School Management & Hygiene

अध्यापक के आवश्यक प्रबन्धन कौशल (TEACHER’S ESSENTIAL MANAGEMENT SKILLS)

अध्यापक के आवश्यक प्रबन्धन कौशल (TEACHER'S ESSENTIAL MANAGEMENT SKILLS)
अध्यापक के आवश्यक प्रबन्धन कौशल (TEACHER’S ESSENTIAL MANAGEMENT SKILLS)

अध्यापक के आवश्यक प्रबन्धन कौशल (TEACHER’S ESSENTIAL MANAGEMENT SKILLS)

विद्यालय में शिक्षक की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। भूमिका से ही सम्बन्धों का प्रारूप निश्चित होता है। वह कभी दार्शनिक की भूमिका में होता है, कभी मित्र की भूमिका में और कभी निर्देशक की भूमिका का निर्वाह करता है। विद्यालय की कार्यप्रणाली में शिक्षक को अपनी निश्चित भूमिकाओं के अतिरिक्त विद्यालय के प्रबन्ध और प्रशासन में भी प्रधानाध्यापक का सहयोग करना होता है। कार्य की अधिकता को ध्यान में रखते हुए प्रधानाध्यापक अपने अधिकारों और उत्तरदायित्वों को शिक्षकों को सौंपता है और उन्हें स्वतन्त्र प्रभारी नियुक्त करता है। शिक्षक इस प्रकार का संचालन स्वतन्त्र रूप से करते हैं। इस प्रकार शिक्षा प्रबन्धन और प्रशासन में शिक्षकों को भी प्रधानाध्यापक के साथ प्रबन्धन और प्रशासन की सभी भूमिकाओं का निर्वाह करना होता है। शिक्षक को राष्ट्र निर्माता कहा जाता है क्योंकि देश का भविष्य ही नहीं बल्कि मानवता का भविष्य शिक्षकों की भूमिका पर निर्भर करता है। शिक्षक की भूमिका शैक्षिक, सामाजिक, राजनीतिक निर्माण में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार विद्यालय का भविष्य शिक्षक की भूमिका पर निर्भर करता है। शिक्षक की भूमिका को प्रबन्धन और प्रशासन की दृष्टि से निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(1) नियोजन में शिक्षक (Teacher in Planning)

(2) प्रशासन में शिक्षक (Teacher in Administration)

(3) प्रबन्धम में शिक्षक (Teacher in Management)

(4) पर्यवेक्षण एवं निर्देशन में शिक्षक (Teacher in Supervising and Directing)

(5) मूल्यांकन में शिक्षक (Teacher in Evaluation)।

शिक्षक की उपर्युक्त भूमिकाओं को और अधिक विस्तार से निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

1. नियोजन में शिक्षक की भूमिका (Role of Teacher in Planning)- विद्यालय नियोजन सम्बन्धी कार्यक्रमों के सम्बन्ध में निर्णय, प्रबन्ध समिति में लिए जाते हैं और उनका प्रारूप भी विकसित किया जाता है। इस समिति का सचिव प्रधानाध्यापक होता है। प्रधानाध्यापक बैठक का आयोजन करता है और रिपोर्ट भी तैयार करता है। वर्तमान में शिक्षा विभाग की नियमावली के अनुसार वरिष्ठ शिक्षक को सदस्यता प्रदान की गई है। वरिष्ठ शिक्षक इन बैठकों में सक्रियता से भाग लेता है तथा अपने सुझाव भी प्रस्तुत कर सकता है और शिक्षकों की एवं विद्यालय की एवं विद्यालय की समस्याओं को समिति के समक्ष रखता है तथा उनके हितों को ध्यान में रखकर कार्य करता है। इस प्रकार प्रबन्धन में शिक्षकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।

