इतिहास शिक्षण में सहसम्बन्ध का क्या अर्थ है ? आप इतिहास शिक्षण का सह-सम्बन्ध अन्य विषयों से किस प्रकार स्थापित करेंगे ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
Contents
सहसम्बन्ध का अर्थ
सह-सम्बन्ध अथवा समन्वय का अर्थ है सम्बन्ध स्थापित करना। एक विषय के ज्ञान को विकसित करने के लिए अन्य विषयों के ज्ञान की सहायता ली जाती है, अर्थात् उन दोनों विषय में जो सम्बन्ध स्थापित किया जाता है, वह शिक्षा के क्षेत्र में समन्वय कहलाता है, अर्थात् शिक्षा के क्षेत्र में समन्वय का अर्थ है, विद्यालयों में पढ़ाये जाने वाले भिन्न-भिन्न विषयों में सह-सम्बन्ध स्थापित करना ।
इतिहास का अन्य विषयों से सहसम्बन्ध
इतिहास शिक्षण का अन्य विषयों के साथ सहसम्बन्ध को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) इतिहास और भाषा (History and Language) – किसी भी विषय का ज्ञान प्राप्त करने के भाषा का पर्याप्त ज्ञान आवश्यक है। बिना भाषा के ज्ञान किसी भी विषय का ज्ञान क्रमिक एवं व्यवस्थित रूप से नहीं प्राप्त किया जा सकता। भाषा के अन्तर्गत हमें बहुत-सी इतिहास की कहानियाँ पढ़ाई जाती हैं और हम उन कहानियों को भाषा के द्वारा ही हृदयंगम करते हैं। शिक्षक बालकों को ऐतिहासिक घटनाओं पर लेख लिखाता है। साहित्य के अन्तर्गत बहुत से ऐसे गद्य, पद्य, कहानी, अभिनय एवं अनुबन्ध आदि होते हैं जो इतिहास पर आधारित होते हैं। यह तो रहा भाषा द्वारा इतिहास का ज्ञान। अब इतिहास द्वारा भाषा के ज्ञान पर भी विचार कर लेना चाहिए। भाषा का विकास गद्य एवं पद्य का विकास, भाषा में एवं परिवर्द्धन, अन्यान्य परिस्थितियों का भाषा पर प्रभाव आदि बातों का ज्ञान इतिहास द्वारा होता है।
(2) इतिहास और गणित (History and Mathematics)- इतिहास का केवल भाषा ही से नहीं वरन् गणित से भी गहरा सम्बन्ध है। बालकों को समय ज्ञान (Time sense) का ज्ञान गणित के आधार पर ही कराया जाता है। कोई भी घटना कब घटी ? उसका और दूसरी घटना में क्या अन्तर है ? सन् एवं सम्वत् आदि आवश्यक बातों का ज्ञान गणित के ही सहारे किया जा सकता है।
आक्रमण के समय मोर्चाबन्दी कैसे की जाय ? कितनी फौज़ (सेना) अमुक आक्रमण के लिए पर्याप्त होगी ? शासन व्यवस्था आदि के लिए भी गणित अनिवार्य रूप से हमारे इतिहास में समाविष्ट होती है।
यही नहीं वरन् गणित के लिए इतिहास की आवश्यकता पड़ती है। ज्यामिति के सिद्धान्त कब और किसने निकाले ? दशमलव की खोज, नक्षत्रों को ज्ञान आदि सभी बातें हमें इतिहास ही बतलाता है।
इस प्रकार यह बात पूर्ण रूप से स्पष्ट हो जाती है कि दोनों ही विषयों की पूर्णता के लिए दोनों ही विषय आवश्यक हैं। बिना एक-दूसरे की सहायता के कोई भी विषय पूर्ण नहीं है। फिर भी गणित और इतिहास में यह अन्तर है कि गणित एक नीरस विषय है जबकि इतिहास रोचक। अतः गणित को रोचक बनाने के लिए उसके प्रश्नों को इतिहास के आधार पर निर्मित किया जाय। ऐसी विधि का प्रयोग गणित के सम्पूर्ण पक्षों के साथ तो नहीं किया जा सकता किन्तु व्यावहारिक गणित को तो कम-से-कम इस विधि द्वारा बालकों के सम्मुख लाया ही जा सकता है।
