इतिहास शिक्षण के क्या उद्देश्य हैं ? इन उद्देश्यों को व्यवहारात्मक रूप में लिखने के क्या लाभ हैं ? अथवा माध्यमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण के उद्देश्यों और लक्ष्यों की विवेचना कीजिए। शिक्षण लक्ष्यों को व्यवहारात्मक रूप में लिखने के क्या लाभ हैं ?
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इतिहास शिक्षण के उद्देश्य
इतिहास शिक्षण के उद्देश्यों को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-
- सामान्य उद्देश्य तथा
- विशिष्ट उद्देश्य ।
I. इतिहास शिक्षण के सामान्य उद्देश्य
इतिहास शिक्षण के सामान्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) कर्त्तव्यनिष्ठ नागरिकों के निर्माण में सहायक- एक आदर्श नागरिक के लिए यह आवश्यक है कि उसमें सामाजिक तथा राजनीतिक जागरूकता हो, उसमें राष्ट्रीय चरित्र तथा अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण का विकास हो, एवं वह अपने अधिकारों तथा कर्त्तव्यों के प्रति सचेत रहते हुए अपने सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन में अनेक प्रकार के योगदान देने में समर्थ हो सके। यह ज्ञान प्राप्त करके ही हम राष्ट्रीय जन-जीवन के महत्त्व को समझ सकते हैं, राष्ट्रीय व्यवस्था में अपने कर्त्तव्य तथा अधिकारों का पालन करने के लिए स्वयं ही प्रेरित हो सकते हैं, एवं समाज की विभिन्न इकाइयों से सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखकर एकता, समानता तथा स्वतन्त्रता के आधार पर आपस में एक-दूसरे को योगदान दे सकते हैं।
(2) मानसिक शक्तियों के विकास हेतु- इतिहास में भूतकालीन तथ्यों का वैज्ञानिक आधार पर प्रस्तुतीकरण किया जाता है, तथ्यों के सम्बन्ध में कई प्रमाण प्रस्तुत किये जाते हैं तथा वैज्ञानिक विधि के आधार पर तथ्यों पर विश्लेषण और सामान्यीकरण करते हुए निष्पक्ष निर्णयों को प्रस्तुत किया जाता है। इसके द्वारा छात्रों में वैज्ञानिक बुद्धि का विकास होता है तथा वे इतिहास में प्रस्तुत व्यापक अनुभवों का विश्लेषण और संश्लेषण करने के पश्चात् तथ्यों के सम्बन्ध में यथार्थ तथा निष्पक्ष निर्धारण करना सीखते हैं। छात्रों की कल्पनाशक्ति तथा स्मरण शक्ति के विकास में भी इतिहास ही एकमात्र ऐसा विषय है जो सर्वाधिक सहायक सिद्ध होता है। के० डी० घोष के अनुसार, “इतिहास के द्वारा छात्रों को एक विशेष प्रकार की मानसिक शिक्षा दी जाती है, जो विद्यालय के किसी भी अन्य विषय द्वारा प्रदान नहीं की जा सकती है।”
(3) वर्तमान के मूल्यांकन व भविष्य के आकलन हेतु- इतिहास के आधार पर हमें भूतकाल में किये गये विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित मानवीय प्रयासों की जानकारी प्राप्त होती है। इस जानकारी के आधार पर हम यह ज्ञात कर सकते हैं कि किसी विशेष क्षेत्र में वर्तमान समय में कितनी सफलता प्राप्त हुई है या कितनी नहीं। भूतकाल में निहित अनुभवों के आधार पर हमें यह ज्ञान हो सकता है कि किसी प्रयास, कारण, घटना या परिस्थिति का क्या परिणाम होगा। इस प्रकार के अनुभव को प्राप्त करके हम अपनी वर्तमान समस्याओं, परिस्थितियों, प्रगति या विफलताओं के परिप्रेक्ष्य में भी यह आकलन कर सकते हैं कि भविष्य में इनके परिणाम या प्रभाव क्या होंगे, तथा किस सीमा तक हम सफल या असफल हो सकेंगे।
