School Management & Hygiene

विद्यालय वातावरण के प्रभावी कारक (Factors Affecting School Environment)

विद्यालय वातावरण के प्रभावी कारक (Factors Affecting School Environment)
विद्यालय वातावरण के प्रभावी कारक (Factors Affecting School Environment)

विद्यालय वातावरण के प्रभावी कारक (Factors Affecting School Environment)

विद्यालय वातावरण का निर्माण भौतिक व मानवीय संसाधनों के द्वारा होता है। अतः ये सभी मिलकर वातावरण का निर्माण करने के आयाम कहलाते हैं। भौतिक आयाम में विद्यालय में विभिन्न सुविधाएँ व संसाधनों की उपलब्धता व अनुपलब्धता से वातावरण का निर्माण होता है व मानवीय आयाम में प्रधानाध्यापक, अध्यापक, क्लर्क, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, प्रबन्धन, आदि का स्वभाव व व्यवहार मुख्य होता है। इसे हम निम्न प्रकार दर्शा सकते हैं-

विद्यालय वातावरण को प्रभावित करने वाले कारक (FACTORS AFFECTING SCHOOL ENVIRONMENT)

(A) भौतिक आयाम

1. पर्याप्त स्थान

2. खेल मैदान

3. पुस्तकालय

4. शौच व जलपान की व्यवस्था

5. उपकरणों की उपलब्धता

6. अन्य संसाधन

(B) मानवीय आयाम

1. प्रबन्धन का व्यवहार

2. प्रधानाध्यापक

3. अध्यापक

4. क्लर्क

5. चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी

6. अभिभावक व समाज

(A) भौतिक आयाम- विद्यालय वातावरण में मुख्यतः भौतिक व मानवीय आयाम वातावरण के निर्माण में प्रभावी होते हैं। इनमें से भौतिक आयाम में छात्रों व अध्यापकों के लिए पर्याप्त स्थान, खेल मैदान, पुस्तकालय, आदि आते हैं। ये सभी भौतिक संसाधन विद्यालय वातावरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि यदि छात्रों व अध्यापकों को ये सुविधाएँ नहीं मिलेंगी तो सुविधाओं के अभाव में उनके व्यवहार पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ेगा तथा वे चिड़चिड़ा तथा क्रोधी स्वभाव व्यक्त करेंगे जिससे विद्यालयीय वातावरण भी स्वस्थ नहीं रह पायेगा।

(B) मानवीय आयाम— इसमें मुख्यतः प्रबन्धन, प्रधानाध्यापक, अध्यापक, क्लर्क, आदि आते हैं। किसी भी विद्यालय के वातावरण में भौतिक आयाम की अपेक्षा मानवीय आयाम का प्रभाव अत्यधिक होता है। भौतिक आयाम की कमी से तो फिर भी समझौता हो सकता है लेकिन यह ध्यान रहे कि भौतिक आयाम की कमी से समझौता करने वाला भी मानवीय संसाधन है। अतः यदि हम विद्यालयीय वातावरण के निर्माण में केवल मानवीय आयाम को ही मुख्य कारक बतायें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। मानवीय आयाम में भी मुख्यतः प्रधानाध्यापक तथा अध्यापक का व्यवहार व इनकी अन्तःक्रिया ही विद्यालय वातावरण का निर्माण करती है। अतः हम यहाँ केवल प्रधानाध्यापक व अध्यापक के व्यवहार का ही अध्ययन करेंगे, क्योंकि इनका व्यवहार ही विद्यालय वातावरण की रीढ़ की हड्डी है।

1. प्रधानाध्यापक का व्यवहार- हॉल्पिनक्राफ्ट ने प्रधानाचार्य के चार व्यवहार बताए हैं जो विद्यालयीय वातावरण को प्रभावित करते हैं-

(1) अलगाव/विलगाव (Aloofness)-इस स्थिति में प्रधानाध्यापक अपने को औपचारिक व अवैयक्तिक माहौल में ढालना चाहता है। वह स्टाफ से किसी भी प्रकार का भावात्मक रिश्ता नहीं रखता है, वह स्टाफ से अलग केवल औपचारिकताओं को निभाता है। वह नियमों व नीतियों का अनुसरण करने वाला बनता है। उसका स्टाफ के किसी भी सदस्य से भावात्मक सम्बन्ध नहीं रहता है तथा स्वयं को सर्वोपरि मानता है। अतः अध्यापक भी उससे दूर रहते तथा विद्यालय का वातावरण भी औपचारिकता लिए होता है क्योंकि प्रधानाध्यापक विद्यालय का नेता होता है। अतः अध्यापक भी उसी का अनुसरण करते हैं तथा छात्रों से आत्मीयता नहीं दर्शाति वे केवल नियमों की बात करते हैं।

