विद्यालय में पुस्तकालय के उद्देश्य एवं उसके कार्य पर प्रकाश डालिये। पुस्तकालय को उपयोगी बनाने हेतु अपने सुझाव दीजिये।
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माध्यमिक विद्यालयों में पुस्तकालय की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Library in Secondary Schools)
पुस्तकालय वह स्रोत है, जहाँ से निःस्तृत होकर ज्ञानरूपी जल सांस्कृतिक क्षेत्र को अभिसंचन करता है। यह वह केन्द्र है, जहाँ प्राचीन एवं नवीन संस्कृतियों का मिलन होता है।
विद्यालयों में पुस्तकालय की आवश्यकता एवं महत्व के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के विचार निम्न प्रकार हैं –
श्री रंगनाथन के अनुसार, “विद्यालय में जो परिवर्तनशील विश्व के लिये शिक्षा देते हैं, वहाँ के पुस्तकालय भी जीवित कार्यशाला होने चाहियें।”
पी० सी० रैन के शब्दों में, “भारत के अधिकांश माध्यमिक विद्यालयों के पुस्तकालय जलाने योग्य हैं।”
ये दो विचार माध्यमिक विद्यालयों की स्थिति को व्यक्त करते हैं। कार्लाइल ने पुस्तकालय की परिभाषा करते हुये कहा है-पुस्तकों का संकलन आज के युग का वास्तविक, विद्यालय है।
विद्यालयों में पुस्तकालयों की आवश्यकता (Need of Library in Schools)
विद्यालयों में पुस्तकालयों की आवश्यकता निम्न प्रकार है:-
- विद्यार्थियों में स्वाध्याय की रुचि उत्पन्न करने के लिये।
- विद्या के क्षेत्र में प्राप्य ज्ञान का संकलन करने के लिये।
- विशेष ज्ञान प्राप्त करने के लिये।
- स्वतन्त्र चिन्तन तथा मनन की शिक्षा देने के लिये।
- उत्तम एवं प्रशिक्षित नागरिक तैयार करने के लिये।
- मौन अभ्यास पर जोर देने के लिये।
- निर्धन छात्रों को पुस्तकीय सहायता करने के लिये।
- सामूहिक अध्ययन के दोष को दूर करने के लिये।
- अवकाश के समय का उपयोग करने के लिये।
विद्यालय में पुस्तकालय का महत्व (Importance of Library in School)
पुस्तकालय में छात्रों को अध्ययन की प्रेरणा मिलती है। छात्र स्वतन्त्र रूप से अधिक से अधिक ज्ञानार्जन करने की क्षमता का विकास करते हैं। पुस्तकालय वह क्षेत्र है, जहाँ आत्मानुशासन और उत्तरदायित्व के भावों का अंकुरण होता है। वर्तमान परिस्थितियों और समस्याओं का वास्तविक ज्ञान होता है। विश्व में होने वाले परिवर्तनों में अपने विचारों द्वारा सहगामी बनने तथा बनाने हेतु पुस्तकालय कार्यशाला (Workshop) की भूमिका भी निभाता है। पुस्तकालय द्वारा छात्रों और अध्यापकों को अध्ययन की प्रेरणा मिलती है, उनके ज्ञान का विस्तार होता है, उनके आदर्शों का निर्माण होता है। आत्म-शिक्षा के लिए सच्चा स्थान पुस्तकालय ही है।
एक प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री ने अपने विचारों को इस प्रकार व्यक्त किया है, “A room without book is body without soul.” जबकि विद्यालय तो एक ऐसी संस्था है, जहाँ हजारों छात्र अध्ययन हेतु आते हैं। अतः विद्यालय में पुस्तकालय के महत्व को स्वतः ही कल्पना की जा सकती है।
विद्यालय में पुस्तकालय की स्थापना का उद्देश्य और उसके कार्य (Objectives and Functions of Establishment of a School Library)
