पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं से क्या अभिप्राय है ? सहगामी क्रियाओं की आवश्यकता एवं महत्व को स्पष्ट कीजिये।
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पाठ्यक्रम सहगामी क्रियायें (Co-Curricular Activities )
पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं से अभिप्राय उन क्रियाओं से है, जिनका आयोजन विद्यालय द्वारा किया जाता है, तथा उनमें एक ही विद्यालय अथवा अनेक विद्यालयों के छात्र भाग लेते हैं। जैसे-विद्यालय का वार्षिकोत्सव, नाटक, प्रतियोगिता, कवि-सम्मेलन, खेल-कूद आदि ।
पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Co-curricular Activities)
माध्यमिक शिक्षा आयोग ने सहगामी क्रियाओं का महत्व बताते हुए कहा है- “इन क्रियाओं का आयोजन करते समय यह स्मरण रखने योग्य है कि इसके लिए जितना अधिक विद्यालय की सुविधा हो सके, उसमें विभिन्नता अवश्य अपनानी चाहिये। वाद-विवाद, विचार-विमर्श, नाटक, स्कूल, पत्रिका आदि साहित्यिक क्रियाओं का स्तर उच्च मूल्यों (Values) पर आधारित होना चाहिये, जिसमें प्रत्येक रुचि वाले तथा विभिन्न आयु वाले छात्र उसमें भाग ले सकें।”
विद्यालय में पाठ्य सहगामी क्रियाओं के बिना सरसता उत्पन्न नहीं होती। इसके अभाव में विद्यालय के जीवन में नवीनता उत्पन्न नहीं होती और छात्रों का केवल एकांगी विकास होता है। अतः विद्यालयों में छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है कि सहगामी क्रियाओं पर पर्याप्त बल दिया जाये। कुछ प्रधानाध्यापक इन क्रियाओं को अच्छा नहीं समझते। वे छात्रों के व्यक्तित्व के साथ खिलवाड़ करते हैं।
सहगामी क्रियाओं के प्रकार (Types of Co-Curricular Activities)
- साहित्यिक क्रियायें–गोष्ठी, वाद-विवाद, कवि सम्मेलन, अन्य साहित्यिक प्रवृत्तियाँ।
- शारीरिक क्रियायें-खेल-कूद आदि ।
- सामाजिक क्रियायें समाज सेवा, स्वानुशासन, वार्षिकोत्सव, अभिभावक दिवस आदि।
- मनोरंजनात्मक क्रियायें-शौक (Hobbies), उल्लास यात्रा, भ्रमण आदि ।
- जनतन्त्रात्मक क्रियायें छात्र संघ, सहकारी भण्डार, स्कूल बैंक आदि ।
- प्रशिक्षणात्मक क्रियायें-एन० सी० सी० ए० सी० सी०, स्काउटिंग, रेडक्रॉस आदि ।
- सांस्कृतिक क्रियायें-संगीत, नाटक, चित्रकला, फोटोग्राफी आदि ।
सहगामी क्रियाओं के सिद्धान्त (Principles of Co-curricular Activities)
- संगठन तथा निरीक्षण उचित ढंग से हो।
- क्रिया, छात्रों का विकास करने वाली हो ।
- प्रधानाध्यापक की अनुमति आवश्यक है
- एक विद्यार्थी को दो या तीन से अधिक क्रियाओं में भाग नहीं लेने देना चाहिये।
- यथा सम्भव विद्यालय ही इन क्रियाओं का केन्द्र होना चाहिये ।
- सहगामी क्रियायें धीरे-धीरे लागू की जानी चाहियें।
विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियायें “(Different Co-curricular Activities)
विद्यालयों में विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियायें निम्न प्रकार हो सकती हैं-
1. छात्र संघ (Student Council) – विद्यालय में छात्र संघ एक प्रमुख प्रवृत्ति है। इस प्रवृत्ति से छात्रों में जनतन्त्र के मूल्यों का विकास करना है। इस समिति का संगठन चुनाव के माध्यम से हो सकता है। यह संघ छात्रों में निम्न गुण विकसित करेंगा।
- जनतांत्रिक मूल्यों का बालक में प्रादुर्भाव होता है। वह मतदान तथा निर्वाचन का ज्ञान प्राप्त करता है।
- बालक में आत्म-विश्वास उत्पन्न होता है।
- छात्रों में सहयोगी भावना का विकास होता है। छात्र संघ को विद्यालय स्वच्छ रखना, रोगी सेवा, विद्यार्थी सेवा, खेल-कूद प्रतियोगितायें, साहित्यिक प्रतियोगिता, विद्यालय की पत्रिका आदि कार्य सम्पादित करने चाहिये।
2. प्रातःकालीन सभा (Morning Assembly) – विद्यालय आरम्भ होने से पूर्व सभी छात्रों को एक स्थल पर एकत्र करके उन्हें उस दिन के कार्यक्रम से अवगत कराना, इस सभा का उद्देश्य है। विद्यार्थी चार या पाँच मिनट का कोई भाषण, लेख, कविता आदि भी पढ़ते हैं। स्मिथ के अनुसार-विद्यालय के सभी विद्यार्थियों का एक स्थान पर एकत्रित होना, विभिन्न प्रकार की अतिरिक्त क्रियाओं का केन्द्र बिन्दु हो सकता है।
