प्रयोजनवाद से आप क्या समझते हैं? प्रयोजनवादी शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियों का वर्णन कीजिए।
प्रयोजनवाद अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘प्रैगमैटिज्म (Pragmatism) का हिन्दी रूपान्तर है जिसकी व्युत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द ‘प्रैग्मा’ (Pragma) से हुई है। ‘प्रैग्मा’ का अर्थ ‘क्रिया गया काम’ या ‘प्रभावपूर्ण कार्य’ है। कुछ विद्वानों का मत है कि इस शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक प्रग्मैटिग्मेस’ (Pragmatimes) से हुई है जिसका अर्थ ‘प्रयोजन’ है। अतएव हम कह सकते हैं कि प्रयोजनवाद वह विचारधारा है जो उन्हीं बातों को सत्य मानती है जो व्यावहारिक जीवन में काम आ सके। इस विचारधारा में व्यावहारिक क्रिया की प्रधानता दी जाती है। प्रयोजनवादी विचारधारा के अनुसार किसी कार्य और साधन हेतु व्यावहारिकता और उपयोगिता आवश्यक है अन्य उसका कोई भी महत्त्व नहीं है। दूसरे शब्दों में प्रयोजनवाद, प्रयोग, व्यवहार या अभ्यास में विश्वास रखने वाला है और वह उन्हीं सिद्धान्तों में विश्वास रखता है जो व्यवहार या प्रयोग में आ सकते हों और सही उतरते हों। प्रयोजनवादी, शाश्वत सिद्धान्तों, अमूर्त वस्तुओं आदि पर विश्वास नहीं करते। उसके अनुसार कुछ भी चिरन्तन, नित्य और आध्यात्मिक नहीं है। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार सभी वस्तुओं और उनकी उपयोगिता में परिवर्तन होता रहता है। जो वस्तु एक युग में उपयोगी होती है वही दूसरे युगों में अनुपयोगी और जो एक युग में अनुपयोगी है वह दूसरे युग में उपयोगी हो सकती है। इस प्रकार उपयोगिता, प्रयोजन और प्रयोग पर बल देने के कारण इसे ‘प्रयोगवादी विचारधारा भी कहा जाता है। कुछ विद्वान प्रयोजनवाद या प्रयोजनवाद को ‘फलकवाद’ के नाम से भी पुकारते है। ऐसा वे इसलिए कहते हैं कि इसमें किसी कार्य का मूल्य उसके परिणाम या फल के आधार पर आंका जाता है। अन्त में हम कह सकते हैं, कि प्रयोजनवाद जिसे हम प्रयोगवाद या फलकवाद भी कह सकते हैं, वह विचारधारा है जो किन्हीं क्रियाओं, वस्तुओं, सिद्धान्तों तथा नियमों को सत्य मानती है, जो किसी देश काल और परिस्थिति में व्यावहारिक दृष्टि से उपयोगी हैं।
परिभाषा
(1) रॉस के अनुसार– “प्रयोजनवाद मूलतः एक मानववादी दर्शन है जो यह मानता है कि मनुष्य कार्य अपने में अपने मूल्यों का सृजन करता है, कि सत्य अभी भी निर्माण की अवस्था में है और अपने स्वरूप का कुछ हिस्सा भविष्य के लिए छोड़ देता है कि हमारे सत्य मनुष्य निर्मित वस्तुएं है।”
(2) विलियम जेम्स के अनुसार– “प्रयोजनवाद मस्तिष्क का प्रभाव और दृष्टिकोण है। यह सत्य और विचारों की प्रकृति का सिद्धान्त है। निष्कर्षतः यह वास्तविकता का भी सिद्धान्त है।”
(3) प्रेट के अनुसार– “प्रयोजनवाद, हमें अर्थ का सिद्धान्त, सत्य का सिद्धान्त, ज्ञान का सिद्धान्त और वास्तविकता का सिद्धान्त देता है।”
Contents
प्रयोजनवाद और शिक्षा
शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोजनवादी विचारधारा को लाने का श्रेय प्रसिद्ध दार्शनिक जान डुई को है। अन्य विद्वानों ने भी शिक्षा के विभिन्न अंगों की व्याख्या प्रयोजनवाद के आधार पर की। शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों के सम्बन्ध में प्रयोजनवादी के विचार की विवेचना निम्नलिखित हैं-
प्रयोजनवाद और शिक्षा के उद्देश्य