(ii) दबाव या गति देना (Thrust)-इस स्थिति में प्रधानाध्यापक विद्यालय को गति प्रदान करने वाला होता है। उसके व्यवहार को अध्यापकों द्वारा सकारात्मक व प्रशंसात्मक रूप में देखा जाता है। प्रधानाध्यापक विद्यालय को एक निश्चित दिशा में गति देने वाला होता है। वह स्वयं द्वारा किये कार्यों का उदाहरण विद्यालय के शिक्षकों के समक्ष प्रस्तुत करता है। वह एक कार से विद्यालय के लिए आदर्श होता है। साथी अध्यापक भी उससे प्रेरित होकर कार्य करते हैं तथा विद्यालय में प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी रूप से तरक्की करता रहता है। विद्यालय का वातावरण भी स्वस्थ व वृद्धि करने वाला होता है।

(iii) उत्पादकता प्रिय (Production Emphasis)- इस स्थिति में प्रधानाध्यापक विद्यालय के स्टाफ का सूक्ष्म निरीक्षण करता है। वह केवल मात्र निर्देशक ही होता है उसने जो कह दिया वह हो अन्तिम है। विद्यालय के अन्य सदस्यों को महत्त्व नहीं देता है। उसका सम्प्रेषण एक तरफा होता है, उसका उद्देश्य केवल उत्पादकता को बढ़ाना है, उसमें भी केवल स्वयं की बातों को ही महत्त्व देना है, साथी अध्यापकों की सलाह, आदि को नहीं सुनता है। वह एक सख्त निर्देशक बन जाता है। ऐसी स्थिति में विद्यालय का वातावरण अप्रिय हो जाता है। स्टाफ भी अलग रहने लगता है तथा प्रधानाध्यापक भले ही उत्पादकता प्रिय हो लेकिन संस्थान का उत्पादन स्वतः कम होता जाता है। अध्यापकों की बात को न सुनने के कारण अध्यापक भी मात्र औपचारिकता करते हैं व वातावरण प्रधानाध्यापक के विपरीत व विरोध में बनने लगता है।

(iv) विचारपूर्ण/लिहाज (Consideration)-इस स्थिति में अत्यन्त विकास होता है। वातावरण बड़ा ही सुन्दर होता है। इसमें प्रधानाध्यापक अध्यापकों का मानवीय रूप में आवश्यकता से अधिक ध्यान रखता है। अध्यापक भी इस स्थिति को समझते हैं तथा वे भी प्रत्येक स्थिति में प्रधानाध्यापक के साथ होते हैं। सभी एक-दूसरे का लिहाज करते हैं।

2. अध्यापक का व्यवहार- अध्यापक के व्यवहार में भी मुख्यतः चार प्रकार बताये गये हैं, जो निम्न है-

(i) मुक्ति/निर्मुक्तता (Disengagement)—इस स्थिति में अध्यापक कार्य की परिस्थिति में स्वयं को अलग रखता है। वह कुछ कार्यों में प्रधानाध्यापक से अलग रहता है। इसके कई कारण हो सकते हैं, हो सकता प्रधानाध्यापक द्वारा उसे इसकी सूचना ही न दी हो, जबकि अध्यापक की उसमें मुख्य भूमिका हो। ऐसे में वह स्वयं को इससे पृथक् कर लेता है। अतः ऐसे में विद्यालय की प्रगति रुक सी जाती है व उसका कुछ विकास भी नहीं हो पाता है।

(ii) बाधा / रुकावट (Hindrance)- ऐसी स्थिति तब आती है जब प्रधानाध्यापक द्वारा अध्यापक को अनावश्यक कार्यों का दायित्व सौंप दिया जाता है तथा अध्यापक को ऐसा महसूस होता है जैसे उसे परेशान किया जा रहा है तथा उसके कार्यों में प्रधानाध्यापक द्वारा व्यर्थ के दायित्वों को देकर, बाधा या रुकावट उत्पन्न की जा रही है। ऐसे में विद्यालय का विकास रुक जाता है।

(iii) सद्भाव / उत्साह (Spirit)—ऐसी परिस्थिति में अध्यापक में उत्साह रहता है। वह आगे बढ़कर संस्थान/विद्यालय के कार्यों को करता है क्योंकि उसे ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर दी गई है अतः वह भी उत्साही होकर कार्यों को अंजाम देता है। विद्यालय का विकास होता है व स्वस्थ वातावरण होता है।

(iv) आत्मीयता / लगाव (Intimacy)– इसमें शिक्षकों की सामाजिक आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है। वह आपस में सौहार्दपूर्ण वातावरण में रहते हैं तथा विद्यालय की तरक्की की ओर ध्यान देते हैं। इसमें अध्यापक के कार्य अपूर्ण रहने पर भी साथी अध्यापकों में आपस में लगाव व आत्मीयता बनी रहती है।

इस प्रकार उक्त वर्णित आयाम विद्यालय के वातावरण को प्रभावित करते हैं। अतः स्पष्ट है कि यदि सहायतापूर्ण व आत्मीयता का वातावरण यदि विद्यालय का हो तो वह निरन्तर प्रगति करता जाता है, वहीं दूसरी ओर अलगाववाद, कठोरता, आदि का वातावरण विद्यालय के विकास में बाधक होता है।

विद्यालय वातावरण का विद्यालय प्रदर्शन पर प्रभाव (EFFECT OF SCHOOL ENVIRONMENT ON SCHOOL PERFORMANCE)

