विद्यालय संगठन / SCHOOL ORGANISATION

शिक्षा प्रशासन के उद्देश्य तथा कार्य | Objectives and Functions of Education Administration in Hindi

शिक्षा प्रशासन के उद्देश्य तथा कार्य | Objectives and Functions of Education Administration in Hindi
शिक्षा प्रशासन के उद्देश्य तथा कार्य | Objectives and Functions of Education Administration in Hindi

शिक्षा प्रशासन के उद्देश्यों तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।

शिक्षा प्रशासन के उद्देश्य तथा कार्य

सामान्यतया किसी कार्य के अन्तिम रूप को उद्देश्य कहते हैं। अतः शैक्षिक प्रशासन के उद्देश्य भी वही होते हैं, जिन कार्यों की अपेक्षा हम स्वतन्त्र भारत में अपनी शिक्षा पद्धति से करते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तियों को उत्तरदायित्वों का ज्ञान कराना, बालकों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना, प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमताओं के अनुरूप कार्य करने के अवसर प्रदान करना आदि शिक्षा के ऐसे उद्देश्य हैं, जिनकी पूर्ति में शैक्षिक प्रशासन का सहयोग अनिवार्य है। शिक्षा को सुनियोजित रूप प्रदान करने के लिए ही शैक्षिक प्रशासन की आवश्यकता होती है। इस विचार को आरथर बी० मोहिल्मन ने इस प्रकार व्यक्त किया है-

“शिक्षा का कार्य निश्चित संगठन या सुनिश्चित योजना, विधियों, व्यक्तियों एवं आर्थिक साधनों के माध्यम से चलना चाहिए।”

शैक्षिक प्रशासन के उद्देश्यों के सम्बन्ध में कैण्डल के अनुसार-

“मूलतः शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य यही है कि अध्यापकों एवं छात्रों को ऐसी परिस्थितियों में एक साथ लाया जाए, जिससे कि शिक्षा का उद्देश्य अधिक सफलतापूर्वक प्राप्त हो सके।”

सर ग्रेहम बेल्फोर ने शैक्षिक प्रशासन के उद्देश्यों के सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा है-

“शिक्षा प्रशासन का उद्देश्य सही बालकों को सही शिक्षकों द्वारा राज्य के सीमित साधनों के अन्तर्गत उपलब्ध व्यय से सही शिक्षा लेने योग्य बनाना है, जिससे वे बालक शिक्षा प्राप्त करके लाभान्वित हो सकें।”

वस्तुतः शिक्षा प्रशासन का उद्देश्य शिक्षा सम्बन्धी समस्त समस्याओं के समाधान का हल ढूंढना एवं शिक्षा की नीतियों को उत्तरोत्तर विकसित करना है। शिक्षा को उत्पादन का साधन बनाने में शैक्षिक प्रशासन सहायक होता है। किसी भी शिक्षण संस्था का उत्पादन छात्रों की संख्या में वृद्धि हो जाना ही नहीं, अपितु उस संस्था के छात्रों की योग्यता तथा गुणात्मकता, जो परीक्षा परिणामों से भी प्रकट होती है, वास्तविक उत्पादन समझी जाती है। इस गुणात्मकता की वृद्धि करने में शैक्षिक प्रशासन की क्षमता निहित होती है। इसके अतिरिक्त शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य छात्रों को योग्य नागरिक बनने एवं देश के लिए उपयोगी व्यक्ति बनने में सहायता करना है। शैक्षिक प्रशासन का यह आवश्यक कर्त्तव्य है कि वह प्रशासन में लगे हुए सभी व्यक्तियों को निरन्तर प्रेरित करता रहे। वही प्रशासन उत्तम होता है, जिसके अन्तर्गत सभी शिक्षक भय तथा आशंका मुक्त होकर कक्षा भवनों में छात्रों को ज्ञान प्रदान कराते हैं और निरुत्साहित होने पर प्रशासक की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। समाज के अनुरूप शिक्षा प्रदान करना एवं राज्य तथा सरकार की शिक्षा नीतियों को कार्यान्वित कराने में सहायता प्रदान करना भी शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य होता है। इस सम्बन्ध में सीयर्स के अनुसार-

“प्रत्येक प्रशासनिक निर्णय तथा प्रत्येक कार्य शैक्षिक आवश्यकताओं के अनुरूप लेना अत्यन्त आवश्यक है।”

“सीयर्स” द्वारा प्रशासन को शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए साधन के रूप में स्वीकार किया गया है।

शिक्षा प्रशासन के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने उद्देश्य सम्बन्धी विचारों को प्रकट किया है। शैक्षिक प्रशासन का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। अतएव इसके उद्देश्य भी अनेक हो सकते हैं। कुछ प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन निम्न प्रकार किया जा सकता है-

सीयर्स के अनुसार शिक्षा प्रशासन के उद्देश्य (Aims of Educational Administration according to Jesse B. Seares)

