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अधिगम अथवा सीखने से आप क्या समझते हैं? अधिगम (सीखने) की प्रकृति एवं विशेषताएँ

अधिगम अथवा सीखने से आप क्या समझते हैं? अधिगम (सीखने) की प्रकृति एवं विशेषताएँ
अधिगम अथवा सीखने से आप क्या समझते हैं? अधिगम (सीखने) की प्रकृति एवं विशेषताएँ

अधिगम अथवा सीखने से आप क्या समझते हैं ? अधिगम (सीखने) की प्रकृति एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

अधिगम अथवा सीखने का अर्थ (Meaning of Learning )

अधिगम (सीखना) (Learning) एक व्यापक शब्द है, यह जन्मजात प्रक्रियाओं पर आधारित होता है। व्यक्ति जन्मजात प्रवृत्तियों से प्रेरित होकर जो भी प्रतिक्रियाएँ करता है वे समस्त परिस्थितियों से समायोजन स्थापित करने हेतु होती हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अधिगम एक मानसिक प्रक्रिया है और इसकी अभिव्यक्ति व्यवहारों के द्वारा होती है। मानव व्यवहार में अनुभवों के आधार पर परिवर्तन एवं परिमार्जन होता रहता है। वास्तव में अधिगम की प्रक्रिया में दो तत्त्व सन्निहित रहते हैं-

  1. परिपक्वता और
  2. पूर्व-अनुभवों से लाभ उठाने की योग्यता।

उदाहरण के लिये यदि बालक के सम्मुख एक जलती हुई अँगीठी रख दी जाती है तो वह उसे छूता है और उसे छूते ही उसका हाथ जल जाता है, इसलिए वह अपना हाथ तेजी से हटा लेता है। इसके पश्चात् वह उसके पास नहीं जाता क्योंकि वह अपने अनुभवों से सीख लेता है कि आग उसे जला देगी। इस तरह अधिगम पूर्वानुभव द्वारा प्रगतिशील परिवर्तन है। इसी पर यह कहा जा सकता है कि अधिगम ही शिक्षा है।

वास्तव में अधिगम और शिक्षा दोनों एक ही क्रिया की ओर संकेत करते हैं। दोनों क्रियाएँ जीवन में सदैव और सर्वत्र चलती रहती हैं। बालक परिपक्वता की ओर बढ़ते हुए अपने अनुभवों से लाभ उठाता हुआ तथा वातावरण से समायोजन करने हेतु जो भी प्रतिक्रियाएँ करता है उसे ‘अधिगम’ (सीखना) कहा जाता है। ब्लेयर, जोन्स और सिम्पसन ने अधिगम को स्पष्ट करते हुए लिखा है- “व्यवहार में कोई भी परिवर्तन जो कि अनुभवों का परिणाम है और जिसके फलस्वरूप व्यक्ति आने वाली स्थितियों का भिन्न प्रकार से सामना करता है अधिगम कहलाता है।”

अधिगम (सीखने) की परिभाषा (Definition of Learning)

अधिगम की निम्नलिखित परिभाषाएँ हैं-

(1) जे0 पी0 गिलफोर्ड- “व्यवहार के कारण, व्यवहार में परिवर्तन ही अधिगम है।”

(2) स्किनर के मतानुसार- “सीखने में प्राप्ति तथा धारण करने की शक्ति शामिल है।”

(3) जी० डी० बॉज के शब्दों में, “अधिगम एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति विभिन्न आदत, ज्ञान एवं दृष्टिकोण, सामान्य जीवन की माँग की पूर्ति के लिए अर्जित करता है।”

(4) गेट्स के अनुसार, “सीखना अनुभवों द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।”

(5) को और क्रो ने सीखने के अन्तर्गत आदतें, ज्ञान तथा व्यवहार को ग्रहण करना शामिल किया है।

उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषण करने पर मनोवैज्ञानिक अधिगम के अर्थ को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. मनोवैज्ञानिक अधिगम का अर्थ व्यवहार परिवर्तन है।
  2. मनोवैज्ञानिक अधिगम एक संगठन है।
  3. मनोवैज्ञानिक अधिगम एक प्रक्रिया है।
  4. मनोवैज्ञानिक अधिगम व्यवहार में संशोधन करता है

सीखने की प्रकृति अथवा विशेषताएँ (Nature and Characteristics of Learning)

उपर्युक्त विवरण के आधार पर सीखने की प्रकृति व स्वरूप में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं-

(1) सीखना सम्पूर्ण जीवन चलता है – इसका आशय यह है कि सीखने की प्रक्रिया आजीवन चलती रहती है। इसमें कभी विराम नहीं आता। यह कभी रुकती नहीं। व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक सीखता ही रहता है।

(2) सीखना व्यवहार में परिवर्तन है – व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में आकर तथा नवीन परिस्थितियों के सम्पर्क में आकर अपने व्यवहार में परिवर्तन लाता है। इस प्रकार सीखना परिवर्तन है। व्यक्ति दूसरों के सम्पर्क में आकर अपने विचार तथा भावनाओं में परिवर्तन लाता है।