विद्यालय के विभिन्न कार्यों का सम्पादन करने से पूर्व उनका नियोजन किया जाता है। नियोजन में कार्यक्रमों के उद्देश्य, कार्य, क्रियाएँ और उत्तरदायित्वों का विवरण तैयार किया जाता है और सम्पूर्ण सत्र के नियोजन को विभिन्न स्तरों में विभाजित कर लिया जाता है। प्रथम स्तर- विद्यालय प्रारम्भ होने से पूर्व प्रधानाध्यापक को विभिन्न भूमिकाओं का निर्वहन करना होता है। इनमें प्रवेश सम्बन्धी नियम व तिथि, प्रवेश परीक्षा, प्रवेश समिति का निर्माण, फर्नीचर तथा साज-सज्जा, टूटे फर्नीचर को ठीक कराना आदि कार्यों को प्रधानाध्यापक वरिष्ठ अध्यापकों को सौंप देता है और अधिकार भी देता है। प्रधानाध्यापक एक बैठक का आयोजन कर विभिन्न कार्यों का स्वतन्त्र भार शिक्षकों को सौंप देता है। इन्हें प्रभारी कहा जाता है, जो शिक्षण कार्यों के अतिरिक्त प्रबन्ध और प्रशासन में प्रधानाध्यापक का सहयोग करते हैं। मुख्य प्रभारी हैं समय तालिका प्रभारी, अनुशासन प्रभारी (प्रोक्टर), खेलकूद प्रभारी, परीक्षा प्रभारी, पुस्तकालय प्रभारी, वित्तीय प्रभारी, आदि विद्यालय की आवश्यकता के अनुरूप बनाये जाते हैं। द्वितीय स्तर- विद्यालय खुलने पर ये सभी प्रभारी शिक्षक अपने कार्यों को ठीक प्रकार से करना प्रारम्भ करते हैं। संचालन में प्रधानाध्यापक की सलाह भी लेते हैं और अपने कार्यों की प्रगति से प्रधानाध्यापक को अवगत कराते हैं। तृतीय स्तर- शिक्षण सत्र की अवधि में जो उन्हें शिक्षण कार्यों के अतिरिक्त प्रशासन सम्बन्धी उत्तरदायित्व सौंपे गये हैं उनके लिए अतिरिक्त समय देना होता है। आन्तरिक परीक्षाओं में कक्ष निरीक्षण तथा अन्य प्रशासनिक कार्यों को करना होता है। चतुर्थ स्तर– सत्र के अन्तिम चरण में खेलकूद वार्षिकोत्सव, वार्षिक प्रतियोगिताओं का आयोजन, छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए पारितोषिक वितरण आदि कार्य करने होते हैं। परीक्षा परिणाम तैयार करना, अंक तालिकाएँ बनाना, आदि विविध कार्यों का सम्पादन शिक्षकों को करना होता है। प्रधानाध्यापक नियोजन के माध्यम से शिक्षकों की भूमिका का निर्धारण करता है। उन्हें कार्यभार सौंपता है। शिक्षक इस कार्यभार को अपनी रुचि, क्षमता और योग्यतानुसार पूर्ण करते हैं। अतः नियोजन की दृष्टि से शिक्षकों की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

2. प्रशासन में शिक्षक की भूमिका (Role of Teacher in Administration) विद्यालय प्रबन्धन समिति द्वारा निर्धारित नियोजित कार्यक्रमों का पालन विद्यालय को करना होता है। विद्यालय को केन्द्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा निर्धारित नियम, आदेश और अध्यादेश, आदि को अनुपालना विद्यालय को करनी होती है। प्रधानाध्यापक विद्यालय को संचालन हेतु विविध क्रियाकलापों का जो प्रशासनिक ढाँचा या प्रारूप तैयार करता है उसकी भी क्रियान्विति की जाती है। प्रभारी के रूप में शिक्षक प्रशासन सम्बन्धी कार्यों का संचालन करते हैं। अनुशासन प्रभारी (प्रोक्टर) विद्यालय में अनुशासन बनाए रखने के लिए छात्रों को अनुशासन सम्बन्धी समस्याओं का निराकरण करते हैं। इसी प्रकार अन्य प्रभारी नियुक्त किये जाते हैं, वे सभी अपने-अपने कार्यों का संचालन करते हैं। ये सब कार्य प्रधानाध्यापक के नाम (Behalf) पर शिक्षकों द्वारा पूर्ण किए जाते हैं।

3. प्रबन्धन में शिक्षक की भूमिका (Role of Teacher in Management)– शिक्षा की व्यवस्था करना प्रबन्धन का महत्त्वपूर्ण कार्य है। प्रबन्धन इस कार्य को चार क्रियाओं के द्वारा पूर्ण करता है।

