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लिकर्ट की चार प्रबन्ध नेतृत्व प्रणालियाँ | Likert’s Four Systems of Management Leadership in Hindi

लिकर्ट की चार प्रबन्ध नेतृत्व प्रणालियाँ | Likert's Four Systems of Management Leadership in Hindi
लिकर्ट की चार प्रबन्ध नेतृत्व प्रणालियाँ | Likert’s Four Systems of Management Leadership in Hindi

लिकर्ट की चार प्रबन्ध नेतृत्व प्रणालियाँ (Likert’s Four Systems of Management Leadership)

लिकर्ट (Likert) ने अपने विशिष्ट अध्ययनों में पाया कि संगठनात्मक नेतृत्व अथवा प्रबन्ध की शैलियों को निम्न चार आधारभूत प्रणालियों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

(1) प्रणाली एक शोषणकारी निरंकुश नेतृत्व (System Exploitive Autocratic Leadership) –

शोषणकारी निरंकुश नेतृत्व शैली को अपनाने वाले प्रबन्धक के निम्न लक्षण होते हैं-

(अ) वह अधीनस्थों में विश्वास एवं भरोसा नहीं रखता है।

(ब) अधीनस्थों को अपनी कार्य समस्याओं के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करने की कोई स्वतन्त्रता नहीं होती है।

(स) वह अपने अधीनस्थों के विचार, राय या सुझाव कभी-कभार (Seldom) ही प्राप्त करता है।

(द) लक्ष्यों का निर्धारण एवं निर्णयन केवल उच्च स्तर पर होता है।

(इ) डर, दण्ड, चेतावनी तथा कभी-कभी शारीरिक एवं सुरक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति के आधार पर अधीनस्थों को कार्य करने के लिए विवश किया जाता है।

(फ) नियन्त्रण प्रक्रिया का केन्द्रीयकरण होता है।

(ग) ऐसे प्रबन्धक के विरोध में प्रायः अनौपचारिक संगठन विकसित हो जाता है।

(2) प्रणाली दो-हितकारी निरंकुश नेतृत्व (System 2-Benevolent Autocratic Leadership)—

हितकारी निरंकुश नेतृत्व की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ होती हैं-

(अ) प्रबन्धक अपने अधीनस्थों पर केवल कृपापूर्वक भरोसा (Condescending trust) करता है, जैसे मालिक नौकर पर करता है ।

(ब) अधीनस्थों को विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता नहीं होती, यद्यपि कभी-कभी प्रबन्धक स्वयं अपने विचार जान लेता है।

(स) अधिकांश निर्णय तो उच्च स्तर पर ही लिये जाते हैं, किन्तु कुछ निर्णय निम्न स्तरों पर भी लेने दिये जाते हैं।

(द) पुरस्कार, वास्तविक दण्ड या भय अभिप्रेरण के साधन होते हैं।

(इ) अनौपचारिक समूह भी बनते हैं, किन्तु ये सदैव संगठनात्मक लक्ष्यों के विरोध में नहीं होते।

(3) प्रणाली तीन-परामर्शक या सहभागी नेतृत्व (System 3-Consultative or Participative Leadership)—

इस प्रबन्ध प्रणाली के प्रमुख तत्त्व निम्न हैं-

(अ) प्रबन्धक अधीनस्थों पर पर्याप्त भरोसा करता है, किन्तु पूर्ण नहीं। वह निर्णयों पर भी नियन्त्रण रखता है।

(ब) कुछ सीमा तक अधीनस्थों को विचार- विमर्श की स्वतन्त्रता होती है। प्रबन्धक अक्सर (Usually) उनकी राय लेता है।

(स) सामान्य नीति एवं निर्णय उच्च स्तर पर लिये जाते हैं, जबकि विशिष्ट निर्णयों को लेने को स्वतन्त्रता निचले स्तरों पर होती है।

(द) सम्प्रेषण एवं अन्तर्व्यवहार दोतरफा होता है।

(इ) अनौपचारिक संगठन या तो प्रबन्ध को सहयोग देते हैं अथवा सीमित विरोध करते हैं।

(4) प्रणाली चार-जनतन्त्रीय नेतृत्व (System 4-Democratic Leadership) –

लिकर्ट के अनुसार जनतन्त्रीय प्रबन्ध में निम्न बातों पर बल दिया जाता है-

(अ) प्रबन्धक समस्त मामलों में पूर्ण भरोसा करता है।

(ब) अधीनस्थों को विचार-विमर्श की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।

(स) प्रबन्धक सदैव अपने अधीनस्थों का परामर्श लेकर कार्य करता है।

(द) निर्णयन सम्पूर्ण संगठन में फैला होता है।

(इ) सम्प्रेषण क्षैतिज (Sideways) एवं विकर्णीय (Diagonal) भी होता है।

(फ) सहभागिता, प्रगाढ़ सम्बन्ध, मान्यता, आत्म-विकास के अवसर, मौद्रिक पुरस्कार आदि अभिप्रेरणा के साधन होते हैं।

(ग) नियन्त्रण का उत्तरदायित्व व्यापक होता है, जिनमें निम्न इकाइयों भी सम्मिलित होती हैं।

(ह) औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन प्रायः एक ही एवं समरूप होता है।

संक्षेप में, प्रणाली 1, कार्य- अभिमुखी, उच्च रूप से संरचित (Highly Structured) तथा निरंकुश प्रबन्ध शैली है। दूसरी ओर प्रणाली 4 समबन्ध अभिमुखी शैली है, जो कि पारस्परिक विश्वास, दलीय भावना एवं सन्तुष्टि पर आधारित है। इन दोनों अतियों के मध्य प्रणाली 3 व 4 आती हैं, जो कि लगभग ‘एक्स’ एवं ‘वाई’ विचारधारा के समरूप हैं।

लिकर्ट की चार प्रबन्ध नेतृत्व प्रणालियाँ

रेन्सिस लिकर्ट ने नेतृत्व प्रक्रिया के सम्बन्ध में एक मॉडल भी सुझाया है। उनका मत है कि “एक जटिल संगठन में नेतृत्व तथा निष्पादन के बीच सम्बन्ध को चल घटकों की तीन व्यापक श्रेणियाँ प्रभावित करती हैं। “

ये चल घटक (Variables) निम्नलिखित हैं-

प्रथम- जो हस्तक्षेप से उत्पन्न होता है, इसे नेतृत्व घटक कहते हैं, जिसमें समर्थन नेतृत्व, समूह पर्यवेक्षण, उच्च लक्ष्य, लिंकिंग पेन तथा विशेषज्ञता आते हैं।

दूसरा — जो समय अन्तराल से बनता है, मध्यवर्ती घटक कहलाता है, जिसमें अभिवृत्तियाँ, निष्ठा, अभिप्रेरणा, सम्बन्ध एवं अवबोध आता है।

तीसरा — जो प्रभाव द्वारा उत्पन्न होता है, परिणाम घटक कहा जाता है, इसमें मुख्य रूप से उत्पादकता, सेवा, लागत, किस्म तथा लाभ आदि आते हैं।

इस प्रकार लिंकर्ट के मतानुसार नेतृत्व शैली तथा श्रेष्ठ निष्पादन में प्रत्यक्ष कोई कारण एवं प्रभाव का सम्बन्ध नहीं है। मध्यवर्ती घटकों पर भी विचार किया जाना चाहिए। 

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Anjali Yadav

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