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शिक्षा में श्रव्य-दृश्य सामग्री से आप क्या समझते हैं ? इनकी विस्तृत व्याख्या कीजिए एवं लाभों का वर्णन कीजिए।
आधुनिक समय में शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षण के विभिन्न उपकरणों का उपयोग किया जाता है। ये विभिन्न उपकरण ही शिक्षण की सहायक सामग्री कहलाते हैं, दृश्य-श्रव्य सहायक सामग्री की सहायता से बालक के अवधान व रुचि को पाठ्य वस्तु की ओर आकर्षित किया जाता है, जिससे बालक क्रियाशील रहकर ज्ञानार्जन करते हैं। कठिन कार्यों को दृश्य-श्रव्य सामग्री के द्वारा सरल बनाया जा सकता है और सरल हो जाने के पश्चात् बालक अधिक कार्य करने की ओर अभिप्रेरित होता है। दृश्य-श्रव्य सामग्री द्वारा बालकों के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन लाया जा सकता है जैसे पश्चिम के लोगों के रहन सहन के बारे में ज्ञान प्रदान करके बालकों के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाया जा सकता है। भाषा की कठिनाई भी इसके प्रयोग से दूर हो सकती है, क्योंकि बहरे बालकों को शिक्षा देने के लिए चलचित्र ही उत्तम साधन है। इसके अतिरिक्त जिस बात को घण्टों व्याख्यान देकर समझाने की आवश्यकता होती है उसे चन्द मिनटों में दृश्य-श्रव्य सामग्री की सहायता से समझाया जा सकता है। अतः समय एवं श्रम दोनों की बचत होती है।
शैक्षिक सामग्री का वर्गीकरण (Classification of Educational Aids)
शैक्षिक सामग्री को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- श्रव्य साधम ( Audio Aids),
- दृश्य-साधन (Visual Aids),
- दृश्य-श्रव्य साधन (Audio Visual Aids ) ।
1. श्रव्य सामग्री (Audio Aids)
(1) रेडियो (Radio) – रेडियो, शिक्षा व मनोरंजन जगत में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके द्वारा शैक्षिक एवं मनोरंजन के विभिन्न कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं। इसके द्वारा राष्ट्रीयता का भी विकास होता है। इससे सामान्य ज्ञान भी बढ़ता है लेकिन इन उपकरणों का उपयोग तभी सफल होगा जब शिक्षक उसके द्वारा प्रसारित कार्यक्रम के बाद उस पर विवेचना करवाये।
(2) ग्रामोफोन तथा लिंग्वाफोन (Gramophone and Linguaphone) – ग्रामोफोन द्वारा बालकों को भाषण तथा गाने की शिक्षा दी जाती है, किन्तु ग्रामोंफोन पर रिकार्ड सुनने के पश्चात् शिक्षक द्वारा विषय का स्पष्टीकरण अवश्य होना चाहिए। लिंग्वाफोन का उपयोग भाषा शिक्षण में होता है। बालकों के उच्चारण (Pronunciation) एवं वाचन को भी इसके द्वारा शुद्ध कराया जा सकता है।
(3) टेप-रिकार्डर (Tape – Recorder) – रेडियो के कार्यक्रमों तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियों के भाषणों का उपयुक्त स्थान एवं समय पर उपयोग इस उपकरण की सहायता से किया जा सकता है। जैसे—यदि रात के समय 9 बजे प्रधानमन्त्री का सन्देश प्रसारित किया जाये तो उस समय छात्र उसका कक्षा में कोई उपयोग नहीं कर सकते। उसके उपयोग के लिए भाषण का टेप कराकर भाषण से सम्बन्धित उचित समय, स्थान एवं आवश्यकतानुसार छात्रों को सुनाया जा सकता है। नागरिकशास्त्र के शिक्षण में यह उपकरण विशेष महत्त्वपूर्ण हैं।
