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प्रतिभाशाली बालक का अर्थ एवं परिभाषा | प्रतिभाशाली बालकों की पहचान | प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा व्यवस्था

प्रतिभाशाली बालक का अर्थ एवं परिभाषा | प्रतिभाशाली बालकों की पहचान | प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा व्यवस्था
प्रतिभाशाली बालक का अर्थ एवं परिभाषा | प्रतिभाशाली बालकों की पहचान | प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा व्यवस्था

एक ‘प्रतिभाशाली बालक’ से आप क्या समझते हैं ? आप उन्हें कैसे पहचानेंगे? उसे शिक्षित करने हेतु किन-किन शैक्षिक प्रावधानों की व्यवस्था करनी चाहिए?

प्रतिभाशाली बालक का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Gifted Children)

प्रतिभाशाली बालक विशिष्ट बालक होते हैं। इनकी बौद्धिक क्षमता सर्वोच्च श्रेणी की होती है। और बुद्धि-लब्धि सामान्य बालकों से कहीं अधिक होती है। ये ज्ञान प्राप्त करने में श्रेष्ठ होते हैं तथा परीक्षाओं में अधिक अंक प्राप्त कर सभी को चकित कर देते हैं। इनकी कल्पनाशक्ति, स्मरणशक्ति, तर्कशक्ति और सूझ-शक्ति बहुत अधिक होती है और इनका ध्यान विस्तार भी अधिक होता है तथा वे अपने ध्यान को देर तक केन्द्रित रख सकते हैं। सामान्य बालकों की बुद्धि लब्धि 100 होती है, ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठता है कि प्रतिभाशाली बालकों की बुद्धि-लब्धि कितनी अधिक होनी चाहिए। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि 120 से अधिक बुद्धि-लब्धि रखने वाले बालक प्रतिभाशाली होते हैं। कुछ बालकों की बुद्धि-लब्धि 180 से 190 तक होती है। इस प्रकार के बालक समाज में प्रत्येक क्षेत्र में पाये जाते हैं। बालकों की तरह बालिकाएँ भी प्रतिभाशाली होती हैं। इस प्रकार के बालकों की संख्या विद्यालय में 10-15 प्रतिशत से अधिक नहीं होती। विभिन्न विद्वानों ने प्रतिभाशाली बालक की परिभाषाएँ विभिन्न प्रकार से दी हैं-

टरमैन और ओडेन का विचार है कि प्रतिभाशाली बालक शारीरिक गठन, सामाजिक समायोजन, व्यक्तित्व के लक्षणों, शैक्षिक निष्पत्ति, खेल, सूचनाओं और रुचियों की विविधता आदि में सामान्य बालकों से श्रेष्ठ होते हैं। टरमैन लिखता है “प्रतिभाशाली बालक शारीरिक विकास, शैक्षणिक उपलब्धि और बुद्धि एवं व्यक्तित्व में श्रेष्ठ होते हैं। स्किनर और 11 हैरीमैन का विचार है- “प्रतिभा शब्द का प्रयोग उन एक प्रतिशत बालकों के लिए किया जाता है जो सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमान होते हैं।” टरमैन और हालिंगवर्थ का विचार है कि 130 बुद्धि लब्धि से ऊपर वाले बालक प्रतिभाशाली होते हैं।

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि प्रतिभाशाली बालकों में सामान्य और विशिष्ट बुद्धि दोनों ही होती है। उनमें सामान्य बालकों से अधिक क्षमता होती है और वे सामान्य और विशिष्ट दोनों प्रकार के कार्य आसानी से कर लेते हैं।

प्रतिभाशाली बालकों की पहचान (Recognization of Gifted Children)

प्रतिभाशाली बालक जहाँ भी रहते हैं वहाँ अपनी पहचान स्वयं बना लेते हैं। चाहे वे घर में हों अथवा विद्यालय में, उन्हें अलग से देखा जा सकता है। इन बालकों में साहित्यिक, संगीत, कला, गणित, भाषा, विज्ञान आदि में विशेष रुचि होती है तथा वे सामाजिक नेतृत्व की अभूतपूर्व क्षमता रखते हैं। किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर लेना इनके लिए आसान होता है। इनके कार्य नियोजन और संचालन को देखकर कोई भी इन्हें आसानी से पहचान सकता है। मनोवैज्ञानिकों ने प्रतिभाशाली बालकों को पहचानने के दो तरीके बतलाये हैं-