सीयर्स ने शैक्षिक प्रशासन के तीन प्रमुख उद्देश्य बतलाए हैं, जो निम्नलिखित हैं-

1. शिक्षा की आवश्यकताओं के अनुरूप निर्णय लेना तथा कार्य करना (To take decision and shape every action according to educational need) – प्रशासन शैक्षिक आवश्यकताओं के अनुरूप ही अपना कार्यक्षेत्र निर्धारित करता है। शिक्षा को भी समाज के अनुरूप चलना पड़ता है। संस्थाओं में अध्यापकों की नियुक्ति, पाठ्यक्रम निर्धारण, पुस्तकालय व्यवस्था आदि कार्य प्रशासन को उसी रूप में करने होते हैं, जिस प्रकार की आवश्यकता शिक्षा क्षेत्र में प्रतीत होती है। विभिन्न विषयों के लिए विभिन्न योग्यताओं वाले अध्यापकों की नियुक्ति का प्रबन्ध करना प्रशासन का कार्य समझा जाता है। इसी प्रकार विशिष्ट प्रकार की शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित व्यक्तियों को जुटाना प्रशासन का ही कार्य होता है। शिक्षा की उन्नति के लिए सांस्कृतिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, सामुदायिक आदि जिन परिस्थितियों एवं कार्य-कलापों की आवश्यकता होती है, उनकी प्राप्ति के लिए शैक्षिक प्रशासन उचित निर्णय लेकर प्रयास करता है। अतएव शैक्षिक प्रशासन का शैक्षिक आवश्यकताओं के अनुरूप निर्णय लेने तथा कार्य करने का उद्देश्य उपयुक्त तथा उपयोगी है।

2. शैक्षिक उपलब्धियों के लिए शैक्षिक प्रशासन को साधन बनाना शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालकों का सर्वांगीण विकास करना समझा जाता है। योग्य तथा कुशल नागरिकों का निर्माण, कर्त्तव्य तथा उत्तरदायित्वों का निर्वाह, विज्ञान, तकनीकी आदि का ज्ञान, साहित्य, कला, कृषि, उद्योग आदि में उन्नति करना शिक्षा के सुपरिणाम होते हैं। इन उपलब्धियों को शान्तिपूर्ण तथा सुव्यवस्थित वातावरण में ही प्राप्त किया जा सकता है। शैक्षिक प्रशासन ही विभिन्न शिक्षण तथा प्रशिक्षण संस्थाओं की ऐसी सुव्यवस्था करता है, जिससे शिक्षार्थियों को ज्ञान प्राप्त करने में सुविधा होती है। सरकार की शिक्षा नीतियों का परिपालन भी प्रशासन के माध्यम से होता है।

3. उचित-अनुचित कार्यों के प्रति उपयुक्त दृष्टिकोण रखना (Right attitude towards different types of work)– शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य उचित कार्यों को प्रोत्साहित करना तथा अनुचित तथा अशोभनीय कार्यों को रोकना है। प्रशासन की सुव्यवस्था का उद्देश्य यही है कि श्रेष्ठ एवं प्रगति में सहायक व्यक्तियों को प्रशंसा मिले। ऐसे कुशल कार्यकर्ताओं के द्वारा ही शिक्षण संस्था की उन्नति हो सकती है। विद्यालयों को समाज में रहकर ही कार्य करना होता है। विद्यालय समाज का लघुरूप कहे जाते हैं। जिन कार्यों से समाज में विद्यालय की प्रतिष्ठा बढ़े, उन कार्यों को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है। विद्यालयों के छात्रों, अध्यापकों एवं संरक्षकों की सभा का आयोजन करके समस्याओं का समाधान करने से विद्यालय की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। राष्ट्रीय कल्याण तथा सामाजिक भलाई के कार्यों में समुदाय के साथ विद्यालयों का सहयोग प्रशंसा की दृष्टि से देखा जाता है। इसी प्रकार जिला तथा प्रान्तीय स्तर पर शिक्षाधिकारियों द्वारा सांस्कृतिक, शैक्षिक तथा क्रीड़ा सम्बन्धी समारोहों का आयोजन उचित कार्यों की श्रेणी में आता है। ऐसे कार्यों के करने में प्रशासन का सहयोग नितान्त आवश्यक है। इसके विपरीत जिन कार्यों के करने से किसी आदर्श की उपलब्धि न हो और समय तथा शक्ति का अपव्यय हो उन्हें रोका जाना चाहिए। प्रशासन की नीति सदैव उचित कार्यों को प्रोत्साहित करने वाली होनी चाहिए। त्रुटिपूर्ण कार्यों को रोकना तथा उचित और उपयोगी कार्यों को बढ़ावा देना शैक्षिक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य है। सीयर्स के उपर्युक्त तीन उद्देश्यों के अतिरिक्त शिक्षा प्रशासन के उद्देश्यों की संक्षेप में निम्न प्रकार गणना की जा. सकती है—

उद्देश्य

1. राज्य एवं सरकार की शैक्षिक नीतियों के कार्यान्वयन में सहायता करना

2. शिक्षण संस्थाओं में लगे हुए व्यक्तियों की सेवा-सुरक्षा का प्रबन्ध करना ।

3. विभिन्न प्रकार की गतिविधियों तथा योजनाओं में समन्वय स्थापित करना

4. शिक्षा के क्षेत्र के प्रत्येक कर्मचारी को उसके अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों का ज्ञान कराना।

5. शिक्षा के क्षेत्र से सम्बन्धित छात्रों, अध्यापकों, संरक्षकों तथा अन्य कर्मचारियों में अभय अटूट विश्वास की भावना को उत्पन्न करना ।

