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व्यक्तित्व मापन के उपकरण | Tools of Personality Assessment
आत्मनिष्ठ विधि (Subjective Method)
इस विधि में व्यक्तित्व की जाँच स्वयं परीक्षक द्वारा या उसके परिचितों की सहायता से की जाती है। इसमें निम्नलिखित विधियों का उपयोग किया जाता है-
1) जीवन इतिहास विधि (Case Study Method)- इस विधि को मनोवैज्ञानिकों ने चिकित्सा शाखा से ग्रहण किया है। इस विधि में मनोवैज्ञानिक किसी व्यक्ति के व्यवहार को समझने के लिए उसकी माँ के गर्भ धारण के समय से जो घटित हो रहा है, उसका इतिहास तैयार करते हैं। उसके बारे में विभिन्न माध्यमों सें सूचनाएँ एकत्र करके किसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। इसमें व्यक्ति तीन तरह की सूचनाएँ एकत्र करता है-
- प्रारंभिक सूचनाएँ,
- बीता इतिहास, एवं
- वर्तमान अवस्था।
इस तरह की सूचनाएँ एकत्र करने में व्यक्ति विभिन्न प्रविधियों, साक्षात्कारों, प्रश्नावलियों इत्यादि का उपयोग करते हैं।
2) साक्षात्कार विधि (Interview Method) – व्यक्ति के व्यक्तित्व के परीक्षण हेतु सर्वाधिक सामान्य विधि साक्षात्कार विधि है। सरकारी नौकरियों में चयन करने के लिए इस विधि का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। इसमें परीक्षक व परीक्षार्थी आमने-सामने बैठते हैं। परीक्षक, परीक्षार्थियों से विभिन्न विषयों से सम्बन्धित प्रश्न पूछता है और परीक्षार्थी, परीक्षक के प्रश्नों का उत्तर देता हैइससे परीक्षार्थी द्वारा दिए गए उत्तरों के अतिरिक्त उसके हाव-भाव, तौर-तरीकों तथा अन्य बातों से भी उसके व्यक्तित्व का पता चलता हैइसमें कुशल परीक्षक ऐसा प्रश्न पूछता है कि जिससे मतलब की बात निकल आए व परीक्षार्थी निःसंकोच अपने को अभिव्यक्त कर सके।
3) प्रश्नावली विधि (Questionnaire Method)- व्यक्ति के व्यक्तित्व के सामाजिक गुणों जैसे सामाजिकता, आत्म-ज्ञान आदि के परीक्षण हेतु मनोविज्ञान में प्रश्नावालियों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता हैइस विधि में कुछ चुने हुए प्रश्नों की सूची होती हैजिनके उत्तरों से व्यक्ति के व्यक्तित्व की विशेषताओं को ज्ञात किया जाता है। इन प्रश्नों के सामने ‘हाँ’ या ‘ना’ लिखा रहता है जिनमें से परीक्षार्थी गलत प्रश्नों को काट देता है अथवा सही के आगे निशान लगा देता है। प्रश्नावली से व्यक्ति के विभिन्न लक्षणों जैसे आत्मविश्वास, सामाजिकता, अन्तर्मुखी, बर्हिमुखी आदि की जानकारी प्राप्त हो जाती है।
4) आत्मकथा विधि (Autobiography Method)- अपनी आत्मकथा लिखते समय व्यक्ति बिना किसी रोक-टोक के अपनी इच्छानुसार अपने विचारों का वर्णन करता है। ये तीन प्रकार की होती हैं-
i) निर्देशित आत्मकथा- इस प्रकार की आत्मकथा एक रूपरेखा के आधार पर तैयार की जाती हैजैसे व्यक्ति को यह निर्देश दिया गया हो कि वह अपने परिवार के विषय में लिखे या अपने उन विचारों को लिखे जिन्हें वह महत्त्वपूर्ण समझता है।
ii) अनिर्देशित आत्मकथा-इसमें व्यक्ति के ऊपर किसी तरह का बंधन नहीं होता है। वह अपनी इच्छानुसार लिख सकता है।
