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विषयक पाठ्यचर्या (Disciplinary Curriculum)
विषयक पाठ्यचर्या व्यवस्थित ज्ञान के अंगों का वह पुंज है जिसे अधिगम, मानसिक प्रशिक्षण एवं उच्च स्तरीय अध्ययन एवं अनुसंधान हेतु उपयुक्त तरीके से नियमित एवं समूहित किया जाता है। किन्तु उपर्युक्त विचार कई विद्वानों को मान्य नहीं हुआ एवं इन्होंने इसके विषय में कुछ तर्क दिए-
1) सूचनात्मक ज्ञान की खोज करना एवं उसे व्यवस्थित करने का प्रत्येक अध्ययन विषय का अपना विशिष्ट उपागम, उपकरण एवं विधियाँ होती है। ये उस अध्ययन विषय की विधि कहलाती है। अध्ययन विषय की विषयवस्तु इस विधि से इतनी गहनता से जुड़ी होती है कि उन्हें पृथक रूप में देखा एवं समझा नहीं जा सकता है।
2) अध्ययन विषय स्थिर नहीं होता। उसमें नवीन ज्ञान का समावेश होता रहता है एवं उसमें परिवर्तन भी आते रहते है। इस प्रकार गत्यात्मकता अध्ययन विषयों का आवश्यक लक्षण होता है।
3) प्रत्येक अध्ययन विषय की कुछ आधारभूत संकल्पनाएँ होती हैं एवं ज्ञान का समूहीकरण इन्हीं संकल्पनाओं की परिधि में किया जाता है। ये आधारभूत संकल्पनाएँ ही किसी अध्ययन विषय की संरचना करती हैं। यह संरचना ही इसे अपना सत्य एवं सौन्दर्य प्रदान करती हैं एवं इस की प्रकृति को समझने पर ही यह उस विषय के वास्तविक अर्थ को ठीक तरीके से समझ पाते हैं।
अतः अध्ययन विषयों की सर्वमान्य परिभाषा इस प्रकार है “वस्तुओं एवं घटनाओं के किसी विशिष्ट क्षेत्र सम्बन्धी ज्ञान के संगठन को अनुशासन कहा जाता है। इन वस्तुओं एवं घटनाओं के अन्तर्गत वे तथ्य, प्रदत्त, पर्यवेक्षण, अनुभूतियाँ आदि भी सम्मिलित रहते हैं जो उस ज्ञान के आधारभूत घटकों को निर्मित करते हैं। कोई ज्ञान किसी अध्ययन के लिए आधारिक नियम एवं परिभाषाएँ निर्मित कर ली जाती है।”
विषयक पाठ्यचर्या की विशेषताएँ (Characteristics of Disciplinary Curriculum)
विषयक पाठ्यचर्या की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
- इस पाठ्यचर्या के अनुसार प्रत्येक अध्ययन विषय की एक मान्य संरचना होती है।
- प्रत्येक अध्ययन विषय का अपना इतिहास एवं परम्पराएँ होती हैं एवं यही उसकी संरचना करने एवं उसके नियमों के निर्धारण के लिए उत्तरदायी होती है।
- प्रत्येक अध्ययन विषय की अपनी अध्ययन एवं अनुसन्धान विधियाँ होती हैं।
- प्रत्येक अध्ययन का अपना मूल्य तथा चिन्तन क्षेत्र होता है।
- प्रत्येक अध्ययन विषय की अपनी विषय-वस्तु होती है एवं उसमें नवीन ज्ञान को समाहित करने के सम्बन्ध में निश्चित नियम होते हैं।
पाठ्यचर्या निर्माताओं को पाठ्यचर्या को व्यक्तिगत तथा सामाजिक समस्याओं पर आधारित करने के स्थान पर ज्ञान के उपखण्डों के आधार पर व्यवस्थित करना चाहिए। यह पाठ्यचर्या ज्ञान को पाठ्यचर्या में प्रमुख स्थान दिलवाने पर बल देती है एवं केवल समस्याओं के समाधान के उपकरण के रूप में प्रयुक्त किए जाने की अपेक्षा इसका अध्ययन सीधे रूप में किए जाने पर बल दिया जाता है।
विषयक पाठ्यचर्या की सीमाएँ (Limitations of Disciplinary Curriculum)
विषयक पाठ्यचर्या की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
1) पाठ्यचर्या में पृथक- पृथक विषयों का ही महत्त्व रह जाने के कारण पाठ्यचर्या के पालयन्य विशेषज्ञों की उसके निर्माण तथा विकास कार्य में कोई प्रभावी भूमिका नहीं रह जाएगी। इसके अलावा किसी क्षेत्र विशेष में विशेषज्ञता प्राप्त होने से ही कोई व्यक्ति पाठ्यचर्या विकास कार्य में सहभागी होने का अधिकारी नहीं होता। अतः इससे पाठ्यचर्या के संगठन में शिथिलता और बिखराव आने की सम्भावना अधिक हो जाएगी।
2) इस प्रकार की पाठ्यचर्या में विभिन्न विषयों के मध्य अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त करने के लिए खींचतान बढ़ जाती है जिससे पाठ्यचर्या में असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
3) यह पाठ्यचर्या पाठ्यक्रम के पृथक- पृथक विषयों पर अधिक जोर देती है। लेकिन विभिन्न विषयों के साथ-साथ सम्पूर्ण पाठ्यचर्या का भी अपना महत्त्व है एवं सम्पूर्ण पाठ्यचर्या विभिन्न विषयों का केवल समूह ही नहीं होती है। अतः इस पाठ्यचर्या में सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर केवल सतही ध्यान देने या उसकी पूर्ण उपेक्षा होने का भी भय बना रहता है।
4) इसमें सम्मिलित किए जाने वाले विभिन्न विषयों के मध्य पारस्परिक समन्वय में कमी की सम्भावना रहती है। इस कारण यह पाठ्यचर्या ज्ञान के अत्यधिक असम्बद्ध उपखण्डों का मात्र पुंज बनकर रह जाती है।
5) किसी भी अध्ययन विषय की संरचना का कोई ठोस तथा निश्चित आधार न होने के कारण सिद्धान्त एवं व्यवहार में पृथकता बढ़ जाती है।
6) मानव ज्ञान के विशाल भण्डार एवं समय की सीमा को देखते हुए पाठ्यचर्या में ज्ञान भी प्रमुख उपखण्डों को समाहित करना सम्भव ही नहीं है।
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