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विद्यालय बजट | SCHOOL BUDGET
भारत में प्राचीन काल से ही शिक्षा के महत्त्व को समझा गया है। अतः शिक्षा के लिए ऋषि-मुनियों एवं गुरुओं को शासकों द्वारा दान-दक्षिणा मिलती रही है जिससे वे अपनी शिक्षा का स्तर और सुधार सकें। वास्तव में शिक्षा पर किया गया व्यय व्यर्थ नहीं जाता अपितु वह तो देश या राष्ट्र द्वारा किया गया एक वनियोग है जिसके द्वारा देश के नागरिक आदर्श व सुखी होते हैं तथा देश में सम्पन्नता आती है।
अंग्रेजों के भारत में शासन के समय प्रारम्भ में शिक्षा पर किसी प्रकार का व्यय नहीं किया गया। लेकिन जब से ईस्ट इण्डिया कम्पनी, भारत में ब्रिटिश पार्लियामेण्ट की ओर से शासन करने लगी तब 1833 के ‘चार्टर एक्ट’ से शिक्षा पर व्यय का प्रारम्भ माना जाता है। इस समय 1834-35 में शिक्षा पर व्यय मात्र चार लाख रुपये के लगभग था। परन्तु आजादी के बाद सरकार का ध्यान इस ओर गया तथा शिक्षा पर अधिक से अधिक व्यय किया जाने लगा तथा वर्तमान में केन्द्र सरकार ने कुल बजट में से काफी भाग शिक्षा के लिए रखा है।
वास्तव में शिक्षा वित्त शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक महत्त्वपूर्ण साधन है इसकी सहायता से हम इन उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। लेकिन वर्तमान में तकनीकी के विकास के साथ-साथ बढ़ती हुई शैक्षिक आवश्यकताओं के समक्ष वित्त सम्बन्धी जटिलताएँ भी सुरसा के मुँह के समान बढ़ती जा रही हैं। शिक्षा के लिए धन की व्यवस्था किन स्रोतों से प्राप्त की जाए तथा किन प्राथमिकताओं पर पहले खर्च किया जाए यह भी शिक्षा प्रशासन की एक जटिल समस्या बनती जा रही है। प्रत्येक संस्था के समक्ष यह समस्या रही है कि उसकी आय कैसे होगी तथा उसका व्यय क्या होगा। इसलिए प्रत्येक संस्था आय-व्यय का वार्षिक विवरण तैयार करती है। यह वार्षिक विवरण वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल से अगले वर्ष 31 मार्च) कहलाता है। यह. विवरण बजट (Budget) नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।
बजट का अर्थ (Meaning of Budget)
बजट (Budget) का शाब्दिक अर्थ आय व्ययक या आय-व्यय से है। इसके अन्य अर्थों में इसे थैली (Bag), पोटली या गठरी (Bundle) के नाम से भी जाना जाता है। प्रारम्भ में बजट को थैली या पोटली से जाना जाता था किन्तु धीरे-धीरे यह आय-व्यय पत्र के रूप में जाना जाने लगा। इस प्रकार बजट हमारे विभिन्न खर्चों की एक योजना है जो हमारी आय को विभिन्न मदों में जैसे-खर्च, बचत तथा निवेश में आवश्यकता व प्राथमिकतानुसार वितरण को दर्शाता है। बजटिंग (Budgeting) एक निश्चित समय अवधि में होने वाली हमारी अनुमानित आय (Income) तथा प्रस्तावित खर्चा (Expenditure) का प्रपत्र या विवरण तैयार करने की प्रक्रिया है। इस प्रपत्र में आय बढ़ाने के साधनों का भी वर्णन रहता है।
बजट हमारी आय व व्यय के समस्त स्रोतों को बताता है। एक अच्छे बजट में यह विशेषता निहित होती है कि उसमें होने वाले समस्त व्यय उनके मूल्यों के अनुसार उपयोगी हैं।
शिक्षा के लिए प्रस्तुत वर्ष भर में किये जाने वाले आय-व्यय विवरण प्रपत्र को शैक्षिक बजट कहते हैं तथा किसी विद्यालय द्वारा अनुमानित आय के स्रोत प्रस्तावित खर्चों को प्रस्तुत करने की प्रक्रिया विद्यालय बजट कहलाती है। इसके माध्यम से कोई भी विद्यालय निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकने में सफलता अर्जित कर सकता है तथा धन के दुरुपयोग को रोक सकता है।
विद्यालयीय बजट के उद्देश्य (Purposes of School Budget)
विद्यालयीय बजट आय-व्यय के विवरण पत्र के अतिरिक्त विद्यालय को आगामी वर्ष के लिए शैक्षिक पूर्वानुमान प्रदान करता है। बजट का निर्माण गत वर्ष विभिन्न मदों पर किये गये व्यय से सीख लेकर आगामी वर्ष में उसी क्षेत्र में कम लागत से अधिक लाभ उठाने को भी प्रेरित करता है। अर्थात् बजट द्वारा भूत से प्रेरणा लेकर भविष्य को अधिक से अधिक लाभान्वित भी किया जाता है।