2. दृश्य सामग्री (Visual Aids )
(1) वास्तविक पदार्थ (Real Objects) – वास्तविक पदार्थ छात्रों को निरीक्षण एवं परीक्षण करने के अवसर प्रदान करते हैं। छात्रों की दृष्टिक इन्द्रिय के साथ-साथ श्रवण, स्पर्श आदि इन्द्रियों को भी विकसित करने में सहयोग देते हैं। उनकी कल्पना शक्ति को भी विकसित करने में सहयोग देते हैं। विज्ञान एवं गृहविज्ञान की शिक्षा देना वास्तविक पदार्थों के माध्यम से अधिक उचित है। अतः शिक्षक को विद्यालय में अधिक से अधिक पदार्थों का संग्रहालय (Museum) बनाने का प्रयास करना चाहिए, जिससे आवश्यकतानुसार छात्रों को दिखाया जा सके।
(2) नमूने (Models) – नमूने वास्तविक पदार्थों के लघु रूप होते हैं। शिक्षक के लिए वास्तविक पदार्थों की प्राप्ति सदैव सम्भव नहीं है, अतः वह उनकी प्रतिमूर्ति बनाकर या बनवाकर प्रयोग में ला सकता है। जो बातें चित्र द्वारा दर्शनीय नहीं की जा सकती हैं उनको मॉडल द्वारा दर्शनीय बनाया जा सकता है, किन्तु इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मॉडल बड़े हों या छोटे किन्तु वास्तविक पदार्थों से मिलते-जुलते होने चाहिए। इनकी सहायता से ऐतिहासिक, भौगोलिक तथा वैज्ञानिक आदि विषयों की शिक्षा सरलता से दी जा सकती है। मॉडल को छात्रों द्वारा बनवाकर शिक्षक उनकी रचनात्मक प्रवृत्ति को प्रोत्साहित कर सकता है।
(3) चित्र (Pictures) – शिक्षक वास्तविक पदार्थों व मॉडल के अभाव में चित्र के द्वारा विषय को विकसित कर सकता है। इनका उपयोग निम्न योग्यता वाले छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है। इनके द्वारा शिक्षक बालकों के विचारों में शुद्धता एवं स्पष्टता उत्पन्न कर सकता है। विशेष रूप से चित्रों का प्रयोग भूगोल, इतिहास, नागरिक शास्त्र, विज्ञान, भाषा बागवानी, गृहविज्ञान आदि सभी विषयों के पढ़ाने में अवश्य किया जाना चाहिए शिक्षक चित्रों का उपयोग निम्न बातों के लिए कर सकता है-
- नवीन पाठ की प्रस्तावना को स्पष्ट करने हेतु।
- किसी प्रकरण को प्रारम्भ करने के लिए।
- किसी कठिन तथ्य को स्पष्ट करने के लिए।
- पाठ के विकास हेतु।
चित्र का प्रयोग करते समय शिक्षक को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए –
- चित्र कक्षा में उपयुक्त स्थान पर टाँगें जायें जिससे वह प्रत्येक छात्र को दिखाई दे सकें।
- चित्र उपयुक्त स्थान एवं समय पर प्रदर्शित किया जाये।
- चित्र का आकार, कक्षा के आकार के अनुरूप होना चाहिए।
- चित्र टाँगते समय खड़खड़ाने का शब्द नहीं होना चाहिए।
- शिक्षक को चित्र देखने के लिए उपयुक्त समय देना चाहिए तथा शिक्षक को उस पर प्रश्न करने चाहिए।
- चित्र का उपयोग समाप्त हो जाने पर उसे उतार कर उचित स्थान पर रख देना चाहिए।
