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वेबर के अधिकारी तंत्र मॉडल का विश्लेषण कीजिए।

वेबर के अधिकारी तंत्र मॉडल का विश्लेषण कीजिए।
वेबर के अधिकारी तंत्र मॉडल का विश्लेषण कीजिए।

वेबर के अधिकारी तंत्र मॉडल का विश्लेषण कीजिए। 

नौकरशाही शब्द वेबर के नाम के साथ अभिन्न रूप ‘जुड़ा हुआ है। प्रारम्भ में ‘Bureaucracy’ शब्द का प्रयोग फ्रांसीसी सरकार के अधिकारियों को मेज ढंकने वाले कपड़े के लिए किया जाता था आगे चलकर इसका प्रयोग विशेष प्रकार की सरकार को चलाने के लिए सम्भवतः फ्रांसीसी क्रान्ति के पूर्व फ्रांस सरकार के लिए किया जाता था। 19वीं शताब्दी में इसका ह्रासकारी प्रयोग सारे यूरोप में किया जाने लगा। जहाँ-जहाँ सरकार में निरंकुशता, संकुचित दृष्टिकोण तथा सरकारी अधिकारियों की स्वेच्छाचारिता दिखाई पड़ी वहीं उस व्यवस्था को नौकरशाही कहा जाने लगा। धीरे-धीरे इसका भावार्थ नियमों का कठोर पालन, अनुत्तरदायित्व जटिल प्रक्रियाओं तथा निहित स्वार्थों से लिया जाने लगा। स्पष्ट है कि नौकरशाही (व्यूरोक्रेसी) शब्द का अर्थ एवं प्रयोग प्रारम्भ से विभिन्न अर्थों में किया गया। वेबर सामाजिक संगठन के पीछे शक्ति को महत्वपूर्ण तत्व मानता है। इन्होंने शक्ति के दो आधारित प्रकार माना है- प्रथम एक दूसरे पर स्थापित वह प्रभुत्व जो उनके हितों को प्रभावित कर सकने की योग्यता पर आधारित होता है।

मैक्सवेबर ने जो नौकरशाही का आदर्श रूप (मॉडल) प्रस्तुत किया है उसकी निम्नलिखित विशेषताएं हैं-

1) श्रम विभाजन – वेबर के नौकरशाही की पहली विशेषता है कि इसमें नौकरशाही संगठन से श्रमिकों के बीच कार्य का सुनिश्चित तरीके से स्पष्ट वितरण किया जाता है और प्रत्येक कर्मचारी से यह आशा की जाती है कि वह अपना कार्य प्रभावशाली ढंग से करे।

(2) निश्चित कार्यविधियाँ- नौकरशाही संगठन में कार्य विधियाँ पूर्णतया निश्चित रहती हैं। संगठन के उद्देश्य की पूर्ति हेतु जो भी कार्य करने पड़ते हैं उनकी नीतियों पूर्व निर्धारित होती हैं। समस्त कार्य पूर्व निर्धारित नियमों के अनुसार होते हैं।

(3) निश्चित कार्यक्षेत्र- नौकरशाही व्यवस्था की एक अन्य विशेषता यह है कि संगठन के कार्यों को पूरा करने वाले पदाधिकारियों का कार्यक्षेत्र निश्चित कर दिया जाता है तथा इस कार्यक्षेत्र का दृढ़ता से पालन किया जाता है।

(4) कार्य को पूरा करने हेतु विधिपूर्वक व्यवस्था- नौकरशाही पद्धति में कार्यों को नियमित रूप से पूरा करने के लिए विधिपूर्वक व्यवस्था की जाती है। कार्य पूर्ण क्षमता के साथ सम्पन्न हों। इस उद्देश्य से केवल उन्हीं व्यक्तियों को संगठन में नियुक्त किया जाता है जो निर्धारित योग्यता रखते हों।

(5) पदसोपान पद्धति- नौकरशाही प्रणाली पदसोपान पद्धति पर आधारित होती है इसमें कर्मचरियों के बीच उच्च अधीनस्थ सम्बन्ध पाया जाता है। आदेश का सूत्र ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित होता है। संगठन का प्रशासकीय ढाँचा एक पिरामिड की भाँति होता है उच्चतर एवं निम्नतर के बीच कई सोपान होते हैं प्रत्येक कार्य उचित मार्ग से होता है।

(6) पद के लिए अर्हताएँ- नौकरशाही का एक लक्षण यह भी है कि इसमें प्रत्येक पद के लिए योग्यता निर्धारित रहती है। इसमें केवल उन्हीं व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता है जो कार्यकुशल हों। नौकरशाही शासन के पदाधिकारियों की न केवल भर्ती बल्कि पदोन्नति भी योग्यता के आधार पर की जाती है।

(7) पृथक् वर्ग- नौकरशाही व्यवस्था में अधिकारियों का एक पृथक वर्ग बन जाता है। जो लोक सेवा को जीविकोपार्जन का एक साधन मात्र मानते हैं। इस पृथक अधिकारी वर्ग के सदस्यों को समाज में अपने पद के अनुरूप शक्तियाँ तथा विशेषाधिकार मिले होते हैं।

