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शिक्षा मनोविज्ञान शुद्ध विज्ञान है या सामाजिक विज्ञान है?

प्रश्न 2- शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति का मूल्यांकन कीजिए। अथवा शिक्षा मनोविज्ञान शुद्ध विज्ञान है या सामाजिक विज्ञान है? स्पष्ट कीजिए।

शिक्षा मनोविज्ञान शुद्ध विज्ञान है या सामाजिक विज्ञान ? इस प्रश्न को यदि विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धति की कसौटी पर कसा जाय तो हम पायेंगे कि शिक्षा मनोविज्ञान शुद्ध विज्ञान है किन्तु मानव-व्यवहार में परिवर्तनशीलता के कारण इसके अध्ययन के निष्कर्षों में परिवर्तन की गुंजाइश के परिणाम स्वरुव या सर्वथा शुद्ध न होकर समीपस्थ विज्ञान है।

जेम्स ड्रेवर ने मनोविज्ञान को शुद्ध विज्ञान माना है। लुण्डवर्ग महोदय के अनुसार "सामाजिक वैज्ञानिकों में यह विश्वास पुष्ट हो गया है कि उनके सम्मुख जो समस्यायें हैं उनका हल - यदि होता है तो, सामाजिक घटनाओं के निष्पक्ष एवं व्यवस्थित निरीक्षण, सत्यापन, वर्गीकरण एवं विश्लेषण द्वारा ही होगा।"

अतः शिक्षा मनोविज्ञान की वास्तविक प्रकृति को जानने के लिए विज्ञान की आधारभूत विशेषताओं को दृष्टिगत रखते हुए इसका मूल्यांकन आवश्यक है। शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति का मूल्यांकन विज्ञान की विशेषताओं के आधार पर निम्न रुप में प्रस्तुत किया जा सकर्ता है-


1. वस्तुनिष्ठता एवं तथ्यात्मक ज्ञान- शिक्षा मनोविज्ञान के अर्न्तगत किये जाने वाले अध्ययन पक्षपात रहित एवं वस्तुनिष्ठ होते हैं। इसके अध्ययनों में मूल्यों एवं आदर्शों के स्थान पर पदार्थों का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान के समस्त अध्ययन तथ्यात्मक होते हैं।

2. निरीक्षण, परीक्षण एवं प्रयोग- शिक्षा मनोविज्ञान से सम्बन्धित समस्याओं के अध्ययन के लिए अपनायी जाने वाली समस्त पद्धतियां मौलिक रुप से वैज्ञानिक होती है। इनमें निरीक्षण, परीक्षण सिद्धान्त-निरुपण एवं सत्यापन को स्थान प्रदान किया जाता है। शिक्षा-मनोविज्ञान के अध्ययन में सर्वाधिक उपयोग की जाने वाली पद्धति प्रयोगात्मक विधि है। यह विधि पूर्णतया वैज्ञानिक है। इस विधि में अभीष्ट अध्ययन के लिए सम्बन्धित परिस्थितियों को आवश्यकतानुसार नियन्त्रित किया जाता है तथा तथ्यों को संकलित, वर्गीकृत एवं विश्लेषित करके निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं।

शिक्षा-मनोविज्ञान के कुछ अध्ययनों में प्रयोगात्मक विधि के अतिरिक्त अन्य विधियों को भी अपनाया जाता है जो पूर्णतया वैज्ञानिक नहीं होती किन्तु इनमें भी तटस्थता बनाये रखने के प्रयास किये जोते हैं।

3. कार्य-कारण सम्बन्ध- वैज्ञानिक अध्ययन में कार्य-कारण या कारण-प्रभाव सम्बन्धों को ज्ञात करना आवश्यक होता है क्योंकि इसी आधार पर वैज्ञानिक नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। शिक्ष-मनोविज्ञान के अध्ययनों में भी उसके अर्न्तगत घटित होने वाली समस्त घटनाओं के विषय में विद्यमान कार्य-कारण सम्बन्धों को ज्ञात करके उनकी व्याख्या की जाती है। उदाहरणार्थ-जिज्ञासा के अभाव में किसी बात को सीखने का मन नहीं करता है, अभ्यास न करने से हम सीखी हुई बातों को शीघ्र ही भूल जाते हैं आदि।

4. सामान्यीकरण या सार्वभौमिकता- शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक वातावरण में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है। किसी परिस्थिति के प्रति व्यक्ति की प्रतिक्रियायें उसके व्यवहार के अर्न्तगत आती हैं। मानव-व्यवहार के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए व्यवहार को निम्नलिखित रुपों में विश्लेषित करके उसकी सही जानकारी प्राप्त की जा सकती है-

