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शांति शिक्षा से आप क्या समझते हैं ? शांति शिक्षा के उद्देश्य एवं शांति स्थापना के उपाय

शांति शिक्षा से आप क्या समझते हैं ? शांति शिक्षा के उद्देश्य एवं शांति स्थापना के उपाय
शांति शिक्षा से आप क्या समझते हैं ? शांति शिक्षा के उद्देश्य एवं शांति स्थापना के उपाय

शांति शिक्षा से आप क्या समझते हैं ? शांति शिक्षा के उद्देश्य एवं शांति स्थापना के उपायों का वर्णन कीजिए।

शान्ति शिक्षा का अर्थ (Meaning of Peace Education)

शान्ति- शिक्षा वह है, जो मानव की मौलिक आवश्यकताओं तथा समाज की यथार्थ प्रकृति या स्वरूप का अध्ययन करता है, जिसमें इन आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। यह शिक्षा या विज्ञान लोगों को मानव अधिकारों के विषय में जागरूक बनाता है। शान्ति शिक्षा वह शिक्षा है, जो शोषित, अहिंसक तथा न्यायप्रिय समाज का निर्माण करती है।

(1) डॉ. मर्सी अब्राहम के अनुसार- “शान्ति-शिक्षा शान्तिप्रिय लोगों के लिए शिक्षा है, जो इस पृथ्वी पर शान्ति कायम करने के योग्य होंगे।यह विशेषतः भावात्मक शिक्षा है। यह धार्मिक शिक्षा है। साथ ही यह स्वयं में शिक्षा है।”

(2) के. एस. बासवराज के अनुसार- “शान्ति शिक्षा एक कार्यक्रम एवं प्रक्रिया है, जिससे लोगों (नवयुवक तथा प्रौढ़ों) में शान्ति के मूल्य की सराहना तथा समझदारी की भावना का विकास किया जाता है। यह वह तैयारी है जिससे सामुदायिक जीवन को न्यायप्रिय, व्यवस्थित तथा सामंजस्यपूर्ण बनाया जाता है।”

शान्ति-शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Peace Education)

डॉ. पी. वी. नायर ने शान्ति-शिक्षा के निम्नलिखित तीन उद्देश्यों पर बल दिया है-

  1. छात्रों में उदार मस्तिष्क, विवेकपूर्ण चिन्तन तथा विश्वव्यापी ज्ञान की खोज के लिए रुचि विकसित करना।
  2. छात्रों को धार्मिक सहिष्णुता, अन्य प्रजातियों का आदर तथा धार्मिक एवं नैतिक मूल्यों को आदर की दृष्टि से देखने के योग्य बनाना।
  3. छात्रों में सह-अस्तित्व की भावना का विकास करना।

प्रो. के. एस. बासवराज ने शान्ति शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्यों पर बल दिया है-

  1. नवयुवकों में शान्ति के आध्यात्मिक मूल्य को विकसित करना, जिससे उनमें आन्तरिक शान्ति या मन की शान्ति प्राप्त हो सके।
  2. शान्तिप्रिय मानव के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना।
  3. मानव-जीवन में शान्ति के मूल्य को समझने तथा उसकी सराहना करने के लिए छात्रों को तत्पर बनाना।
  4. बच्चों में उपयुक्त एवं अनुपयुक्त, न्याय एवं अन्याय के विषय में जागरूकता विकसित करना ।
  5. छात्रों में अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना तथा भ्रातृत्व का विकास करना।
  6. युद्ध, हिंसा, संघर्ष आदि के परिणामों से अवगत कराना, जिससे वे उनसे बचने के लिए कदम उठाने में समर्थ हो सकें।
  7. छात्रों को परिवार, देश तथा विश्व में शान्ति कायम रखने में उनकी भूमिका के प्रति जागरूक बनाना।

शान्ति-शिक्षा पाठ्यक्रम (Curriculum of Peace Education)

प्रो. के. एम. साइमन ने विद्यालय के विभिन्न स्तरों के लिए शान्ति-शिक्षा के पाठ्यक्रम को इस प्रकार निर्धारित किया है-