(3) इतिहास और धर्मशास्त्र (History and Theology)- धर्म का इतिहास में एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। धर्म ने इतिहास को बहुत कुछ सीमा में प्रभावित किया है। अतीत में धर्म ही इतिहास के मूल में था अर्थात् धार्मिक भावनाओं से ही इतिहास प्रेरित होता था। धर्म के ही कारण अनेक युद्ध हुए अनेक राज्यों में उथल-पुथल धर्म के ही कारण हुए। धर्मशास्त्र का ज्ञान एक इतिहासकार के लिए वांछनीय है। बिना धर्मशास्त्र के जाने अतीत के इतिहास को तो कम-से-कम जाना ही नहीं जा सकता।
इसी प्रकार इसका दूसरा भी पक्ष है। इतिहास के ज्ञान के लिए भी धर्मशास्त्र का जानना आवश्यक है। कौन-सा धर्म कब स्थापित हुआ और उसका प्रवर्तक कौन था ? किसी भी धर्म की सफलता एवं असफलता के क्या कारण थे ? अमुक धर्म किसी अन्य धर्म से आगे क्यों बढ़ गया आदि सभी बातें इतिहास के ज्ञान की पूर्ति करने में सहायक होती है।
इस प्रकार दोनों ही विषय एक-दूसरे के पर्याप्त मात्रा में आभारी हैं। दोनों ही के बिना दोनों की पूर्ति नहीं।
(4) इतिहास और अर्थशास्त्र (History and Economics)- किसी भी देश की आर्थिक परिस्थितियाँ उस देश विशेष के इतिहास का आधार होती हैं। आर्थिक परिस्थितियों का इतिहास पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि हमें वर्तमान का इतिहास जानना है तो अतीत की आर्थिक परिस्थितियों पर विचार करना ही होगा। आर्थिक परिस्थितियों ने ही शाहजहाँ के काल को भारतीय इतिहास में स्वर्ण की पदवी दी और दूसरी ओर बहुत से ऐसे भी साम्राज्य रहें हैं जिनको आर्थिक परिस्थितियों ने ही धराशायी कर दिया था। आर्थिक स्थिति यदि अच्छी है तो उस देश विशेष का इतिहास भी गौरवपूर्ण कहा जायगा। प्रजा सुखी होगी और हर ओर चैन और अमन रहेगा और यदि आर्थिक परिस्थितियाँ ठीक न हुईं तो इतिहास भी वैसा ही होगा। ऐसे समय में शासक का शासन काल भी कलुषित कहा जायगा।
इसके विपरीत ऐतिहासिक परिस्थितियों ने भी आर्थिक परिस्थितियों को काफी सीमा तक प्रभावित किया है। ये परिस्थितियाँ आर्थिक परिस्थितियों को समय-समय पर मोड़ देती रही हैं। इस प्रकार इतिहास और अर्थशास्त्र में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। दोनों का ही दोनों पर बोझा है। दोनों ही एक-दूसरे के मार्ग निर्देशक एवं प्रेरक हैं।
(5) इतिहास और कला ( History and Art ) – इतिहास का विषय अतीत को हमारे सम्मुख खोलकर रखता है। इतिहास के द्वारा ही हम अतीत की घटनाओं से परिचित होते हैं किन्तु इन घटनाओं को व्यवहार रूप में एवं सजीव बनाकर हमारे सम्मुख कौन लाता है यह काम कला का है। अजन्ता की चित्रकारी, एलोरा की गुफाएँ हमारे इतिहास को सजीव बनाकर हमारे सम्मुख लाती हैं। ताजमहल की सुन्दर इमारत, शाहजहाँ के काल के इतिहास को मूर्तवत् हमारे सम्मुख रखती है। ताजमहल को देखकर उस समय का आर्थिक इतिहास हमारी आँखों के सामने आ जाता है।
अतीतकालीन सिक्के, पुराने किले, हथियार आदि आज भी हमारे सम्मुख अतीत के इतिहास को सजीव बनाकर लाते हैं। जिस प्रकार कला इतिहास का ज्ञान एक सजीव रूप में कराती है उसी प्रकार इतिहास भी कला का ज्ञान कराता है। गुप्तकालीन कला, बौद्धकालीन कला एवं मुगलकालीन कला इन सभी कलाओं के ज्ञान से हम इतिहास द्वारा ही परिचित होते हैं। यदि इतिहास न होता तो इन सभी तत्त्वों को हम कैसे पाते ? इस प्रकार ये दोनों ही विषय सुसम्बद्ध हैं।
