B.Ed Notes

अधिगमकर्त्ता या सीखने वालों की व्यावहारिक समस्याएँ | Behavioural Problems of Learners in Hindi

अधिगमकर्त्ता या सीखने वालों की व्यावहारिक समस्याएँ | Behavioural Problems of Learners in Hindi
अधिगमकर्त्ता या सीखने वालों की व्यावहारिक समस्याएँ | Behavioural Problems of Learners in Hindi

सीखने वालों की व्यावहारिक समस्याओं का वर्णन कीजिए। 

अधिगमकर्त्ता या सीखने वालों की व्यावहारिक समस्याएँ (Behavioural Problems of Learners)

सीखने वालों की व्यावहारिक समस्याओं को निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत समझ सकते हैं-

1. प्रेरणा- सीखने की प्रक्रिया पर सर्वाधिक प्रभाव प्रेरणा का पड़ता है। शिक्षण अथवा सीखने की प्रक्रिया को सुदृढ़ अथवा निर्बल बनाने में प्रेरणा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिक्षण की प्रक्रिया पर प्रेरणा का प्रभाव ज्ञात करने के लिए अनेक मनोवैज्ञानिकों ने भूख, प्यास, प्रशंसा, निन्दा, पुरस्कार, दण्ड एवं प्रतियोगिता आदि प्रेरणाओं के पड़ने वाले प्रभाव का परीक्षणात्मक रूप से अध्ययन किया। इस अध्ययन से यह ज्ञात हुआ कि इन प्रेरणाओं के परिणामस्वरूप प्रयोज्यों में सीखने की प्रक्रिया तीव्रता एवं दृढ़ता से हुई और इन प्रेरणाओं के न होने पर प्रयोज्यों में सीखने की बिल्कुल रुचि नहीं थी।

2. विषय-सामग्री का स्वरूप- सीखने वाली विषय-सामग्री का स्वरूप भी सीखने की प्रक्रिया पर अत्यधिक प्रभाव डालता है। यदि सीखने वाली विषय-सामग्री का स्वरूप जटिल होता है तो सीखने की प्रक्रिया में कठिनाई होती है। थार्नडाइक ने अपने प्रयोज्यों के लिए जो विषय-सामग्री सीखने के लिए रखी थी, उससे सीखने के लिए उन्हें अत्यधिक प्रयत्न करने पड़े थे, जिससे वे विषय-सामग्री का देर से अधिगम कर पाते थे। अर्थरहित विषय-सामग्री की अपेक्षा अर्थपूर्ण विषय सामग्री को अधिगम करने में सरलता होती है। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि सीखने की प्रक्रिया पर अधिगम की जाने वाली विषय-सामग्री का प्रभाव पड़ता है।

3. सीखने की इच्छा- सीखने के अन्तर्गत व्यक्ति की इच्छा का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। यदि व्यक्ति में सीखने की इच्छा होती है तो व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सीख लेता है, जिस व्यक्ति में कोई बात सीखने की इच्छा नहीं होती उसे किसी भी तरह सिखाया नहीं जा सकता। एक मनोवैज्ञानिक ने ठीक ही कहा है, “घोड़े को पानी के तालाब तक तो ले जाया जा सकता है, परन्तु उसकी इच्छा के विरुद्ध पानी नहीं पिलाया जा सकता।” अतएव शिक्षक का यह दायित्व हो जाता है कि वह छात्रों की रुचि और जिज्ञासा को जागृत करे और उनकी इच्छाशक्ति को दृढ़ करे ।

4. बुद्धि- सीखने की प्रक्रिया पर बुद्धि अथवा बुद्धि-लब्धि का अधिक प्रभाव पड़ता है। बुद्धिमान व्यक्ति किसी भी विषय अथवा विचार का शीघ्र ही अधिगम कर लेता है। यह इसलिए होता है कि बुद्धिमान व्यक्तियों को विषय-सामग्री के तथ्य तथा पारस्परिक सम्बन्ध शीघ्र ही समझ में आ जाते हैं। परिणामस्वरूप उन्हें अधिगम करने अर्थात् सीखने में सरलता एवं सुविधा रहती है। इसके विपरीत जिन व्यक्तियों में कम बुद्धि-लब्धि होती है उन्हें कभी-कभी सरल विषय-सामग्री का अधिगम करने अर्थात् सीखने में अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

5. स्वास्थ्य- सीखने की प्रक्रिया पर स्वास्थ्य का भी प्रभाव व्यापक रूप से पड़ता है। यहाँ स्वास्थ्य का अभिप्राय शारीरिक तथा मानसिक, दोनों प्रकार के स्वास्थ्य से है। क्योंकि किसी चीज को सीखने के लिए उसकी माँसपेशियों पर बल पड़ता है। जब शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है और मानसिक स्वास्थ्य ठीक है तो उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ उचित रूप से कार्य करेंगी और उसे सीखने में सहायता प्राप्त होगी। यदि दोनों स्वास्थ्यों में से कोई एक भी ठीक न हुआ तो कोई भी व्यक्ति सीखने में अधिक शीघ्रता से थक जायेगा और उसकी रुचि कम या समाप्त हो जायेगी। कुछ मनोवैज्ञानिकों का यह विचार है कि तीव्र बुद्धि के बालक कम बुद्धि के बालकों से कम सीख पाते हैं क्योंकि शिक्षण औसत दर्जे से प्रदान किया जाता है। अतः तीव्र बुद्धि के बालकों को हतोत्साहित होना पड़ता है। ऐसा बालक अध्ययन में विशेष रुचि नहीं लेता, इसलिए यह आवश्यक है कि कक्षा का वर्गीकरण मनोवैज्ञानिक ढंग से किया जाय।