6. शिक्षा क्षेत्र में रिक्त पदों के लिए योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति करना ।

7. शिक्षा क्षेत्र में बहुमुखी कार्यकलापों तथा प्रगतिशील योजनाओं का संचालन करना ।

8. विकेन्द्रीकरण तथा श्रम विभाजन द्वारा शैक्षिक ढाँचे को अधिक प्रभावशाली बनाना ।

9. शिक्षा के क्षेत्र को प्रगतिपूर्ण तथा अद्यतन (upto date) बनाने के लिए कार्य प्रणाली की क्षमता में वृद्धि करना।

10. शिक्षण संस्थाओं तथा शैक्षिक कार्यालयों में लगे हुए विभिन्न प्रकार के कर्मचारियों का उचित रूप में निरीक्षण करना ।

11. किसी क्षेत्र में होने वाले अपव्यय को दूर करके समय, शक्ति एवं धन का सदुपयोग करने की योजना बनाना ।

12. शिक्षा के क्षेत्र में हो रही समस्त गतिविधियों का मूल्यांकन करने की योजना बनाना ।

13. शैक्षिक संस्थाओं की उन्नति हेतु भौतिक तथा मानवीय स्रोतों को जुटाने की योजना बनाना ।

14. शिक्षा जगत में नवीन विधियों तथा नये उपागमों की व्यवस्था करना।

15. शिक्षा के क्षेत्र की उन्नति हेतु उचित निर्णय लेकर उत्तम व्यवस्था करना

16. शिक्षा की नवीन आवश्यकताओं, नीतियों तथा उद्देश्यों के अनुसार शैक्षिक प्रशासन के स्वरूप में वाँछित परिवर्तन करना।

17. कुशल नेतृत्व द्वारा शिक्षा में संलग्न व्यक्तियों को प्रेरित करना ।

18. शिक्षा के क्षेत्र में अध्ययन अध्यापन तथा पाठ्यातिरिक्त क्रियाओं (Extra curricular activities) की अधिकतम उपलब्धि हेतु प्रतिस्पर्धा की भावना उत्पन्न करना

19. शिक्षण संस्थाओं को बाह्य समुदायों की सहायता प्रदान कराने के लिये प्रयत्न करना

20. शैक्षिक प्रशासन के अन्तर्गत कार्य करने वाले सभी स्तरों के कर्मचारियों में पारस्परिक सौहार्द तथा भ्रातृ भावना को उत्पन्न करना ।

पी० सी० रेन के अनुसार विद्यालय प्रशासन के उद्देश्य (The Objectives of School Administration according to P. C. Uren)

विद्यालय प्रशासन का कार्य केवल समय विभाग चक्र आदि का निर्माण करना ही नहीं, अपितु उसका मुख्य उद्देश्य छात्रों की अभिवृत्तियों एवं रुचियों में आवश्यक परिवर्तन करना भी है। पी० सी० रेट के अनुसार विद्यालय प्रशासन के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य हैं-

  1. छात्रों की अन्तर्निहित क्षमताओं को प्रशिक्षित करना
  2. छात्रों का मानसिक विकास करना
  3. छात्रों की सौन्दर्यानुभूति क्षमताओं (aesthetic faculty) का विकास करना
  4. छात्रों को स्वास्थ्य एवं शक्ति प्रदान करना
  5. शिक्षाविदों द्वारा निर्मित लक्ष्यों के प्रति आस्था उत्पन्न करना
  6. छात्रों के लाभार्थ विद्यालय का निर्माण करना
  7. छात्रों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाना।
  8. छात्रों का चारित्रिक विकास करना
  9. छात्रों की शारीरिक शक्ति का विकास करना।
  10. छात्रों को स्वयं के प्रति, समुदाय तथा राज्य के प्रति कर्त्तव्यपरायण बनाना
शिक्षा प्रशासन के प्रजातांत्रिक उद्देश्य (Democratic Aims to Educational Administration)
  1. छात्रों में जनतान्त्रिक गुणों का विकास करना।
  2. छात्रों में सामाजिक तथा व्यावसायिक कुशलता को उत्पन्न करना
  3. छात्रों में श्रेष्ठ नागरिकता का विकास करना
  4. प्रशासन के अन्तर्गत कार्य करने वाले व्यक्तियों को भयमुक्त होकर कर्त्तव्यपरायण बनने का प्रशिक्षण देना
  5. शिक्षण विधियों, पाठ्य पुस्तकों तथा अन्य क्रिया-कलापों की जनतान्त्रिक नीतियों के अनुसार व्यवस्था करना
  6. छात्रों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना।
  7. छात्रों को स्वशासन करने के लिए प्रशिक्षण देना।
  8. छात्रों की जन्मजात प्रवृत्तियों का विकास करना ।
  9. छात्रों तथा शिक्षकों में धर्म निरपेक्षता एवं समानता की भावना का विकास करना ।
  10. शिक्षण संस्थाओं के व्यक्तियों में पारस्परिक सहयोग की भावना का विकास करना ।