(4) छात्रों के व्यक्तित्व तथा चरित्र का विकास किसी भी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र की प्रगति शान्ति तथा स्थायित्व के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि विद्यालयों में अध ययनरत भावी पीढ़ी के व्यक्तित्व तथा चरित्र पर विशेष ध्यान दिया जाए। किसी भी व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र की इस इच्छा को पूरा करने में इतिहास महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। साथ ही इतिहास के अन्तर्गत असामाजिक तत्त्वों, साम्राज्यवादियों, देशद्रोहियों, उग्रवादियों आदि व्यक्ति के कार्यों और कार्यों के फलस्वरूप उनके प्रति समाज या राष्ट्र की कटु प्रतिक्रियाओं का उल्लेख भी किया जाता है। इस प्रकार के अध्ययन के द्वारा छात्रों में आदर्श जीवन जीने पर कल्याण के लिए समाज में अपना योगदान करने या महापुरुषों के समकक्ष बनने की प्रेरणा स्वतः उत्पन्न होती है, तथा इसके लिए वे अपने व्यक्तित्व और चरित्र के विकास हेतु निष्ठापूर्वक प्रयास करने लगते हैं।
(5) राष्ट्रीय भावना का विकास- राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में भी इतिहास विशेष रूप से सहायक है। इसके अभाव में राष्ट्रीय अखण्डता की कल्पना नहीं की जा सकती। वर्तमान भारतीय परिस्थितियों में विभिन्न तनावपूर्ण परिस्थितियों के लिए राष्ट्रीय भावना की अनुपस्थिति एक प्रमुख कारण के रूप में सहायक सिद्ध हो रही है जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्र में आन्तरिक अशान्ति, तनाव तथा संघर्ष का वातावरण बना हुआ है। इतिहास के माध्यम से ही छात्रों में कई ऐसे दृष्टिकोणों तथा धारणाओं का विकास होता है, जिससे वे अपनी राष्ट्रीय संस्कृति का सम्मान करते हुए उसकी सुरक्षा तथा विस्तार में अपना योगदान देने के लिए तैयार होते हैं।
(6) अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास- विश्व शान्ति, स्थायित्व तथा सहयोग आदि के विकास के लिए अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास वर्तमान शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है। इतिहास के द्वारा हम भूतकाल में, विभिन्न राष्ट्रों के पारस्परिक योगदान, सम्बन्ध, सन्धियों तथा सहयोग आदि का वर्णन करके, विभिन्न राष्ट्रों की संस्कृतियों, मुख्य महापुरुषों तथा धर्मों का अध्ययन करते हैं। इस प्रकार के तथ्यों का अध्ययन करके छात्रों को यह ज्ञात हो जाता है कि विश्व के राष्ट्र किस प्रकार एक-दूसरे के विकास में विभिन्न क्षेत्रों में सहायक होते हैं, तथा विश्वबन्धुत्व तथा विश्व एकता की भावना को त्यागकर, सारी मनुष्य जाति को किस प्रकार के परिणामों से प्रभावित होना पड़ता है। इस प्रकार के विवरण के आधार पर ही उनमें विश्व एकता, सहयोग तथा विश्व शान्ति बनाये रखने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास होता है।
II. इतिहास शिक्षण के विशिष्ट उद्देश्य
इन सामान्य उद्देश्यों के अलावा इतिहास शिक्षण के कुछ विशिष्ट उद्देश्य भी होते हैं। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् के पाठ्यक्रम और मूल्यांकन विभाग के एक प्रतिवेदन में इन उद्देश्यों को निम्न रूप में प्रस्तुत किया गया है-