विद्यालय में पुस्तकालय की स्थापना के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:-
- पाठ्यक्रम और छात्रों की आवश्यकता के अनुसार पुस्तकों तथा पत्र-पत्रिकाओं का संकलन और उनका उपयोगी ढंग से व्यवस्थापन ।
- छात्रों को उनकी आवश्यकता और रुचि के अनुसार पुस्तकों के चयन में सहायता करना।
- छात्रों में बहुमुखी अध्ययन की रुचियों का विकास करना।
- छात्रों में व्यक्तिगत शोध की आदत डालना तथा उनमें पुस्तकों के उचित रूप में उपयोग करने के कौशल का विकास करना।
- छात्रों में कलात्मक अनुभूति तथा रसानुभूति की क्षमता का विकास करना ।
- सामाजिक प्रवृत्तियों का विकास करना तथा सामाजिक एवं जनतान्त्रिक जीवन की अनुभूति प्रदान करना।
- पुस्तकालय के माध्यम से आजीवन शिक्षार्थी बने रहने की प्रेरणा देना।
श्री एल० एफ० फार्गो (L. . Fargo) ने पुस्तकालय के निम्नलिखित कार्यों का वर्णन किया है:-
1. सामग्री का संकलन एवं संचय- पुस्तकालय के अन्तर्गत आधुनिकतम शैक्षिक सामग्री का संकलन होता है।
2. पाठ्य सामग्री प्रदान करना- पुस्तकालय का कार्य संग्रह ही नहीं है, बल्कि प्रत्येक छात्र को वह सामग्री प्राप्त भी होनी चाहिये। व्यवस्थित रूप से स्वतन्त्रतापूर्वक अध्ययन-योग्य सामग्री की प्राप्ति शिक्षण के समान ही प्रभावकारी है।
3. पढ़ने की आदत डालना- पुस्तकालय में नियमित रूप से बैठने और पुस्तकों के पलटते रहने से धीरे-धीरे अध्ययन में की आदत पड़ जाती है।
4. अध्ययनोपयोगी वातावरण का निर्माण-पुस्तकालय में प्रकाश, वायु, सज्जा आदि की उपयुक्त व्यवस्था रहती है तथा अध्ययन के लिये अनुकूल शान्त वातावरण का निर्माण किया जाता है।
5. निर्धन छात्रों को सहायता-जो छात्र पुस्तकें खरीदने में असमर्थ रहते हैं, उन्हें अध्ययन के लिए पूरी सामग्री मिलती है।
6. प्रयोगशाला की व्यवस्था प्रदान करना-पुस्तकालय ऐसा स्थान है, जहाँ अध्ययन और प्रयोग के लिये सारी सामग्री उपलब्ध होती है। यहाँ पर प्रत्येक पढ़ने वाले को स्वाध्याय और शांत चिन्तन द्वारा अपने ज्ञान के प्रयोग का पूरा अवसर प्रदान किया जाता है।
7. प्रसार कार्य-अनेक संस्थायें विद्यालय के पुस्तकालय से सम्बद्ध होकर उन पुस्तकों के परिवर्तन द्वारा लाभान्वित होती हैं।
अमेरिका की पुस्तकालय परिषद् ने विद्यालयों के कार्यों का विवरण इस प्रकार दिया है:-
- अध्यापक, बालक तथा उनके माता-पिता एवं अभिभावकों की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने में सहयोग देना।
- छात्र-छात्राओं को ऐसी उपयोगी एवं सर्वोत्तम पुस्तकालय सम्बन्धी सेवायें प्रदान करना जो कि उनके विकास में सहायता दें।
- छात्रों को अध्ययन में आनन्द एवं सन्तोष प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहन देना।
- छात्रों में दृश्य एवं श्रव्य साधनों को प्रयोग करने की क्षमता उत्पन्न करना।
- छात्रों के लिये उपयोगी पुस्तकों के चयन और अन्य सामग्री को एकत्र करने की भावना उत्पन्न करना।
उपरोक्त कथन से स्पष्ट है कि, “पुस्तकालय का अध्यापक के बाद दूसरा स्थान है।” यह कथन भी सत्य है कि “पुस्तकालय विद्यालय की आत्मा है। “
पुस्तकालय को उपयोगी बनाने के लिये सुझाव (Suggestions for Making a Library More Useful)