iii) मिश्रित आत्मकथा-यह उपरोक्त दोनों आत्मकथाओं का मिश्रण हैजहाँ एक ओर व्यक्ति को स्वतंत्रता दी जाती है, वहीं दूसरी तरफ उसे निर्देश भी दिए जाते हैं।
5) अवलोकन या निरीक्षण विधि (Observation Method)- अवलोकन व्यक्तित्व-अध्ययन की प्रमुख विधि है। इसमें व्यक्तित्व का मापन करने वाला व्यक्ति अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा किसी व्यक्ति के लिए उत्तरदायी वाह्य व्यवहारों का अवलोकन करता है एवं उसके अनुरूप उस व्यक्ति के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को समझने का प्रयास करता हैशिक्षा-शब्दकोश में निरीक्षण के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है, “अवलोकन वर्णनात्मक अथवा संख्यात्मक आँकड़ों को एकत्र करने के साधन के रूप में दशाओं अथवा क्रियाओं को अवलोकित करने का कार्य अथवा प्रक्रिया है।”
जीवन की वास्तविक परिस्थितियों में मानव व्यवहार का अध्ययन करने की यह सबसे लोकप्रिय विधि है। इस विधि में निरीक्षणकर्ता को सबसे पहले यह तय करना होता है कि उसे व्यक्ति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं अथवा गुणों के बारे में जानकारी एकत्रित करनी हैइसके पश्चात् वह उन गुणों से सम्बन्धित उस व्यक्ति के क्रिया-कलापों तथा व्यवहार का बिल्कुल स्वाभाविक रूप में अवलोकन या निरीक्षण करने का प्रयत्न करता है। यह निरीक्षण दो तरह से किया जा सकता है। एक में तो निरीक्षणकर्ता अपनी उपस्थिति को छुपाता नहीं है। वह एक तरह से निरीक्षण किए जा रहे समूह में घुलमिल कर उसका एक अंग ही बन जाता है जबकि दूसरे में वह ऐसे स्थान पर बैठ कर निरीक्षण करता है जहाँ से वह स्वयं तो नहीं दिखाई दे परन्तु सम्बन्धित व्यक्ति के व्यवहार की सभी छोटी-से-छोटी बातों का भी वह निरीक्षण करने में समर्थ हो सके। भली-भाँति निरीक्षण करने की दृष्टि से निरीक्षणकर्ता टेप-रिकार्डर, कैमरा, दूरदर्शक (Telescope) इत्यादि उपकरणों का प्रयोग भी कर सकता है। निरीक्षण द्वारा प्राप्त परिणामों में विश्वसनीयता लाने के लिए निरीक्षणकर्ता निरीक्षण की प्रक्रिया को लगभग एक-सी परिस्थितियों में बार-बार दोहरा भी सकता है अथवा एक ही व्यक्ति के व्यवहार का निरीक्षण भिन्न-भिन्न निरीक्षण कर्ताओं द्वारा किया जा सकता है तथा प्राप्त परिणामों को एक जगह एकत्रित कर व्यक्ति के बारे में कोई राय बनाई जा सकती है।
वस्तुनिष्ठ विधि (Objective Method)
इस विधि में व्यक्ति के बाह्य आचरण का अध्ययन किया जाता है, जो कि निम्नवत् है-
1) निर्धारण मापनी विधि (Rating-Scale Method)- इस विधि में व्यक्ति के किसी विशेष गुण का मूल्यांकन उसके सम्पर्क में रहने वाले लोगों से कराया जाता है। उस गुण को 5 या 7 भागों में विभाजित कर मतदाताओं को उसके सम्बन्ध में विचार व्यक्त करने का अनुरोध किया जाता है। जिस श्रेणी में अधिक अंक प्राप्त होते हैं उसे उसी श्रेणी का समझा जाता है। ये निम्न चार प्रकार की होती हैं-
- संचयी अंक मापदण्ड,
- संख्यात्मक मापदण्ड,
- रेखांकित मापदण्ड, तथा
- मानक मापदण्ड
इसके द्वारा छात्र की उपस्थिति का मूल्यांकन किया जाता है। इसके द्वारा व्यक्ति विशेष की प्रगति व क्षमता का ज्ञान हो जाता है। छात्र जिस श्रेणी का होता है, उसी के अनुरूप अंक प्रदान किए जाते हैं।