- पाठ में अधिक चित्र प्रदर्शित न किये जायें।
- पुनरावृत्ति के स्तर पर विकासात्मक चित्र नहीं रहने चाहिए।
(4) चार्ट (Chart) – इस साधन का उपयोग विषय के क्रमिक विकास को दिखाने के लिये किया जाता है। पाठ की आवश्यकतानुसार शिक्षक को अधिक-से-अधिक स्वयं ही चार्ट तैयार करके छात्रों को दिखाने चाहिए। चार्ट सुडौल, सुन्दर तथा आकर्षक हों, जिससे प्रत्येक छात्र के ध्यान को आकृष्ट करें तथा शिक्षक भी अपने विषय को आसानी से स्पष्ट कर सके। चार्टों का प्रयोग भूगोल, इतिहास, नागरिकशास्त्र, गणित एवं विज्ञान आदि सभी विषयों को पढ़ाने के लिए सफलतापूर्वक किया जा सकता है। नागरिकशास्त्र का शिक्षक, विभिन्न संगठन चार्ट जैसे केन्द्रीय सरकार का संगठन, न्यायपालिका संगठन, कार्यपालिका का संगठन आदि को पढ़ाने में प्रयोग कर सकता है।
(5) रेखाचित्र तथा खाके (Sketches and Diagrams) – वास्तविक पदार्थ, नमूने तथा चित्र एवं मानचित्र उपलब्ध न होने पर शिक्षक को श्यामपट पर रंगीन चॉक से रेखाचित्र व खाके खींचने चाहिए। इसके द्वारा सम्बन्धों को विभिन्न रेखाओं, प्रतीकों आदि द्वारा स्पष्ट किया जाता है तथा इसके द्वारा किसी तथ्य या बात को किसी संक्षिप्त रूप से स्पष्ट किया जा सकता है। रेखाचित्रों तथा खाकों का प्रयोग भाषा, भूगोल, इतिहास, गणित, विज्ञान आदि विषयों को पढ़ाने में किया जा सकता है।
(6) ग्राफ (Graphs) – ग्राफ का प्रयोग भूगोल, इतिहास, गणित तथा विज्ञान आदि विषयों में सरलतापूर्वक किया जा सकता है। ग्राफ का प्रयोग किन्हीं दो वस्तु, व्यक्ति अथवा काल के तुलनात्मक अध्ययन के लिए अधिक उपयोगी है। शिक्षक आसानी से ग्राफ को तैयार कर सकता है। इनको बनाने में न तो अधिक समय लगता है और न अधिक धन खर्च होता है। छात्रों से भी शिक्षक को ग्राफ तैयार करवाने चाहिए।
(7) बुलेटिन बोर्ड (Bulletin Board) – शिक्षक, बुलेटिन बोर्ड पर चित्र, ग्राफ खाके आदि खींचकर देश की वर्तमान परिस्थिति के बारे में छात्रों को ज्ञान प्रदान कर सकता है, किन्तु बुलेटिन बोर्ड पर प्रदर्शित सामग्री बालकों की रुचि, आयु व मानसिक योग्यता के अनुसार होनी चाहिए। विद्यालय में किसी ऊँचे स्थान पर बोर्ड रखा होना चाहिए ताकि उस पर लिखा विषय सभी को दूर से दिखाई दे जाये। बोर्ड पर लिखा जाने वाला विषय नीरस नहीं होना चाहिए।
(8) मानचित्र (Map) – मानचित्र के शिक्षण के द्वारा विषय को सुरुचिपूर्ण बनाया जा सकता है। इतिहास व भूगोल शिक्षण के लिए मानचित्र का प्रयोग अनिवार्य है।
(9) संग्रहालय (Museum)- शिक्षक को विद्यालय में संग्रहालय का निर्माण अवश्य करना चाहिए। क्योंकि इसमें सभी वस्तुओं को एकत्रित किया जाता है, जिसकी सहायता से पाठ को रोचक बनाया जा सकता है। शिक्षक को छात्रों को विद्यालय संग्रहालय के लिए डाक टिकट, सिक्के, पुराने अस्त्र-शस्त्र, कीड़े-मकोड़े व विभिन्न विषयों में काम आने वाले यन्त्रों को इकट्ठा करने में उत्साहित करना चाहिए।
