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विकास का अर्थ एंव विशेषतायें | Meaning and characteristics of development in Hindi

विकास का अर्थ एंव विशेषतायें | Meaning and characteristics of development in Hindi
विकास का अर्थ एंव विशेषतायें | Meaning and characteristics of development in Hindi
विकास का अर्थ स्पष्ट करते हुये उसकी विशेषतायें बताइये।

विकास का अर्थ (Meaning of development)

शरीर के विभिन्न कोष्ठों के आकार एवं संख्या में परिवर्तन को अभिवृद्धि कहा जाता है और विकास शरीर के इन कोष्ठों के कार्य करने की ओर संकेत करता है। शरीर के प्रत्येक भाग का ठीक-ठाक काम करते रहना विकास का सूचक है। विकास से ही मानव के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास होता है, जिसमें उसका मानसिक, संवेगात्मक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक विकास शामिल है। विकास एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है और यह प्रक्रिया जन्म से पूर्व ही प्रारम्भ हो जाती है। बालक के विकास का अभिप्राय उसके गर्भ में आने से लेकर प्रौढ़ता प्राप्त होने के क्रम से है। बालक जब गर्भ में होता है तो उसका यह विकास का क्रम निश्चित होता है। गर्भ से बाहर आने के बाद उसके विकास का एक नया क्रम प्रारम्भ होता है। संक्षेप में विकास एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है जो जन्म से पूर्व ही उसके गर्भ में आ जाने के साथ प्रारम्भ हो जाती है। कुछ विद्वानों ने विकास को परिभाषित करने का भी प्रयास किया है। कुछ विद्वानों की परिभाषाओं को हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं-

मुनरो के अनुसार, “परिवर्तन श्रृंखला जिसमें बालक भ्रूण अवस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है, विकास के नाम से जानी जाती है।”

हरलॉक के अनुसार, “विकास बढ़ने (बड़े होने) तक ही सीमित नहीं है। यह व्यवस्थित तथा समानुगत प्रगतिशील क्रम है जो परिपक्वता की प्राप्ति में सहायक होता है।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि विकास का तात्पर्य केवल बालक के बढ़ने से ही नहीं बल्कि विकास का अर्थ बालक में होने वाले निरन्तर परिवर्तन क्रम से है। विकास की यह प्रक्रिया बालक के जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है। इस निरन्तर परिवर्तन क्रम को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है।

(1) आकार में परिवर्तन- जैसे-जैसे बालक की आयु बढ़ती है उसके आकार में परिवर्तन होने लगते हैं। बालक का कद, वजन बढ़ने लगता है तथा उसके शरीर के अन्य भागों का भी विकास होने लगता है। बालक के शरीर के आन्तरिक भाग जैसे हृदय, फेफड़े, नाड़ियां आदि भी विकसित होने लगते हैं। उसी के अनुरूप बालक का मानसिक विकास भी होने लगता है। बालक की बुद्धि में भी विकास होता है। वह नये-नये शब्दों को सीखना प्रारम्भ करता है और उसके शब्दकोष में वृद्धि होती है।

(2) अनुपात में परिवर्तन- जैसे-जैसे बालक बड़ा होता है उसके शरीर में अनुपातिक परिवर्तन होने लगता है। उसकी मानसिक क्रियाओं के विकास में भी अनुपातिक परिवर्तन होने प्रारम्भ हो जाते हैं। बालक की रुचि, कल्पना, क्षमता, बुद्धि आदि में अनुपातिक परिवर्तन होते हैं।

(3) पुराने लक्षण समाप्त होना- बालक की उम्र जैसे-जैसे बढ़ती है उसके अनेक पुराने लक्षण समाप्त होने प्रारम्भ हो जाते हैं। उदाहरण के लिए शैशवावस्था में बालक के शरीर मैं ग्रीवा तथा शीर्ष नाम की दो ग्रन्थियां होती हैं लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता है उसकी यह ग्रन्थियां लुप्त हो जाती हैं। इसका एक और उदाहरण बालक के दूध के दांत भी हैं। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है उसके दूध के दांत टूटने लगते हैं और उसके स्थान पर नये दांत आने लगते हैं।

(4) नवीन लक्षणों का परिलक्षित होना- विकास की इस प्रक्रिया में बालक के पुराने लक्षणों के समाप्त हो जाने के साथ-साथ बालक नवीन लक्षणों को ग्रहण करने लगता है। यह नवीन लक्षण शारीरिक और मानसिक दोनों ही प्रकार के होते हैं। किशोरावस्था में तो बालक के शरीर में खास परिवर्तन आने प्रारम्भ होते हैं जैसे लड़कों की दाढ़ी मूंछ निकलना, उनकी आवाज में परिवर्तन आ जाना आदि। बालिकाओं में ये लक्षण उनके स्तनों में उभार एवं मासिक धर्म आदि के रूप में देखे जा सकते हैं। इस उम्र में अक्सर देखा गया है कि बालक-बालिकाएं यौन सम्बन्धी विषयों पर चर्चा करने में रुचि लेने लगते हैं। वह इस उम्र में अधिक स्वतन्त्रता भी चाहते हैं। स्पष्ट है पुराने लक्षणों को समाप्त होकर नये लक्षणों को ग्रहण करना विकास का ही एक क्रम है।

विकास की परिभाषाओं, अर्थ व उसके क्रमों को जान लेने के बाद विकास की कुछ प्रमुख विशेषताएं स्पष्ट होती हैं।

विकास की विशेषताएं (Features of development)

(1) विकास एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है और इसमें क्रमिक परिवर्तन पाये जाते हैं।

(2) विकास की विभिन्न अवस्थाएं होती हैं और विकास प्रत्येक अवस्था में समान नहीं होता।

(3) विकास प्रगतिपूर्ण होता हैं।

(4) बालक-बालिकाओं में होने वाले क्रमिक परिवर्तनों का एक दूसरे के साथ सम्बन्ध रहता है।

(5) विकास की प्रक्रिया में होने वाले परिवर्तन मात्रात्मक होते हैं। प्राचीन समय में इन परिवर्तनों को गुणात्मक माना जाता रहा है।

(6) विकास के परिवर्तनों की गति एक समान नहीं होती। भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में यह गति भिन्न-भिन्न होती है। उदाहरण के लिए गर्भावस्था में विकास की गति बहुत तीव्र और प्रौढ़ावस्था में गति बहुत ही कम हो जाती है।

(7) शारीरिक या मानसिक विकास के परिणामस्वरूप बालकों में अनेक विशिष्ट लक्षण प्रकट होने लगते हैं। किशोरावस्था में हुए परिवर्तन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

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Anjali Yadav

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