2) समाजमिति विधि (Sociometric Method)- राइटस्टोन का कहना है कि, समाजमिति विधियाँ किसी समूह के सदस्यों के बीच किसी विशेष समय पर मौजूद पारस्परिक सम्बन्धों को जानने का साधन है। इस विधि में व्यक्ति का किसी समूह के सदस्यों के साथ किस प्रकार का सम्बन्ध है, जाना जा सकता है। इसमें व्यक्ति से यह पूछा जाता है कि वह एक समूह के कितने लोगों को पसंद करता है व कितनों को नापसंद। इस तरह यह विधि सामाजिक समायोजन की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है।
3) शारीरिक परीक्षण (Physiological Test) – इस विधि में विभिन्न यंत्रों की सहायता से व्यक्ति विशेष के शारीरिक लक्षणों का अध्ययन किया जाता है, जोकि निम्न है-
- प्लेन्थीसोमोग्राफ (Plenthisomograph)
- इलेक्ट्रो-कार्डियोग्राफ (Electro and cardiograph).
- स्फीग्मोग्राफ (Sphygmograph),
- न्यूमोग्राफ (Pneumograph), एवं
- साइको-गैलवनोमीटर (Psychogalvanometer) |
4) परिस्थिति-परीक्षण विधि (Situation Test Method)-यह विधि वास्तव में ‘व्यवहार-परीक्षण विधि का ही अंग हैइस विधि में व्यक्ति को किसी विशेष परिस्थिति में रखकर उसके व्यवहार या किसी विशेष गुण की जाँच की जाती है। यहाँ पर जिन व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों के विषय में जानना हो उससे सम्बन्धित कार्यों को व्यक्ति के द्वारा किए जाने के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कृत्रिम रूप से उत्पन्न की जाती हैं।
मे एवं हार्टशोर्न (May and Hartshorne) ने अपनी पुस्तक “Studies In Deceif’ में इस विधि के प्रयोग के अनेक उदाहरण दिए हैं। उन्होंने इसका प्रयोग बालकों की ईमानदारी की जाँच करने के लिए किया। उन्होंने एक कमरे में एक सन्दूक रख दिया एवं कुछ बालकों को थोड़े-थोड़े सिक्के दिए। उन्होंने बालकों को आदेश दिया कि वे सिक्कों को सन्दूक में डाल आएं। परीक्षण के अन्त में सन्दूक के सिक्कों को गिनने से ज्ञात हुआ कि कुछ बालकों ने अपने सिक्कों को उसमें नहीं डाला था। बालक की ईमानदारी का मापन करने के लिए कुछ ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं जिससे उसके व्यवहार या अनुक्रियाओं को ईमानदारी या बेईमानी के रूप में मापा जा सके। वह नेकी करने का प्रयास करता है या नहीं, कहीं पर जानबूझकर रखे गए पैसों को उठाने का प्रयास करता है या नहींइस प्रकार कुछ विशेष परिस्थितियों में वह जैसा व्यवहार करता है उससे उसके व्यक्तित्व के विषय में बहुत कुछ जाना जा सकता है
5) व्यक्तित्व सूचियाँ (Personality Inventories)- शिक्षा एवं मनोविज्ञान में व्यक्तित्व के मापन में व्यक्तित्व सूचियों का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। सूची एक प्रश्नावली का ही रूप है, जिसमें विभिन्न कथनों या प्रश्नों का संकलन होता है। इन्हें भरकर कोई भी व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में स्वयं के व्यवहार के सम्बन्ध में सूचनाएँ देता हैतत्पश्चात् व्यक्तित्व मापक या मनोवैज्ञानिक उन सूचनाओं का विश्लेषण करता है एवं उसके अनुसार उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का मापन करता है। शिक्षा-शब्दकोष में व्यक्तित्व सूची के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है, ‘व्यक्तित्व सूची एक व्यक्ति की व्यक्तिगत विशेषताओं जैसे उसका संवेगात्मक समायोजन अथवा अन्तर्मुख अथवा बहिर्मुख की ओर प्रवृत्तियों को सुनिश्चित करने के लिए एक मापन युक्ति है, जो स्व-क्रमनिर्धारण के लिए अथवा अन्य व्यक्तियों द्वारा क्रमनिर्धारण के लिए व्यवस्थित की जा सकती है।