(10) जादू की लालटेन (Magic Lantern) – यह एक चित्र प्रदर्शक यन्त्र है। इसकी सहायता से शिक्षक अमूर्त तथ्यों को स्पष्ट करने में सफल होता है, किन्तु जादू की लालटेन का प्रयोग करने के लिए स्लाइडों (Slides) की आवश्यकता होती है।
(11) स्लाइड्स (Slides) – इनके द्वारा विभिन्न विषयों की सूक्ष्म बातों को पर्दे पर बड़ा करके दिखाया जा सकता है। स्लाइड्स को दिखाते समय शिक्षक को पाठ की कठिनतम भाग की व्याख्या भी करते जाना चाहिए। ये स्लाइड्स शीशे पर होती हैं। अतः इनके टूटने का डर बना रहता है।
(12) फिल्म स्ट्रिप्स तथा चित्र दर्शक (Film strips and projector) — फिल्म स्ट्रिप्स में चलचित्रों जैसी सजीवता व वास्तविकता नहीं होती। शिक्षक फिल्म स्ट्रिप्स को विद्यार्थियों को चित्र दर्शन द्वारा (Projector) पर्दे पर बड़ा करके दिखाता है तथा फिर उस पर वाद-विवाद भी करता है। फिल्म स्ट्रिप्स से चित्र दर्शन द्वारा छात्रों को विभिन्न विषयों के सम्बन्ध में ज्ञान दिया जा सकता है।
(13) चित्र विस्तारक यन्त्र (Epidiascope) – चित्र विस्तारक यंत्र द्वारा छोटी छोटी वस्तुओं व सामग्री को कमरे में अंधेरा करके पर्दे पर बिना स्लाइडें बनाये बड़ा करके दिखाया जा सकता है। चित्र विस्तारक यंत्र के द्वारा नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास व भूगोल आदि विषयों को रोचकपूर्ण ढंग से पढ़ाने में शिक्षक सफल होता है। शिक्षक को चित्र विस्तारक यंत्र का प्रयोग करते समय टिप्पणी भी देते जाना चाहिए ताकि छात्रों के लिए विषय स्पष्ट हो जायें।
3. श्रव्य-दृश्य सामग्री (Audio – Visual Aids)
1. चलचित्र (Cinema)- चलचित्र द्वारा प्राप्त ज्ञान अधिक स्थायी होता है, क्योंकि इसमें देखने और सुनने की दो इन्द्रियाँ काम करती हैं। चलचित्र के द्वारा मनोरंजन के साथ साथ शिक्षा भी दी जाती है। कम बुद्धि वाले बालकों के लिए यह अधिक लाभदायक है। नागरिक शास्त्र की शिक्षा के लिए यह उपकरण बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसके द्वारा आम चुनाव की विधियों, ग्रामीण एवं सामाजिक समस्याओं के कारण हलों को अच्छी प्रकार से समझाया जा सकता है। इसके द्वारा छात्रों को सीखने के लिए प्रेरणा प्रदान की जाती है तथा उनकी ग्राह्य शक्ति को विकसित किया जाता है।
2. टेलीविजन (Television) – शिक्षा के इस उपकरण से बालकों के कान और आँखें, दोनों ज्ञानेन्द्रियाँ विकसित होती हैं। यह चलचित्र से अधिक उपयोगी है क्योंकि चलचित्र देखने तो बालक कभी-कभी जा पाता है, जबकि टेलीविजन बालक प्रतिदिन अपने ही घर में देख सकता है, किन्तु इस उपकरण को अधिक उपयोगी बनाने के लिए हमारी सरकार को इसे सस्ता करना चाहिए ताकि सभी इस उपयोगी उपकरण को अपने घर में रख सकें।
3. समाचार सम्बन्धी फिल्म (Documentary Films) – शिक्षा के इस उपकरण द्वारा बालकों को स्कूलों में व जनता को सार्वजनिक स्थानों पर राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक जीवन से सम्बन्धित परिस्थितियों, घटनाओं व योजनाओं के सम्बन्ध में फिल्मों द्वारा समाचार व दिए जाते हैं। बालकों को धार्मिक व नैतिक शिक्षा भी दी जाती है, अतः शिक्षा का यह उपकरण मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा भी प्रदान करता है।
