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अध्यापक के सामान्य गुण तथा कर्त्तव्य | General Qualities and Duties of a Teacher in Hindi

अध्यापक के सामान्य गुण तथा कर्त्तव्य | General Qualities and Duties of a Teacher in Hindi
अध्यापक के सामान्य गुण तथा कर्त्तव्य | General Qualities and Duties of a Teacher in Hindi

एक आदर्श अध्यापक के गुण एवं कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिए।

अध्यापक के सामान्य गुण तथा कर्त्तव्य (General Qualities and Duties of a Teacher)

अध्यापक के सामान्य गुण तथा कर्त्तव्यों के सम्बन्ध में प्रसिद्ध विद्वान तथा शिक्षाशास्त्रियों ने अपनी विचारधाराएँ प्रस्तुत की हैं, जो निम्न प्रकार हैं-

कोठारी आयोग ने अध्यापक की स्थिति को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। आयोग के कथनानुसार, “शिक्षा के गुणात्मक स्तर तथा राष्ट्रीय विकास में योगदान करने वाले विभिन्न तत्वों में अध्यापकों के गुण, योग्यता और चरित्र का निस्सन्देह अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है।”

The Kothari Commission has given a place of importance to the teacher’s status. The commission states, “Of all the different factors which influence the quality of education and its contribution to the natural development, the quality, competence and character of teachers are undoubtedly the most significant.”

इसी प्रकार एच० जी० वैल्स (H. G. Wells) भी उसको इतिहास की रचना करने वाला असली मनुष्य (Real maker of the history) मानता है। जॉन एडम्ज (John Adams) उसको मनुष्य की रचना करने वाला समझता है। . अन्य कोई कहावत, जैसे- “राष्ट्र का निर्माता” (Nation Builder) और उन्नत सभ्यता का मार्गदर्शक (Torch bearer of progressive civilisation) आदि काफी प्रसिद्ध हैं। वह ऐसे आदर का अधिकारी है, परन्तु तब, जब वह जबरदस्ती नहीं, बल्कि इच्छानुसार अध्यापक बना हो, अपने कार्य को ईमानदारी से करता हो। हेनरी एडम्ज ने अध्यापकों के बारे में कहा है कि, “माता-पिता जीवन देते हैं, परन्तु वह इससे अधिक कुछ नहीं देते। एक हत्यारा जीवन ले लेता है और उसका काम वहीं समाप्त हो जाता है। अध्यापक का प्रभाव अनन्य होता है, वह नहीं बता सकता है कि कहाँ उसका प्रभाव रुक जायेगा।”

Adams has also stated about teachers, “A parent gives life, but a parent gives no more. A murderer takes life, but his deeds stop there. A teacher affects eternity, he can never tell where his influence stops.”

एक अध्यापक के सामान्य गुण एवं कर्त्तव्यों का विवरण निम्न प्रकार है-

व्यक्तित्व (Personality) – डब्ल्यू० एम० रायबर्न (W. M. Ryburn) के अनुसार, “शिक्षा सम्बन्धी सफलता अध्यापक पर ही निर्भर होती है, उसके ज्ञान और योग्यता पर विशेषकर उसके व्यक्तित्व और जीवन सम्बन्धी गुणों तथा सदाचार पर ।”

“The success of teaching process will depend on his knowledge and skill but especially on his general personality, qualities of life and character.”

(i) शरीर में स्वस्थ मन का निवास (Sound mind in a sound body)- एक पुरानी कहावत है-अध्यापक को शारीरिक तौर पर स्वस्थ होना चाहिए। इस प्रकार वह अपने उत्तरदायित्व अच्छी प्रकार निभा सकता है।

(ii) आवाज (Voice) – उसकी आवाज स्पष्ट और छात्रों पर प्रभाव डालने वाली हो। इसके अतिरिक्त उसका उच्चारण ठीक न होना केवल उसकी अपनी ही शान को कम नहीं करता, इससे विद्यार्थी भी गलत बोलता है।

