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सहसम्बद्ध पाठ्यचर्या (Correlation Curriculum)
प्रचलित पाठ्यचर्या के अन्तर्गत जो विषय पढ़ाये जाते हैं उनमें सुसम्बद्धता की कमी होती है। प्रायः विषयों को ज्ञान की पृथक इकाई मानकर पढ़ाया जाता है जबकि ज्ञान एक पूर्ण इकाई है। अतः ज्ञान को अलग-अलग बाँटकर पढ़ाने की अपेक्षा विभिन्न विषयों को परस्पर सम्बन्धित करके पढ़ाया जाना चाहिए जिसके उद्देश्य से सहसम्बद्ध पाठ्यचर्या का उदय हुआ। इसे सुसम्बद्ध पाठ्यचर्या या समवाय-आधारित पाठ्यचर्या भी कहते हैं।
सहसम्बद्ध पाठ्यचर्या के अन्तर्गत विभिन्न पाठ्य-विषयों को परस्पर सम्बद्ध करके पढ़ाया जाता है। इस पाठ्यचर्या का महत्त्व इसलिए भी है क्योंकि इसमें एक विषय दूसरे विषयों को पुनर्बलित करता है। इस व्यवस्था में प्रत्येक विषय अपना पृथक अस्तित्व बनाए रखता है तथा उनके लिए समय-सारिणी में अलग-अलग समय की भी व्यवस्था रहती है परन्तु प्रयास यह किया जाता है कि एक समय पर विभिन्न विषयों में समाज अथवा मिलते-जुलते प्रकरणों का ज्ञान प्रदान किया जाए।
उदाहरण के लिए- यदि इतिहास विषय के अन्तर्गत किसी काल विशेष का ज्ञान दिया जा रहा है तो उन्हीं दिनों साहित्य विषय के अन्तर्गत उस काल का साहित्य भी पढ़ाया जाना चाहिए। इसी प्रकार भाषा शिक्षण के अन्तर्गत वर्तनी और शब्द का ज्ञान देते समय शब्दों का चयन दूसरे उन विषयों की पाठ्य-वस्तु से किए जाने चाहिए जो उस समय पढ़ाए जा रहे हैं।
सहसम्बद्ध पाठ्यचर्या की विशेषताएँ (Characteristics of Correlation Curriculum)
सहसम्बद्ध पाठ्यचर्या की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- इसके माध्यम से छात्रों को एक विषय के साथ अन्य विषयों का ज्ञान प्रदान किया जा सकता है।
- समय-निर्धारण (Scheduling) के वैकल्पिक रुपों की आवश्यकता होती है।
- शिक्षकों को भिन्न-भिन्न प्रकार से पाठ योजना बनाने की आवश्यकता होती है जिससे शिक्षक शिक्षण करने में बोर नहीं होते हैं।
- छात्रों को एक विषय के तथ्यों को दूसरे विषय के तथ्यों से सम्बन्धित करने का अवसर प्राप्त होता है।
- इसके माध्यम से छात्रों के उन व्यवहारों का भी अध्ययन किया जा सकता है जिनका अध्ययन नहीं किया जाता है।
- इसके माध्यम से मात्रात्मक आँकड़े प्राप्त किए जा सकते हैं जिनका सरलतापूर्वक विश्लेषण किया जा सकता है।
सहसम्बद्ध पाठ्यचर्या की सीमाएँ (Limitations of Correlation Curriculum)
सहसम्बद्ध पाठ्यचर्या की सीमाएं निम्नलिखित हैं-
- ‘सहसम्बद्ध पाठ्यचर्या के अध्यापन हेतु योग्य एवं प्रशिक्षित अध्यापक का होना आवश्यक है अन्यथा विषयों को सम्बन्धित नहीं किया जा सकता है।
- एक निश्चित समय-सीमा के अन्तर्गत पाठ्यचर्या का समापन सम्भव नहीं है।
- बिना पूर्व तैयारी के इस पाठ्यचर्या में शिक्षक के लिए अध्यापन कठिन कार्य होता है।
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