शिक्षा प्रशासन को स्वतन्त्र भारत में नई दृष्टि से देखा जाता है। वर्तमान भारत में प्रशासकों का दृष्टिकोण सेवा भावना से ओत-प्रोत होना परमावश्यक है। इस सम्बन्ध में के० जी० सैयदेन के अनुसार-“आज के युग में विद्यालय को प्रजातन्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार चलाया जाना चाहिए। यदि यह सिद्धान्त ही ओझल हो गया, तो प्रशासन तथा निरीक्षण का महत्व ही समाप्त हो जाता है। इसलिए विचारशील व्यक्तियों में यह धारणा जोर पकड़ रही है कि शैक्षिक प्रशासन विद्यालयों की सर्वतोमुखी उन्नति को अपना उद्देश्य रखे। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पर्याप्त संख्या में अच्छे अध्यापक चाहिए, जो अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक, योग्य तथा अपने विषय के पण्डित हों।”

शिक्षा प्रशासन की उत्तमता एवं आधुनिकता के सम्बन्ध में श्री जे० पी० नायक की धारणा निम्नलिखित है-

“शिक्षा विभाग में आँकड़े प्राप्त करने वाले, वित्तीय अनुदान देने वाले, नियुक्ति एवं स्थानान्तरण करने वाले और शिकायतों की जाँच करने वाले अधिकारियों के स्थान पर ऐसे शिक्षा शास्त्रियों का समुदाय चाहिए, जो शिक्षा के लक्ष्य की पूर्ति करने की शक्ति रखता हो, जनसाधारण की आवश्यकता एवं समय की माँग को समझ सकता हो, शिक्षा के पुनर्निर्माण की योजना बनाकर उसे कार्यालय में परिणित कर सकता हो, जो अध्यापक का मित्र, दार्शनिक तथा परामर्शदाता हो तथा संरक्षकों तथा छात्रों की आवश्यकतानुसार सेवा कर सके।”

जिस शिक्षा प्रशासन में उपर्युक्त विशेषताएँ होती हैं, वही प्रशासन उत्तम कोटि का हो सकता है। प्रशासकों को प्रजातन्त्र के महत्व का ज्ञान एवं उसके सिद्धान्तों पर विश्वास होना चाहिए। शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य जनता के श्रेष्ठतम सामाजिक एवं शैक्षिक विचारों को विकसित करना है। अतएव प्रशासक का प्रथम कर्त्तव्य यह है कि समाज की आवश्यकताओं तथा राजनीतिक मान्यताओं के अनुसार ही अपनी कार्य प्रणाली का निर्माण करे। शैक्षिक प्रशासन के उद्देश्यों में भी इसी प्रकार की भावना को रखना आवश्यक है।

शिक्षा प्रशासन के कार्य (Functions of Educational Administration)

आधुनिक युग में शिक्षा का उत्तरोत्तर विकास होने के कारण शैक्षिक प्रशासन के कार्यों में भी वृद्धि हुई है। शैक्षिक प्रशासन में लगे हुए सभी व्यक्ति शिक्षा सम्बन्धी उद्देश्यों को प्राप्त करके शिक्षा जगत की सेवा करने की भावना रखते हैं। प्रशासन माध्यम से ही विद्यालयों एवं सभी शैक्षिक संस्थानों के कार्यों को सम्पन्न किया जाता है। शैक्षिक प्रशासन के कार्यों की संख्या अधिक है, सभी कार्यों का वर्णन तथा विवेचन करना सम्भव नहीं है। अतएव नीचे की पंक्तियों में कुछ मुख्य कार्यों का उल्लेख किया गया है।

अमेरिका के जनप्रशासन विज्ञान के प्रसिद्ध विद्वान लूथर गूलिक (Luther Gulick) ने प्रशासन के निम्न सात कार्यों का उल्लेख किया है, जिन्हें शैक्षिक प्रशासन के कार्यों में माना जा सकता है—

1. प्रबन्ध करना (Managing) – शिक्षा प्रशासन का किसी विद्यालय या संस्था के लिए माननीय तथा भौतिक साधनों को जुटाना ही व्यवस्था का कार्य करना है। उत्तम व्यवस्था से ही शिक्षा क्षेत्र का कार्य सुचारू रूप से चल सकता है। व्यवस्था को स्थिर तथा अपरिवर्तनशील नहीं बनाना चाहिए। व्यवस्था लचीली (Flexible) होनी चाहिए, जिससे प्रत्येक समय आवश्यक सुधारों तथा नवीन विचारों को उसमें सम्मिलित किया जा सके। व्यवस्था यदि ऐसी हो, जिसमें अधिकाधिक अध्यापक, छात्र तथा संरक्षक विद्यालय के कार्यों में भाग ले सकें तो विद्यालय की अधिक उन्नति हो सकती है। व्यवस्था का उद्देश्य भी शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति करना ही होता है।

2. निर्देशन (Directing)- शैक्षिक प्रशासन का निर्देशन देने का कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। संगठन के व्यक्तियों को कार्य करने की प्रणाली का ज्ञान उत्तम प्रशासक ही कराते हैं, परन्तु उनमें निर्देशन की क्षमता पूर्ण रूप से होनी चाहिए। निर्देशन वस्तुतः वातावरण, कर्मचारी, साज-सज्जा सामान (equipment), घन आदि कारकों पर आश्रित होता है। इसके साथ ही प्रशासक का कौशल भी अनिवार्य रूप में होना चाहिए। इन सभी कारकों का एक स्थान पर समायोजन (coordination) करना कुशल प्रशासक पर ही अवलम्बित होता है। प्रशासक धन, वातावरण एवं व्यक्तियों की प्रकृति का ठीक ज्ञान रखकर ही निर्देशन का कार्य ठीक कर सकता है।