प्रथम किया- इसके अन्तर्गत विद्यालय शिक्षा की व्यवस्था आती है। प्रत्येक प्रभारी अपने-अपने विभागों की आवश्यकतानुसार व्यवस्था करता है। जैसे समय-सारणी प्रभारी कक्षा, शिक्षक और समय को ध्यान में रखकर समय-सारणी का निर्माण करता है इसी प्रकार प्रयोगशाला प्रभारी, कार्यशाला प्रभारी, पुस्तकालय प्रभारी, फर्नीचर व साज-सजा प्रभारी विद्यालय की आवश्यकता को देखते हुए उसकी व्यवस्था करते हैं।

द्वितीय क्रिया- इसके अन्तर्गत अनुदेशात्मक कार्यों की व्यवस्था करना आता है अर्थात् पाठ्यक्रम से सम्बन्धित जिन साधनों व सुविधाओं की आवश्यकता होती है उनकी व्यवस्था कक्षाध्यापक करते हैं और आवश्यकतानुसार विषयाध्यापक को भी यह कार्य करने होते हैं। कुशल शिक्षण साधन व सुविधाओं और शिक्षक की लगन व परिश्रम पर निर्भर करता है। अतः विद्यालय में तकनीकी साधनों की व्यवस्था करना आवश्यक है।

तृतीय क्रिया- इसके अन्तर्गत अन्य क्रियाएँ जैसे—सांस्कृतिक कार्यक्रम, छात्र कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। सम्बन्धित प्रभारी विद्यालय और पाठ्यक्रम की आवश्यकता के अनुरूप साधनों की व्यवस्था करता है और कार्यक्रमों का आयोजन करता है। यह आयोजन सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय स्तर को ध्यान में रखकर किया जाता है। छात्र कल्याण प्रभारी छात्र संघ की आवश्यकताओं और कठिनाइयों को देखता है, समझता है और उनकी आवश्यकता के अनुरूप सहायता करता है।

चतुर्थ क्रिया- इसका सम्बन्ध कार्यालयों से सम्बन्ध स्थापित करना, आदि व्यवस्था से है। प्रत्येक कक्षा के लिए कक्षाध्यापक नियुक्त कर उस कक्षा का सम्पूर्ण दायित्व उसे सौंप दिया जाता है। कक्षा में अनुशासन बनाये रखना, छात्र से फीस वसूलना, उपस्थिति रजिस्टर का रख-रखाव, आदि कार्य कक्षाध्यापक करता है और इसके साथ ही अपनी कक्षा के छात्रों के परीक्षफल और अंकतालिका की व्यवस्था करता है।

4. पर्यवेक्षण एवं निर्देशन में शिक्षक की भूमिका (Role of Teacher in Supervision and Direction)– प्रधानाध्यापक ने शिक्षण व्यवस्था एवं प्रशासन के लिए प्रभारी नियुक्त किये हैं। इन प्रभारियों को यह अधिकार भी है कि वे अपने कार्यों का संचालन करें और साथ ही पर्यवेक्षण भी करें। स्वतन्त्र भार के रूप में शिक्षक प्रभारी का उत्तरदायित्व है कि उस कार्य का पर्यवेक्षण भी करें। पर्यवेक्षण का उद्देश्य है कि विद्यालय कार्यप्रणाली अर्थात् जो व्यवस्था की गई है वह सुचारू रूप से चल रही है या नहीं, जैसे पाठ्यक्रम प्रभारी यह पर्यवेक्षण करता है कि कक्षाएँ सुचारु रूप से चल रही हैं, अध्यापक निर्धारित समय पर कक्षा में जा रहे हैं और शिक्षण कार्य निर्वाध गति से चल रहा है या नहीं अत: पर्यवेक्षक के रूप में शिक्षक की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। वह इस भूमिका में परीक्षा का पर्यवेक्षण करता है, प्रशासनिक स्टाफ का पर्यवेक्षण करता है और विद्यालय के विभिन्न क्रियाकलापों का पर्यवेक्षण करता है। निर्देशन की दृष्टि से छात्रों के साथ वैयक्तिक सम्पर्क स्थापित करना, कुसमायोजन बालकों का पता लगाना, अभिभावकों से सम्पर्क स्थापित करना, कक्षा में उत्तम वातावरण तैयार करना, अपने विषय से सम्बन्धित व्यवसायों एवं शैक्षिक अवसरों की सूचनाएँ छात्रों को प्रदान करना और कार्यों में शिक्षक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।