(अ) निरीक्षण द्वारा और (ब) परीक्षण द्वारा।

(अ) निरीक्षण द्वारा- टरमैन ने 1000 प्रतिभाशाली बालकों का अध्ययन करके उनके माता-पिता आदि से मिलकर विभिन्न जानकारियाँ प्राप्त की जिससे प्रतिभाशाली बालक आसानी से पहचाने जा सकते हैं। टरमैन इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि जो बालक नये विचारों को ठीक समझ लेते हैं, जिनमें नवीन ज्ञान प्राप्त करने की तीव्र इच्छा होती है, जिनकी स्मरणशक्ति बहुत तीव्र होती है, जिनके बात करने का ढंग सर्वसम्मत और विवेकपूर्ण होता है, जिनकी रुचियाँ साधारण बालकों से भिन्न और विविधतायुक्त होती हैं, जिनकी शैक्षिक उपलब्धि सामान्य बालकों से अधिक होती है, जिनमें त्वरित बुद्धि प्रयोग करने की क्षमता होती है, जिनकी तर्कशक्ति अच्छी होती है, जिनके पास विविध सूचनाओं का भण्डार होता है, जो किसी प्रश्न का उत्तर देने में विलम्ब नहीं करते, जिनके द्वारा पूछे गये प्रश्न योग्यतापूर्ण और विवेकपूर्ण होते हैं, जिनका शब्द भण्डार, विशद् विस्तृत और पूर्ण होता है, जिनकी निरीक्षण शक्ति बहुत तीव्र होती है, जो कठिन, महत्त्वपूर्ण एवं श्रमसाध्य कार्यों में घबराते नहीं वे प्रतिभाशाली बालक होते हैं।

टरमैन ने प्रतिभाशाली बालकों की पहचान सामाजिक गुणों के आधार पर भी किया है-जिन बालकों में नेतृत्व का अद्भुत गुण होता है, जो सदैव आशावादी दृष्टिकोण रखते हैं, जो सामाजिक नियमों एवं कानूनों के प्रति वफादार दिखलाई देते हैं, जिनमें अन्य बालकों की अपेक्षा सहिष्णुता, सहानुभूति, दया, प्रेम एवं सहयोग की भावना अधिक होती है, जो प्रसन्नचित्त और विनोदी स्वभाव के होते हैं, जिनमें आत्मदर्शन की क्षमता अधिक होती है, जिनके विचारों में दृढ़ता होती है, जो स्वभाव से धैर्यवान होते हैं जिनका चित्त शान्त, स्थिर और चिन्तारहित होता है वे प्रतिभाशाली बालक होते हैं।

(ब) परीक्षण द्वारा- बौद्धिक परीक्षणों के द्वारा भी प्रतिभाशाली बालकों की पहचान सम्भव है। प्रतिभाशाली बालक सामान्य सूचना एवं वाचन ग्राह्यता में सर्वश्रेष्ठ होते हैं। विभिन्न निष्पत्ति परीक्षणों से प्रतिभाशाली बालकों की पहचान की जाती है। विभिन्न व्यक्तिगत एवं सामूहिक परीक्षणों द्वारा बालकों की रुचियों, योग्यताओं, क्षमताओं, ध्यान विस्तार और अवधान के केन्द्रीकरण की परख सम्भव इसके आधार पर यह पता लगा लिया जाता है कि कौन बालक प्रतिभावान है और कौन सामान्य बड़े समूह में प्रतिभाशाली बालकों की पहचान के लिए परीक्षण विधि का प्रयोग किया जाता है। बालकों के वैयक्तिक इतिहास को देखकर अथवा विद्यालय में उनके परीक्षा परिणामों को देखकर भी उनकी पहचान हो सकती है। शिक्षक अपने निरीक्षण के द्वारा भी प्रतिभावान बालकों को पहचान सकता है। इन सभी उपायों को यदि समन्वित रूप में प्रयोग में लाया जाता है तो समूह में से प्रतिभावान बालकों को अलग करने में कोई कठिनाई नहीं होती।