(iii) बोली (Expression) – अध्यापक को निरन्तर और प्रभावशाली ढंग के साथ बोलना आना चाहिए। प्रत्येक अध्यापक के लिए विस्तारपूर्वक बताना, विशेष बातों को बढ़ाकर बताना अति आवश्यक है। वह यह बातें उतनी देर तक सफलतापूर्वक नहीं कर सकता, जब तक उसकी भाषा में निपुणता प्राप्त नहीं होती।

(iv) व्यक्तिगत रूप (Personal Appearance) – चेहरा मन चिन्ह होता है (Face is the index of mind) अध्यापक की व्यक्तिगत आकृति (Appearance) अच्छी हो तो बच्चे उससे प्रभावित होंगे। गन्दा अध्यापक तथा ठीक प्रकार के कपड़े न पहनने वाला अध्यापक आधुनिक युग में छात्रों को प्रभावित नहीं कर सकता, विशेषकर छोटी आयु के बालक गन्दे अध्यापक की योग्यता द्वारा अधिक प्रभावित नहीं हो सकते।

(v) जानकारी की तीव्र इच्छा (Thirst for Knowledge)- वास्तविक अध्यापक सदैव विद्यार्थी होता है। वह सदा उन शिल्पों तथा बातों को सीखने की तीव्र इच्छा रखता है, जो उसकी निजी योग्यता को ही नहीं, अपितु व्यावसायिक योग्यता को भी बढ़ाती हैं। उसको प्रत्येक नई स्थिति का ज्ञान जाँच-पड़ताल द्वारा करना चाहिए।

(vi) साधारण सूझ-बूझ से ऊपर (Above Normal intelligence)- साधारण रूप से अच्छी योग्यता वाला अध्यापक ही अपने साधनों का ठीक प्रयोग कर सकता है। उसको वास्तविक विशाल दृष्टिकोण और शीघ्र निर्णय देने वाला होना चाहिए। वह श्रेणी में आने वाली कठिनाइयों का सुगमता के साथ मुकाबला कर सकता हो। ऐसे गुणों के कारण ही वह विद्यार्थियों की Prestige को भी बनाये रख सकता है।

(vii) अच्छी मानसिक दशा (Sound Mental Health)- एक अध्यापक का जीवन सन्तुलित विचारों वाला होना चाहिए। उसके कर्त्तव्य उससे सशक्त और सक्रिय जीवन की माँग करते हैं। अध्यापक को हर समय कठिन हालात का सामना करना चाहिए। कठिनाइयों वाले अध्यापक विद्यार्थियों के लिए कठिनाइयाँ उत्पन्न कर देते हैं। ऐसे अध्यापक वे हैं, जिनके निजी जीवन में कठिनाइयाँ हैं। यह बातें विद्यार्थियों तथा अन्य स्टाफ के सदस्यों के साथ उनका व्यवहार मूर्खताजनक बना देती हैं। अतः एक निराश हुआ तथा तंग आया मनुष्य कभी अच्छा अध्यापक नहीं बन सकता। अध्यापक को सन्तोषजनक जीवन बिताना चाहिए।

(viii) उत्साह (Enthusiasm)- उत्साह पर परिश्रम से युक्त मनुष्य ही वास्तविक उद्देश्यों की प्राप्ति का यत्न करते हैं। यह गुण जीवन में महान् सफलता प्राप्त करने के लिए अनिवार्य है। उसे अपने विषय को भी और अधिक पढ़ते रहना चाहिए, ताकि उसे अपने विषय के नवीनतम अनुसन्धानों का परिचय मिलता रहे। इसके अतिरिक्त उसे पाठ्यक्रम के निर्माण और विषय-वस्तु के गठन की नवीन प्रवृत्तियों का भी अध्ययन करना चाहिए।

(ix) अच्छा आचरण (Sound Character) – अध्यापक के आचरण की बिल्कुल आलोचना नहीं होनी चाहिए। उसको अपने संवेगों (Emotions) पर और विशेष करके क्रोध पर नियन्त्रण रखना चाहिए। विद्यार्थियों के साथ व्यवहार करते समय उसमें साहस तथा सन्तोष होना चाहिए। उसको उन सिद्धान्तों पर आचरण करके दिखाना चाहिए, जिन पर चलने के लिए वह दूसरों को उपदेश देता है। उसका स्वभाव न्यायप्रिय, गलत फहमियों से दूर और निष्पक्षता (Impartiality) पर आधारित होना चाहिए। शराब पीना, तम्बाकू पीना, झूठ बोलना, गालियाँ देना आदि कुछ ऐसे दोष हैं, जिनसे समाज अध्यापकों के मुक्त होने की आशा करता है।

(x) प्रसन्न रहना (Cheerful)– अध्यापक सदा प्रसन्न रहने वाला और प्रगतिशील विचारों वाला होना चाहिए। एक पिछड़े विचारों वाला अध्यापक श्रेणी में ऐसा वातावरण उत्पन्न कर देता है, जो योग्य प्रशिक्षण के लिए अनुकूल नहीं होता।

(xi) नेतृत्व सम्बन्धी गुण (Qualities of Leadership) – अध्यापक एक समूह का नेता है, जिसको श्रेणी (Class) कहा जाता है। यदि अध्यापक प्रभावशाली नेतृत्व को अपनाए तो स्कूल में अनुशासन सुगमता से स्थापित किया जा सकता है।

व्यवसाय सम्बन्धी गुण एवं कर्त्तव्य (Professional Qualities and Duties)

1. मनोविज्ञान की जानकारी (Knowledge of Psychology) – एक नेता के समान अध्यापक को मनोविज्ञान का साधारण ज्ञान और बाल मनोविज्ञान का विशेष ज्ञान होना चाहिए, क्योंकि इस ज्ञान द्वारा ही वह शिक्षा सम्बन्धी मौलिक ढंगों के विषय में जान सकता है। इस प्रकार ही अध्यापक बच्चे के उद्देश्यों को जान सकता है।

2. छात्रों में रुचि लेना (Interest in Children)- जिन मनुष्यों को बच्चों से प्यार होता है, वह मनुष्य बच्चों की बातों पर क्रोधित होने की अपेक्षा उनके कामों को देखकर प्रसन्न होते हैं और उनकी समस्याओं को सहानुभूति से हल करते हैं। अपने व्यवहार द्वारा उनको यह सिद्ध करना चाहिए कि सचमुच ही वह बच्चों में रुचि लेते हैं, उनकी हर प्रकार की सहायता करने को तैयार रहते हैं और उनके शुभ-चिन्तक हैं। इस प्रकार वह बच्चे के कार्यों के उद्देश्यों को जान सकते हैं।

3. शिक्षण विधियों में निपुणता (Command over Teaching Methods)- यद्यपि शिक्षा देना (Teaching) एक कला ही समझी जाती है, फिर भी यह बात सत्य है कि कला का विकास विज्ञान के साधनों द्वारा ही हो सकता है। स्कूल की अध्ययन सूची के नए-नए विषयों के कारण ही यह बात आवश्यक हो गई है कि अध्यापक नए शिक्षा साधनों और ढंगों द्वारा शिक्षा दें। अध्यापक इसकी सहायता से पिछड़े हुए, मन्द-बुद्धि, मानसिक अस्वस्थ छात्रों और मेधावी छात्रों को खोजने और उनके साथ उचित व्यवहार करने की योग्यता प्रदान करता है। छात्रों की गतिविधियों के मार्ग-प्रदर्शन और उनके कार्य का मूल्यांकन करने के लिए मनोविज्ञान का ज्ञान अत्यन्त जरूरी है।

4. समयानुसार काम करना (Punctuality) – अध्यापक प्रतिक्षण एक ऐसे छात्रों के समूह से सम्बन्धित होता है, जो उससे केवल ज्ञान ही प्राप्त नहीं करते, अपितु आदतों, रुचियों और अध्यापक के व्यक्तित्व के अन्य गुणों का भी अनुकरण करते हैं। समय पर कार्य करने का स्वभाव छात्रों का तभी बन सकता है यदि अध्यापक भी समय का पाबन्द हो। यदि वह स्वयं ही श्रेणी में देर से आता है तो छात्रों में अनेक प्रकार की शंकाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। ऐसा अध्यापक छात्रों से समय पर काम नहीं ले सकता और उनको समय पर करके दिखाने की आशा भी नहीं कर सकता।

5. प्रयोगात्मक दृष्टिकोण ( Experimental Attitude) – एक अध्यापक का दृष्टिकोण काफी उदार तथा अप्रसर होना चाहिए। उसको यह नहीं सोचना चाहिए कि वह जो कुछ चाहता है या जो कुछ सोचता है, इस क्षेत्र में वही उत्तम उद्देश्य है, अपितु अनुभव द्वारा ज्ञान में वृद्धि करनी चाहिए। इस भाँति वह नई स्थितियों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है।

6. सहयोग की भावना (Co-operative Spirit) – अध्यापकों को दूसरों के साथ मिलकर काम करना चाहिए। यदि वह सहयोग के साथ काम करना सीख जाए तो उसके प्रयत्न फलप्रद सिद्ध हो सकते हैं। उसको कभी भी यह विचार न करना चाहिए कि उसका काम स्कूल के विशेष भाग तक ही सीमित है, जो कुछ भी स्कूल की चार-दीवारी के अन्दर हो, सारा स्टाफ ही उसके लिए उत्तरदायी होता है। इसलिए स्कूल की अच्छी परम्पराएँ (Traditions) चलाने और इसकी शान को बढ़ाने के लिए अध्यापकों को सहयोग की भावना के साथ काम करना चाहिए।

7. प्रश्न पूछने का ढंग (Art of Questioning) – अध्यापक को छात्रों से उचित प्रश्न पूछने तथा उन प्रश्नों का ठीक उत्तर देने का ढंग आना चाहिए।

8. सहगामी क्रियाएँ (Co-curricular Activities) – अध्यापक को अपना विषय पढ़ाने में ही नहीं, अपितु सहगामी क्रियाओं में भी दिलचस्पी होनी चाहिए। विषय के अध्ययन द्वारा तो केवल ज्ञान ही दिया जा सकता है, जो बच्चों के लिए लाभदायक भी हो सकता है। सहगामी क्रियाएँ बच्चे के व्यक्तित्व को बनाती हैं। आवश्यकता के अनुसार नए ढंग प्रदान करती हैं और उसके अन्दर अच्छी आदतों, जैसे-सहयोग, प्यार, उत्तरदायित्व की भावना तथा वास्तविकता आदि को उत्पन्न करती हैं।

9. प्रजातान्त्रिक दृष्टिकोण (Democratic Attitude)- आज का युग प्रजातन्त्रीय युग है। यह केवल राजनीतिक धर्म ही नहीं, अपितु जीवन का ढंग भी होता है। प्रजातन्त्रीय ढंग उन जातियों में ही सफल हो सकते हैं, जहाँ लोगों के विचार लोकतन्त्रीय हैं। इन विचारों के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार के विचार उत्पन्न करने के लिए अध्यापक विद्यार्थियों को पर्याप्त सहायता कर सकते हैं। यह तभी सम्भव हो सकता है, यदि अध्यापक प्रजातन्त्रीय उद्देश्यों के लिए मार्ग प्रदर्शन करें।

10. विषय का ज्ञाता (Mastery of the Subject) – शिक्षा देना अध्यापक का मुख्य कार्य होता है और इसकी योग्यता उसके ज्ञान तथा विचारों के बारे में जानकारी पर निर्भर होती है।

11. देशभक्ति की भावना (Sense of Patriotism) – किसी भी देश की सफलता इस बात पर निर्भर है कि उस देश के नागरिक अपने स्वार्थी विचारों को त्याग कर राष्ट्रीय विचारों के लिए कितना बलिदान करते हैं। विद्यार्थियों में देशभक्ति की भावना उत्पन्न करने के लिए अध्यापक में इस गुण का होना आवश्यक है।

