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विद्यालय में स्वास्थ्य शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्त्व | NEED AND IMPORTANCE OF HEALTH EDUCATION IN SCHOOLS
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है (Sound mind in sound body)। अर्थात् जीवन की दृष्टि से स्वास्थ्य का अपना विशेष महत्त्व है और स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए स्वास्थ्य शिक्षा उत्तम साधन है जो हमें व्यावहारिक जीवन जीने के गुण प्रदान करने के साथ-साथ व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन को उच्च शिखर पर पहुंचाने में सहायता प्रदान करती है। अतः स्वास्थ्य शिक्षा की महती आवश्यकता है और इसका विशेष महत्त्व है। इसके महत्त्व को हम निम्नलिखित रूप से और अधिक स्पष्ट कर सकते हैं-
(1) बालक का सर्वांगीण विकास (Over all development) हेतु स्वास्थ्य शिक्षा की आवश्यकता है और इस दृष्टि से इसका विशेष महत्त्व है। स्वास्थ्य निरोगी होने के साथ-साथ शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक सम्भावनाओं के उच्च आदर्श से युक्त होना चाहिए। यह कार्य विद्यालय में स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा सम्भव है।
(2) स्वस्थ नागरिक ही राष्ट्र का निर्माता बनता है। अस्वस्थ व्यक्ति मानसिक तनावों में जीता है, संवेगात्मक असन्तुलन में रहता है और संघर्षों में ही जीवन व्यतीत करता है। अतः अच्छा स्वास्थ्य हमें आगे बढ़ने, प्रसन्न रहने, सुख शान्ति प्रदान करने में सहायता करता है। यह सब स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए स्वास्थ्य शिक्षा की आवश्यकता है और इसका विशेष महत्त्व है।
(3) अच्छा स्वास्थ्य व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्रीय उत्थान का आधार है और स्वास्थ्य का ज्ञान स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा प्राप्त होता है। अतः स्वास्थ्य के विकास, सुधार और संरक्षण हेतु स्वास्थ्य शिक्षा की आवश्यकता है और इसका विशेष महत्त्व है।
(4) के प्रति सजग बनाना और यह बताना कि परहेज इलाज से बेहतर है (Prevention is better than cure)। यह कार्य स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा सुगमता से सम्भव है। अतः स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा चलाये जा रहे विविध कार्यक्रमों-स्वास्थ्य सेवाएं, स्वस्थ जीवन यापन, स्वच्छता सप्ताह, स्वास्थ्य सप्ताह को मनाना और बालक में समाज सेवा तथा श्रम के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण का विकास करना, आदि से स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य शिक्षा का विशेष महत्त्व है और इसकी महती आवश्यकता है।
(5) स्वास्थ्य रक्षा के लिए उचित भौतिक वातावरण के साथ-साथ संवेगात्मक एवं मानसिक विकास और अच्छी आदतों के निर्माण की आवश्यकता है। इसकी पूर्ति स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा सम्भव है। अतः स्वास्थ्य शिक्षा की आवश्यकता है और इसका विशेष महत्त्व है।
(6) शरीर की सुचारू रूप से गतिशीलता पौष्टिक तत्त्वों पर निर्भर करती है। अतः यह जानना आवश्यक है कि बालक के सभी अंग ठीक से कार्य करें, उनका विकास स्वाभाविक हो, किसी प्रकार का रोग, दोष और अक्षमता न होने पाए। इसके लिए सन्तुलित आहार का ज्ञान और स्वास्थ्य की ओर समुचित ध्यान देना आवश्यक है। यह ज्ञान स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा सम्भव है।