3. नियोजन (Planning) – शिक्षा प्रशासन का मुख्य उद्देश्य शिक्षा सम्बन्धी योजनाओं का निर्माण करना तथा इन योजनाओं का कार्यान्वयन किस प्रकार हो, इसके लिए विधियों के सम्बन्ध में भी निर्णय करना है। योजनाएँ यदि पूर्व निश्चित हों तो, भविष्य में कार्य करना सुविधाजनक होता है। योजना का उद्देश्य कम समय में, कम व्यय करके उत्तम कार्य करना है। शैक्षिक योजनाएँ शैक्षिक उन्नति हेतु बननी चाहिएँ। योजनाएँ वस्तुनिष्ठता एवं निष्पक्षता से युक्त होनी चाहिए। योजनाएँ वर्तमान तथा भविष्य की समस्याओं से सम्बन्धित होनी चाहिएँ। योजनाओं में उपलब्ध सभी साधनों एवं स्रोतों का योगदान होना चाहिए। संस्था अथवा संगठन के सभी व्यक्तियों के सक्रिय सहयोग का योजना निर्माण के समय ध्यान रखना चाहिए। कहा जा सकता है कि शैक्षिक प्रशासन यदि योजना निर्माण के कार्य को सावधानी पूर्वक करे तो सम्पूर्ण कार्यावधि में समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।

4. समन्वयीकरण (Coordination) – अनेक वस्तुओं को अधिक लाभ के लिए एक स्थान पर रखना ही समन्वय की क्रिया कहलाती है। शिक्षा तथा शिक्षालयों में अनेक प्रकार के कार्य किए जाते हैं, फिर भी वे सभी एक प्रशासक की दृष्टि में होते हैं। अनेकता में एकता लाने का प्रयास समन्वयीकरण का होता है। शैक्षिक प्रशासन के कार्यों में भी समन्वय का होना आवश्यक है। नियुक्ति, आर्थिक बजट, पाठ्यक्रम, पाठ्यक्रमेत्तर क्रियाओं में भी समायोजन तथा समन्वय होना चाहिए। कुशल प्रशासक यदि समन्वय का कार्य करने में सावधानी रखता है तो कार्य के बीच में संघर्ष तथा समस्याओं का उसे सामना नहीं करना पड़ता।

5. कार्यकर्त्ता (Staffing)- एक संगठन या किसी संस्था में अनेक प्रकार के कर्मचारियों की सेवाओं की आवश्यकता होती है। अध्यापकों, क्ल, प्रधानाचार्यों एवं अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति करने का कार्य शैक्षिक प्रशासन का ही होता है। कर्मचारियों की सेवा सुरक्षा तथा उनकी पदोन्नति (promotion) आदि की सुव्यवस्था भी प्रशासन पर हो अवलम्बित होती है।

6. वित्तीय-नियोजन (Budgetting) – शिक्षा सम्बन्धी सभी कार्यों को करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। इसके लिए आवश्यक धन का अनुमान एवं उसका लेखा-जोखा करना बजट ही कहलाता है। अधिक व्यय न हो तथा व्यय पर नियन्त्रण भी रहे, इसकी पूर्व योजना बनानी चाहिए। कुशल प्रशासक को बजट बनाने तथा उसे सम्बन्धित व्यक्तियों के सम्मुख प्रस्तुत करने के कार्य में योग्य होना चाहिए।

7. आलेखन (Reporting) — शिक्षा क्षेत्र में अनेक बातों के सम्बन्ध में प्रशासक को जानकारी रखनी होती है। शिक्षा-अधिकारियों, सरकारी आदेशों एवं विभिन्न समुदायों के क्रियाकलापों को प्रशासन अपनी दृष्टि में रखता है। संगठन के अध्यक्षों तथा समाज के सदस्यों को किसी विषय का सही ज्ञान कराना प्रशासक का महत्वपूर्ण कार्य समझा जाता है। प्रशासक यदि विज्ञप्तियों के सम्बन्ध में अज्ञान रखता है, समस्याओं के प्रति जागरूक नहीं होता है तथा उच्चाधिकारियों को समस्याओं तथा परिस्थितियों से ठीक प्रकार परिचित कराने में सफल नहीं होता तो ऐसे प्रशासक की योग्यता में सन्देह होने लगता है। इस कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिये प्रशासक को शोध करना, निरीक्षण तथा अभिलेख के तीनों कार्यों को करने से प्रशासक विज्ञप्ति लेखन का कार्य भी ठीक कर सकता है।

इस प्रकार लूथर गूलिक ने प्रशासन के सात कार्यों को आवश्यक बतलाया है। शैक्षिक प्रशासन की उत्तमता में वृद्धि करना है। लूथर गूलिक के अतिरिक्त सीयर्स (Jesse B. Sears) ने अपनी पुस्तक (“The Nature of the Administration Process”) में शिक्षा प्रशासन में पाँच मुख्य कार्यों का उल्लेख किया है।

सीयर्स के अनुसार शिक्षा प्रशासन के कार्य (Functions of Educational Administration according to Sears)