व्यवहार किसी परिस्थिति के प्रति दिखायी गयी प्रतिक्रिया है।
व्यवहार का स्वरुप बाह्य होता है।
व्यवहार को देखा या अनुभन किया जा सकता है।
व्यवहार ज्ञान और भावना नहीं अपितु कर्म है।
विचार एवं भावनाएं व्यवहार को प्रभावित तो करती हैं किन्तु स्वयं में व्यवहार नहीं होते।

व्यवहार के उपर्युक्त ढंग से सुपरिभाषित होने के कारण इसका निरीक्षण एवं परीक्षण किया जा सकता है तथा प्रयोगों के निष्कर्षों के आधार पर सम्बन्धित सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जा सकता है। ये सिद्धान्त परिस्थितियों के समान होने पर सर्वत्र सही पाये जाते हैं। इस प्रकार ये सार्वभौमिक होते हैं तथा इनका सामान्यीकरण किया जा सकता है।

5. सत्यापनशीलता - विज्ञान के ज्ञान की एक प्रमुख विशेषता यह भी होती है कि इनकी प्रामाणिकता होती है तथा इन्हें पुनः सत्यापित किया जा सकता है। शिक्षा-मनोविज्ञान के सिद्धानें को भी परीक्षण एवं पुनः परीक्षण द्वारा सत्यापित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ-"मूल प्रवृत्तियों के दमन से बालक की शैक्षिक प्रगति अवरुद्ध हो जाती है।" इस सिद्धान्त को सत्यापित किया जा सकता है।

6. भविष्य कथन या पूर्वानुमान- वैज्ञानिक अध्ययनों में घटनाओं के कार्य-कारण सम्बन्धों को ज्ञात करके उनकी व्याख्या भी की जाती है। इस प्रकार समान परिस्थितियों में अन्य घटनाओं के परिणाम का पूर्वानुमान भी लगाया जाता हैं । शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययनों में भी कार्य-कारण सम्बन्धों को ज्ञात करके भविष्यवाणी की जा सकती है। उदाहरणार्थ- बौद्धिक एवं योग्यता परीक्षणों के परिणामों के आधार पर व्यक्ति के द्वारा चयनित व्यवसाय में उसकी भावी सफलता का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है तथा इस सम्बन्ध में भविष्यवाणी की जा सकती है। शिक्षा-मनोविज्ञान के अन्र्तगत "निर्देशन एवं परामर्श' का प्रमुख आधार व्यक्ति की योग्यताओं एवं कमियों को आकलन करके उसकी भावी सफलताओं एवं असफलताओं का पूर्वानुमान लगा होता है।

उपर्युक्त मूल्यांकन से शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति स्पष्ट हो जाती है कि यह एक शुद्ध या यथार्थ विज्ञान है। परन्तु फिर भी इसे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान या जीव विज्ञान के समान शुद्ध विज्ञान समझना ठीक नहीं है। यद्यपि वैज्ञानिक ज्ञान में उसकी विशिष्ट अध्ययन पद्धति का अधिक महत्त्व है फिर भी विज्ञान की यथार्थता कुछ सीमा तक उसकी विषय-सामग्री पर भी निर्भर करती है। शिक्षा-मनोविज्ञान की विषय-सामग्री स्पष्ट रुप में अन्य शुद्ध विज्ञानों की विषय-सामग्री से भिन्न है। इसकी विषय-सामग्री मुख्यतः शैक्षिक वातावरण में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन है। व्यक्ति के बाद भी उसके व्यवहार में बहुत अधिक जटिलता, गतिशीलता एवं परिवर्तन की निरन्तरता होती है जिसके कारण अनेक प्रयासों के बाद भी उसके व्यवहार का पूर्णरुपेण सही एवं शद्ध आकलन सम्भव नहीं हो पाता है। अतः शिक्षा-मनोविज्ञान के अध्ययन उतने यथार्थ नहीं हो सकते जितने कि अन्य भौतिक विज्ञानों या प्राकृतिक विज्ञानों के । अतः शिक्षा-मनोविज्ञान शुद्ध विज्ञान होते हुए भी सर्वथा शुद्ध न होकर समीपस्थ विज्ञान है किन्तु दिन-प्रतिदिन शिक्षा-मनोवैज्ञानिकों के विभिन्न प्रयासों द्वारा इसकी यथार्थता को बढ़ाया जा रहा है।