प्राथमिक स्तर
  1. जीवन के नैतिक मूल्यों से सम्बन्धित कहानियाँ, कविताएँ तथा नाटक।
  2. विभिन्न धर्मों, क्षेत्रों तथा संस्कृतियों से सम्बन्धित कहानियाँ ।
जूनियर स्तर
  1. महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू, विनोबा भावे, अब्राहम लिंकन, मार्टिन लूथर किंग, कार्ल मार्क्स, नेल्सन मण्डेला, मदर टेरेसा, जीसस क्राइस्ट, गौतम बुद्ध की जीवनियाँ तथा शान्ति स्थापना में उनके कार्य ।
  2. ईसाई धर्म, हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म तथा बुद्ध धर्म की विश्वशान्ति की स्थापना में भूमिका।
हाईस्कूल स्तर
  1. शान्ति की अवधारणा।
  2. शान्ति की आवश्यकता एवं महत्त्व
  3. परिवार, समाज तथा विश्व में शान्ति कायम करने के साधन ।
  4. संयुक्त राष्ट्रसंघ, यूनेस्को, रेडकास, स्काउट एवं गाइड आन्दोलन अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियाँ विश्व शान्ति में विभिन्न दर्शनों की भूमिका।
  5. युद्ध एवं हिंसा के कारण एवं उनके परिणामों की समालोचना।

शांति स्थापना के उपाय (Measures to Establishment of Peace)

शांति स्थापना के लिए समान्यता वे सब उपाय काम में लाये जाते हैं जिनसे अन्तर्राष्ट्रीय तनाव दूर होते हैं। Psychological Bulletin में प्रकाशित आलपोर्ट के प्रसिद्ध निबन्ध “Human Nature and Peace” में अमेरिकन समाचार पत्रों में दस सिद्धान्तों के एक वक्तव्य का उल्लेख किया गया है जिसमें द्वितीय महायुद्ध के समय दो हजार से अधिक अमेरिकन मनोवैज्ञानिकों ने हस्ताक्षर किये थे। इस वक्तव्य के सिद्धान्तों का सारांश निम्नलिखित है-

(1) युद्ध अनिवार्य नहीं है- युद्ध से बचा जा सकता है क्योंकि वह जन्मजात नहीं होता। कोई भी प्रजाति, राष्ट्र या सामाजिक समूह अनिवार्य रूप से युद्ध-प्रेमी नहीं होता। युद्धों के मूल में कुछ हताशायें और स्वार्थों के संघर्ष होते हैं। शिक्षा और सामाजिक दशाओं के सुधार से युद्ध के कारणों को दूर किया जा सकता है।

(2) शान्ति की योजना में भावी पीढ़ी का महत्त्व- शान्ति की योजना भावी पीढ़ी पर आधारित होनी चाहिए क्योंकि उसका स्वभाव नमनीय होता है। बालक सरलता से एकता के सिद्धान्तों को समझ सकते हैं और ऐसा व्यवहार अपना सकते हैं जिसमें साम्राज्यवाद, पक्षपात, असुरक्षा और अज्ञानता के दुर्गुण कम-से-कम हों।

(3) घृणा और पक्षपात पर नियन्त्रण- शिक्षा और अनुभवों के द्वारा मनुष्यों के राष्ट्रीय और सामूहिक पूर्वाग्रहों और घृणा को नियन्त्रित किया जा सकता है। मनुष्य यह जान सकते हैं कि सभी प्रजातियों, राष्ट्रों और समूहों के सदस्य एक से होते हैं और उनमें एक-सी ही आशायें, आकांक्षायें और आवश्यकताएँ भी होती हैं। इस बात को जानने से लोगों में पूर्वाग्रह दूर हो सकते हैं।

(4) समानता का प्रचार- युद्ध को रोकने और स्थायी शान्ति की स्थापना के लिए हर प्रकार का भेदभाव दूर किया जाना चाहिए। धर्म, प्रजाति, राष्ट्र अथवा किसी भी अन्य भेद पर आधारित पृथक्करण की नीति से तनाव बढ़ते हैं।

