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विद्यालय आय व व्यय | SCHOOL INCOME AND EXPENDITURE

विद्यालय आय व व्यय | SCHOOL INCOME AND EXP.
विद्यालय आय व व्यय | SCHOOL INCOME AND EXP.

विद्यालय आय व व्यय | SCHOOL INCOME AND EXPENDITURE

विद्यालय बजट तैयार करने से पूर्व हमें विद्यालय की आवश्यकताओं व प्राथमिकताओं का निर्धारण करना होता है तथा आय के स्रोतों व साधनों को तय करके उनसे प्राप्त होने वाली आय का अनुमान लगाना पड़ता है तथा हमारी प्राथमिकताओं के अनुसार उसे खर्च करना पड़ता है। विद्यालय में आय व व्यय के साधन व मदें निम्नलिखित होती हैं-

आय के स्त्रोत (Sources of Income)

किसी भी विद्यालय में आय के अनेक स्रोत होते हैं। इन स्रोतों से जो धन संग्रह किया जाता है उसे शैक्षिक आय कहा जाता है। शैक्षिक आय के सम्भावित स्रोत निम्न हो सकते हैं-

1. सरकारी स्त्रोत (Government Sources)

ये निम्न हैं-

(I) केन्द्रीय सरकार (Central Government)- शिक्षा पर केन्द्र, राज्य व स्थानीय निगम तीनों द्वारा अलग-अलग व्यय किया जाता है। शिक्षा के लिए अलग से बजट बनाया जाता है। केन्द्रीय सरकार सम्पूर्ण राष्ट्र के शैक्षिक हितों को ध्यान में रखते हुए बजट का निर्माण करती है। भूतपूर्व राष्ट्रपति माननीय स्व. अब्दुल कलाम आजाद ने भी मन्त्रिमण्डल को शिक्षा पर बजट का प्रतिशत बढ़ाने का सुझाव दिया था। केन्द्रीय सरकार राज्य सरकार की सीधे ही तथा विभिन्न संस्थाओं व आयोगों के माध्यम से शिक्षा पर व्यय करती है। केन्द्रीय सरकार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (U.G.C.). राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् (N.C.E.R.T.) व योजना आयोग, आदि द्वारा अनुदान देती है।

(ii) राज्य सरकार (State Government)- राज्य सरकार केन्द्र सरकार से प्राप्त राशि (अनुदान) तथा अपनी आय में से कुछ प्रतिशत शिक्षा के लिए बजट में निर्धारित करती है। लेकिन यह दुःखद विषय है कि राज्य सरकारों द्वारा शिक्षा के लिए निर्धारित बजट राशि अत्यन्त ही कम होती है, जबकि इस पर व्यय की जाने वाली राशि अधिक होनी चाहिए। राज्य सरकार समस्त विश्वविद्यालयों संगठनों, स्वायत्त संस्थाओं, निजी संस्थाओं, आदि को अनुदान देकर सहायता प्रदान करती है।

(iii) स्थानीय शासन (Local Administration)- नगर निगम, नगर पालिका, जिला परिषद्, ग्राम पंचायत, आदि स्थानीय शासन के अन्तर्गत आते हैं। ये स्थानीय करों का कुछ अंश व राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान को शिक्षा पर व्यय करते हैं। सामान्यतया इसमें प्राथमिक शिक्षा ही आती है।

2. विदेशी स्त्रोत (Foreign Sources)

अनेक सम्पन्न देशों के अभिकरण (Agencies) तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के अभिकरण, विदेशी स्रोत के रूप में भारत सरकार की स्वीकृति से विदेशों में अध्ययन के लिए छात्रवृत्तियों व हमारे देश में विशेष कार्यक्रमों जैसे लोक जुम्बिश, आदि के लिए धन की व्यवस्था, उपकरणों की व्यवस्था, तथा तकनीकी परामर्श व विषय विशेषज्ञों का भ्रमण, आदि कार्य किये जाते हैं। मुख्यतः यूनीसेफ व यूनेस्को द्वारा भारत को अनुदान प्राप्त होता है।

