विद्यालय संगठन / SCHOOL ORGANISATION

अनुशासन का अर्थ, महत्व एंव सिद्धान्त | Meaning, Importance and Principles of Discipline in Hindi

अनुशासन का अर्थ, महत्व एंव सिद्धान्त | Meaning, Importance and Principles of Discipline in Hindi
अनुशासन का अर्थ, महत्व एंव सिद्धान्त | Meaning, Importance and Principles of Discipline in Hindi

अनुशासन का विद्यालय जीवन में क्या महत्व है ? 

अनुशासन का अर्थ तथा महत्व (Meaning and Importance of Discipline)

अनुशासन राष्ट्र को जीवित रखने के लिए साधन है। विद्यालयी जीवन में इसका विशेष महत्व है। अनुशासन रोमन भाषा के शब्द ‘डिसीप्लीना’ (Discipline) शब्द से बना है, जिसका अर्थ है “सीखना, प्रशिक्षण लेना, उत्तम उदाहरणों तथा उच्च परम्पराओं से प्रेरित, बाध्य होते हुए रहना।”

रूसो के अनुसार बच्चों को स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए। उनके साथियों ने भी इसी मत का प्रतिपादन किया। यह विचार उन्होंने आज से 300 वर्ष पूर्व प्रकट किया था। इस विचार का आधुनिक शिक्षा शास्त्रियों पर गहरा प्रभाव पड़ा।

रायबर्न (Ryburn) के अनुसार विद्यालय में अनुशासन का साधारण अर्थ है- “कार्यों को करने में व्यवस्था एवं क्रमबद्धता, नियम तथा आशाओं का पालन । “

नवीन विचारधारा के अनुसार, “बालक शिक्षा का केन्द्र है, इसलिए बालक को मनोवैज्ञानिक तरीके से तार्किक शक्ति उत्पन्न करके उचित एवं अनुचित का ज्ञान कराया जाए। बालक में अच्छे गुण उत्पन्न करके हम अनुशासन के उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं और नैतिक चेतना स्थापित कर सकते हैं। “

अनुशासन के सिद्धान्त (Principles of Discipline)

अनुशासन की स्थापना कुछ आधारभूत नियमों पर आधारित है और आजकल जनतान्त्रिक युग में बाह्य की अपेक्षा आन्तरिक व्यवस्था को श्रेयस्कर समझा जाता है। निम्नांकित बातों को ध्यान में रखकर विद्यालयों में उचित अनुशासन स्थापित किया जा सकता है-

1. मानवीय गुणों के प्रति आदर- मानव में गुणों का अपार भण्डार है, किन्तु बालक कभी-कभी अमानवीय कार्य भी कर बैठता है। इन अमानवीय कार्यों के प्रति घृणा उत्पन्न करके मानवीय सद्गुणों के प्रति आदर जाग्रत करना ही अनुशासन का प्रधान लक्ष्य है।

2. आत्म-नियन्त्रण – यदि बालकों में यह भावना उत्पन्न कर दी जाए तो वे अपने आप पर नियन्त्रण रखकर कोई अवांछनीय कार्य नहीं करेंगे और अनुशासन का सच्चे अर्थों में हृदय से पालन करेंगे।

3. प्रेम– अतः स्थाई अनुशासन स्थापित करने के लिए बालकों में वह गुण लाया जाए। इस गुण से अध्यापकों में स्नेह भाव कायम होगा।

4. सुरक्षा की भावना – प्रत्येक व्यक्ति सुरक्षा चाहता है और बालक में यह भाव जाग्रत करना चाहिए कि नियम आदि उनकी सुरक्षा के लिए हैं।

5. परम्परागत अनुकूल वातावरण- अनुशासन परम्परागत रखा जाए ताकि नवीन छात्र स्वयं अनुशासन में रहना सीख जाएँ और बालक को यह भी अनुभव न हो कि वह किसी प्रकार के नियन्त्रण में हैं।

6. दण्ड का बहिष्कार – दण्ड किसी बुरे कार्य को करने से रोकता है, परन्तु उसमें कोई गुण उत्पन्न नहीं कर सकता। दण्ड द्वारा हम किसी भी बालक के व्यक्तित्व का निर्माण नहीं कर सकते, भयभीत अवश्य कर देते हैं। अतः अनुशासन व्यवस्था में दण्ड का आश्रय नहीं लेना चाहिए।

7. अनुशासन विभिन्न सुविधाओं की पृष्ठभूमि है – अनुशासन, अनुशासन के लिए नहीं होता, मानवीय पृष्ठभूमि का निर्माण करता है। इसके अन्तर्गत रक्षा की व्यवस्था, आदर्श प्रधानाध्यापक एवं अध्यापक और इसमें संसार की शान्ति की बातें भी आती हैं।

8. विद्यालय अनुशासन सामाजिक अनुशासन का प्रथम सोपान है – शिक्षा बालक को भावी समाज के लिए तैयार करती है, इसलिए बालकों में आपसी सहयोग की भावना बढ़ानी चाहिए।

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Anjali Yadav

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