5. मूल्यांकन अथवा नियन्त्रण में शिक्षक की भूमिका (Role of Teacher in Evaluation and Controlling)-इसके अन्तर्गत छात्रों की उपलब्धि, अनुशासन, पाठ्यक्रम, समय-सारणी तथा अन्य सम्बन्धित क्रियाकलाप आते हैं। इस भूमिका में विद्यालय की प्रभावशीलता का आकलन आता है, छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि आती है। परीक्षा प्रभारी शिक्षक होता है जो आन्तरिक और बाह्य परीक्षाओं की व्यवस्था करता है और उपलब्धियों का मूल्यांकन करता है। शिक्षक ही प्रश्न-पत्रों की रचना करते हैं, छात्रों की उत्तर पुस्तिकाएँ जाँचते हैं और परीक्षाफल तैयार करते हैं।

अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि अध्यापक विद्यालय संगठन का हृदय है। शैक्षिक कार्यक्रमों की सफलता अध्यापक की योग्यता, व्यवहार, निष्ठा और कार्यप्रणाली पर निर्भर करती है। अध्यापक बालक का केवल मानसिक विकास ही नहीं करता है अपितु शारीरिक, नैतिक, सामाजिक, राजनीतिक और आध्यात्मिक विकास भी करता है। अतः अध्यापक राष्ट्र निर्माता है, क्योंकि वह एक सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा अधिक चरित्रवान, उदार और मर्यादित होता है। इस प्रकार शिक्षक किसी देश की संस्कृति के हस्तान्तरण, संरक्षण और संवर्द्धन का मुख्य साधन है। विद्यालय में विविध भूमिकाओं में अध्यापक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। राष्ट्र कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा है-“एक अध्यापक कभी भी वास्तविक अर्थों में नहीं पढ़ा सकता, जब तक वह स्वयं अभी सीख न रहा हो। एक दीपक दूसरे दीपक को कभी भी प्रचलित नहीं कर सकता जब तक कि उसकी अपनी ज्योति जलती न रहे।”

पाठ्यक्रम-क्रियाओं के कार्यक्रम के प्रशासन में शिक्षकों की भूमिका (ROLE OF TEACHERS IN THE ADMINISTRATION OF THE CO-CURRICULAR ACTIVITIES PROGRAMME)

छात्र-क्रियाओं के कार्यक्रम को संगठित करने से पूर्व प्रधानाध्यापक को अपने शिक्षक वर्ग को योग्यताओं एवं क्षमताओं को जानना चाहिए। इस कार्यक्रम की सफलता या असफलता अधिकांशत: शिक्षक वर्ग के दृष्टिकोण एवं उत्साह पर निर्भर है। वे छात्र-छात्राओं से सहायता व परामर्श ही प्राप्त नहीं करते, वरन उनसे प्रेरणा पाकर अपने सम्भाव्य गुणों का विकास कर पाते हैं।

पाठ्य सहगामी क्रियाओं के आयोजन सम्बन्धी शिक्षक की भूमिका व कार्य (Teacher’s Role and Duties in Organisation of Co-curricular Activities) शिक्षा का मुख्य कार्य बालक के व्यक्तित्व का विकास करना है। व्यक्तित्व के विकास के अन्तर्गत केवल बौद्धिक विकास ही नहीं अपितु शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावात्मक, सृजनात्मक, संवेगात्मक, आदि विकास अर्थात् बालक का सर्वांगीण विकास आता है। यह विकास पाठ्य सहगामी क्रियाओं द्वारा सम्भव है। अतः प्रधानाध्यापक इन क्रियाओं के आयोजन में शिक्षक की भूमिका सुनिश्चित करता है। इस सुनिश्चितता में शिक्षक की रुचि, क्षमता, योग्यता और अनुभव को ध्यान में रखा जाता है। इस प्रकार शिक्षक को जहाँ शिक्षण का उत्तरदायित्व वहन करना पड़ता है वहीं पाठ्येत्तर क्रियाओं के आयोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है।