6) संचयी आलेख (Cumulative Record)- विद्यालयों में प्रत्येक छात्र के सम्बन्ध में सूचनाओं को क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित किया जाता है। इसमें शैक्षिक प्रगति, मासिक परीक्षा फल, उपस्थिति, योग्यता तथा विद्यालय की अन्य क्रियाओं में भाग लेने आदि का आलेख प्रस्तुत किया जाता है। छात्र की प्रगति तथा कमजोरियों को जानने के लिए अभिभावकों, शिक्षकों तथा प्रधानाचार्य के लिए यह अधिक उपयोगी आलेख होता हैं।
प्रक्षेपी प्रविधियाँ (Projective Techniques) “प्रक्षेपण का शाब्दिक अर्थ यह है कि, व्यक्ति अपने को उभार कर अपने ही सामने लाए।” सन् 1911 में फ्रॉयड ने भ्रान्ति (Delusion) की व्याख्या करते हुए इस शब्द का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यह एक प्रकार की रक्षा युक्ति है। फ्रॉयड का कहना है कि प्रक्षेपण का सम्बन्ध दमित इच्छाओं से है। व्यक्ति के अचेतन में इन दमित इच्छाओं का रूपांतर हो जाता है। इस विधि के द्वारा व्यक्तित्व की अप्रत्यक्ष रूप से माप की जाती है। इसमें व्यक्ति के सामने कुछ असंगठित उद्दीपक दिए जाते हैं। व्यक्ति उसके प्रति कुछ अनुक्रिया करता है। इसके माध्यम से व्यक्ति अचेतन रूप से दबी हुई इच्छाओं को प्रक्षेपित करता है। लॉरेंस फ्रैंक (Lawrence Frank) को ही पहला व्यक्ति माना जाता है जिन्होंने प्रक्षेपी विधि जैसे पद का प्रतिपादन किया। ब्राउन ने प्रक्षेपण की परिभाषा देते हुए लिखा है कि “प्रक्षेपण अन्तःक्षेपण का विलोम है।” इसमें स्व से सम्बन्धित बातें बाह्य जगत की वस्तुओं या व्यक्तियों पर आरोपित की जाती हैं। विशेषकर वे बातें जो व्यक्ति के अहं को स्वीकार नहीं होतीं।
जेम्स डी. पेज ने प्रेक्षक के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि प्रक्षेपण एक प्रकार की मानसिक युक्ति है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने व्यक्तिगत दोषों को किसी अन्य में आरोपित करता है। प्रक्षेपी परीक्षणों में निम्न विशेषताएँ पाई जाती हैं-
- इन पदों का प्रकार अस्पष्ट होता है।
- इसमें व्यक्ति अपने द्वारा की गई अनुक्रियाओं का अर्थ नहीं समझता है।
- ऐसे परीक्षण द्वारा अधिक मात्रा में जटिल मूल्यांकन आँकड़े उत्पन्न किए जाते हैं।
- ऐसे परीक्षण द्वारा व्यक्तित्व की एक संगठित तस्वीर सामने आती है।
- इसके द्वारा व्यक्तित्व के कई महत्त्वपूर्ण पहलुओं का मापन संभव हो जाता है।
कुछ प्रक्षेपी उपकरण निम्नलिखित हैं-
- रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण
- प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण
- बालकों का अंतर्बोध परीक्षण
- शब्द साहचर्य परीक्षण
- चित्र पूर्ति परीक्षण
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