच्छिक संगठनों से भी सहयोग अपेक्षित होगा।
अध्यापक शिक्षक पद (Cadre of Teacher Educators) – एस०सी०ई० आर० टी० माध्यमिक अध्यापक शिक्षा संस्थान डी०आई० ई०टी० आदि में अध्यापक शिक्षक या टीचर एजुकेटर के विशिष्ट पद तैयार किये जायेंगे। चयनित व्यक्ति को आवास और उच्च वेतनमान में स्थापना की सुविधा दी जायेगी तथा उनके लिए निरन्तर शिक्षा हेतु प्रबन्ध भी किये जायेंगे जिसमें शिक्षक और अध्यापक शिक्षकों का अन्तर्विनिमय भी शामिल होगा। प्रत्येक 4-5 में एक दो वर्ष के लिए इस विनिमय की व्यवस्था होगी।
टास्क फोर्स का गठन – प्रत्येक राज्य सरकार को राज्य में अध्यापक शिक्षा संस्थाओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए टास्क फोर्स का गठन करना चाहिए। ऐसे संस्थानों की भी पहचान किये जाने की आवश्यकता है जिनका विकास डी०आई०ई०टी० के रूप में करना सम्भव हो सके।
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद- वैधानिक दर्जा प्राप्त करने के बाद इस परिषद के प्रमुख कार्य अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में अग्रलिखित माने गये जैसे –
(क) अध्यापक शिक्षा के संस्थानों को मान्यता प्रदान या उसे समाप्त करना।
(ख) अध्यापक शिक्षा-संस्थानों के लिए मानक तथा स्तर (Standards and norms) निर्धारित करना।
(ग) अध्यापक शिक्षा पाठ्यक्रम तथा विधियों के लिये मार्गदर्शिका (Guidelines) तैयार करना।
(घ) अन्य कार्य निर्दिष्ट करना जिनमें सेवारतकालीन शिक्षा हेतु क्रेडिट निर्दिष्ट करना विविध पाठ्यक्रमों की अवधि तय करना अनौपचारिक शिक्षा/प्रौढ़ शिक्षा अनुदेशकों के लिए निर्दिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रम पर बल देना अध्यापक शिक्षा में पत्राचार पाठ्यक्रमों के स्थान को निर्धारित करना आदि।
अधिगम सामग्री तैयार करना वरिष्ठ अध्यापक शिक्षकों के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करना आदि कार्य एन०सी०आई० आर०टी० तथा एस०सी०ई०आर०टी० आदि के द्वारा लेकिन इस परिषद के सहयोग से सम्पन्न किये जायेंगे। शिक्षा और संस्कृति कार्यानुभव, शारीरिक शिक्षा, खेलकूद भारतीय सांस्कृतिक अध्ययन तथा एकता एवं समावेशनात्मक समस्याओं का अध्ययन आदि के सन्दर्भ में अध्यापक शिक्षा के पाठ्यक्रम के संशोधन की आवश्यकता को पूर्ण करने का दायित्व भी इस परिषद का ही होगा। नियोजन और प्रबन्धन जैसे उभरते क्षेत्र के महत्व को पाठ्यक्रम में स्थान देना जरूरी है। शैक्षिक तकनीकी का अध्ययन-अधिगम प्रविधियों तथा विषय-वस्तु एवं उनके प्रारूप (Contents and their designs) पर पड़ने वाले प्रभाव को भी स्थान देना आवश्यक माना गया। भारतीय दर्शन और मनोविज्ञान की विचारधारा पर जोर देना नवीन पाठ्य-पुस्तक सन्दर्भ पुस्तक विवरण क्रम (Anthologies) स्लाइड फिल्म आदि के निर्माण के माध्यम से भी आवश्यक माना गया और उसे अध्यापक शिक्षा के पाठ्यक्रम में स्थान देना अनिवार्य ठहराया गया। यह कार्य भी परिषद का ही होगा।
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