6. परिपक्वता – परिपक्वता भी सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है। इसके परिणामस्वरूप एक छोटे बालक की अपेक्षा एक प्रौढ़ व्यक्ति किसी विषय सामग्री का अच्छी तरह एवं शीघ्र अधिगम कर लेता है। इसलिए सीखने की प्रक्रिया और परिपक्वता का गहन सम्बन्ध है।

7. योग्यता अथवा क्षमता- प्रत्येक व्यक्ति में सीखने की क्षमता भिन्न होती है। जब हम छात्रों का वर्गीकरण मन्द बुद्धि, सामान्य बुद्धि अथवा प्रतिभाशाली में करते हैं तो यह वर्गीकरण उनके सीखने की योग्यता अथवा क्षमता के अनुसार किया जाता है।

8. प्रयोजन का लक्ष्य- बालक का व्यवहार जब प्रेरणा द्वारा प्रकट होता है तो उसके पीछे कोई लक्ष्य अथवा उद्देश्य होता है। उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु वह प्रयोजनपूर्ण कार्य करता है। जैसे भूख एक प्रेरणा है तथा खाना मिलना अथवा खाना उद्देश्य है।

9. सीखने का स्थानान्तरण- सामान्य रूप से यह मान्यता है कि एक स्थिति में सीखी बातें दूसरी स्थिति में सहायक होती हैं। दूसरे शब्दों में एक स्थिति में अर्जित ज्ञान दूसरी स्थति में सहायक होता है अतएव शिक्षक को अर्जित ज्ञान का प्रयोग करने के हेतु विभिन्न अवसर अथवा परिस्थितियाँ प्रदान करनी चाहिए।

10. वातावरण- सीखने की प्रक्रिया अधिकाँश रूप में अनुकूल वातावरण पर निर्भर करती है। प्रतिकूल परिस्थितियों में सीखने का कार्य सफलतापूर्वक नहीं हो सकता। कक्षा का मनोवैज्ञानिक वातावरण सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। मॉण्टेसरी का विचार है कि सीखने के हेतु मनोवैज्ञानिक क्षण (Psychological Moment) उत्पन्न करना शिक्षक के हेतु अत्यन्त आवश्यक है। अध्ययन का स्थान स्वच्छ वायु और प्रकाशयुक्त होना चाहिए जिससे कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहे। अध्ययन का स्थान चाहे वह घर हो अथवा विद्यालय, उसका वातावरण शान्तिपूर्ण होना चाहिए। एकान्त, शान्त वातावरण में ही पढ़ने की ओर ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है। कक्षा में विषय की ओर ध्यान आकर्षित कराने के हेतु तीव्र उद्दीपनों का प्रयोग करना चाहिए, जैसे- सहायक सामग्री, उपयुक्त उदाहरण आदि। कक्षा का वातावरण सरस, रोचक एवं जिज्ञासापूर्ण होना चाहिए। इस तरह उपयुक्त वातावरण में सीखने की उन्नति होती है।

11. सीखने की विधियाँ- सीखने की प्रगति विशेष रूप से सीखने की विधियों पर निर्भर करती है। सीखने की विधि बालकों की अवस्था के अनुकूल कितनी रुचिकर और उपयुक्त होगी, सीखना उतना ही सरल होगा। इस दृष्टि से ही प्रारम्भिक कक्षाओं में “खेल विधि” और “करके सीखने की विधि” अथवा “क्रिया विधि” का प्रयोग किया जाता है। उच्च कक्षाओं में “सामूहिक”, “सह-सम्बन्ध, “व्याख्यान” एवं अन्यविधियों का प्रयोग किया जाता है। इन विधियों का उल्लेख हमने पहले ही किया है।

12. अभ्यास- सीखने की प्रक्रिया पर अभ्यास का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। अभ्यास के द्वारा, अर्थात् किसी कार्य को बार-बार करने से कार्य करने की गति में क्रमशः वृद्धि (उन्नति) होती जाती है। प्रत्येक प्रयास के पश्चात् त्रुटियों की संख्या में कमी होती जाती है, कार्य की गति में वृद्धि होती है एवं कार्य करने के समय की मात्रा में कमी होती जाती है इस प्रकार सीखने की प्रक्रिया पर अभ्यास का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।

13. शिक्षक और सीखने की प्रक्रिया- सीखने की प्रक्रिया के अन्तर्गत शिक्षक का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। शिक्षा की द्विमुखी प्रक्रिया में शिक्षक के आचार-विचार, व्यवहार व्यक्तित्व, ज्ञान, शिक्षण विधि का शिक्षार्थी की सीखने की प्रक्रिया पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। मॉण्टेसरी, फ्रोबेल और अन्य शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षक को एक पथ-प्रदर्शक, माली एवं कलाकार की संज्ञा दी है। शिक्षक अपनी योग्यता और विभिन्न साधनों द्वारा बालक के हेतु सीखने को सरल एवं तीव्रगामी बना सकता है।

14. सफलता अथवा परिणाम का ज्ञान- किसी कार्य को सीखते समय यदि समय-समय पर सीखने की प्रगति का ज्ञान होता रहता है तो सीखने वाले को आगे सीखने में उत्साह और प्रेरणा मिलती है। यदि सीखने में गलतियाँ अथवा असफलता प्राप्त होती है तो भी इसका ज्ञान कराना आवश्यक होता है। इससे सीखने वाले को बार-बार प्रयत्न तथा सुधार करने की प्रेरणा प्राप्त होती है। अतएव विद्यार्थी को उसके सीखने की प्रगति और सफलता अथवा परिणाम का ज्ञान कराते रहना चाहिए।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि सीखने की प्रक्रिया पर अनेकानेक कारकों का सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment