हिन्दी दृश्य-श्रव्य सामग्री की उपादेयता पर प्रकाश डालिए। अथवा हिन्दी-शिक्षण में दृश्य-श्रव्य उपकरणों का क्या महत्त्व है ? इनके प्रयोग में शिक्षक-समुदाय द्वारा कौन-कौन सी सावधानियाँ बरती जानी चाहिए ?
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श्रव्य-दृश्य उपकरणों का शैक्षिक महत्त्व
श्रव्य-दृश्य उपकरणों के शैक्षिक महत्त्व को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-
(1) स्पष्ट प्रत्यय निर्माण- जब हम किसी तथ्य को देखते हैं और उसके बारे में सुनते हैं तो उसका स्पष्ट प्रतिबिम्ब हमारे मस्तिष्क में बन जाता है और इन ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान से स्पष्ट एवं स्वाभाविक प्रत्यय निर्माण होता है।
(2) उत्प्रेरणा- शैक्षिक तकनीकी के श्रव्य-दृश्य उपकरणों के माध्यम से किया गया शिक्षण शिक्षार्थी को अधिगम हेतु उत्प्रेरित करता है। शिक्षार्थियों की पाठ्यवस्तु के प्रति रुचि जाग्रत होती है और उनका उत्साह बढ़ जाता है। उन्हें दुरुह विषयवस्तु को समझने में आसानी होती है। इस तरह श्रव्य-दृश्य उपकरण शिक्षार्थी में शिक्षण और अधिगम के हेतु अन्तःप्रेरणा का संचार करते हैं।
(3) पाठ्यवस्तु में रोचकता और विविधता का समावेश- किसी विषयवस्तु को श्रव्य-दृश्य उपकरणों की सहायता से स्पष्ट किया जाता है तो पाठ्यवस्तु – जब शिक्षक द्वारा में विविधता और रोचकता आ जाती है तथा छात्रों की बोधगम्यता में वृद्धि होती है। छात्र विषयवस्तु को आत्मसात् करने में सफल हो जाते हैं।
(4) स्वाभाविक वातावरण के निर्माण में सहायक – शिक्षण में श्रव्य-दृश्य उपकरणों के प्रयोग से कक्षा में एक जीवन्त वातावरण तैयार हो जाता है। यह वातावरण स्वाभाविक होता है जिसमें बच्चे आसानी से सीखते हैं और उनका भ्रम दूर हो जाता
(5) मौखिक अनुदेशन को सीमित करते हैं- शिक्षक कक्षा शिक्षण के दौरान प्रायः मौखिक अनुदेशन ही देते हैं जो छात्रों को नीरस एवं व्यर्थ लगते हैं। शिक्षण में सहायक श्रव्य दृश्य साधन शिक्षक के मौखिक अनुदेशन को सीमित करते हैं। श्रव्य-दृश्य उपकरणों के प्रयोग में शिक्षक निर्देशन मात्र देता है और छात्रों को स्वयं देख-सुनकर सीखने का अवसर प्रदान करता है। इसके फलस्वरूप छात्रों की ज्ञानात्मक, भावनात्मक और श्रवणेन्द्रियाँ एक साथ क्रियाशील हो जाती हैं और वे जो ज्ञान प्राप्त करते हैं वह स्थायी होता है।
(6) कल्पना को साकार करना सम्भव – परम्परागत शिक्षण प्रणाली को अपनाने से अनुभव एवं कल्पना को साकार रूप देना सम्भव नहीं होता किन्तु शिक्षा में यांत्रिकी के प्रयोग और इन उपकरणों की सहायता से उन शैक्षिक तथ्यों जिनकी हम कल्पना मात्र कर सकते हैं, को साकार रूप दिया जाता है। संसार में ऐसे अनेक पदार्थ एवं घटनाएँ हैं जिनका हम प्रत्यक्ष अनुभव नहीं कर सकते। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर उसे देखना सभी के लिए सम्भव नहीं है किन्तु वह दूरदर्शन पर छात्रों को स्पष्ट रूप से दिखाया जा सकता । शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से छात्र दूर-दराज में रहने वाले किसी विद्वान के विचारों को सुन सकते हैं और उसे देख सकते हैं कम्प्यूटर की सहायता से उसकी याद सुरक्षित रख सकते हैं। कुछ समय पूर्व जो बात काल्पनिक लगती थी वे अब प्रत्यक्ष अनुभव में आ रही हैं।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह स्पष्ट है कि शिक्षण में सहायक तकनीकी उपागम कक्षा शिक्षणको सुरुचिपूर्ण बनाने में सहायक होते हैं। इनके प्रयोग से विषयवस्तु के प्रति छात्रों की रुचि बढ़ती है और उनकी बोधगम्यता का विकास होता है, उनके अधिगम-शक्ति का विकास होता और उनमें उत्प्रेरणा जाग्रत होती है। दुरूह एवं नीरस विषयों का भी शिक्षण सहज एवं स्वाभाविक हो जाता है। श्रव्य-दृश्य उपकरणों का समुचित प्रयोग करके शिक्षक छात्रों की सभी इन्द्रियों को एक साथ सक्रिय करने में सफल हो जाता है और इस तरह पाठ आसानी से समझ में आ जाता है। आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति के फलस्वरूप शिक्षण में इन उपकरणों का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
दृश्य-श्रव्य साधनों के प्रयोग में सावधानियाँ
श्रव्य-दृश्य सामग्री के प्रयोग के कुछ निश्चित नियम हैं जिनमें से प्रमुख का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है-
- कुशल एवं प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा ही इस प्रकार के उपकरणों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- विषयवस्तु के अनुरूप श्रव्य-दृश्य उपकरणों का प्रयोग होना चाहिए।
- शिक्षण उपकरणों का प्रयोग करने के पूर्व ही छात्रों को उनके कार्यक्रमों के सम्बन्ध में सूचना दे दी जानी चाहिए।
- विभिन्न उपागमों के द्वारा जिस विषयवस्तु प्रदर्शित करना है, सम्बन्धित शिक्षक को समुचित रूप से तैयार रहना चाहिए।
- श्रव्य-दृश्य उपकरणों का प्रयोग साधन के रूप में किया जाना चाहिए साध्य के रूप में नहीं।
- इन साधनों के प्रयोग से निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति होनी चाहिए।
- जब कक्षा में कार्यक्रम प्रदर्शित किया जा रहा हो तो छात्रों को उसके प्रमुख बिन्दुओं को लिखते रहना चाहिए।
- श्रव्य दृश्य साधनों के प्रयोग के परिणामों का मूल्यांकन भी समय-समय पर किया जाना चाहिए।
- कार्यक्रम के अन्त में शिक्षक को कार्यक्रम के सम्बन्ध में अपनी टिप्पणी देनी चाहिए और अन्त में छात्रों की शंकाओं का समाधान करना चाहिए।
- प्रदर्शित कार्यक्रम पर प्रत्येक छात्र द्वारा एक विवरण-पत्र तैयार किया जाना चाहिए।
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