3. निजी स्रोत (Personal Sources)

विद्यालयों को अपने अनेक निजी स्रोतों; जैसे-शुल्क, जुर्माना, चन्दा व उपहार, आदि से आय प्राप्त होती है। निजी स्रोत से प्राप्त आय के साधन निम्नलिखित है—

(1) विद्यालय शुल्क (School fees)–निजी स्रोतों में विद्यालय शुल्क आय का प्रमुख स्रोत है। इसके अन्तर्गत मुख्यतः शिक्षण शुल्क प्रवेश शुल्क, प्रयोगशाला शुल्क, भवन शुल्क, विकास शुल्क, परिवहन शुल्क, क्रीड़ा शुल्क, परीक्षा शुल्क, पुस्तकालय शुल्क, आदि आते हैं। यदि आवासीय विद्यालय है तो हॉस्टल शुल्क से भी आय होती है।

(ii) जुर्माना (Fine)- विद्यालय प्रबन्धन अपने विद्यालय में छात्रों से अनुशासन भंग करने, पुस्तकालय की पुस्तकें समय पर वापस न करने, विद्यालय नियम भंग करने, विद्यालय देर से आने, आदि पर जुर्माना वसूल करता है। इससे भी विद्यालय को थोड़ी आय होती है।

(iii) अभिभावक शिक्षक संघ सहायता राशि (Parent teacher association support amount)- आजकल अभिभावक शिक्षक संघ (PTA) लगभग प्रत्येक विद्यालय में बनाये जाते हैं जिसमें विद्यालय की समस्याओं का समाधान कर उसे उन्नत बनाने के प्रयास किये जाते हैं। इस संघ में विद्यालय की आर्थिक समस्याओं व शिक्षकों के सम्मान, आदि के लिए अभिभावक द्वारा सहायता राशि दी जाती है। यह राशि भी आवश्यकतानुसार विद्यालय द्वारा काम में ली जाती है।

(iv) चन्दा या दान व उपहार (Donation and Gift)- कई दानवीर व्यक्तियों द्वारा विद्यालयों को धन या भूमि या भवन निर्माण, आदि का कार्य करवाया जाता है। यह धन जनता द्वारा स्वेच्छा से दिया जाता है अतः इसे चन्दा या दान कहा जाता है। प्राचीनकाल में राजा-महाराजा द्वारा या जनता द्वारा शैक्षिक कार्यों हेतु अत्यधिक मात्रा में दान स्वरूप भूमि व धन दिया जाता था। वर्तमान में भी श्रेष्ठ छात्रों को छात्रवृत्ति के रूप में धन प्राप्त होता है तथा विशेष रूप से अप्रवासी भारतीयों द्वारा दान व उपहार स्वरूप धन प्राप्त होता है।

(v) स्थायी निधि (Endowments)– इसमें ऐसा धन आता है जो विद्यालय में स्थायी निधि के रूप में सुरक्षित रहता है। इससे मिलने वाले ब्याज को विभिन्न कार्यों में व्यय किया जाता है। यह धन विद्यालय में आकस्मिक घटनाओं का सामना करने के लिए भी बनता है।

(vi) प्रायोजित राशि (Sponsorship) आजकल विद्यालय में अनेक बड़ी-बड़ी व्यापारिक संस्थाओं द्वारा प्रायोजित राशि के रूप में भी सहायता दी जाती है। ये संस्थाएँ कुछ-न-कुछ कार्यक्रमों का प्रायोजन संस्थाओं में करती रहती हैं।

इसके अतिरिक्त विद्यालय की आय में विद्यालय भवन से प्राप्त किराया, विद्यालय सम्पत्ति से होने वाला लाभ, बैंक में जमा अन्य राशि का ब्याज, आदि भी सम्मिलित होता है।

शैक्षिक व्यय (Educational Expenditure )

शिक्षण संस्थाओं द्वारा शिक्षा व्यवस्था के लिए आवश्यक साधनों (मानवीय तथा भौतिक) की पूर्ति के लिए किया गया व्यय शैक्षिक व्यय कहलाता है। सामान्यतः विद्यालय में निम्न प्रकार से व्यय किया जाता है-