(6) इतिहास और विज्ञान (History and Science) – किसी भी विषय का क्रमबद्ध विज्ञान कहलाता है। विज्ञान के अन्तर्गत एक विज्ञानवेत्ता सत्य की खोज करता है। हम जिन ज्ञान, सिद्धान्तों प्रयोगों द्वारा निकालते हैं वे पूर्णरूपेण सत्य की कसौटी पर कसे हुए होते हैं। ये सभी प्रयोग एवं उनसे निकाले गए सिद्धान्त मानव समाज के सदैव से ही हितैषी रहे हैं। इन प्रयोगों एवं सिद्धान्तों का क्रमशः विकास कैसे हुआ ? कौन-सा प्रयोग किसने किया और उससे क्या परिणाम निकाला ? आदि बातें हमें इतिहास बतलाता है। बिना इतिहास के हम विज्ञान की उन्नति का क्रमिक अंकन नहीं कर सकते थे। इतिहास में हमें पूर्वसंकलित अनुभवों एवं विचारों की अपार राशि मिलती है।
कोई भी कार्य अथवा वैज्ञानिक आविष्कार एक दिन में अथवा एक आदमी द्वारा आदि से अन्त तक पूरा नहीं किया गया। एक पीढ़ी ने जो काम किया उसमें कुछ न कुछ कमी अवश्य रह गयी किन्तु क्या वह कमी बनी रही ? नहीं! उसको आने वाली पीढ़ियों ने पूरा किया। इस प्रकार सहस्रों वर्षों के सतत प्रयत्न के पश्चात् प्रयोगाधार पर विज्ञान आदि के नियम एवं सिद्धान्त निकाले गये। इतिहास ने इस पक्ष में बड़ी सहायता की। वही हमको यह बताता रहा कि किस समय कितना काम हुआ और कितना करने को शेष है ?
किन्तु क्या विज्ञान ही इतिहास का आभारी है ? नहीं, ऐसी बात नहीं है, इतिहास भी विज्ञान का किन्हीं-किन्हीं पक्षों में आभारी है। विज्ञान के ही आधार पर भूगर्भशास्त्रियों (Geologists) ने मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खोदाई के द्वारा सिन्धु घाटी की ऐसी महान् सभ्यता को हमारे सम्मुख रखा। ऐतिहासिक तत्त्वों को परखने में भी विज्ञान की पर्याप्त सहायता ली गई।
इतिहास का शिक्षक इतिहास का ज्ञान बालकों को कराते समय उन्हें विज्ञान-सम्बन्धी कथाओं को सुनाकर उनके मस्तिष्क में जिज्ञासा की भावना को उत्पन्न करता है। इतिहास-शिक्षक को चाहिए कि वह इतिहास की शिक्षा के साथ ही साथ विज्ञान भी ज्ञान यदा-कदा कराता चले और विज्ञान के शिक्षक भी इतिहास का ज्ञान कराते हुए अपना शिक्षण करना चाहिए।
(7) इतिहास और भूगोल (History and Geography) — ये दोनों ही विषय एक सिक्के के दो पहलू हैं। इनको एक-दूसरे से तो अलग किया ही नहीं जा सकता। ये दोनों ही विषय समाज-विज्ञान के अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण अंग हैं। दोनों से ही मानव की गति का पता चलता है। सभ्यता और संस्कृति के विकास की कल्पना हम इन्हीं दो अंगों के आधार पर कर सकते हैं। इन दोनों विषयों में अन्तर केवल इतना है कि एक अतीत की व्याख्या करता है और दूसरा वर्तमान की। मानव इस वसुन्धरा पर कैसे और कब आया ? सभ्यता का विकास कैसे हुआ ? वर्तमान मानव ने किन-किन चरणों को पार कर अपनी इस वर्तमान स्थिति को पाया ? आदिमानव का सम्पूर्ण इतिहास ही इतिहास है और भूगोल हमारे वर्तमान रहन-सहन की पूर्ण व्याख्या करता हैं।
किन्तु क्या हम बिना अतीत के वर्तमान का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं ? क्या बिना वर्तमान के अतीत की पूर्ण स्थिति बतलाई जा सकती है ? दोनों ही अतीत एवं वर्तमान एक-दूसरे पर अवलम्बित हैं। अतीत के चरणों से गुजरते हुए हम वर्तमान स्थिति पर आ पाते हैं और वर्तमान की कल्पना हम अतीत के ही आधार पर करते हैं।