(क) संज्ञानात्मक क्षेत्र
(1) ज्ञान के अनुप्रयोग संबंधी उद्देश्य- प्राप्त जानकारी का उपयोग छात्र नई परिस्थितियों में उपयोग कर सकेगा तथा प्राप्त जानकारी से इतिहास की पुनर्रचना करने का प्रयास करेगा।
(2) ज्ञानात्मक उद्देश्य- इसके अन्तर्गत विद्यार्थी ऐतिहासिक घटनाओं से सम्बन्धित तथ्यों, धारणाओं, सिद्धान्तों, गतिविधियों, चित्रों, मानचित्रों एवं रेखाचित्रों का ज्ञान कर सकते हैं।
(3) समालोचनात्मक और सृजनात्मक चिंतन शक्ति के विकास सम्बन्धी उद्देश्य विद्यार्थी इतिहास अध्ययन से आलोचनात्मक व सृजनात्मक चिंतन का विकास कर सकेगा। स्वयं कुछ अनुमान निकाल सकेगा। मूल्यांकन कर सकेगा इत्यादि ।
(4) अवबोध सम्बन्धी उद्देश्य- इसमें विद्यार्थी घटनाओं की सत्यता, आंदोलनों का उदय इत्यादि के सम्बन्ध में जानकारी हासिल कर सकेगा। अतीत की घटनाओं से उदाहरण ले सकेगा। तथा उनके दोषों और गलतियों को भी ढूँढ़ सकेगा।
(ख) क्रियात्मक क्षेत्र
(5) कौशल सम्बन्धी उद्देश्य- विद्यार्थी में विभिन्न तरह की कुशलताओं का विकास होगा। वह उपकरणों को बना सकेगा, मानचित्र व रेखाचित्र बना सकेगा।
(ग) भावात्मक क्षेत्र
(6) अभिवृत्ति सम्बन्धी उद्देश्य- विद्यार्थी में कुछ विशेष अभिवृत्ति अथवा गुणों का विकास हो सकेगा; जैसे- राष्ट्र भक्ति की भावना का विकास, सामाजिक गुणों का विकास, एक अच्छे नागरिक के दायित्व व गुणों का विकास, राष्ट्रीय एकता व अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना की भावना का विकास होगा। इसके साथ ही वह अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग, शांति और न्याय के महत्त्व को समझने में समर्थ हो सकेगा। मनुष्य में दूसरे धर्मों, संस्कृतियों और संस्थाओं के प्रति आस्था व आदर का भाव विकसित होगा।
(7) अभिरुचि सम्बन्धी उद्देश्य- विद्यार्थी में इतिहास की घटनाओं, व्यक्तियों, संस्थाओं के बारे में और अधिक जानने की उत्सुकता होगी। वह इतिहास के साथ-साथ सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन भी करने लगेगा। इसके अलावा वह विषय सम्बन्धी आवश्यक सामग्री एकत्रित करेगा। विद्यार्थी में प्राचीन इमारतों और ऐतिहासिक अवशेषों को देखने की उत्सुकता बढ़ेगी इत्यादि।
माध्यमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण के उद्देश्य
माध्यमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- छात्रों के व्यक्तित्व तथा विश्व चरित्र का विकास करना ।
- विश्व के महापुरुषों तथा विश्व संस्कृति के अध्ययन में रुचि उत्पन्न करना ।
- छात्रों में राष्ट्रीय भावना का विकास करना।
- छात्रों में सम्यक् ज्ञान को और अधिक विकसित करना ।
- छात्रों को मानवीय विकास की क्रमबद्ध जानकारी प्रदान करना ।
- भूतकाल के आधार पर वर्तमान को समझने हेतु योग्य बनाना।
- छात्रों में इतिहास के प्रति रुचि उत्पन्न करना।
- समन्वयात्मक ज्ञान के आधार पर उनके मानसिक अन्तरिक्ष का विस्तार करना ।
- भूतकाल तथा वर्तमान के आधार पर भविष्य के आंकलन की क्षमता का विकास करना।
- विभिन्न समस्याओं हेतु लेख लिखने तथा व्यावहारिक दृष्टि से समस्याओं के समाधान से हेतु प्रयास करने में रुचि उत्पन्न करना।
- छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना।