1. प्रधानाध्यापक, अध्यापक, कर्मचारियों, पुस्तकालयाध्यक्ष आदि के वेतन भत्ते

2. परीक्षाओं पर व्यय,

3. पुस्तकालय पर व्यय,

4. भवन का किराया तथा मरम्मत,

5. विज्ञान, भूगोल, आदि विषयों के प्रयोग हेतु उपकरण,

6. फर्नीचर, आदि की खरीद,

7. सहायक शिक्षण सामग्री,

8. खेलकूद के मैदान व विद्यालय के बाग-बगीचों का रख-रखाव,

9. लेखन सामग्री या स्टेशनरी,

10. स्वास्थ्य सेवा व जाँच,

11. विज्ञापन,

12. विजली तथा पानी के बिल,

13. टेलीफोन, ई-मेल, फैक्स, आदि के बिल,

14. भवन निर्माण,

15. छात्रवृत्तियाँ,

यदि आवासीय विद्यालय है तो–

16. हॉस्टल की मरम्मत व रखरखाव,

17. भोजन, इत्यादि पर व्यय,

18. अन्य व्यय

इस प्रकार उक्त वर्णित व्यय विद्यालय द्वारा किया जाता है। इसको एक साथ अलग-अलग समूहों में रखकर वर्गीकृत किया जाता है। इस व्यय का वर्गीकरण मुख्यतः आवर्ती व अनावर्ती व्यय में किया जाता है-

(i) आवर्ती व्यय- ऐसा व्यय जो एक निश्चित समयावधि के पश्चात् पुनः होते हैं आवर्ती व्यय में आते हैं। जैसे—भवन की मरम्मत, रख-रखाव (पुताई इत्यादि), वेतन आदि।

(ii) अनावर्ती व्यय- इस प्रकार का व्यय एक बार होता है तथा वस्तु के समाप्त या नष्ट होने तक उस पर पुनः व्यय नहीं किया जाता, ऐसा व्यय प्रतिवर्ष नहीं होता है। जैसे-नया भवन निर्माण या पुराने भवन में ही नये कक्षों का निर्माण, फर्नीचर, आदि पर किया गया व्यय।

इसी प्रकार कोठारी आयोग ने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष के रूप में वर्गीकरण किया है—प्रत्यक्ष कर में विद्यालय को निरन्तरता प्रदान करने के लिए विद्यालय द्वारा किया जाने वाला व्यय आता है; जैसे—वेतन, यात्रा भत्ता, फर्नीचर, आदि पर किया जाने वाला व्यय। इसमें आवर्ती व्यय आता है तथा मुख्य रूप से दिखाई देने वाले व्यय प्रत्यक्ष व्यय कहलाते हैं।

अप्रत्यक्ष व्यय में साल में एक बार किये जाने वाले व्यय आते हैं। जैसे—निर्देशन, निरीक्षण, छात्रावास पर व्यय, छात्रवृत्तियाँ, उपकरणों की व्यवस्था, आदि।

इसके अतिरिक्त योजनाबद्ध व्यय, आकस्मिक व्यय, लागत, आदि भी व्यय के अन्तर्गत आते हैं।

विद्यालय बजट निर्माण (Preparing a School Budget)

बजट विद्यालय में वर्ष भर किये जाने वाले व्यय का आधार होता है। इसकी सहायता से हमें यह ज्ञात होता है कि किस कार्यक्रम में कितना खर्च करना है तथा इसके लिए धन की प्राप्ति कहाँ से होगी। बजट यदि अच्छी प्रकार न बनाया जाए तो पर्याप्त धन होने पर भी उचित योजना के अभाव में पूरा प्रबन्धन ही विफल हो जाता है। इसके विपरीत एक सन्तुलित बजट होने पर यदि धन का अभाव भी हो तो कोई विशेष समस्या उत्पन्न नहीं होती है। किसी भी सन्तुलित बजट के निर्माण में मुख्यत: निम्न चरण होते हैं-