प्रातःकालीन सभा के उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-
- विद्यार्थियों में एकता की भावना विकसित करना।
- सभा स्थल में वांछित व्यवहार की शिक्षा देना।
- सामान्य अनुभवों, आदर्शों एवं सुझाव की शिक्षा देना।
- अच्छे कार्य करने पर विद्यार्थी का सम्मान करना ।
- समयाभाव के कारण प्रातःकालीन सभा में विभिन्न उत्सव आयोजित करना ।
3. परिभ्रमण (Excursions) – विद्यालय में शैक्षिक परिभ्रमण का अत्यन्त महत्व है। पूरे विद्यालय को पिकनिक पर ले जाया जा सकता है। यह कक्षानुसार भी हो सकता है।
परिभ्रमण के उद्देश्य-
1. प्राकृतिक सौन्दर्य के प्रति आकर्षण ।
2. अनेक प्रकार का ज्ञान ।
3. उत्तरदायित्व का निर्वाह ।
4. हॉबीज (Hobbies)- बालक को किसी हॉबी के प्रति आकर्षित किया जा सकता है। ये हॉबी कई प्रकार की हो सकती हैं, जैसे—चित्रकला, संगीत, भ्रमण, फोटोग्राफी, पत्तियों, कीड़ों, टिकटों का संग्रह, स्काउटिंग, वैज्ञानिक कार्य, खिलौने बनाना आदि।
5. नाट्य परिषद् – विद्यालय में नाट्य परिषद् का कार्य समय-समय पर नाटक का आयोजन करना है। यह परिषद् बालकों में कल्पना शक्ति का विकास कर सकती है।
6. विद्यालय पत्रिका – अपने अनुभवों को ठीक प्रकार से अभिव्यक्ति देने के लिए विद्यालय पत्रिका महत्वपूर्ण साधन है, दीवार पत्रिका, हस्तलिखित पत्रिका, वार्षिक छपी हुई पत्रिका के माध्यम से बालक विचारों की अभिव्यक्ति कर सकते हैं।
7. समाज सेवा (Social Service) – डॉक्टर एस० एस० माथुर के अनुसार-“विद्यार्थी समाज सेवा का कार्य प्रौढ़ों को शिक्षा प्रदान करके, स्त्रियों को शिक्षा प्रदान करके तथा अन्य विश्वासों और बुरी आदतों, बुरे रीति-रिवाज इत्यादि का विद्रोह करके कर सकते हैं। इस प्रकार के आन्दोलनों में भाग लेने से विद्यार्थियों को दो प्रकार के लाभ होते हैं। एक तो यह समझ लेते हैं कि सामाजिक कुरीतियाँ क्या हैं ? और दूसरे जब वे इन्हें दूर करने की चेष्टा में सफल होते हैं तो उनमें आत्म-विश्वास उत्पन्न हो जाता है जो नेतृत्व का एक प्रमुख गुण है।”
8. स्काउटिंग (Scouting) – विद्यालयों में स्काउटिंग भी आवश्यक क्रियाओं में से है। इसका उद्देश्य बालकों में चरित्र निर्माण करना है। डॉक्टर महेशचन्द्र सिंघल के अनुसार प्रधानाध्यापक को यह देखना चाहिये कि ये प्रवृत्तियाँ बालकों पर थोपी न जायें, बल्कि अत्यन्त रोचक बनाकर उन्हें आकर्षित किया जाये। एक योग्य तथा रुचि लेने वाले व्यक्ति को यह काम सौंपना चाहिये। केवल दिखावट के लिए न कराकर नियमपूर्वक इनका प्रबन्ध होना चाहिये। लड़कियों के लिए गाइडिंग कार्यक्रम होना चाहिये।
सहगामी क्रियाओं के लाभ (Advantages of Co-curricular Activities)
सहगामी क्रियाओं से विद्यालय तथा बालकों को निम्न प्रकार के लाभ होते हैं-
- बालकों में नेतृत्व शक्ति विकसित होती है।
- बालकों का शारीरिक विकास होता है।
- ये क्रियायें बाल तथा किशोरावस्था के उपयुक्त हैं।
- सहगामी क्रियाओं से सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति होती है।
- इनसे चरित्र का विकास होता है।
- छात्र अपने अवकाश के क्षणों का उचित उपयोग करना सीख जाते हैं।
- नागरिकता की शिक्षा देने में ये क्रियायें महत्वपूर्ण योग देती हैं।
- विद्यालय भी इन क्रियाओं के कारण समाज तथा समुदाय के निकट सम्पर्क में आते हैं और वे लाभ उठाते हैं।
अतः स्पष्ट है कि नैतिक शिक्षा प्रदान करने का सबसे उत्तम तरीका है-उसे आचरण में उतारना, औंस भर का नैतिक अनुभव, पौंड भर के नैतिक उपदेश से अधिक महत्वपूर्ण है।
इन क्रियाओं का आयोजन करते समय यह स्मरण रखना चाहिये कि जितनी अधिक सुविधा हो सके, वाद-विवाद, विचार-विमर्श, नाटक, स्कूल पत्रिका उच्च मूल्यों पर आधारित होना चाहिये, जिससे कि प्रत्येक रुचि वाले तथा विभिन्न आयु वाले छात्र उसमें भाग ले सकें।
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