प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा व्यवस्था (Education System of Gifted Children)

प्रतिभाशाली बालक सामान्य बालकों की अपेक्षा त्वरित गति से सीखते हैं। उनकी सूझशक्ति और ध्यान विस्तार अच्छा होता है। उनका बौद्धिक, सामाजिक और शैक्षिक विकास सामान्य बालकों से कहीं अधिक होता है, परिणामस्वरूप प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा के लिए विशेष शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। प्रतिभाशाली बालकों की शैक्षिक योजना को यहाँ संक्षेप में प्रस्तुत किया जा रहा है-

(1) विद्यालय – विद्यालयों का यह कर्त्तव्य है कि वे प्रतिभाशाली बालकों की आवश्यकताओं, अभिरुचियों और क्षमताओं के अनुरूप उन्हें विकास का पूर्ण अवसर प्रदान करें। इन बालकों को सामान्य बालकों के साथ शिक्षा प्रदान करने से उनकी बौद्धिक प्रतिभा का दुरुपयोग होता है, परिणामस्वरूप विद्यालय को प्रतिभाशाली बालकों को उनको विशिष्ट श्रेणी में विभक्त कर शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। उत्कृष्ट प्रतिभावान, विशिष्ट प्रतिभावान और प्रतिभावान बालकों के हेतु अलग कक्षाओं की व्यवस्था की जानी चाहिए। इन बालकों की शिक्षा के हेतु विद्यालय का स्तर उच्च होना चाहिए।

(2) पाठ्यक्रम – सामान्य पाठ्यक्रम के साथ विशिष्ट बालकों के लिए अतिरिक्त पाठ्यक्रम की भी व्यवस्था की जानी चाहिए। यदि विद्यालय उच्च कोटि का है तो पाठ्यक्रम की रचना प्रतिभावान बालकों के अनुरूप की जानी चाहिए। इन बालकों के लिए उन्नत और विशिष्ट पाठ विषयों का चयन किया जाना चाहिए। इन बालकों की आवश्यकताओं और उपयोगिता के अनुरूप पाठ्यक्रम में परिवर्तन किया जाना चाहिए। विशिष्ट एवं विस्तृत अध्ययन के लिए विशेष व्यवस्था होनी चाहिए। इन बालकों के लिए आधुनिक व्यावसायिक और तकनीकी विषयों की व्यवस्था की जानी चाहिए।

(3) शिक्षक- प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा के लिए उत्कृष्ट शिक्षकों का ही चयन किया जाना चाहिए। शिक्षकों को प्रतिभाशाली बालकों के मनोविज्ञान से पूर्ण परिचित होना चाहिए। उनमें बालकों की चुनौती को स्वीकार करने की क्षमता होनी चाहिए। इन बालकों को शिक्षकों द्वारा प्रोत्साहित करते रहना चाहिए और अपने व्यक्तित्व को बालकों पर लादना नहीं चाहिए। शिक्षक को बालकों में सृजनात्मक चेतना का विकास करने में सहयोग देना चाहिए। उत्कृष्ट प्रतिभासम्पन्न बालक को प्रतिभावान शिक्षक ही उचित मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।

(4) शिक्षण कक्ष- प्रतिभाशाली बालकों का शिक्षण कक्ष साफ-सुथरा, प्रकाशयुक्त और हवादार होना चाहिए। उसमें सहायक उपकरण और आधुनिक साज-सज्जा होना चाहिए। दीवारों पर आवश्यक चार्ट-मैप आदि होने चाहिए। फर्नीचर व्यवस्थित रूप से रखना चाहिए।

(5) अतिरिक्त शिक्षा की व्यवस्था विद्यालय में प्रतिभाशाली बालकों के हेतु अतिरिक्त शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। इस कक्षा में विशिष्ट प्रतिभासम्पन्न बालक ही रखे जाने चाहिए। इन कक्षाओं के आयोजन से छात्रों की जिज्ञासा शान्त हो सकेगी और वे समस्याओं का समाधान करने में समर्थ हो सकेंगे। अतिरिक्त कक्षा की व्यवस्था विद्यालय के नियमित कार्यक्रमों के साथ ही लगाई जा सकती है। इन कक्षाओं में शिक्षण हेतु बाहर से उच्च कोटि के शिक्षकों को बुलाया जाना चाहिए। इन कक्षाओं में प्रतिभाशाली बालकों को विशिष्ट तकनीकी ज्ञान प्रदान करने और विचार-विमर्श करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।