1. विद्यालय के शैक्षिक कार्यक्रमों के उद्देश्यों को निर्धारित करना- विद्यालय बजट का निर्माण करने के लिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि सम्पूर्ण सत्र के दौरान आयोजित किये जाने वाले शैक्षिक कार्यक्रमों के उद्देश्यों का निर्धारण किया जा सके जिससे वर्ष भर होने वाले कार्यक्रमों को एक निश्चित दिशा प्रदान की जा सके।

2. वर्तमान कार्यक्रमों के उद्देश्यों की जाँच करना— विद्यालय में वर्तमान में चालित कार्यक्रमों के उद्देश्यों की जाँच कर यह पता लगाना कि कौन-से उद्देश्यों को प्राप्त नहीं किया जा सका है व उसकी प्राप्ति में क्या-क्या बाधाएँ आईं।

3. भावी कार्यक्रमों की आवश्यकता को पहचानकर सूची तैयार करना- उद्देश्यों के आधार पर भावी कार्यक्रमों की आवश्यकताओं को पहचानना चाहिए। इसके लिए बजट निर्माण समिति को छात्रों, शिक्षकों, विशेषज्ञों, आदि से सुझाव प्राप्त कर उनकी आवश्यकताओं की सूची तैयार करनी चाहिए।

4. उद्देश्यों व आवश्यकताओं को प्राथमिकतानुसार क्रमबद्ध करना- निर्धारित किये गये उद्देश्यों व आवश्यकताओं की सूची में से उन उद्देश्यों व आवश्यकताओं को प्राथमिकता पर रखा जाता है जिन्हें पूर्ण करना अत्यन्त जरूरी होता है। इस प्रकार प्राथमिकताओं के आधार पर इनको क्रमबद्ध किया जाता है।

5. शैक्षिक कार्यक्रमों की प्राथमिकतानुसार योजना तैयार करना- बजट निर्माणकर्ता विद्यालय के शैक्षिक कार्यक्रमों के उद्देश्यों व आवश्यकताओं की प्राथमिकता के आधार पर यह निर्धारित करते हैं कि किस मद पर कम और किस मद पर अधिक व्यय करना है तथा आवश्यक वस्तुओं का वर्तमान बाजार भाव पता कर योजना को बनाया जाता है।

6. कार्यक्रमों पर होने वाले आय-व्यय का लेखा तैयार करना- बजट निर्माण में जहाँ व्यय को रखा जाता है वहीं विद्यालय को होने वाली आय भी उसी अनुपात में होनी चाहिए। यदि व्यय अधिक तथा आय कम है तो बजट घाटे का बनता है। विद्यालयों को विशेषकर राजकीय विद्यालयों को बजट निर्माण के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए, उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर बाजार में व्यय को प्रस्तुत न कर, उसी अनुपात में आय को भी प्रस्तुत करना चाहिए। जिससे एक सन्तुलित बजट का निर्माण हो। एक अच्छे बजट में आय अधिक तथा व्यय कम होना चाहिए। बजट का स्वरूप लचीला रखते हुए इसमें कुछ धन आकस्मिक बातों पर व्यय करने की व्यवस्था होनी चाहिए। ऐसे व्यय को आकस्मिक व्यय कहते हैं।

7. बजट को अन्तिम रूप देकर प्रबन्धकों के समक्ष प्रस्तुत करना- एक सन्तुलित बजट को अन्तिम रूप देने के पश्चात् प्रबन्धकों के समक्ष इसे प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इस समय बजट निर्माण करने वाले प्रधानाचार्य विशेषज्ञ, आदि की उपस्थिति आवश्यक होनी चाहिए जिससे वे बजट के एक-एक पक्ष को स्पष्ट कर सकें। इस प्रकार बजट का अनुमोदन होने पर उसे अन्तिम रूप प्रदान कर देते हैं।