छात्र-मैत्रीपूर्ण वातावरण (Student-Friendly Environment)

स्कूल के विद्यार्थियों से अच्छे सम्बन्ध रखना मुख्याध्यापक की सफलता का महत्त्वपूर्ण सूचक है। सम्पर्क रखने से उसे यह स्पष्ट ज्ञात होता रहता है कि विद्यार्थी स्कूल से क्या-क्या आशा रखते हैं तथा उनकी शिक्षा किस प्रकार से शिक्षा चल रही है। छात्रों में अपने प्रति विश्वास उत्पन्न करने के लिए प्रधानाध्यापक के लिए जरूरी है कि वह जहाँ तक हो सके प्रत्येक छात्र को व्यक्तिगत रूप से जानने का प्रयास करे और अधिक सम्पर्क स्थापित करे।

प्रत्येक छात्र पाठशाला में दाखिल होते समय अपनी बहुत सी आशाएँ लेकर आता है। वह यह समझता है कि उसके अध्यापकों तथा प्रधानाध्यापक को असाधारण ज्ञान-शक्ति तथा बुद्धि मिली है, जो कि साधारण व्यक्तियों की पहुँच के बाहर है। इसलिए इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि विद्यार्थियों की ये आशाएँ तथा विश्वास नष्ट न होने पायें। बालकों को भली-भांति जानना चाहिए। बालकों के साथ व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि वे समझे कि मुख्याध्यापक सदा उनके भले के लिए ही सोचता है। उसके पास जाने के लिए उन्हें किसी प्रकार की दुविधा अथवा हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार के साथ यह भी आवश्यक है कि प्रधानाध्यापक दृढ़ रहे। बच्चों को शिक्षक वर्ग के प्रति बुरे भाव रखने में प्रोत्साहित न करे।

प्रधानाध्यापक को चाहिए कि दुष्ट, नटखट तथा व्यर्थ की आपत्ति उत्पन्न करने वाले छात्रों पर कड़ी दृष्टि रखे।

स्कूल के योग्य विद्यार्थियों, अच्छे खिलाड़ियों, स्काउटों और मॉनीटरों, आदि से प्रधानाध्यापक का सम्पर्क अवश्य ही होना चाहिए।

प्रधानाध्यापक विद्यार्थियों के बीच एक पिता के समान है जिसके हृदय में सबके लिए समान रूप से प्रेम होना चाहिए और उसे सबकी उन्नति के लिए कामना करनी चाहिए।

प्रधानाध्यापक छात्रों से अधिकाधिक सम्पर्क निम्नलिखित उपायों से स्थापित कर सकता है-

1. कक्षा-अध्यापन के समय।

2. छात्र संसद की सभाओं में सम्मिलित होकर।

3. भ्रमण यात्राओं का आयोजन करके।

4. पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के समय उपस्थित होकर।

5. छात्र प्रतिनिधियों के माध्यम द्वारा।

6. अध्यापकों के माध्यम द्वारा।

7. कक्षा मॉनीटर द्वारा

प्रधानाचार्य तथा अभिभावक: मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध (Headmaster and the Parents : Friendly Relations)

बच्चों की उन्नति हेतु उनके अभिभावक बहुत कुछ कर सकते हैं और प्रधानाचार्य के लिए यह आवश्यक है कि वह बच्चों के अभिभावकों से बहुत अच्छे सम्बन्ध रखे और उनको समय-समय पर पाठशाला में आमन्त्रित करे। बहुत से ऐसे अवसर होते हैं जबकि अभिभावकों को शिक्षालय में बुलाया जा सकता है। ऐसा करने से वे शिक्षालय के काम में अपनी रुचि बढ़ायेंगे तथा उनकी उन्नति के लिए यत्न करेंगे। जब कभी अभिभावक शिक्षालय में आयें तो उनसे मीठे वचन बोलने चाहिए तथा शिष्टतापूर्वक व्यवहार करना चाहिए। बहुत-से अभिभावक ऐसे भी होते हैं जो स्वयं शिष्टाचार से परिचित होते हैं। ऐसी परिस्थिति में तो शिक्षक वर्ग तथा प्रधानाचार्य के लिए और भी आवश्यक हो जाता है कि वे सहानुभूति तथा प्रेम के साथ संरक्षकों के साथ वार्तालाप करें।

अभिभावकों से निम्न प्रकार सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है—

1. छात्र प्रवेश के समय अभिभाववक को बुलाकर।

2. अभिभावक शिक्षक संघ द्वारा।

3. अभिभावक दिवस मनाकर।

4. पूर्व छात्रों के संघ स्थापित करके।

5. प्रगति पुस्तिका भेजकर।

6. विद्यालय पत्रिका द्वारा।

7. चिकित्सक प्रतिवेदन द्वारा।

8. विद्यालयों के उत्सवों में अभिभावकों को बुलाकर।

9. समाज सेवा कार्य द्वारा।

10. प्रबन्ध समिति में अभिभावकों को स्थान देकर।

11. आवश्यकतानुसार तथा समयानुसार विद्यालय पुस्तकालय की सुविधाएँ अभिभावकों को देकर।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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