मुख्य रूप से विद्यालय बजट के निम्न उद्देश्य हैं-
(i) बेहतर विद्यालय शिक्षा कार्यक्रमों की योजना निर्माण में सहायक (Help in planning of best school education programmes)- बजट द्वारा विद्यालय में सर्वोत्तम शिक्षा कार्यक्रमों की योजना का निर्माण करने में सहायता मिलती है क्योंकि हमें आय स्रोतों से यह ज्ञात होता है कि हमारे पास कितना धन है तथा उस उपलब्ध धन से हम कौन-सी बेहतर योजना विद्यालय के हित में प्रारम्भ कर सकते हैं।
(ii) विद्यालय संसाधनों का उचित उपयोग (Most appropriate use of school resources) — विद्यालय के उपलब्ध संसाधनों का उचित उपयोग भी बजट के द्वारा कर सकते हैं क्योंकि बजट में हमने केवल विभिन्न मदों में व्यय अपितु विभिन्न पदार्थों के उपयोग को भी प्रस्तुत करना होता है। हमें उसमें यह भी अनुमानित करना होता है कि विद्यालय में उपलब्ध संसाधनों में कौन-से हैं तथा हमें उनका कितना उपयोग करना है तथा इससे कितना खर्च बचेगा, उक्त सभी का विचार कर बजट निर्माण करते हैं तथा विद्यालय की शक्ति एवं साधनों के अनुसार कार्यक्रमों को गति प्रदान की जाती है।
(iii) विद्यालयीय कार्यक्रमों के क्रियान्वयन हेतु रूपरेखा प्रदान करना (Provide a framework for implementing school prograrnmes)– विद्यालय बजट समय व कीमत (खर्च) के अनुसार विभिन्न विद्यालयीय कार्यक्रमों के क्रियान्वयन हेतु रूपरेखा प्रदान करता है। विद्यालयीय बजट से हमें किसी भी कार्य को निर्धारित समय में समाप्त करने के दिशा-निर्देश प्राप्त होते हैं तथा उस कार्य में कितना खर्च करना है इसका भी निर्धारण पूर्व में ही किया गया होता है। अतः एक प्रकार से बजट द्वारा कार्यक्रमों का सीमा निर्धारण समय व धन की दृष्टि से पूर्व में ही कर दिया जाता है।
(iv) बजट अनुसार विद्यालय में फर्नीचर, उपकरण व अन्य आवश्यक सामग्री की व्यवस्था करना (Arrangement of furniture, equipment and other necessary material according to budget)- बजट के अनुसार विद्यालय के लिए आवश्यक फर्नीचर, प्रयोगशालाओं के उपकरण या अन्य सहायक सामग्री हेतु आवश्यक उपकरणों, चार्ट, मॉडल, इत्यादि की व्यवस्था करना।
(v) विद्यालय कार्यक्रमों के लिए मूल्यांकन के लिए उचित दिशा-निर्देशक होना (Serve as guideline to evaluate the school programmes)— बजट का निर्धारण पूर्व में हो जाने से विद्यालय में होने वाले कार्यक्रमों में किये गये व्यय तथा कार्यक्रम की गुणवत्ता का मूल्यांकन भी बजट की तुलना में करने में मार्गदर्शन मिलता है साथ ही यह भी मूल्यांकन किया जाता है कि समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है या नहीं।
(vi) विद्यालय व्यय में धन के बचत सम्बन्धी उपायों को बताने में सहायक (Help in saving of money in expenditure of school)– बजट में विद्यालय में होने वाले सम्पूर्ण आय-व्यय का विवरण रहता है। इसकी सहायता से हम व्यर्थ के खर्चे पर नियन्त्रण कर सकते हैं तथा उन क्षेत्रों में धन के व्यय को कम कर देते हैं जिनमें कम खर्च से भी काम चल सकता है। अत: बजट की सहायता से धन की बचत सम्बन्धी उपायों का ज्ञान भी होता है।
(vii) विद्यालय की कार्यक्षमता तथा शिक्षकों एवं कर्मचारियों की संख्या निर्धारित कर सकना (It helps to decide school working capacity and number of teachers and other employees)- बजट में कर्मचारियों पर किये जाने वाले वार्षिक व्यय का विवरण रहता है इसके आधार पर शिक्षकों व कर्मचारियों की संख्या का निर्धारण करने में भी सहायता मिलती है क्योंकि जितना बजट में कर्मचारियों व शिक्षकों पर खर्च अनुमानित किया जाएगा उसी अनुपात में इनकी नियुक्ति होगी।
(viii) कम लाभ व अधिक व्यय वाली योजनाओं को रोक देना (Stop that programme which are less benefited)- बजट के आधार पर यह ज्ञात कर कौन-से कार्यक्रमों में लाभ कम हो रहा है तथा खर्च अधिक हो रहा है तथा इसके स्थान पर कौन-सी योजनाएँ ऐसी हैं जिन पर कम खर्च में अधिक लाभ हो रहा है। ऐसी योजनाओं का चयन कर उन्हें बजट में स्थान दिया जाता है।