पुस्तकालय को अधिक उपयोगी बनाने के लिये निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है
1. पुस्तकालय की स्थिति- विद्यालय में पुस्तकालय ऐसे स्थान पर हों जहाँ शोरगुल न हो।
माध्यमिक शिक्षा आयोग का कथन है- “विद्यालय में पुस्तकालय आकर्षक स्थल पर होना चाहिये, इससे विद्यालय के छात्र उसमें आयेंगे। यह खुली जगह में होना चाहिये, इसमें प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिये, दीवारों पर सुहावने रंग तथा आकर्षक सज्जा होनी चाहिये।”
(The library must be made in the most attractive place in the school so that student may be naturally drawn to it. It should be housed in a spacious, well in hall (or room) with the walls, suitable coloured and the rooms decorated with flowers and artistically framed pictures and paints of famour paintings.)
अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसियेशन का कहना है-“विद्यालय के नए भवन की योजना बनाने में इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि भावी विकास सरलता से हो सके। (i) उसमें विद्यालय में परिवर्तन की सम्भावना हो;(ii) नियोजन के अनुसार उसका उपयोग किया जा सके।”
(It is essential in planning a new building to provide quarters that are (i) large enough to serve the needs of the school and to alter expenses as a programme develops and the schools grow; (ii) conveniently located with respect to planned use.)
2. पुस्तकालय की पाठ्य-सामग्री- पुस्तकालयों में निम्न पुस्तकें अवश्य हों—(i) शब्द कोष, (ii) संदर्भ ग्रंथ, (iii) धार्मिक पुस्तकें, (iv) मनोरंजनात्मक पुस्तकें, (v) पाठ्य-पुस्तकें, (vi) प्राचीन लेखकों की पुस्तकें, (vii) विभिन्न पत्र-पत्रिकायें।
3. पुस्तकों का चुनाव-पुस्तकों के चुनाव के सम्बन्ध में माध्यमिक शिक्षा आयोग का कथन है— पुस्तकालय की सफलता पुस्तकों के चयन, पत्र-पत्रिकाओं आदि पर निर्भर है। (The success of the library depends largely on the proper selection of books, journals and periodicals.)
पुस्तकालय में रुचिकर, विचारशील, सरल तथा सुबोध एवं छात्रों के हित को ध्यान में रखकर पुस्तकें संकलित की जायें।
4. प्रशिक्षित पुस्तकालयाध्यक्ष – प्रायः माध्यमिक विद्यालयों में एक अध्यापक को पुस्तकालय का भार सौंप दिया जाता है। यह अनुचित है। पुस्तकालय के लिये प्रशिक्षित व्यक्ति रखना चाहिये।
5. पुस्तकों का उपयोग- पुस्तकालय में पुस्तक लेने तथा देने का समय निश्चित हो। अलग-अलग कक्षाओं के लिये दिन एवं कालांश नियत किये जा सकते हैं। पुस्तकें देर से लौटाने एवं गन्दी करने पर दण्ड अवश्य दिया जाये।
6. कक्षा पुस्तकालय – प्रत्येक कक्षा को कुछ पुस्तकें देकर उनमें भी कक्षा पुस्तकालय बनाने को प्रेरणा देनी चाहिये। मुदालियर कमीशन के अनुसार-“कक्षा पुस्तकालय केन्द्रीय पुस्तकालय से समायोजित होना चाहिये।” (The class library is an important and essential adjustment to the central library.)
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