(3) सीखना अनुकूलन है – व्यक्ति को प्रायः नवीन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। उसे इन परिस्थितियों से अनुकूलन करना पड़ता है। एक व्यक्ति जितना अधिक सीखता है, उतना ही अधिक वह अनुकूलन करने में समर्थ होता है। किसी तथ्य को सीखने के पश्चात् ही व्यक्ति नवीन परिस्थितियों से अनुकूलन करता है। इसी कारण हम कहते हैं किसीखना अनुकूलन है।

(4) सीखना सार्वभौमिक है – सभी जीवित प्राणी सीखते हैं। सीखना केवल मनुष्य का ही काम नहीं है। पशु और पक्षी भी सीखते हैं। इसके अतिरिक्त सीखने की प्रक्रिया सर्वत्र चलती रहती है। मनुष्य के सीखने का कोई एक निश्चित स्थान नहीं होता। बालक परिवार, समाज, सड़क, पार्क, स्टेशन तथा अन्य स्थानों से कुछ-न-कुछ सीखता रहता है।

(5) सीखना कुशलतादायक है – जब कोई व्यक्ति किसी तथ्य या कार्य को सीख जाता है तो उसे करने में उसे कठिनाई नहीं होती। यही नहीं, वह उस कार्य को करने में कोई त्रुटि नहीं करता। इस प्रकार त्रुटि का अभाव सीखने की क्रिया का एक लाभदायक परिणाम है। अतः सीखना कुशलतांदायक है।

(6) सीखने में बालक का महत्त्वपूर्ण स्थान – सीखने की प्रक्रिया में बालक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बालक अपनी बुद्धि, योग्यता तथा आवश्यकता के अनुसार सीखता है। इसी कारण सभी बालक एक समान नहीं सीखते। सीखने की प्रक्रिया में पुराने तथा नए नवयुवकों का संश्लेषण किया जाता । इस प्रकार सीखना एक नवीन मानसिक संगठन होता है।

(7) सीखने की क्रिया उद्देश्यपूर्ण – सीखने की एक विशेषता यह होती है कि इससे समस्याओं को हल किया जाता है। जब बालक कोई कार्य सीख जाता है तो वह काम उसके लिए सरल हो जाता है। सीखने का यही उद्देश्य होता है। इसी कारण कहा जाता है, “सीखने की क्रिया सप्रयोजन एवं उद्देश्यपूर्ण होती है।”

(8) सीखना ज्ञान का संचय है – सीखने का परिणाम ज्ञान का संचय होता है। ज्ञान के संचय के फलस्वरूप व्यक्ति अपने बौद्धिक तथा संवेगात्मक व्यवहार पर नियन्त्रण करने में समर्थ होता है।

(9) सीखने से शारीरिक कुशलता की प्राप्ति – सीखने की प्रक्रिया के द्वारा बालक अनेक शारीरिक कुशलताएँ प्राप्त करता है। खड़ा होना, चलना, दूध पीना तथा दौड़ना आदि सीखने के ही परिणाम होते हैं।

(10) सीखना वातावरण से उत्पन्न होता है – बालक वातावरण से पृथक् रहकर कुछ नहीं सीख सकता। सीखने के लिए उसे वातावरण की आवश्यकता होती है। व्यक्ति का सम्पर्क वातावरण में जिस प्रकार के व्यक्तियों से होता है, उसी प्रकार से वह सीखता है। बालक के व्यक्तित्व के विकास में वंशानुक्रम तथा वातावरण दोनों का योग होता है।

(11) सीखना सक्रिय होता है – सीखने के लिए बालक को सक्रिय होना आवश्यक होता है। जब तक बालक सक्रिय होकर सीखने की प्रक्रिया में भाग नहीं लेता, वह सीख नहीं सकता। शिक्षण की प्रगतिशील विधियाँ बालक की क्रियाशीलता पर बल देती हैं।

(12) सीखना अनुभवों का संगठन है – केवल नये अनुभवों को प्राप्त करना ही सीखना नहीं कहलाता। यह तो अनुभवों का एक संगठन होता है। अपनी आवश्यकता के अनुसार व्यक्ति अपने अनुभवों को संगठित करता है।

(13) सीखना मानसिक विकास – बालक को नित्य नये अनुभव होते हैं। उसके इन अनुभवों से उसका मानसिक विकास होता है। सीखने के फलस्वरूप ही बालक का शारीरिक और मानसिक विकास होता है।

(14) सीखना एक विवेकपूर्ण कार्य – किसी कार्य को यन्त्रवत् नहीं सीखा जाता। सीखना सदैव विवेकपूर्ण होता है। जिस कार्य को करने में बुद्धि का प्रयोग किया जा सके, उसी कार्य को शीघ्रता से सीखा जा सकता है। यदि कोई बालक सीखने में असमर्थ है तो इसका कारण यह हो सकता है कि वह उस कार्य को समझने में असमर्थ है।

(15) सीखना व्यक्तिगत तथा सामाजिक कार्य – व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से सीखता है, परन्तु सीखना एक सामाजिक कार्य भी है। योकम तथा सिम्पसन का कथन है, “सीखना सामाजिक कार्य है क्योंकि किसी प्रकार के सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असम्भव है।”

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Anjali Yadav

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