(ix) सहगामी क्रियाओं के संचालन में सहायक होना (Help in conducting co-curricular activity) बजट में सहगामी क्रियाओं के लिए भी व्यय का विवरण रहता है। अतः उसके अनुसार क्रियाओं के निर्धारण में सहायता मिलती है। बजट में उल्लेखित धन के अनुसार सहगामी क्रियाओं का चयन कर उनका संचालन करते हैं।
इन सभी उद्देश्यों के अतिरिक्त बजट वित्तीय लेखांकन की प्रविधियों में सहायक भी होता है तथा इसकी सहायता से विद्यालय की आय-व्यय की स्थितियों को सन्तुलित बना सकने में भी सहायता मिलती है। सबसे महत्त्वपूर्ण बजट विद्यालय की दीर्घकालीन योजना बनाने हेतु एक आधार प्रदान करता है एवं प्रशासन की संचालन की आवश्यक शर्तों एवं सेवाओं को सुगम बनाता है।
विद्यालय बजट के प्रकार (Types of School Budget)- विद्यालय में क्रियाओं की योजना बनाने तथा कार्यशालाओं को दिशा प्रदान करने के लिए कई प्रकार के बजट बनाये जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख बजट निम्न हैं-
(i) चालू बजट (Current Budget),
(ii) दीर्घ अवधि बजट (Long-term Budget),
(iii) परम्परागत बजट (Traditional Budget),
(iv) विशिष्ट कार्यक्रम बजट (Special Programme / Project Budget) |
(i) चालू बजट (Current Budget)विद्यालयों में विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के संचालन के लिए विभिन्न स्रोतों; जैसे- राजकीय विद्यालयों में सरकार से अनुदान, छात्रों से शिक्षण शुल्क, परीक्षा शुल्क, खेलों की व्यवस्था का शुल्क, मेडीकल शुल्क, आदि मासिक या वार्षिक लिया जाता है। इस प्रकार विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त आय को बजट में प्रस्तुत किया जाता है तथा इसे अध्यापकों व कर्मचारियों के वेतन, सांस्कृतिक कार्यक्रम, परीक्षा, आदि गतिविधियों में खर्च किया जाता है। इन सबका विवरण जिन्हें पूर्ण होने में किन स्रोतों से आय होती है तथा किन मदों पर खर्च होता है, बजट में दिया होता है। इस प्रकार सम्पूर्ण वर्ष के लिए बनी योजना को चालू बजट कहा जाता है।
(II) दीर्घकालीन बजट (Long-term Budget) कुछ शैक्षिक योजनाएँ इस प्रकार की होती हैं जिन्हें पूर्ण होने में एक वित्तीय वर्ष (Financial Budget) से अधिक समय लगता है अर्थात् एक वर्ष से अधिक चलने वाली योजनाएँ जो कि सामान्यतया 5 वर्ष या 10-15 वर्षों के लिए बनाई जाती हैं उनकी आय व्यय का विवरण प्रस्तुत करना या विवरण का निर्माण होना दीर्घकालीन बजट कहलाता है। दीर्घकालीन बजट में निर्धारित उद्देश्यों को लम्बे समय में प्राप्त किया जाता है।
(iii) परम्परागत बजट (Traditional Budget) इस प्रकार के बजट गत वर्षों से चले आ रहे बजट के समान ही होते हैं अर्थात् इसमें आय व व्यय के स्रोत व मद गत वर्षों के बजट के समान ही होते हैं। केवल वस्तुओं के वर्तमान मूल्यों के सन्दर्भ में इस प्रकार के बजट का निर्माण होता है, ऐसे बजट को परम्परागत बजट कहते हैं।
(iv) विशिष्ट कार्यक्रम बजट (Special Programme/ Project Budget)- इस प्रकार के बजट विशिष्ट कार्यक्रम या उद्देश्य की पूर्ति के लिए तैयार किये जाते हैं। इसमें आय व व्यय का विवरण विद्यालय द्वारा आयोजित विशिष्ट कार्यक्रम के लिए तैयार किया जाता है। उदाहरणत: यदि विद्यालय में एस. यू. पी. डब्ल्यू का कैम्प आयोजित करना है तो इस कार्यक्रम के संचालन के लिए धन प्राप्ति स्रोतों तथा इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन में होने वाले व्यय (खर्च) का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने को विशिष्ट कार्यक्रम बजट कहते हैं।
इस प्रकार से मुख्य रूप से विद्यालयीय बजट उक्त वर्णित चार प्रकार का होता है। इसके अतिरिक्त भवन बजट (Building Budget). विभागीय बजट (Departmental Budget) तथा निष्पादन परक बजट (Performance Budget), आदि भी बजट के प्रकार होते हैं।
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