( 8 ) अहंभाव – नौकरशाही पद्धति में पदाधिकारियों में अहंभाव उत्पन्न हो जाता है। उनका प्रशिक्षण शुद्ध प्रावैधिक आधार पर कुशल प्रशासन की दृष्टि से किया जाता है। यह वस्तुतः अच्छी बात है, लेकिन इसमें अधिकारी एक कुशल प्रशासक बनकर ही रह जाते है मनुष्य नहीं। वे अपने आपको सामान्य जनता से पृथक मानते हैं, इसलिए सामान्य जनता भी उनको अलग मानने लगती है जिसका बुरा प्रभाव लोक सेवकों पर अवकाश ग्रहण करने के बाद पड़ता है, कारण कि वे एक लम्बे अर्से तक अपने आपको सामान्य सामाजिकता से अलग रखे, फिर वृद्धावस्था में समाज के करीब आना चाहते हैं तो समाज उन्हें तिरस्कृत भावना से देखता है। अतः वे हमेशा पृथक् वर्ग में ही रह जाते हैं।

( 9 ) लालफीताशाही- लालफीताशाही अथवा अनावश्यक औपचारिकताएँ वेबर के नौकरशाही की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। लालफीताशाही का अर्थ “विनियमों के पालन में आवश्यकता से अधिक बारीकी है।” इसमें कार्यालय से प्रत्येक कार्य उचित माध्यम से किया जाता है। प्रशासकीय अधिकारी प्रत्येक कार्य में कठोरता के साथ नियमों का पालन करते हैं, उनमें लचीलेपन की थोड़ी भी गुंजाइश नहीं होती है। इसका स्वाभाविक परिणाम होता है निर्णय में विलम्बन तथा हृदय हीनता कार्य संचालन।

(10) कठोर अनुशासन एवं नियंत्रण- नौकरशाही संगठन के किसी भी पदाधिकारी को अनियंत्रित स्वच्छंद नहीं होने दिया जाता है। यहाँ नियंत्रण एवं अनुशासन की उपयुक्त व्यवस्था की जाती है तथा दायित्व एक से अधिक निकायों के बीच बांट दिए जाते हैं।

(11) वेतन एवं पेंशन का अधिकार- नौकरशाही संगठन में कर्मचारी अपने कार्य के बदले अधिकारपूर्वक वेतन लेता है और अवकाश ग्रहण के पश्चात उसे पेन्शन प्राप्ति का भी अधिकार होता है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि वेबर की नौकरशाही के अच्छी-बुरी अनेक विशेषताएँ हैं। कुछ विशेषताएं किसी के लिए अच्छी हैं तो कुछ विशेषताएं किसी के लिए भी। यही कारण है कि वेबर के नौकरशाही विचार को कुछ प्रशासनिक चिंतकों ने प्रशंसा की है तो कुछ ने उनकी कटु आलोचनाएँ भी की हैं।

मेक्सवेबर के नौकरशाही विचार की आलोचना करते हुए मि. ब्लोव ने कहा है “इनके विचार में अनेक अपूर्णताएं हैं तथा इन्होंने अपने विचार में कई महत्वपूर्ण तत्वों की अनदेखी कर नौकरशाही व्यवस्था को दोषपूर्ण बना दिया है। वृहत् संगठनों में कार्य विभाजन तथा वरिष्ठ-कनिष्ठ सोपानों में तनाव उत्पन्न होने की सम्भावना सदैव बनी रहती है। प्रबन्ध अधिकारियों द्वारा निकट नियंत्रण तथा निरीक्षण अकुशलता लाता है जो कर्मचारियों के मध्य सम्बन्ध को बिगाड़ देता है।

प्रमुख आलोचक डॉ. आर. के. मार्टन ने तो यहाँ तक कहा है कि ‘वेबर’ ने नौकरशाही का जो आदर्श रूप रखा है यह शब्द ही दुर्भाग्यपूर्ण है यदि नौकरशाही के आदर्श रूप में अधिकतम कुशलता पैदा नहीं कर सकती, कारण कि यथार्थ में संगठन की कार्यकुशलता का निर्धारण कुछ विशेष संगठनात्मक स्थितियों द्वारा होता है जैसे कार्यकर्ताओं के तकनीकी स्तर, गठन के लक्ष्य तथा संगठन के सामाजिक वातावरण आदि ।

स्पष्ट है कि वेबर के नौकरशाही विचार की आलोचकों ने काफी आलोचनाएं किया है। और उसकी सारी मान्यताएँ ही समाप्त करने पर तुल गये हैं फिर भी इनके विचार काफी महान है, उसकी काफी महत्ता है और आज के संदर्भ में पूर्णतः प्रासंगिक भी दिखता है। इतना ही नहीं इनके कटु आलोचक चार्ल्स जे. फ्रेडरिच ने अपनी पुस्तक ‘कौन्सीट्यूशनल गवर्नमेंट एण्ड डेमोक्रेसी’ में वेबर के नौकरशाही की प्रशंसा करते हुए कहा है कि बेवर का विचार प्रशासन के अध्ययन हेतु एक नया दरवाजा खोला है।

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Anjali Yadav

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