4. ड्रामा (Drama) – शिक्षा के श्रव्य-दृश्य उपकरण में ड्रामा प्राचीन काल से ही महत्त्वपूर्ण रहा है। ड्रामा खेलने व देखने से बालकों में शिक्षण की क्रिया इतनी अधिक प्रभावशाली हो जाती है कि धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक अनुभवों को सहज ही ग्रहण कर लेते हैं। इसके द्वारा बालकों में राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय भावनायें विकसित की जा सकती हैं। इतिहास के शिक्षण में ड्रामा का विशेष महत्त्व है। क्योंकि इसके द्वारा बालक ऐतिहासिक घटनाओं, महापुरुषों की वेशभूषा, उस समय प्रयोग किए जाने वाले हथियारों व क्रिया-कलापों के बारे में सहज ही ज्ञान प्राप्त कर लेता है। अतः इसके द्वारा बालक शिक्षा के साथ-साथ मनोरंजन भी प्राप्त करता है।
श्रव्य व दृश्य सामग्री के प्रयोग से लाभ (Advantages of Audio-Visual Aids)
- इसके द्वारा शिक्षण को प्रेरणा मिलती है।
- इसके द्वारा बालकों को सीखने वाली सामग्री तार्किक व सुव्यवस्थित ढंग से दी जा सकती है।
- इसके द्वारा विचारों में स्पष्टता आती है।
- इसके द्वारा दिया ज्ञान स्थायी होता है।
श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग कहाँ किया जाये ? (Where to use Audio-Visual Aids ?)
- जब वस्तु इतनी बड़ी हो कि कक्षा में न लाया जा सके जैसे—ताजमहल, लाल किला, हाथी, घोड़े, शेर आदि ।
- जीवित वस्तुओं की निरन्तर विकास की आवश्यकताओं को दिखाने के लिए जैसे— मक्खी, मच्छर का बढ़ना।
- जीवित वस्तुओं की आन्तरिक क्रियाओं को दिखाने के लिए जैसे- रक्त संचार, पाचन क्रिया आदि।
- किन्हीं दूर देशों के रीति-रिवाजों तथा परम्पराओं को बताने के लिए।
- अत्यधिक छोटी वस्तु को, जिसको आसानी से न देखा जा सके (एटम-बम) दिखाना।
- अत्यधिक तीव्रगामी वस्तु जैसे— रेलगाड़ी तथा हवाई जहाज आदि को दिखाने के लिए।
श्रव्य और दृश्य सामग्री का प्रयोग किस प्रकार किया जाये ? (How to use Audio – Visual Aids ? )
- सहायक सामग्री का प्रयोग उसी स्थान पर किया जाये जहाँ उसकी आवश्यकता हो।
- सहायक सामग्री का प्रयोग बालकों की रुचि जाग्रत करने के लिए प्रस्तावना प्रश्नों के समय किया जा सकता है।
- पाठ के सूक्ष्म तथ्यों को स्पष्ट करने के लिए प्रस्तुतीकरण के समय सहायक सामग्री का प्रयोग किया जा सकता है।
- यह देखने के लिए कि बालकों ने पाठ को कितना ग्रहण किया है, पुनरावृत्ति प्रश्नों के समय सहायक सामग्री का प्रयोग किया जा सकता है।
- सहायक सामग्री का प्रयोग केवल उसी समय किया जाये जबकि, उसकी नितान्त आवश्यकता हो ।
- सहायक सामग्री कक्षा में तब तक दिखाई जाये जब तक कि छात्र उस पर चिन्तन न कर लें।
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