(5) स्वशासन में अनावश्यक हस्तक्षेप का प्रभाव- शान्ति के लिये यह आवश्यक है। कि विभिन्न राष्ट्र के लोगों को स्वशासन का अधिकार दिया जाये और साथ ही उसमें अन्य देशों की ओर से कम हस्तक्षेप हो। ऐसा न होने पर जनता के अन्दर – अन्दर विद्रोह की आग सुलगती रहती है जो स्थायी शान्ति के लिये भारी खतरा है।

(6) उचित दण्ड और पुरस्कार- युद्ध में हारे हुए और युद्ध में जीते हुए व्यक्तियों को दण्ड और पुरस्कार देने में बड़ी बुद्धिमत्ता से काम लेने की जरूरत है जिससे केवल दोषी व्यक्तियों को ही दण्ड मिले और निर्दोष व्यक्ति के साथ सख्ती न हो।

(7) आत्म-सम्मान बनाए रखते हुए पुनर्वास- युद्ध के दोषी राष्ट्र अथवा समूहों के समर्पण करने के बाद उनका पुनर्वास किया जाना चाहिए और उनके आत्म-सम्मान को चोट नहीं लगनी चाहिए। आत्म-सम्मान को चोट लगने पर भी कभी-न-कभी उनके विद्रोह का खतरा उपस्थित हो जाता है। आत्म-सम्मान से आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास उत्पन्न होता है, जो सहयोग के लिये बड़े आवश्यक हैं। कोई भी सहायता भीख या घूस के रूप में नहीं दी जानी चाहिए और न किसी प्रकार से आत्म-सम्मान को चोट पहुँचनी चाहिए।

(8) साधारण व्यक्ति का ध्यान और सम्मान- स्थायी शान्ति जनता पर आधारित है, इसलिए उसकी योजना में सर्वसाधारण लोगों की इच्छाओं को सन्तुष्ट करने का ध्यान रखना जरूरी है।

(9) सामूहिक सुरक्षा के लिए बड़ी-बड़ी इकाइयाँ- मानव सम्बन्धों का दायरा जितना ही अधिक विस्तृत होगा विश्व शान्ति उतनी ही अधिक स्थायी हो सकती है। यदि राष्ट्रों की सीमाओं के ऊपर क्षेत्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय सरकारों की स्थापना हो सके तो इससे सामूहिक सुरक्षा अधिक सम्भव हो सकेगी।

(10) वायदों की सच्चाई – युद्ध के बाद की प्रतिक्रियाओं को सही दिश में मोड़ने के – लिये यह आवश्यक है कि युद्ध के दिनों में जो वायदे किए जायें उन पर बाद में अमल किया जाये। यदि ऐसा नहीं होता तो अविश्वास बढ़ता है और फिर से युद्ध छिड़ने की सम्भावना उत्पन्न हो जाती है।

विश्व शांति के लिए अन्य सुझाव (Other Suggestion for World Peace)

स्थायी शान्ति स्थापित करने के लिये उपरोक्त सुझावों के अलावा इस सम्बन्ध में कुछ अन्य बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है। ये बातें निम्नलिखित हैं-

(1) शान्ति की शिक्षा- जिस तरह मनुष्य युद्ध करना सीखता है उसी तरह वह शान्ति से रहना भी सीख सकता है। इसके लिए जनता को, विशेषतया नई पीढ़ी के युवक-युवतियों को शान्ति की शिक्षा देनी होगी जिससे कि वे अपने को विश्व का नागरिक समझें और अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में कार्य करें।

(2) अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का विकास- युद्ध के मूल में उपस्थित पूर्वाग्रहों, रूढ़ियुक्तियों आदि को दूर करने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अधिक-से-अधिक विकास किया जाना चाहिए। इसके लिये प्रत्येक क्षेत्र में अधिक-से-अधिक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में कार्य करें।

(3) सामाजिक और आर्थिक कल्याण- संसार में युद्ध को स्थायी रूप से हटाने के लिये यह जरूरी है कि दुनिया में कहीं भी सामाजिक और आर्थिक विषमताएँ, गरीबी, असुरक्षा, हताशायें आदि न रहे। संसार के हर राष्ट्र में लोगों का सामाजिक और आर्थिक कल्याण किया जाना चाहिए।

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Anjali Yadav

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