सीयर्स ने शिक्षा प्रशासन के पाँच कार्य बतलाये हैं। ये कार्य हैं- (1) योजना (Planning), (2) व्यवस्था (Organization), (3) निर्देशन अथवा संचालन (Direction), (4) समायोजन या समन्वय (Coordination), (5) नियन्त्रण या मूल्यांकन (Evaluation) ।

उपर्युक्त कार्यों पर संक्षेप में निम्न प्रकार विचार किया जा सकता है-

1. योजना बनाना (Planning)- सीयर्स के अनुसार प्रशासन का प्रथम कार्य योजना बनाना है। किसी कार्य की सफलता योजना पर ही आधारित होती है। योजना बनाते समय उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से निर्धारित करना होता है। कार्य से सम्बन्धित अनेक सूचनाओं को संकलित किया जाता है, आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखना पड़ता है। कार्य करते समय कौन-कौन सी बाधाएँ मार्ग में आ सकती हैं, इसका भी ध्यान रखना पड़ता है। सारांश रूप में कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व उन सभी बातों पर विश्लेषणात्मक ढंग से विचार किया जाता है, जिनको करने से कार्य में सफलता प्राप्त होती है। शैक्षिक प्रशासन की सफलता के लिए भी योजना का निर्माण करना परमावश्यक है, तभी कोई विद्यालय या कोई भी शिक्षण संस्था अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकती है।

2. व्यवस्था करना (Organization) – शिक्षा प्रशासन का दूसरा मुख्य कार्य व्यवस्था (organization) करना है। व्यवस्था का तात्पर्य उन आवश्यक साधनों को जुटाने से है, जो निर्धारित योजना को कार्यान्वित कराने में सहायक होते हैं। व्यवस्था के अन्तर्गत कुछ नियम बनाए जाते हैं तथा कार्य करने का ढंग भी निश्चित किया जाता है। शैक्षिक प्रशासन में दो बातों को करने की परमावश्यकता होती है। एक शिक्षण कार्य की सुगमता के लिए विभिन्न उपकरणों को जुटाना, जैसे—कक्षा भवन श्यामपट तथा सहायक सामग्री आदि। दूसरे, शैक्षिक कार्य को करने वाले व्यक्तियों की, जैसे—शिक्षक, लिपिक, एवं अन्य कर्मचारी। वस्तुतः शैक्षिक प्रशासन में उपर्युक्त दोनों तत्वों को जुटाना ही पर्याप्त नहीं समझा जाता, अपितु यह भी देखा जाता है कि इनका उपयोग भी कितनी कुशलतापूर्वक किया जा रहा है। यदि वस्तुओं एवं व्यक्तियों का दुरुपयोग अथवा अपव्यय होता है तो वह कुशल प्रशासन का परिचय नहीं समझा जाता। उदाहरण के लिए, सहायक सामग्री का कक्षा-शिक्षण में वर्षों तक उपयोग न होना, भूगोल में मान-चित्रों को कभी न दिखाना, विज्ञान की उपयोगी वस्तुओं पर एक स्थान पर पड़े रहने से धूल जमना आदि शैक्षिक प्रशासन की दुर्बलता है, इसी प्रकार वाँछित विषयों के स्थान पर अयोग्य एवं अप्रासंगिक अध्यापकों की नियुक्ति करना समय नष्ट ही करना है। वाणिज्य विषय पढ़ाने के लिए अर्थशास्त्र में उत्तीर्ण स्नातकोत्तर व्यक्ति की नियुक्ति अनुचित है। इसी प्रकार विद्यालय के कार्यालयों में भी यदि कुशल तथा दक्ष लिपिकों की नियुक्ति नहीं होती तो विद्यालय का कार्य सुचारु रूप से नहीं चल पाता। वास्तव में, व्यक्तियों की योग्यता तथा क्षमता ही शैक्षिक प्रशासन को सफल बना सकती है। व्यवस्था का भी मूल उद्देश्य यही होना चाहिए कि शिक्षा के क्षेत्र में सभी वाँछित साधन तथा व्यक्ति पारस्परिक सहयोग से इस प्रकार कार्य करें कि प्रशासन में पूर्ण रूप से सफलता मिले।