(6) विशिष्ट कक्ष की व्यवस्था- इस कक्ष की व्यवस्था बुद्धि-लब्धि के आधार पर की जानी चाहिए। इन कक्षाओं का आयोजन कुछ विशिष्ट विषयों के शिक्षण हेतु किया जाना चाहिए। शिक्षक विषय में पारंगत होने चाहिए। इस प्रकार की कक्षाओं के माध्यम से बालक विषयी ज्ञान को गहराई से समझ सकेंगे और उन्हें नवीनतम ज्ञान की जानकारी प्राप्त होगी।

(7) निर्देशन एवं परामर्श- प्रतिभाशाली बालकों के समुचित निर्देशन एवं परामर्श की व्यवस्था की जानी चाहिए। उनके द्वारा सम्पन्न किए गए कार्यों के परिणामों को देखकर ही उन्हें परामर्श एवं निर्देशन दिया जाना चाहिए। यह भी देखा जाना चाहिए कि बालक निर्देशन के आधार पर कार्य कर रहे हैं अथवा नहीं। निर्देशन बहुआयामी एवं उत्साहवर्धक होने चाहिए।

(8) प्रगति अभिलेख- नर्सरी विद्यालय में प्रवेश के समय ही प्रतिभाशाली बालकों का प्रगति अभिलेख बनाया जाना चाहिए। यह अभिलेख उनकी बौद्धिक प्रतिभा की जानकारी देता है। प्रगति अभिलेख में बालक की पूर्व जानकारी और वर्तमान प्रगति का उल्लेख होना चाहिए। इस अभिलेख में बालक द्वारा चयनित विषय ग्राह्यता की अवधि, ध्यान, रुझान, ध्यान विस्तार, शैक्षिक स्तर आदि का उल्लेख होना चाहिए। शिक्षण प्रबन्ध और निर्देशन की व्यवस्था की जानी चाहिए। प्रगति अभिलेख के आधार पर ही प्रतिभाशाली बालकों का वर्गीकरण सम्भव है। अभिलेख में वस्तुनिष्ठता के आधार पर ही आकलन हो और व्यक्तिगत निष्ठता का उसमें कोई स्थान न हो

(9) मूल्यांकन- प्रतिभाशाली बालकों की प्रगति और शिक्षण ग्राह्यता को सुनिश्चित करने हेतु उनका मूल्यांकन भी आवश्यक होता है। जो बालक बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न हैं उनकी परख के लिए बहुमुखी मूल्यांकन भी किया जाना चाहिए।

प्रभावी शिक्षण हेतु मैरिस फ्रीहिल के विचार प्रतिभाशाली बालकों के प्रभावी शिक्षण के हेतु मैरिस फ्रीहिल ने अपनी पुस्तक ‘प्रतिभाशाली बच्चे उनका मनोविज्ञान और शिक्षण’ (Gifted Children-their Psychology and Education) में अत्यन्त सुन्दर विचार व्यक्त किए हैं। उसने इस पुस्तक में लिखा है कि प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा संख्यात्मक न होकर गुणवत्ता की दृष्टि से होनी चाहिए जिससे कि उनकी क्षमताओं का पूर्ण विकास हो सके। शिक्षण में व्यावहारिक और क्रियात्मक पक्ष पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। पाठ्यक्रम केन्द्रित न होकर समस्या केन्द्रित होना चाहिए। इनकी शिक्षा ही समाधान के रूप में होनी चाहिए। इन्हें सन्दर्भ ग्रन्थों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए, वार्तालाप के अवसर दिए जाने चाहिए और उनकी समस्या समाधान और तर्कशक्ति का विकास किया जाना चाहिए। प्रतिभाशाली बालकों को अर्जित ज्ञान की पुनरावृत्ति के हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए। इन छात्रों के शिक्षण में नवीनतम प्रविधियों को अपनाया जाना चाहिए और उनके कार्यों का समय-समय पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

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Anjali Yadav

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