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शाखा किसे कहते हैं? (Branch)
आधुनिक समय में विक्रय वृद्धि के लिए व्यापारी सभी सम्भव प्रयत्न करता है। इसके लिए यह आवश्यक है। कि उत्पादित वस्तु अथवा सेवा को उपभोक्ता तक सरलता से पहुँचाया जा सके। इसका एक प्रमुख साधन ‘शाखा’ (Branch) स्थापित करना है।
बड़ी-बड़ी व्यापारिक संस्थाएँ समीप एवं दूर-दूर के स्थानों पर अपनी अनेक शाखाएँ खोल लेती हैं और उन सभी पर प्रायः समान ही वस्तुओं की बिक्री की जाती है तथा उन सभी पर एक प्रधान कार्यालय का नियन्त्रण होता । इस प्रकार की शाखाओं की संस्था एक दो तक सीमित अथवा देश-विदेश तक विस्तृत हो सकती है।
शाखा तथा एजेन्सी (Branch and Agency)
यद्यपि शाखा तथा एजेन्सी का उद्देश्य समान ही होता है। दोनों ही, मुख्य कार्यालय से दूर-दूर के स्थानों पर भाल की बिक्री बढ़ाने के लिए प्रचार तथा प्रसार करती हैं। परन्तु इन दोनों में बहुत अन्तर है जो निम्न प्रकार स्पष्ट है ।
(1) एजेन्ट का “मुख कार्य अपने स्वामी के माल की आपूर्ति तथा प्रचार में वृद्धि करना होता है, जबकि शारा का मुख्य उद्देश्य माल की बिक्री होता है।
(2) एजेन्ट के पास सभी प्रकार की वस्तुओं के जो उसका मालिक उत्पादित करता है, नमूने रहते हैं जबकि शाखा में सभी प्रकार की वस्तुएँ स्कन्ध के रूप में रहती हैं, क्योंकि शाखाओं पर बिक्री होती है।
(3) एजेन्सी की दशा में यदि बिक्री की जाती है तो प्रायः माल की सुपुर्दगी तथा विक्रय के मूल्य की वसूली प्रधान कार्यालय द्वारा ही की जाती है, जबकि शाखाएँ अपने विक्रय की सुपुर्दगी स्वयं देती है और स्वयं ही अपने देनदारों से वसूली करती है।
(4) शाखाओं के व्यय की पूर्ति के लिए या तो प्रधान कार्यालय राशि भेजता है तथा राशि समाप्त हो जाने पर अथवा उचित निर्देश होने पर शाखा अपने व्ययों की पूर्ति अपने द्वारा विक्रय की राशि या देनदारों से प्राप्त राशि में से भी कर सकती है, परन्तु एजेन्ट को यह अधिकार नहीं होता है।
शाखा एवं विभाग (Branch Vs Department)
शाखा तथा विभाग दोनों एक-दूसरे से भिन्न हैं। यह निम्न प्रकार स्पष्ट है-
(1) शाखा खोलने का एक मात्र उद्देश्य लाभों में वृद्धि तथा बाजार के विस्तार से है। जबकि विभाग स्थापित करने का उद्देश्य कार्यक्षमता में वृद्धि करना है, क्योंकि यदि कार्य अनेक विभागों में बाँट दिया जाता है तो उसका निरीक्षण एवं संचालन अधिक अच्छा हो जाता है।
(2) शाखाएँ प्रायः वह व्यापारी खोलते हैं, जिनके माल की माँग दूर-दूर तक होती है जबकि विभाग जब खोले जाते हैं तब अनेक वस्तुओं का उत्पादन लिया जाता है अथवा उत्पादित वस्तु ऐसी हो जिसका उत्पादन अनेक प्रक्रियाओं (Processes) के अन्तर्गत होता है।
(3) शाखाएँ प्रधान कार्यालय से दूर किसी अन्य स्थान, शहर, राज्य अथवा विदेश में होती हैं, जबकि सभी विभाग एक नियन्त्रण में एक-दूसरे के पास, प्रायः एक ही भवन में होते हैं।
(4) सभी शाखाओं के अलग-अलग खाते बनाए जाते हैं तथा उनका लाभ पृथक्-पृथक् ज्ञात किया जाता है, जबकि सभी विभागों का अलग-अलग ब्यौरा देते हुए सभी के खाते एक साथ तैयार किए जाते हैं।
शाखा लेखों के उद्देश्य (Object of Branch Accounts)
पृथक् रूप से शाखा खाते बनाने के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
(1) सभी शाखाओं के पृथक्-पृथक् बनाने की सर्वोपरि उद्देश्य लाभदायिकता (Profitability) ज्ञात करना है ।
(2) खातों से सम्बन्धित जो सूचनाएँ समय-समय पर शाखाओं से आती है, उनके द्वारा शाखा के क्रिया-कलापों का पूर्ण ज्ञान प्रधान कार्यालय को बना रहता है। इस प्रकार शाखा खाते बनाने से शाखाओं पर उचित नियन्त्रण (control) बना रहता है।
(3) यदि किसी शाखा के खातों से यह ज्ञात होता है कि वहाँ पर कार्य ठीक प्रकार से नहीं हो रहा है तो प्रधान कार्यालय से उचित निर्देश दिए जा सकते हैं।