(7) जीवन आनन्द के लिए शरीर, मन और आत्मा का स्वस्थ होना आवश्यक है। इसके लिए भोजन, सफाई, व्यायाम, आराम, रोगों से बचाव का ज्ञान होना आवश्यक है। जीवन उतना ही समृद्ध और दीर्घालु होगा जितना उसे पोषण मिलेगा। अच्छे स्वास्थ्य के बिना जीवन व्यर्थ है। यह सब जानकारी हमें स्वास्थ्य शिक्षा के बिना असम्भव है। अतः स्वास्थ्य शिक्षा का विशेष महत्त्व है और इसकी महती आवश्यकता है।
अतः हम कह सकते हैं कि स्वास्थ्य शिक्षा हमें सिखाती है कि छात्र के स्वास्थ्य का पूर्ण परीक्षण क्यों किया जाए, कब किया जाए और कैसे किया जाए ? उसे स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं का ज्ञान दिया जाए और स्वास्थ्य निरीक्षण एवं निर्देशन नियमित रूप से कराया जाए। यहीं नहीं स्वास्थ्य शिक्षा संक्रामक रोगों से बचाव के उपाय बताती है, स्वास्थ्य को अच्छा बनाने के लिए प्रयास को प्रोत्साहन देती है और स्वस्थ अभिवृत्तियों का विकास करना सिखाती है। प्राथमिक शिक्षा का ज्ञान और उसका अभ्यास करना, स्वास्थ्य सम्बन्धी सिद्धान्तों एवं नियमों से अवगत कराना तथा स्वास्थ्य को उन्नत बनाने में सहायता प्रदान करना स्वास्थ्य शिक्षा के द्वारा सम्भव है। अतः स्वास्थ्य शिक्षा हमारे लिए प्रेरणा स्रोत है। इसलिए स्वास्थ्य शिक्षा का विशेष महत्त्व है।
विद्यालय स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम (SCHOOL HEALTH EDUCATION PROGRAMME)
अमरीका की विद्यालय स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम की समिति ने स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों को इन शब्दों में परिभाषित किया है-“स्वास्थ्य सेवाएँ स्वस्थ जीवनयापन तथा स्वास्थ्य शिक्षा, आदि विद्यालय प्रक्रियाएँ हैं, जो बालकों तथा विद्यालय अधिकारियों के स्वास्थ्य की स्थापना तथा उन्नति के लिए योगदान देती हैं, वे विद्यालय स्वास्थ्य कार्यक्रम का निर्माण करती हैं। नीचे विद्यालय स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रमों को उपर्युक्त कथन के अनुसार तीन वर्गों में विभाजित करके उन पर प्रकाश डाला जा रहा है-
(अ) स्वास्थ्य सेवाएँ
विद्यालय का एक महत्त्वपूर्ण कर्तव्य छात्रों को समुचित स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है। स्वास्थ्य सेवा के अन्तर्गत वे सभी प्रक्रियाएँ निहित हैं जो बालक के स्वास्थ्य-स्तर को निर्धारित करती हैं और स्वास्थ्य की स्थापना एवं उसके संरक्षण में उसको सहयोग प्रदान करती हैं। साथ ही उसके दोषों से अभिभावकों को अवगत कराती हैं और बीमारियों को रोकती तथा दोषों को दूर करती हैं। व्यावहारिक रूप में स्वास्थ्य सेवाओं में डाक्टरी निरीक्षण तथा अनुवर्ती कार्य, स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं की जानकारी तथा इस सम्बन्ध में सूचनाओं को लेखबद्ध करना, बालकों के विषय में शिक्षकों की रिपोर्ट, विद्यालय में भोजन एवं जल तथा मूत्रालय एवं शौचालय की व्यवस्था निहित है।
(ब) स्वस्थ जीवनयापन
विद्यालय में स्वास्थ्य-शिक्षा के कार्यक्रम का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग स्वस्थ जीवनयापन है। एक अच्छे विद्यालय का महत्त्वपूर्ण दायित्व है कि वह एक स्वस्थ एवं स्वच्छ भौतिक वातावरण प्रदान करे जो पूर्णतः स्वास्थ्यप्रद हो। विद्यालय की स्थिति, शोरगुल, धुएँ सीलन, आदि अस्वास्थ्यप्रद दशाओं से मुक्त होनी चाहिए। विद्यालय-भवन के कक्ष, खेल के मैदान, आदि स्वच्छ, आकर्षक एवं बालकों की अभिवृद्धि एवं विकास हेतु उपयुक्त हों। कक्षा-कक्षों में शुद्ध वायु, प्रकाश, आदि की उपयुक्त व्यवस्था हो। इसके अतिरिक्त विद्यालय का फर्नीचर बालकों को आयु, कद, आदि के अनुसार हो। अतः विद्यालय का सम्पूर्ण वातावरण बालकों के दृष्टिकोण से उपयुक्त एवं स्वास्थ्यवर्द्धक होना चाहिए।