(1) पूर्व निश्चित उद्देश्य का विरोध- प्रयोजनवाद शिक्षा का कोई पूर्व निश्चित लक्ष्य नहीं मानता ‘प्रयोजनवादी’ सत्य को परिवर्तनशील मानते हैं। और कहते हैं कि समय, काल और परिस्थिति के अनुसार सत्य में परिवर्तन होता रहता है। अतएव वे शिक्षा के पूर्व-निश्चित उद्देश्य को स्वीकार नहीं करते। प्रयोजनवादी किसी भी प्राचीन उद्देश्य, आदेश या नियम को बालकों पर लादने के पक्ष में नहीं हैं। जान डुई ने कहा है “शिक्षा का उद्देश्य नहीं होता, शिक्षा भाववाचक संज्ञा हैं उद्देश्य केवल व्यक्तियों के होते हैं और विभिन्न व्यक्तियों के उद्देश्य एक दूसरे से कुछ विभिन्न होते हैं, विभिन्न बालकों के विभिन्न उद्देश्य होते हैं। जैसे-जैसे बालक बड़े होते जाते हैं वैसे-वैसे उनके उद्देश्य भी बदलते जाते हैं।”
इस प्रकार जहाँ आदर्शवादी शिक्षा को एक निश्चित एवं पूर्व निर्धारित लक्ष्य मानते हैं वहाँ प्रयोजनवादी किसी भी पूर्व निश्चित उद्देश्य को स्वीकार नहीं करते।
(2) नवीन मूल्यों का निर्माण – प्रयोजनवादियों के अनुसार बालक को स्वयं अपने मूल्यों और आदर्शों का निर्माता होना चाहिए। इस प्रकार प्रयोजनवादी मानते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य बालकों को अपने मूल्यों और आदर्शों का निर्माण करने के योग्य बनाना होना चाहिए। रॉस ने लिखा है प्रयोजनवादी का सबसे सामान्य शैक्षिक उद्देश्य नवीन मूल्यों की रचना करना है, शिक्षक का प्रमुख कर्त्तव्य शिक्षार्थी को ऐसे वातावरण में रखना है जिसमें रहकर उसमें नवीन मूल्यों का विकास हो सके।
(3) सामाजिक व्यवस्था की उन्नति- प्रयोजनवादी, शिक्षा को मानव या समाज केन्द्रित मानते हैं। उनका मत है कि शिक्षा का उद्देश्य मानव कल्याण अर्थात् सामाजिक व्यवस्था की उन्नति करना होना चाहिए। इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए बटलर ने लिखा है शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य का अर्थ संसार का सुसंगठित वातावरण तैयार करना माना जा सकता है।
(4) सामाजिक कुशलता को वृद्धि– प्रयोजनवादी शिक्षा के सामजिक कार्यों पर भी बल देते हैं। जान डुई ने सामाजिक निपुणता को शिक्षा का उद्देश्य माना है। उसने लिखा है कि सामाजिक निपुणता का अर्थ प्रत्येक सरकार के सामाजिक सम्बन्धों में मधुरता और बहुमुखी कुशलता बनाये रखना है। इस प्रकार शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति की शक्तियों एवं क्षमताओं को इस प्रकार से विकसित होने देना है कि वह सामाजिक रूप में एक कुशल व्यक्ति हो जाय।
(5) बालक का विकास (Child’s Growth)- प्रयोजनवाद के अनुसार बालक का विकास शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। इस उद्देश्य की लोगों ने निम्नलिखित आलोचनाएँ की हैं इस विकास का न तो कोई लक्ष्य है और न कोई अन्त, सिवा इसके कि विकास का और भी अधिक विकास हो । (2) प्रयोजनवादियों ने विकास की कोई दिशा नहीं बतलाई। सम्भव है कि यह विकास गलत दिशा की ओर हो जाये।
( 6 ) गतिशील निर्देशन (Dynamic Direction )- प्रयोजनवादी शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार शिक्षा न उद्देश्य है बालकों का गतिशील अध्ययन करना। किन्तु अमेरिकी शिक्षा के इस उद्देश्य में गतिशील निर्देशन की व्याख्या के अभाव में कुछ दोष आ गये हैं। बायड बोड ने इस ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा है, “आज की अमेरिकी शिक्षा का मुख्य दोष यह है कि उसमें कार्यक्रम अथवा निर्देशन के ज्ञान का अभाव है। इसका न तो कोई उपयुक्त कार्यक्षेत्र है। और न कोई सामाजिक सिद्धान्त।”
IMPORTANT LINK
- संस्कृति का अर्थ | संस्कृति की विशेषताएँ | शिक्षा और संस्कृति में सम्बन्ध | सभ्यता और संस्कृति में अन्तर
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा शिक्षा का किस प्रकार प्रभावित किया?