(4) प्रधान कार्यालय में खातों को पूर्ण करने हेतु सभी शाखाएँ प्रधान कार्यालय को समय-समय पर अनेक विवरण भेजती हैं। इससे प्रधान कार्यालय में यह सूचना रहती है कि शाखाओं के पास कितना-कितना रोकड़ शेष तथा स्कन्ध (Cash Balance and Stock) है।
(5) शाखाओं के खातों की सूचना अन्य शाखाओं को भी दी जा सकती है, जिससे उनमें पारस्परिक प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होती है और कुल बिक्री में वृद्धि होती है।
(6) शाखाओं के खाते बनाए जाने से व्यापार की वास्तविक स्थिति का पूर्ण ज्ञान रखा जा सकता है।
(7) यदि प्रधान कार्यालय एक कम्पनी (Company) है, तो भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956 (Indian Companies Act, 1956) के अन्तर्गत उसकी सभी शाखाओं के व्यवहारों को लेखा करना तथा अंकेक्षण (Audit) कराना अनिवार्य है। अतः शाखा खाते आवश्यक हैं।
शाखाओं के प्रकार (Types of Branches)
सामान्यतः शाखाएँ निम्न प्रकार की होती हैं।
- आश्रित शाखाएँ (Dependent Branches)
- स्वतन्त्र शाखाएँ (Independent Branches)
आश्रित शाखाएँ (Dependent Branches ) – आश्रित शाखाओं की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं- (a) इन शाखाओं को सारा माल प्रधान कार्यालय द्वारा भेजा जाता है। (b) शाखा के सभी खर्चे प्रधान कार्यालय द्वारा नकद या चैक द्वारा भुगतान किए जाते हैं। (c) माल की बिक्री प्रधान कार्यालय के निर्देशानुसार निर्धारित मूल्य पर होती है। (d) फुटकर व्ययों के लिए प्रधान कार्यालय सभी शाखाओं को फुटकर रोकड़ (Petty Cash) भेजता है। (e) शाखा द्वारा सम्पूर्ण विक्रय की राशि प्रधान कार्यालय खाते में जमा करा दी जाती है। (1) इन शाखाओं को नकद एवं उधार माल बेचने का अधिकार होता है।
यह शाखाएँ अपने यहाँ खाते नहीं बनाती। इनके खाते प्रधान कार्यालय द्वारा ही बनाए जाते हैं। यह शाखाएँ अपनी याद्दाशत के लिए रोकड़ (Cash Book), विक्रय पुस्तक (Sales Book) तथा स्कन्ध पुस्तक (Stock Book) बना लेती है, किसी प्रकार की जर्नल प्रविष्टियाँ तथा खाते नहीं रखती ।
प्रधान कार्यालय द्वारा शाखा का लाभ या हानि ज्ञात करने हेतु निम्न में से किसी भी एक विधि का प्रयोग किया जा सकता है।
(1) शाखा देनदार पद्धति या शाखा अवास्तविक खाता विधि (Branch Debtors Methods or Branch Nominal Account Method)
(2) स्टॉक व देनदार पद्धति (Stock and Debtors Method)
(3) अन्तिम खाता विधि (Final Accounts Method)
(4) थोक मूल्य विधि (Whole Sale Price Method)
उपरोक्त सभी पद्धतियों में प्रधान कार्यालय द्वारा अपनी पुस्तकों में शाखा से सम्बन्धित सभी लेखे रखे जाते हैं।
(1) शाखा देनदार पद्धति (Branch Debtors Method)
इनका लेखा भी दो प्रकार से किया जा सकता है।
(a) जब शाखाओं को माल लागत मूल्य पर भेजा जाता है— इन शाखाओं को प्रधान कार्यालय द्वारा लागत मूल्य पर माल भेजा जाता है। यह सम्पूर्ण विक्रय राशि प्रधान कार्यालय को भेज देती है, अथवा उसके खाते में जमा करा देती हैं। शाखा के फुटकर व्ययों के लिए प्रधान कार्यालय पृथक् रूप से रोकड़ भेजता है।
(b) आश्रित शाखाएँ जिनको माल विक्रय मूल्य पर भेजा जाता है तथा नकद और उधार विक्रय करती है— प्रायः प्रधान कार्यालय से अपनी शाखाओं को माल लागत मूल्य पर न भेजकर विक्रय मूल्य (Selling Price) या ‘बीजक मूल्य’ (Invoice Price) पर भेजा जाता है, जिसकी गणना लागत पर एक निश्चित प्रतिशत जोड़कर की जाती है। ऐसा इस कारण किया जाता है कि शाखा के कर्मचारी भेजे गए माल की वास्तविक लागत न जान सके और यह न पता लगा सके कि उनके प्रधान का वास्तविक लाभ क्या है ? अतः वह अधिक वेतन तथा सुविधाओं की माँग नहीं कर पाते। इसके अतिरिक्त शाखा के पास स्कन्ध पर भी पर्याप्त नियन्त्रण रहता है, क्योंकि शाखा का स्कन्ध खाता (Memorandum Branch Stock Account) बनाया जाता है।