3. निर्देशित करना (Direction) – शिक्षा प्रशासन का तीसरा मुख्य कार्य संचालन (Direction) है। संचालन वास्तव में एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा योजना एवं व्यवस्था कार्यान्वित होती है। योजना बनाने के पश्चात् तथा व्यवस्था के अन्तर्गत साधनों को जुटाने के पश्चात् विभिन्न कार्यों को करने के लिए उचित निर्देशन देना, सलाह देना एवं उपलब्ध साधनों को कार्यान्वित करना आदि संचालन के ही कार्य होते हैं। संचालन तो कार्यों के माध्यम से दिखाई देता है। कोई भी प्रशासक जिसे अधिकार प्राप्त होते हैं, वह अपने निर्देशनों, आदेशों एवं संकेतों से कार्य को कराता है। कार्य को कराना वास्तव में संचालन की ही प्रक्रिया होती है, किन्तु इस संचालन प्रक्रिया में प्रशासक को निपुण होना आवश्यक है। प्रशासक की प्रथम विशेषता यह होनी चाहिए कि वह मानव प्रकृति को ठीक परखने की क्षमता उत्पन्न करे। किसी भी कार्यशाला में या किसी भी स्थान पर विभिन्न प्रवृत्तियों के व्यक्ति होते हैं। कोई व्यक्ति अधिक गम्भीर एवं कर्मठ होता है तो कोई आवेश में शीघ्र आने वाला तथा कार्य को ठीक ढंग से न करने वाला होता है। कुछ व्यक्ति किसी की बुराई-भलाई में न पड़कर केवल अपने तक ही सीमित होते हैं। कुशल प्रशासक को इन सभी के बीच में रहकर कार्य करना होता है। विभिन्न प्रवृत्तियों वाले व्यक्तियों को ठीक प्रकार समझकर कार्यों का उचित विभाजन करना कुशल प्रशासक का कार्य है। क्रीड़ा के मैदान में कुशल खिलाड़ी, शरीर में पुष्ट किन्तु शैक्षिक कार्यों को कम रुचि रखने वाले अध्यापक को ऐसा ही कार्य दिया जाना चाहिए, जिससे वह अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग कर सके। गणित तथा विज्ञान पढ़ाने में दक्ष, परन्तु साहित्यिक अथवा शाब्दिक निपुणता न रखने वाला अध्यापक मंच पर भाषण देने में संकोचशील होता है। अतएव कुशल प्रशासक का कर्त्तव्य है कि वह क्षमताओं की परख करने तथा कार्यों का श्रेष्ठ विभाजन करने में निपुण होना चाहिए। विद्यालय के सभी अधिकारों तथा कर्तव्यों का सभी व्यक्तियों के बीच इस प्रकार विकेन्द्रीकरण किया जाए, जिससे सभी व्यक्ति किसी न किसी रूप में स्वयं को कर्तव्यपरायण तथा उत्तरदायी समझते रहें। संचालन की प्रक्रिया में इन सभी बातों पर ध्यान देना अति आवश्यक है।

4. समन्वय करना (Coordination) – शैक्षिक प्रशासन का एक अन्य प्रमुख कार्य “समायोजन” (Coordination) है। समायोजन का अभिप्राय है कि किसी कार्य की सफलता के लिए सभी सम्बन्धित व्यक्ति पारस्परिक सहयोग एवं सद्भाव से कार्य करें। कन्धे से कन्धा भिड़ाकर कार्य की सफलता हेतु सहयोग-भावना से कार्य करना समायोजन कहलाता है। एक उदाहरण से समायोजन पर अधिक प्रकाश डाला जा सकता है। घर की दीवारों पर नए छप्पर को रखने के लिए कुछ व्यक्तियों के श्रम की आवश्यकता होती है। सभी व्यक्ति जब एक जुट होकर शक्ति लगाते हैं तो वह ही ऊपर उठ जाता है। इसके विपरीत यदि कुछ व्यक्ति तो छप्पर उठाने में पूरी शक्ति लगाएँ, कुछ मान ही खड़े रहें तथा प्पर पलक मारते कुछ छप्पर के बाँसों को पकड़कर नीचे की ओर खींचने लगें तो उस छप्पर के उठने में बहुत अधिक सन्देह होता है। वास्तव में शैक्षिक प्रशासन का छप्पर उठाने में सभी शिक्षकों, कर्मचारियों, छात्रों, लिपिकों तथा अधिकारियों की मिली-जुली शक्ति की नितान्त आवश्यकता होती है। इन सभी व्यक्तियों की कम अथवा अधिक शक्ति की गणना करने का प्रश्न ही नहीं उठता, आवश्यकता तो केवल इतनी है कि ये सभी व्यक्ति एक साथ सद्भावनापूर्ण वातावरण से रहकर तथा एक-दूसरे के प्रति आदर भावना रखकर कार्य की सफलता हेतु प्रयास करें। समायोजन का महत्वपूर्ण कार्य सभी व्यक्तियों को एकलयता प्रदान करना है। जिस प्रकार विवाहादि अवसरों पर बाजा में सम्मिलित सभी बाजे एक-दूसरे के साथ जब अपना स्वर मिलाते हैं, तभी उसकी लय-तान श्रोताओं को कर्णप्रिय प्रतीत होती है। इसी प्रकार शिक्षा संस्था में भी सभी कर्मचारियों को एक साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करना चाहिए। प्रबन्धक तथा प्राचार्य, प्राचार्य तथा शिक्षक, शिक्षक तथा विद्यार्थी, प्राचार्य तथा विद्यार्थी, शिक्षक तथा शिक्षक, आदि सभी को एक-दूसरे के विचारों का आदर करना चाहिए। इसके अतिरिक्त शिक्षा संस्था की उन्नति में जो अन्य सामाजिक संस्थाएँ सहयोगी हों, उनके साथ भी मधुर सम्बन्ध रखने की आवश्यकता होती है। समायोजन के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम अपने विचारों को दूसरों पर बलपूर्वक लादने का प्रयास न करें। दूसरों के उत्तम विचारों को भी हमें सुनना तथा आदर देना चाहिए। शैक्षिक प्रशासन के लिए समायोजन अत्यन्त आवश्यक है।

