लेखांकन मानदण्ड क्या हैं? What are the accounting standards?
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लेखांकन प्रमाप (Accounting Standards)
विभिन्न प्रयोगकर्ताओं की विविध सूचना सम्बन्धी आवश्यकता की पूर्ति वित्तीय विवरणों के एकसमान प्रारूप द्वारा करने की आकांक्षा ने विश्व भर की पेशेवर लेखांकन संस्थाओं को लेखांकन का एक आवधारणात्मक ढाँचा तैयार करने के लिए बाध्य कर दिया है। फलस्वरूप लेखांकन प्रमापों का आविर्भाव हुआ और यह लेखांकन प्रमापों का ही कार्य है कि वह एक विवेकपूर्ण संरचनात्मक ढाँचा उपलब्ध कायें ताकि उच्च कोटि के गुण वाले विश्वसनीय वित्तीय विवरण तैयार किये जा सकें। श्री टी० पी० घोष के अनुसार, “लेखांकन लेन-देनों एवं घटनाओं के मापन, व्यवहार एवं प्रकटीकरण के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित प्रमाणित विशेषज्ञ लेखांकन संस्था द्वारा निर्गमित नीतिगत प्रपत्रों को ही लेखांकन प्रमाप कहते हैं।”
कोहलर ने लिखा है कि (लेखांकन प्रमाप) “व्यवहार का एक माध्यम है जो पेशेवर संस्थाओं, परपम्पराओं व कानून द्वारा लेखापालकों पर लागू किया जाता है। “
व्यवसाय की भाषा के रूप में लेखांकन को विकसित करने का सबसे महत्त्वपूर्ण कदम लेखांकन प्रमापों का विकास करना है। ये प्रमाप भौतिक विज्ञानों की भाँति दृढ़ नहीं होते हैं। व्यावसायिक संस्थाओं की विशिष्ट दशाओं के अनुसार ये लेखांकन प्रमाप यथोचित भाषा में लचीलेपन व वैयक्तिता से परिपूर्ण होते हैं। इस प्रकार आर्थिक पर्यावरण, सामाजिक आवश्यकता, कानूनी अनिवार्यता व तकनीकी विकास में परिवर्तन के अनुरूप इन्हें संशोधित भी किया जा सकता है, परन्तु साथ ही अविवेकपूर्ण एवं विविध लेखांकन नीतियों एवं व्यवहारों को दूर करने का प्रयास भी किया जाता है। वस्तुतः लेखांकन प्रमाप की पूर्ण धारणा व्यवसाय द्वारा प्रयुक्त लेखांकन नीतियों एवं व्यवहारों में सामंजस्यता (समानता) के इर्द-गिर्द केन्द्रित होती है ताकि लेखांकन के विभिन्न पहलुओं के लिए प्रयुक्त लेखांकन व्यवहारों का प्रमापीकरण किया जा सके। लेखांकन नीतियों में इस प्रकार की सामंजस्यता (समानता) की जरूरत राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय दोनों स्तर पर ही पड़ती है।
लेखांकन प्रमाप की आवश्यकता (Need for Accounting Standards)
लेखांकन की विचारधाराएँ, मान्यताएं तथा लेखांकन सिद्धान्त के लिए एक आधार का निर्माण करते हैं तथा ये लेखांकन कार्यों में प्रयोग किये जाने वाले नियमों को निश्चित करते हैं। लेकिन इनके प्रयोग के सम्बन्ध में संस्थाओं पर कोई बन्धन या दबाव नहीं होता है। वरन् इनका प्रयोग जनसाधारण पर निर्भर करता है और यदि लेखापालक इन आधारभूत मान्यताओं व अवधारणाओं पर आधारित नियमों में परिवर्तन करना चाहते हैं, तो ऐसा करने के लिये वे पूर्ण स्वतन्त्र होते हैं।
लेखांकन व्यवहारों की जटिलताओं को दूर करने तथा उनमें विश्वसनीयता एवं प्रामाणिकता लाने तथा वित्तीय विवरणों को तैयार करने में समानता लाने के उद्देश्य से रेखांकन प्रमापों का महत्त्व सर्वाधिक है। आन्तरिक एवं बाह्य बन्धनों पर आधारित इन लेखांकन प्रमापों का उद्देश्य संस्था के लेखांकन कार्यों के लिए एक आधार तैयार करना है।
लेखांकन प्रमाप के उद्देश्य (Objectives of Accounting Standards)
लेखांकन मानदण्डों के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) लेखांकन नीतियों और व्यवहारों में एकपता लाना- लेखांकन मानदण्डों का प्रमुख उद्देश्य विभिन्न लेखांकन नीतियों और व्यवहारों को प्रमाणित करना है जिससे जहाँ तक सम्भव हो, वित्तीय विवरणों की अतुल्यत समाप्त की जाये और उन्हें विश्वसनीय और तुल्य बनाया जा सके।
(2) वित्तीय विवरणों में अभिव्यक्ति की सीमा निर्धारित करना- वित्तीय विवरणों और सम्बन्धित अंकेक्षक प्रतिवेदनों में विभिन्न मामलों की अभिव्यक्ति या प्रकटीकरण की सीमा भी लेखांकन मानदण्ड ही निर्धारित करते हैं। इस प्रकार का प्रकटीकरण वित्तीय विवरणों के बाद समुचित टिप्पणियाँ देकर किया जा सकता है जिसमें किसी विशिष्ट मद के लेखांकन व्यवहार की व्याख्या की जा सकती है।
लेखांकन प्रमाप की उपयोगिता (Utility of Accounting Standard)
लेखांकन मानदण्डों की वित्तीय सूचन में एक अति महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। ये उपभोक्ता को लेखों की तैयारी के आधार स्पष्ट करते हैं। ये विभिन्न व्यावसायिक इकाइयों अथवा एक ही व्यावसायिक इकाई के वित्तीय विवरणों को तुल्य बनाते हैं। इसके अतिरिक्त वित्तीय सूचन में मान्यताओं, नियमों और नीतियों में एकरूपता के कारण सूचित समंकों में हेराफेरी की मात्रा में महत्त्वपूर्ण कमी आती है तथा वित्तीय विवरणों की विश्वसनीयता बढ़ती है और वे तुल्य हो जाते हैं। अतः ये प्रबन्धकों, अंशधारियों, विनियोक्ताओं, लेनदारों, कर्मचारियों, सरकार, शोधकर्त्ता सभी के लिये उपयोगी है। इस प्रकार लेखांकन मानदण्ड लेखांकन समंकों के प्रयोगकर्त्ताओं के बीच वित्तीय समंकों को विश्वसनीयता औरपारदर्शिता प्रदान करते हैं।
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