- मानव अधिकार की अवधारणा के विकास | Development of the concept of human rights in Hindi
- पाठ्यक्रम का अर्थ एंव परिभाषा | Meaning and definitions of curriculum in Hindi
- वर्तमान पाठ्यक्रम के दोष | current course defects in Hindi
- मानव अधिकार क्या है? इसके प्रकार | what are human rights? its types
- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए शिक्षा के उद्देश्य | Objectives of Education for International Goodwill in Hindi
- योग और शिक्षा के सम्बन्ध | Relationship between yoga and education in Hindi
- राज्य का शिक्षा से क्या सम्बन्ध है? राज्य का नियन्त्रण शिक्षा पर होना चाहिए या नहीं
- राज्य का क्या अर्थ है? शिक्षा के क्षेत्र में राज्य के कार्य बताइये।
- विद्यालय का अर्थ, आवश्यकता एवं विद्यालय को प्रभावशाली बनाने का सुझाव
- बालक के विकास में परिवार की शिक्षा का प्रभाव
- शिक्षा के साधन के रूप में परिवार का महत्व | Importance of family as a means of education
- शिक्षा के अभिकरण की परिभाषा एवं आवश्यकता | Definition and need of agency of education in Hindi
- शिक्षा का चरित्र निर्माण का उद्देश्य | Character Formation Aim of Education in Hindi
- शिक्षा के ज्ञानात्मक उद्देश्य | पक्ष और विपक्ष में तर्क | ज्ञानात्मक उद्देश्य के विपक्ष में तर्क
- शिक्षा के जीविकोपार्जन के उद्देश्य | objectives of education in Hindi
- मध्यांक या मध्यिका (Median) की परिभाषा | अवर्गीकृत एवं वर्गीकृत आंकड़ों से मध्यांक ज्ञात करने की विधि
- बहुलांक (Mode) का अर्थ | अवर्गीकृत एवं वर्गीकृत आंकड़ों से बहुलांक ज्ञात करने की विधि
- मध्यमान, मध्यांक एवं बहुलक के गुण-दोष एवं उपयोगिता | Merits and demerits of mean, median and mode
- सहसम्बन्ध का अर्थ एवं प्रकार | सहसम्बन्ध का गुणांक एवं महत्व | सहसम्बन्ध को प्रभावित करने वाले तत्व एवं विधियाँ
- शिक्षा का अर्थ, परिभाषा एंव विशेषताएँ | Meaning, Definition and Characteristics of Education in Hindi
- शिक्षा के समाजशास्त्रीय उपागम का अर्थ एंव विशेषताएँ
- दार्शनिक उपागम का क्या तात्पर्य है? शिक्षा में इस उपागम की भूमिका
- औपचारिकेत्तर (निरौपचारिक) शिक्षा का अर्थ | निरौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ | निरौपचारिक शिक्षा के उद्देश्य
- औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा क्या है? दोनों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- शिक्षा का महत्व, आवश्यकता एवं उपयोगिता | Importance, need and utility of education
- शिक्षा के संकुचित एवं व्यापक अर्थ | narrow and broad meaning of education in Hindi
Disclaimer