5. मूल्यांकन अथवा “नियन्त्रण” करना (Control or Evaluation) – यह प्रशासन का अन्तिम अंग होता है। नियन्त्रण का आधार पर्यवेक्षण (Supervision) तथा मूल्यांकन (Evaluation) होता है। किसी भी संस्था में जितनी गतिविधियाँ चलती हैं, उन्नति के लिए जितने कार्य किए जाते हैं तथा संगठन में जितने व्यक्ति रखे जाते हैं, उनकी बुराई-भलाई तथा उनकी कार्यक्षमता अथवा मापन नियन्त्रण की प्रक्रिया द्वारा ही सम्भव होता है। व्यक्तियों को उचित निर्देशन भी मूल्यांकन के पश्चात् ही दिया जा सकता है तथा दुर्बलताओं का ज्ञान करने के पश्चात् सुधार के लिए प्रयास किया जा सकता है। शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा प्रणाली तथा शिक्षकों के कार्यों का मूल्यांकन करने के अतिरिक्त पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, पाठ्य-पुस्तकें, निर्देशन सामग्री तथा पाठ्येत्तर क्रियाएँ, आदि सभी का मूल्यांकन किया जाता है। शिक्षा संस्था की उन्नति में जो क्रिया सहायक एवं उपयोगी है केवल उसे ही प्रोत्साहन दिया जाता है। किसी भी व्यक्ति के अनुचित तथा उच्छृंखल व्यवहार को रोका जा सकता है। कौन व्यक्ति कितनी सीमा तक अधिकारों का प्रयोग करेगा, वास्तव में इसका निर्धारण नियन्त्रण प्रक्रिया के बिना नहीं हो सकता।

इस सम्बन्ध में “सीयर्स” के अनुसार“ कोई भी जब तक सम्बन्धित व्यक्तियों, वस्तुओं अथवा लक्ष्यों पर भली प्रकार नियन्त्रण न कर ले तब तक वह किसी क्रिया के सम्बन्ध में निर्देशन नहीं दे सकता।” सीयर्स का यह कथन उपयुक्त प्रतीत होता है, क्योंकि किसी भी संस्था का संचालन करने में कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति कहाँ तक हो सकी है, उसका समुचित ज्ञान मूल्यांकन द्वारा ही सम्भव होता है।

जे० बी० सीयर्स के अतिरिक्त भी शैक्षिक प्रशासन के कार्यों का जहाँ-तहाँ उल्लेख किया गया है। शिकागो विश्वविद्यालय की National Society for the study of Education के अन्तर्गत प्रकाशित पुस्तक “The Forty-fifth year book” में कार्यों की गणना निम्न प्रकार की गई है—

  1. स्थानीय नियन्त्रण को शक्ति प्रदान करना
  2. सामाजिक संस्थाओं, संगठनों तथा जनता-सेवकों द्वारा की गई प्रशंसा को प्राप्त करना ।
  3. नीतियों का निर्धारण तथा उन्हें लागू करना ।
  4. एक ही क्षेत्र की समस्याओं को एकीकृत करना ।
  5. उत्तरदायित्वों को सौंपना ।
  6. व्यय किए हुए धन के बदले में अधिकतम लाभ प्राप्त करना ।
  7. जनतन्त्रात्मक प्रणाली से युक्त कार्यक्रमों को लागू करना
  8. व्यक्तियों तथा भौतिक स्रोतों की क्षमताओं का अधिकतम लाभ उठाना

हेनरी फेयोल (Henry Fayol) प्रशासन के क्षेत्र में प्रसिद्ध व्यक्ति हैं। उन्होंने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर प्रशासन के कार्य बतलाये हैं, जो निम्न प्रकार हैं-

1. योजना (Planning), 2. व्यवस्था (Organizing), 3. निर्देशन (Commanding), 4. समन्वय (Coordinating),  5. नियन्त्रण (Controlling)

रसेल टी० ग्रेग (Russel T. Gregg) ने भी प्रशासन के कुछ कार्य बतलाए हैं, जिनकी गणना निम्न प्रकार की जाती है— 1. निर्णय लेना (Decision making), 2. योजना बनाना (Planning), 3. व्यवस्था करना (Organizing), 4. सम्प्रेषण (Communicating), 5. प्रभाव डालना (Influencing), 6. समन्वय करना (Coordinating), 7. मूल्यांकन करना (Evaluating)।

रसेल टी० ग्रेग के कार्यों में सम्प्रेषण का कार्य भी महत्वपूर्ण है। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सूचना, विचार, निर्देशन आदि पहुँचाना ही सम्प्रेषण का कार्य समझा जाता है। यह सम्प्रेषण में किया जा सकता है, जैसे नीचे की ओर से ऊपर की ओर, बराबर के व्यक्तियों में तथा ऊपर की ओर से नीचे की ओर किसी सूचना को अथवा किसी विचार को सम्प्रेषित किया जा सकता है। इन्हें क्रमशः ऊर्ध्वमुखी सम्प्रेषण (Upward communication), समतल सम्प्रेषण (Horizontal Communication), तथा अधोमुखी सम्प्रेषण (Downward Communication) कहा जा सकता है। मूल्यांकन का कार्य भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। शैक्षिक प्रशासन का कार्य कितना प्रभावशाली है या उनमें कहाँ सुधार की आवश्यकता है, इसका ज्ञान मूल्यांकन प्रक्रिया द्वारा ही किया जा सकता है।

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Anjali Yadav

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