इतिहास की जितनी भी घटनाएँ हैं वे सभी समय, स्थान और समाज से ही सम्बंधित हैं और स्थान और समाज दो ऐसे तत्त्व हैं जिनका ज्ञान हमको भूगोल के बिना नहीं हो सकता। भूगोल ने ही वास्तव में इन तत्त्वों को पूर्ण रूप से प्रभावित किया है।
स्थान और समाज में पर्याप्त परिवर्तन हो गये हैं। मरुभूमि के स्थान पर उर्वरा धरती और उर्वरा धरती के स्थान पर मरुस्थल, पहाड़ों के स्थान पर समुद्र और समुद्रों के स्थान पर पहाड़ आदि बातों का ज्ञान हमें इतिहास ही कराता है। यद्यपि यह सभी विषय भौगोलिक हैं किन्तु इन तत्त्वों का ज्ञान हमें इतिहास के आधार पर ही हो सकता है।
अध्यापकों को इन दोनों ही विषयों का ज्ञान साथ-साथ कराते रहना चाहिए। इससे दोनों का ही ज्ञान पूर्णता को प्राप्त करता जायगा।
(8) इतिहास और समाजशास्त्र (History and Sociology) – समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है। इसके अन्तर्गत इतिहास, भूगोल एवं नागरिकशास्त्र आदि सभी विषय आ जाते हैं। समाजशास्त्र मानव की प्रगति को बताता है। इसका उद्देश्य मानव को आदर्श मानव बनाना होता है किन्तु इसकी पूर्ति सभी समाजशास्त्रों के प्रयत्न से ही सम्भव हो सकती है। इतिहास तो उसका एक अभिन्न अंग ही मात्र है। उसकी पूर्णता तो अन्य विषयों से सुसम्बद्धता पर ही आधारित है।
कक्षा में यदि इतिहास, भूगोल एवं नागरिकशास्त्र की सम्मिलित शिक्षा दी जाये तो निश्चय ही तीनों विषयों का शिक्षण बड़ा ही उपयोगी सिद्ध होगा। तीनों ही विषयों के शिक्षकों को सम्मिलित बैठकर ऐसा प्रोग्राम बनाना चाहिए कि नित्यप्रति के विषयों में सफल समन्वय स्थापित किया जा सके।
(9) हस्तकला एवं इतिहास (History and Craft) – हस्तकला और इतिहास का भी सम्बन्ध स्पष्ट ही है। इतिहास के शिक्षण में चार्ट, मानचित्र, तस्वीरें एवं खिलौने आदि बनाये जाते हैं और इन्हीं के आधार पर इतिहास के पाठ को व्यावहारिक बनाया जाता है। इतिहास के पाठ में रोचकता एवं सरसता तथा सरलता इन्हीं सामग्रियों के ही आधार पर आती है।
इतिहास का शिक्षक बालकों को इन सामग्रियों के स्वनिर्माण के लिए प्रेरित कर सकता है। इससे उनमें समन्वय की शक्ति का विकास होगा। वे अपने पाठ को अपनी हस्तकला के द्वारा सरल एवं सुबोध बनायेंगे। शिक्षक को इस पक्ष में काफी ध्यान देने की आवश्यकता है।
इतिहास और हस्तकला का समन्वय छात्रों के मस्तिष्क का सामान्य विकास करता है और साथ ही साथ शिक्षण को भी प्रभावशाली बनाता है।
हस्तकला वास्तव में प्रारंम्भिक स्तरों पर अधिक उपयोगी रहती है। छोटे-छोटे बच्चे खिलौने एवं चार्ट आदि बनाने में बड़ी रुचि लेते हैं। उनको प्रारम्भ में इतिहास का विषय कुछ शुष्क सा लगता है किन्तु यदि कहानी विधि को अपनाते हुए क्रियात्मक ढंग से इन सहायक सामग्रियों के स्वनिर्माण द्वारा शिक्षा दी जाय तो निस्सन्देह ही वे रुचि लेंगे। उनका विषय सरल हो जायेगा। “The natural instinct of constructiveness is very high at this stage. The teacher should make a full use of this urge in the child.”