(2) आश्रित शाखाओं की स्टॉक व देनदार पद्धति (Stock and Debtors, Method)
(a) जब शाखाओं को माल लागत मूल्य (Cost Price) पर भेजा जाता है-प्रधान कार्यालय द्वारा जब शाखाओं को नकद विक्रय के अलावा माल को उधार बेचने का अधिकार भी दे दिया जाता है तो प्रधान कार्यालय की पुस्तकों में शाखा से सम्बन्धित व्यवहारों का लेखा स्टॉक व देनदार पद्धति (Stock and Debtors Method) से भी किया जा सकता है।
यदि प्रधान कार्यालय द्वारा शाखाओं को माल लागत मूल्य (Cost Price) पर भेजा जाता है तो इस प्रद्धति के अन्तर्गत प्रधान कार्यालय की पुस्तकों में शाखा सम्बन्धी व्यवहारों के लेखांकन के लिए निम्नलिखित खाते खोले जाते हैं-
(i) शाखा स्टॉक खाता (Branch Stock A/c )
(ii) शाखा को भेजा गया माल खाता (Goods sent to Branch A/c)
(iii) शाखा देनदार खाता (Branch Debtors A/c)
(iv) शाखा खर्च खाता (Branch Expenses A/c)
(v) शाखा लाभ-हानि खाता (Branch P & L. A/c)
(3) अन्तिम खाता विधि (Final Accounts Method)
इस विधि में शाखा के लाभ-हानि की गणना ‘शाखा व्यापार एवं लाभ-हानि खाता’ (Branch Trading and P & L A/c) बनाकर की जाती है। यह खाता स्मरणार्थ खाता (Mermorandum A/c) ही होता है। इस विधि में शाखा खाता (Branch A/c) व्यक्तिमत खाता (Personal A/c) की तरह बनाया जाता है। शाखा खाता का शेष शाखा से प्राप्य राशि बतायेगा।
(4) थोक मूल्य विधि (Whole Sale Price Method)
कई बार प्रधान कार्यालय अपने माल को थोक विक्रेताओं एवं अपनी शाखाओं दोनों के माध्यम से बेचता है। प्रधान कार्यालय लागत में मामूली लाभ जोड़ते हुए थोक मूल्य पर शाखा व थोक व्यापारियों को माल भेजता है। शाखा इस मूल्य में अपना लाभ जोड़कर माल की बिक्री करती है। इस दशा में प्रधान कार्यालय की पुस्तकों में लगभग वही खाते बनाए जाते हैं, जो स्टॉक देनदार विधि में बनाए जाते हैं। शाखा के प्रारम्भिक व अन्तिम स्टॉक में शामिल लाभ (प्रधान कार्यालय का लाभ थोक मूल्य पर) के लिए स्टॉक संचय और बनाया जायेगा। शाखा स्टॉक खाता थोक मूल्य पर बनाया जायेगा। शाखा स्टॉक खाता सकल लाभ व शाखा लाभ-हानि खाता शाखा का शुद्ध लाभ बतायेगा। इस सम्पूर्ण विधि को निम्न उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया गया है ।
स्वतन्त्र शाखाएँ या पूर्ण लेखे रखने वाली शाखाएँ (Independent Branches or Branches Keeping Complete Accounting Records)
ये शाखाएँ बड़े पैमाने पर व्यापार करती हैं, उन्हें अपने बहीखाते पूर्णरूप से रखने होते हैं। ऐसी शाखाएँ स्वतन्त्र एवं विस्तृत अधिकार वाली होती हैं। इस प्रकार की शाखाओं की निम्न विशेषताएँ होती हैं-
(i) ये शाखाएँ स्वयं अपने लेखे दोहरा लेखा विधि के अनुसार रखती हैं।
(ii) ये शाखाएँ स्वयं अपना तलपट व अन्तिम खाते तैयार करती है।
(iii) शाखा की पुस्तकों में प्रधान कार्यालय का खाता (लेनदार की तरह) व प्रधान कार्यालय की पुस्तकों में शाखा का खाता (देनदार की तरह) रखा जाता है। इसे आपस में चालू खाता (Current A/c) भी कहते है।
(iv) शाखाओं को क्रय विक्रय व खर्चों के विस्तृत अधिकार प्रधान कार्यालय के निर्देशों के अनुसार होते है।
(v) शाखा पर स्वामित्व व प्रबन्ध नियन्त्रण प्रधान कार्यालय का ही रहता है।
(vi) इस दशा में शाखा के लाभ-हानि की गणना मुख्य समस्या नहीं है, क्योंकि शाखा स्वयं अपने अन्तिम खाते तैयार करती है। समस्या यह है कि प्रधान कार्यालय शाखा के लाभ-हानि, सम्पत्तियों व दायित्वयों को अपनी पुस्तकों में किस प्रकार सम्मिलित करे ?
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