- छात्रों की सामाजिक योग्यताओं तथा क्षमताओं के द्वारा समायोजन के योग्य बनाना।
- विश्व संस्कृति का ज्ञान प्रदान करके अन्तर्राष्ट्रीय भावना को विकसित करना ।
- तर्क, चिन्तन, कल्पना तथा निर्णय शक्ति को विकसित करना ।
- छात्रों को ज्ञान का भण्डार प्रदान करके उन्हें तथ्यों की दृष्टि से ज्ञान सम्पन्न बनाना।
- कर्त्तव्यनिष्ठा नागरिकों के निर्माण में सहायक गुणों का विकास करना।
इतिहास शिक्षण के व्यवहारात्मक लाभ
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लाला हरदयाल, एम० ए०, पी० एच० डी० के अनुसार इतिहास शिक्षण के निम्नलिखित लाभ होते हैं-
(1) इतिहास के अध्ययन से निर्णय- शक्ति विकसित होती है- मनुष्य तटस्थ होकर विचार कर सकता है। यह इस कारण सम्भव होता है कि इतिहास का अध्ययन करते समय हम पृथक् रूप से विचार में संलग्न होते हैं। इसलिए वास्तविक परिस्थितियों का ज्ञान होने पर निर्णय सम्भव होता है। यदि हम ध्यानपूर्वक देखें तो हमें ज्ञान होगा कि हम तटस्थ होकर विचार नहीं कर पाते हैं। इसका कारण यह है कि हमें अध्ययन का अभाव होता है। यदि व्यक्ति को ऐतिहासिक शिक्षण भली-भाँति प्रदान किया जाय तो उसमें प्रत्येक वस्तु ऐतिहासिक आधार देने की क्षमता उत्पन्न हो सकती है। तटस्थतापूर्वक विचार न करने के अभाव में वैमनस्य और संघर्ष का जन्म होता है और मनुष्य को अपनी त्रुटियों का ज्ञान नहीं होता है।
(2) इतिहास के अध्ययन से हमारी अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास होता है- श्री हरदयाल जी इतिहास को विश्व के दृष्टिकोण से देखते । उनके मतानुसार जितनी आवश्यकता हिन्दी इतिहास की है उतनी ही चीन के इतिहास की भी है। अतः उनके अनुसार इतिहास का राष्ट्रीय वर्गीकरण ठीक नहीं है। उनके अनुसार इतिहास मानव जाति का इतिहास है, अतः सम्पूर्ण देशों के निवासियों को इतिहास से परिचित होना चाहिए। वास्तविक उद्देश्य की पूर्ति के लिए इतिहास का अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण से आवश्यक है।
(3) विश्व की एकता और सामाजिक न्याय का दृष्टिकोण समक्ष रखकर यदि इतिहास का अध्ययन किया जाय तो हमें ज्ञात होगा कि-
(क) किसी एक धर्म को प्रधानता नहीं मिलनी चाहिए। यदि धर्म ने राज में हस्तक्षेप किया तो असन्तोष की भावना का फैलना स्वाभाविक है।
(ख) किसी एक व्यक्ति का राज्य प्रजा के लिए सुखकर नहीं होता। प्रजा राज में, प्रजा सुखी रहती है।
(ग) प्रत्येक व्यवस्था की सफलता के लिए ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ आवश्यक होता है। सबको समान अधिकार और अवसर प्रदान करने वाली व्यवस्था ही स्थायी हो सकती है।
(4) इतिहास का अध्ययन सामाजिक सुधार के कार्यों को सरल बनाता है- इतिहास का अध्ययन हमें भली-भाँति बता देता है कि वर्तमान समाज-व्यवस्था के क्या कारण हैं और हमें इसकी उन्नति के लिए अग्रिम पग क्या उठाना चाहिए ? आजकल जब हम समाजवादी लोकतन्त्र का स्वप्न देख रहे हैं तो हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा जिसमें जाति और वर्ग-भेद का स्थान न हो, इसके साथ ही साथ जो समान अधिकार और अवसर तथा सामाजिक न्याय से पूर्ण हो। इसके लिए हमें इतिहास का अध्ययन करना आवश्यक है।
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