12. स्व-विश्लेषण (Self-Analysis)- अध्यापक सदा एक विद्यार्थी होता है और वह सदा अपने आपको सुधारने और अच्छा बनाने का प्रयत्न करता है। उसको सदा विशाल हृदयी (Open-minded) होना चाहिए। उसको अपनी कमियों का ध्यान होना चाहिए और उनको दूर करने का प्रयत्न भी करना चाहिए। स्वयं-विश्लेषण से अध्यापक को अपनी कमियों को जानने में सहायता मिलती है ।

13. दूसरों के साथ सम्बन्ध (Relations with Others) –

(i) विद्यार्थियों के साथ (With Pupils)- अध्यापक का छात्रों के लिए सहयोग तथा चतुरता वाला बर्ताव होना चाहिए। उसको उनकी भलाई के लिए पूरी रुचि होनी चाहिए। जिस अध्यापक का व्यवहार मैत्रीपूर्ण और शिष्ट है और जो छात्रों के हित में रुचि रखता है, उसका छात्रों के साथ स्वीकारात्मक सम्बन्ध हो जाता है। इस प्रकार का बर्ताव उसकी शान बढ़ाता है और इसके लिए छात्रों की वफादारी को बढ़ाता है। अध्यापक को पिछड़े हुए मन्द-बुद्धि और कठिनाइयों को उत्पन्न करने वाले छात्रों के लिए अलग रूप से ध्यान देना चाहिए। उनका अपना आचरण आदर्शमय हो। उसे आदर्श स्वरूप बनकर रहना चाहिए। उसको स्वयं सिगरेट, शराब, जुआ, निन्दा करना, थूकना आदि बुरी आदतों से दूर रहना चाहिए।

(ii) साथियों के साथ (With Associates)- अध्यापक का दूसरे स्टाफ के सदस्यों के साथ पारिवारिक सदस्यों वाला व्यवहार होना चाहिए। उसको स्कूल के कार्य में सहयोग के साथ काम करना चाहिए। उसे विद्यार्थियों के सामने किसी अन्य स्टाफ मैम्बर की बुराई नहीं करनी चाहिए। उसे दूसरों के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। स्टाफ की आपसी अच्छी भावना (Good Will) स्कूल में अनुशासनहीनता के विरुद्ध एक प्रकार की गारन्टी है। सभी अध्यापकों को परस्पर मिलकर एक ही उद्देश्य के लिए काम करना चाहिए। हमेशा अध्यापकों का पारस्परिक व्यवहार सौहार्द्रपूर्ण, सहानुभूतिमय और उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए।

(iii) समाज के साथ (With Society) – अध्यापक को समाज की ओर अपना उत्तरदायित्व अनुभव करना चाहिए। समाज के लिए शिक्षा के उद्देश्यों को भूलना नहीं चाहिए। उसके छात्रों के माता-पिता की ओर काफी निकट के सम्बन्ध होने चाहिएँ! यह सम्बन्ध ही उसको प्रत्येक बच्चे को समझने में सहायता देता है।

14. योग्यता तथा अनुभव (Qualification and Experience) – अध्यापक की विषय सम्बन्धी योग्यता उसके अपने अनुभव तथा शिक्षा सम्बन्धी योग्यता पर निर्भर होती है। अध्यापक को किसी श्रेणी को पढ़ाने के लिए उचित योग्यता वाला होना चाहिए। हाई-क्लासें पढ़ाने के लिए कम से कम (B. A., B. Ed/B. Sc. B. Ed) होना आवश्यक है। हायर सैकण्डरी स्कूल में अध्यापक बनने के लिए उसको (M. A./M. Sc.) होना चाहिए या वह किसी विशेष विषय में ऑनर्स (Honours) पास हो। अध्यापक को व्यावसायिक प्रशिक्षण भी प्राप्त होना चाहिए। प्रशिक्षण के बिना वह स्कूल की कठिनाइयों को हल करते समय बहुत-सी गलतियाँ करेगा। यदि वह प्रशिक्षित होगा तो उसको किसी भी श्रेणी को सम्भालते समय साहस होगा।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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