जिस समय बालक अथवा बालिका किसी तस्वीर अथवा चार्ट का निर्माण कर रही होती हैं उस समय वह अधिक सीखती हैं, अपेक्षाकृत पढ़ने के। शिक्षक को इस स्वाभाविक प्रवृत्ति को विकसित करने के लिए अधिकाधिक अवसर देने चाहिए। उसकी इस प्रवृत्ति को संतुष्ट करने से शिक्षक उनके सर्वांगीण विकास में सहायक हो सकेगा। जिस समय वे किसी महान् पुरुष का चित्र बना रहे होते हैं, वे स्वतः रूप से ही उनकी महानता को स्वीकार करते हुए उसके प्रति श्रद्धा के भाव प्रकट करेंगे। छात्र प्रारम्भ में तो इन सभी चित्रों को बना सकेंगे अतः उनको ऑकसी से उतारने के लिए यदा-कदा आदेश देते रहने चाहिए।
जब छात्र ऊँची कक्षाओं में पहुँच जाते हैं तो उन्हें इनका शौक समाप्त हो जाता है। अतः इस स्तर पर शिक्षक को चाहिए कि वह मानचित्रों, राजनीतिक मानचित्रों, जिनमें कि मार्गों एवं नदियों का प्रदर्शन किया गया हो, खिंचवाना चाहिए। प्रसिद्ध युद्धों का भी प्रदर्शन वे मानचित्रों में करने में समर्थ हो सकते हैं।
इस प्रकार शिक्षक हस्तकला एवं इतिहास को समन्वित कर छात्रों के लिए इतिहास विषय की उपयोगिता बढ़ा सकता है और साथ ही साथ निरंतर अभ्यास द्वारा छात्रों की हस्तकला भी उत्तरोत्तर निखरती जायेगी।
IMPORTANT LINK
- हिन्दी भाषा का शिक्षण सिद्धान्त एवं शिक्षण सूत्र
- त्रि-भाषा सूत्र किसे कहते हैं? What is called the three-language formula?
- माध्यमिक विद्यालय के पाठ्यक्रम में हिन्दी का क्या स्थान होना चाहिए ?
- मातृभाषा का पाठ्यक्रम में क्या स्थान है ? What is the place of mother tongue in the curriculum?
- मातृभाषा शिक्षण के उद्देश्य | विद्यालयों के विभिन्न स्तरों के अनुसार उद्देश्य | उद्देश्यों की प्राप्ति के माध्यम
- माध्यमिक कक्षाओं के लिए हिन्दी शिक्षण का उद्देश्य एवं आवश्यकता
- विभिन्न स्तरों पर हिन्दी शिक्षण (मातृभाषा शिक्षण) के उद्देश्य
- मातृभाषा का अर्थ | हिन्दी शिक्षण के सामान्य उद्देश्य | उद्देश्यों का वर्गीकरण | सद्वृत्तियों का विकास करने के अर्थ
- हिन्दी शिक्षक के गुण, विशेषताएँ एवं व्यक्तित्व
- भाषा का अर्थ एवं परिभाषा | भाषा की प्रकृति एवं विशेषताएँ
- भाषा अथवा भाषाविज्ञान का अन्य विषयों से सह-सम्बन्ध
- मातृभाषा का उद्भव एवं विकास | हिन्दी- भाषा के इतिहास का काल-विभाजन
- भाषा के विविध रूप क्या हैं ?
- भाषा विकास की प्रकृति एवं विशेषताएँ
- भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता | Unity in Diversity of Indian Culture in Hindi
Disclaimer