स्वास्थ्य शिक्षा का मुख्य उद्देश्य- बालकों को स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए विद्यालय में उपयुक्त व्यवस्था करना है। इसके लिए बालकों में विभिन्न आदतों एवं रुचियों का विकास होना चाहिए। शिक्षक इनके विकास में बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकता है। स्वच्छता सप्ताह, स्वास्थ्य सप्ताह की मनाने से बालकों में समाज-सेवा एवं श्रम के प्रति आदर की भावना का विकास किया जा सकता है। वास्तव में स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रमों के द्वारा विद्यालय के सम्पूर्ण वातावरण को स्वस्थ जीवन का प्रेरक बनाया जा सकता है।
स्वास्थ्य-रक्षा के लिए उपयुक्त भौतिक वातावरण प्रदान करना ही आवश्यक नहीं है, वरन् बालकों के संवेगात्मक विकास एवं उत्तम आदतों के निर्माण के लिए भी उचित व्यवस्था करना परमावश्यक है। विद्यालय, बालकों के शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक संवेगात्मक स्वास्थ्य के लिए भी उत्तरदायी है।
(स) स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा
विद्यालय का यह भी उत्तरदायित्व है कि वह प्रत्येक बालक को उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त करने की आवश्यकता से अवगत कराए। बालकों का उत्तम स्वास्थ्य क्या है और किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है, बीमारियों से किस प्रकार बचा जा सकता है- आदि के विषय में जानना अत्यन्त आवश्यक है। इनके अतिरिक्त उन्हें पौष्टिक भोजन तथा सफाई के महत्त्व और मानसिक एवं संवेगात्मक विषयों से भी अवगत होना परमावश्यक है। इन समस्त बातों का ज्ञान स्वयं बालक के लिए ही लाभप्रद नहीं है, वरन् समस्त समुदाय एवं राष्ट्र के लिए भी लाभप्रद है। यह ज्ञान स्वास्थ्य शिक्षा के व्यवस्थित कार्यक्रमों द्वारा प्रदान किया जा सकता है। शारीरिक विज्ञान तथा स्वास्थ्य विज्ञान में प्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देश प्रदान किये जा सकते हैं। भौतिक एवं जीव विज्ञान, गृह विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, आदि को शिक्षा के साथ मानसिक एवं संवेगात्मक स्वास्थ्य के प्रकरणों पर विशेष व्याख्यानों का प्रबन्ध किया जा सकता है। स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम बालकों को मानव शरीर के ढाँचे एवं उसकी क्रिया प्रणाली के ज्ञान के साथ उन्हें स्वयं को शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा नैतिक रूप से ठीक रखने की आवश्यकता की अनुभूति करने योग्य बनायेंगे। स्वास्थ्य निर्देशन के पाठ्यक्रम में भोजन, जलवायु, व्यायाम, मनोरंजन, नींद, शरीर के अंग एवं उनकी क्रिया-प्रणाली, असामान्य दशाओं एवं बुरी आदतों का स्वास्थ्य पर प्रभाव, बीमारियों के कारण, लक्षण एवं उन्हें दूर करने के उपाय, प्राथमिक सहायता, आदि को स्थान मिलना चाहिए।
स्वास्थ्य शिक्षा प्रायः व्याख्यान या भाषण देकर एवं विभिन्न प्रकार की मुद्रित सामग्री का प्रयोग करके प्रदान की जाती है, परन्तु रेडियो कार्यक्रम का उपयोग एवं नाटकों का आयोजन कर तथा फिल्म दिखाकर, नुमायश लगाकर एवं स्वास्थ्य सप्ताह मनाकर स्वास्थ्य शिक्षा को अधिक रुचिकर बनाया जा सकता है।
स्वास्थ्य शिक्षा को प्रदान करने का महत्त्वपूर्ण साधन वातावरण भी है। अतः इसको प्रदान करने के लिए घर, विद्यालय एवं समाज में स्वास्थ्यप्रद वातावरण का निर्माण किया जाय तो उद्देश्य की प्राप्ति सरल हो सकती है।
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