शिक्षा मनोविज्ञान शुद्ध विज्ञान है या सामाजिक विज्ञान है? स्पष्ट कीजिए।

शिक्षा मनोविज्ञान शुद्ध विज्ञान है या सामाजिक विज्ञान ? इस प्रश्न को यदि विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धति की कसौटी पर कसा जाय तो हम पायेंगे कि शिक्षा मनोविज्ञान शुद्ध विज्ञान है किन्तु मानव-व्यवहार में परिवर्तनशीलता के कारण इसके अध्ययन के निष्कर्षों में परिवर्तन की गुंजाइश के परिणाम स्वरुव या सर्वथा शुद्ध न होकर समीपस्थ विज्ञान है।

जेम्स ड्रेवर ने मनोविज्ञान को शुद्ध विज्ञान माना है। लुण्डवर्ग महोदय के अनुसार “सामाजिक वैज्ञानिकों में यह विश्वास पुष्ट हो गया है कि उनके सम्मुख जो समस्यायें हैं उनका हल – यदि होता है तो, सामाजिक घटनाओं के निष्पक्ष एवं व्यवस्थित निरीक्षण, सत्यापन, वर्गीकरण एवं विश्लेषण द्वारा ही होगा।”

अतः शिक्षा मनोविज्ञान की वास्तविक प्रकृति को जानने के लिए विज्ञान की आधारभूत विशेषताओं को दृष्टिगत रखते हुए इसका मूल्यांकन आवश्यक है। शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति का मूल्यांकन विज्ञान की विशेषताओं के आधार पर निम्न रुप में प्रस्तुत किया जा सकर्ता है-

1. वस्तुनिष्ठता एवं तथ्यात्मक ज्ञान- शिक्षा मनोविज्ञान के अर्न्तगत किये जाने वाले अध्ययन पक्षपात रहित एवं वस्तुनिष्ठ होते हैं। इसके अध्ययनों में मूल्यों एवं आदर्शों के स्थान पर पदार्थों का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान के समस्त अध्ययन तथ्यात्मक होते हैं।

2. निरीक्षण, परीक्षण एवं प्रयोग- शिक्षा मनोविज्ञान से सम्बन्धित समस्याओं के अध्ययन के लिए अपनायी जाने वाली समस्त पद्धतियां मौलिक रुप से वैज्ञानिक होती है। इनमें निरीक्षण, परीक्षण सिद्धान्त-निरुपण एवं सत्यापन को स्थान प्रदान किया जाता है। शिक्षा-मनोविज्ञान के अध्ययन में सर्वाधिक उपयोग की जाने वाली पद्धति प्रयोगात्मक विधि है। यह विधि पूर्णतया वैज्ञानिक है। इस विधि में अभीष्ट अध्ययन के लिए सम्बन्धित परिस्थितियों को आवश्यकतानुसार नियन्त्रित किया जाता है तथा तथ्यों को संकलित, वर्गीकृत एवं विश्लेषित करके निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं।

शिक्षा-मनोविज्ञान के कुछ अध्ययनों में प्रयोगात्मक विधि के अतिरिक्त अन्य विधियों को भी अपनाया जाता है जो पूर्णतया वैज्ञानिक नहीं होती किन्तु इनमें भी तटस्थता बनाये रखने के प्रयास किये जोते हैं।

3. कार्य-कारण सम्बन्ध- वैज्ञानिक अध्ययन में कार्य-कारण या कारण-प्रभाव सम्बन्धों को ज्ञात करना आवश्यक होता है क्योंकि इसी आधार पर वैज्ञानिक नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। शिक्ष-मनोविज्ञान के अध्ययनों में भी उसके अर्न्तगत घटित होने वाली समस्त घटनाओं के विषय में विद्यमान कार्य-कारण सम्बन्धों को ज्ञात करके उनकी व्याख्या की जाती है। उदाहरणार्थ-जिज्ञासा के अभाव में किसी बात को सीखने का मन नहीं करता है, अभ्यास न करने से हम सीखी हुई बातों को शीघ्र ही भूल जाते हैं आदि।

4. सामान्यीकरण या सार्वभौमिकता- शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक वातावरण में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है। किसी परिस्थिति के प्रति व्यक्ति की प्रतिक्रियायें उसके व्यवहार के अर्न्तगत आती हैं। मानव-व्यवहार के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए व्यवहार को निम्नलिखित रुपों में विश्लेषित करके उसकी सही जानकारी प्राप्त की जा सकती है-