8. विद्यालय में बजट का क्रियान्वयन- बजट को स्वीकृति मिलने के पश्चात् वित्तीय वर्ष से प्रति माह विभिन्न मदों पर धन का व्यय प्रारम्भ हो जाता है तथा आय को बैंक में जमा करवा दिया जाता है। प्रधानाचार्य आवश्यकतानुसार व्यय करता है।

9. बजट का मूल्यांकन- यदि बजट में निर्धारित आय-व्यय के अनुसार ही बजट के कार्यक्रम ठीक प्रकार से संचालित हो रहे हैं तो बजट सन्तुलित व अच्छा माना जाता है। यदि बजट योजनानुसार नहीं चलता तो असफल व बेकार बजट माना जाता है।

बजट निर्माण व क्रियान्वयन में आने वाली समस्याएँ

ये निम्न हैं-

1. बजट निर्माण एक जटिल प्रक्रिया- बजट का निर्माण करना एक जटिल प्रक्रिया है। इसमें विद्यालय में होने वाले समस्त खर्चों व आय का हिसाब रखा जाता है। अतः इसके लिए समस्त आय व व्यय के स्रोतों का ज्ञान होना आवश्यक है जो कि एक कठिन कार्य है क्योंकि कई बार कई छोटे-छोटे छिपे हुए खर्च अचानक प्रकट हो सकते हैं जिससे सम्पूर्ण बजट कई बार डगमगाता है।

2. रिकॉर्ड रखने की समस्या- बजट निर्माण हेतु व्यय किये गये धन का रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए लेकिन इस कार्य में कई अध्यापक कुशल नहीं होते अतः उन्हें प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त विद्यालयों में भी ऑफिस में उन्हें सँभाल कर रखने की समस्या सर्वविदित है।

3. अनुदानित धन समय पर प्राप्त न होना- बजट के अनुसार विद्यालय में योजना प्रारम्भ करना उस समय खटाई में पड़ जाता है जब सही समय पर अनुदान प्राप्त नहीं होता है।

4. एक मद से दूसरे मद में स्थानान्तरण- जब किसी मद पर अधिक व्यय हो जाता है तो ऐसे में प्रधानाध्यापक के समक्ष वर्तमान में चलने वाले कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अतिरिक्त धन की आवश्यकता पड़ जाती है। ऐसे में वह दूसरे मद से स्थानान्तरण कर वर्तमान कार्यक्रम को सही प्रकार से संचालित कर सकता है लेकिन ऐसे अधिकार उसके पास नहीं होते हैं उसे अपने अधिकारियों से अनुमति लेनी पड़ती है जिसमें कई बार बहुत समय लग जाता है जिससे अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है।

5. वित्तीय वर्ष में ही धनराशि व्यय करना- बजट में किसी कार्यक्रम के लिए स्वीकृत राशि को उस वित्तीय वर्ष में ही खर्च करना होता है, इसमें कई बार समस्या उत्पन्न हो जाती है क्योंकि कभी-कभी प्रधानाध्यापक उसे अगले वर्ष खर्च करना चाहता है लेकिन स्वीकृत धनराशि, अगले बजट में मिले या न मिले -इसलिए प्रधानाध्यापक उसे उसी वित्तीय वर्ष में कर्च कर देता है जिससे मनवांछित सफलता नहीं मिल पाती है।

6. ऑडिट की समस्या- प्रधानाध्यापक कई बार धन को खर्च करने से डरता है क्योंकि उसे यह भय रहता है कि ऑडिट होने पर अनेक प्रकार के सवाल उठेंगे तथा वह व्यर्थ ही किसी परेशानी में आ जायेगा। इसके विपरीत कुछ चतुर प्रधानाध्यापक नियमों के अनुसार कार्यों को केवल औपचारिकता के रूप में दिखाते हैं तथा अपना कमीशन, इत्यादि भी निकाल लेते हैं।

इस प्रकार बजट निर्माण व क्रियान्वयन में अनेक समस्याएँ आती हैं लेकिन कुशल प्रबन्धक इन समस्याओं का निराकरण कर बजट का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन करता है तथा विद्यालय का विकास करता है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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