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विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या (Subject-Centred Curriculum)
विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या का आशय उस पाठ्यचर्या से है जिसमें पाठ्य-पुस्तकों एवं विषयों को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता है। विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या का प्रयोग सर्वप्रथम प्राचीन ग्रीक एवं रोम के विद्यालयों में किया गया था। विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या में बालकों के स्थान पर विषय को आधार मानकर ही पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाता है। इस प्रकार की पाठ्यचर्या का उद्देश्य बालकों को विभिन्न प्रकार के ज्ञान से अवगत कराना एवं उस ज्ञान को बालक के मानस पटल पर स्थाई रूप से अंकित करना है। विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या पुस्तकीय ज्ञान पर अधिक बल देता है। इस प्रकार की पाठ्यचर्या में बालकों का स्थान नगण्य रहता है। पाठ्यचर्या में ज्ञान को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करके उनसे अलग-अलग विषय की पुस्तकों का निर्माण किया जाता है। इन पुस्तकों से ही बालक एवं शिक्षक अध्ययन एवं अध्यापन का कार्य करते हैं। विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या में बालक की रुचियों आदि को महत्त्व न देकर विषय ज्ञान (विषय-वस्तु) को ही अधिक महत्त्व दिया जाता है। इसी विषय वस्तु को ध्यान में रखकर ही शिक्षक अध्यापन करते हैं जिसे बालकों को ग्रहण करना होता है। इसी विषय ज्ञान के आधार पर बालकों की परीक्षा ली जाती है। परीक्षोपरान्त मूल्यांकन के माध्यम से यह ज्ञात किया जाता है कि बालक ने विषयवस्तु से कितना ज्ञान अर्जित किया।
विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या की विशेषताएँ (Characteristics of Subject-Centred Curriculum)
हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या पर आधारित है। विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या के माध्यम से परम्परागत ज्ञान को सुविधाजनक तरीके से आगे बढ़ाया जाता है।
- विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या में उद्देश्य स्पष्ट होते हैं।
- विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या एक निश्चित सामाजिक एवं शैक्षिक विचारधारा पर आधारित होती है।
- विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों को ज्ञान देने के साथ-साथ उस ज्ञान को सुदृढ़ किया जाता है।
- छात्र द्वारा संचित ज्ञान को विभिन्न परिस्थितियों में प्रयुक्त करने में भी विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या सहायता करती है।
- विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या के द्वारा विभिन्न विषयों के बीच सह सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है।
- विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या के द्वारा शिक्षण एवं मूल्यांकन दोनों ही कार्य सहजता पूर्ण विधि से किए जा सकते हैं।
- विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या में संशोधन एवं परिवर्तन सरलतापूर्वक किए जा सकते हैं।
विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या की सीमाएँ (Limitations of Subject-Centred Curriculum)
विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
- विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या का सबसे बड़ा दोष यह है कि इस पाठ्यचर्या में बालक की रुचियों, बौद्धिक स्तर, योग्यताओं आदि को ध्यान में नहीं रखा जाता है।
- विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या शिक्षा के मूल उद्देश्य (बालक का सर्वांगीण विकास) को पूरा नहीं कर सकता है।
- विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या में बालक की जनतान्त्रिक भावनाओं के विकास की उपेक्षा की जाती है।
- विषय केन्द्रित पाठ्यचर्या में सिर्फ परीक्षा उत्तीर्ण करने पर बल दिया जाता है।
- बालकों से सदैव यह अपेक्षा की जाती है कि वे विषय के प्रति समर्पित रहें जो कि सम्भव नहीं है।
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