  1. व्यवहार किसी परिस्थिति के प्रति दिखायी गयी प्रतिक्रिया है।
  2. व्यवहार का स्वरुप बाह्य होता है।
  3. व्यवहार को देखा या अनुभन किया जा सकता है।
  4. व्यवहार ज्ञान और भावना नहीं अपितु कर्म है।
  5. विचार एवं भावनाएं व्यवहार को प्रभावित तो करती हैं किन्तु स्वयं में व्यवहार नहीं होते।

व्यवहार के उपर्युक्त ढंग से सुपरिभाषित होने के कारण इसका निरीक्षण एवं परीक्षण किया जा सकता है तथा प्रयोगों के निष्कर्षों के आधार पर सम्बन्धित सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जा सकता है। ये सिद्धान्त परिस्थितियों के समान होने पर सर्वत्र सही पाये जाते हैं। इस प्रकार ये सार्वभौमिक होते हैं तथा इनका सामान्यीकरण किया जा सकता है।

5. सत्यापनशीलता – विज्ञान के ज्ञान की एक प्रमुख विशेषता यह भी होती है कि इनकी प्रामाणिकता होती है तथा इन्हें पुनः सत्यापित किया जा सकता है। शिक्षा-मनोविज्ञान के सिद्धानें को भी परीक्षण एवं पुनः परीक्षण द्वारा सत्यापित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ-“मूल प्रवृत्तियों के दमन से बालक की शैक्षिक प्रगति अवरुद्ध हो जाती है।” इस सिद्धान्त को सत्यापित किया जा सकता है।

6. भविष्य कथन या पूर्वानुमान- वैज्ञानिक अध्ययनों में घटनाओं के कार्य-कारण सम्बन्धों को ज्ञात करके उनकी व्याख्या भी की जाती है। इस प्रकार समान परिस्थितियों में अन्य घटनाओं के परिणाम का पूर्वानुमान भी लगाया जाता हैं । शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययनों में भी कार्य-कारण सम्बन्धों को ज्ञात करके भविष्यवाणी की जा सकती है। उदाहरणार्थ- बौद्धिक एवं योग्यता परीक्षणों के परिणामों के आधार पर व्यक्ति के द्वारा चयनित व्यवसाय में उसकी भावी सफलता का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है तथा इस सम्बन्ध में भविष्यवाणी की जा सकती है। शिक्षा-मनोविज्ञान के अन्र्तगत “निर्देशन एवं परामर्श’ का प्रमुख आधार व्यक्ति की योग्यताओं एवं कमियों को आकलन करके उसकी भावी सफलताओं एवं असफलताओं का पूर्वानुमान लगा होता है।

उपर्युक्त मूल्यांकन से शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति स्पष्ट हो जाती है कि यह एक शुद्ध या यथार्थ विज्ञान है। परन्तु फिर भी इसे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान या जीव विज्ञान के समान शुद्ध विज्ञान समझना ठीक नहीं है। यद्यपि वैज्ञानिक ज्ञान में उसकी विशिष्ट अध्ययन पद्धति का अधिक महत्त्व है फिर भी विज्ञान की यथार्थता कुछ सीमा तक उसकी विषय-सामग्री पर भी निर्भर करती है। शिक्षा-मनोविज्ञान की विषय-सामग्री स्पष्ट रुप में अन्य शुद्ध विज्ञानों की विषय-सामग्री से भिन्न है। इसकी विषय-सामग्री मुख्यतः शैक्षिक वातावरण में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन है। व्यक्ति के बाद भी उसके व्यवहार में बहुत अधिक जटिलता, गतिशीलता एवं परिवर्तन की निरन्तरता होती है जिसके कारण अनेक प्रयासों के बाद भी उसके व्यवहार का पूर्णरुपेण सही एवं शद्ध आकलन सम्भव नहीं हो पाता है। अतः शिक्षा-मनोविज्ञान के अध्ययन उतने यथार्थ नहीं हो सकते जितने कि अन्य भौतिक विज्ञानों या प्राकृतिक विज्ञानों के । अतः शिक्षा-मनोविज्ञान शुद्ध विज्ञान होते हुए भी सर्वथा शुद्ध न होकर समीपस्थ विज्ञान है किन्तु दिन-प्रतिदिन शिक्षा-मनोवैज्ञानिकों के विभिन्न प्रयासों द्वारा इसकी यथार्थता को बढ़ाया जा रहा है।

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Anjali Yadav

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