अध्यापक से नेतृत्व सम्बन्धी अपेक्षाएँ (LEADERSHIP RELATED EXPECTATION FROM TEACHER)

विद्यालय संस्थितियों में अध्यापक एक मार्गदर्शक है जो अपने निरीक्षण में विद्यार्थी को अज्ञान के अन्धकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है।

डॉ. जाकिर हुसैन कहते हैं “निस्सन्देह अध्यापक हमारे भविष्य का निर्माता है।” अध्यापक ही है जो युवकों का निर्देशन और मार्गदर्शन करता है। सच तो यही है कि विद्यालय की समग्र गतिविधियाँ उसी के इर्दगिर्द घूमती नजर आती हैं। अत: यह समाज और राष्ट्र की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है कि विद्यालय का अध्यापक अपने कार्यों में निपुण हो ताकि राष्ट्र के भावी नागरिकों का अपेक्षित निर्माण कुशल नेतृत्व में हो। इसी सिलसिले में हुमायूँ कबीर कहते हैं ” अध्यापक वास्तविक रूप से राष्ट्र के भाग्य का निर्माता है।”

राष्ट्र की बढ़ती शैक्षिक आवश्यकताओं के अनुरूप सहयोग व गुण सम्पन्न नेतृत्व देने वाले अध्यापकों का होना अति आवश्यक है और इसके लिए शैक्षिक दृष्टि से योग्य व्यक्तियों का चयन कर नेतृत्व का प्रशिक्षण दिया जाय।

नेतृत्व शैलियों का ज्ञान भी अध्यापकों को होना आवश्यक है और उसी नेतृत्व शैली को अपनायें जिससे संगठन या विद्यालय के शिक्षा स्तर को ऊँचा कर सकें।

निरीक्षक के रूप में उसको साहित्य विषय का अध्ययन करना होता है ताकि वह स्वयं की भी ऐसी शैली विकसित कर सके जो स्वयं उसके लिए, विद्यालय संगठन के लिए तथा अन्य सहयोगी शिक्षकों व कर्मचारियों के लिए प्रगतिशील सिद्ध हो सके।

राष्ट्र, शिक्षा जगत, स्थानीय समुदाय तथा विद्यालय सभी की यह अपेक्षा रहती है कि शिक्षक अपने छात्रों को सृजनशील प्रभावी शैक्षिक नेतृत्व प्रदान करे ताकि संगठन तथा उससे सम्बन्धित व्यक्तियों का विकास हो सके। उसकी कार्यशैली व व्यवहार कार्यकर्ताओं और छात्रों के लिए अनुकरणीय हो और यह तभी सम्भव हो सकता है जब अध्यापकों को उचित प्रशिक्षण व दीक्षा दी जाये तथा शैक्षिक तकनीकी ज्ञान दिया जाये।

निरीक्षण सम्बन्धी कुछ विशेष कर्तव्य भी अध्यापक को निभाने होते हैं; जैसे-

(1) छात्रों की उपस्थिति का निरीक्षण करना।

(2) प्रयोगात्मक कार्य का निरीक्षण करना।

(3) गृह कार्य की जाँच करके अशुद्धियाँ निकालना।

(4) छात्रों द्वारा पुस्तकालय में किए गए अध्ययन की जाँच करना।

(5) सायंकाल होने वाले खेलों तथा अन्य सम्बन्धित पाठ्य सहायक क्रियाओं का निरीक्षण करना।

(6) छात्रों के सामान्य हित का निरीक्षण करना।

(7) हॉस्टल के छात्रों के कार्यों तथा आचरण का निरीक्षण करना।

(8) छात्रों के सामान्य व्यवहार तथा अनुशासन का निरीक्षण करना।

एक आदर्श अध्यापक ही विद्यालय को उन्नति की राह पर अग्रसर करता है। परन्तु उसको अपने कार्यों तथा उत्तरदायित्वों को श्रद्धापूर्वक निभाना होता है नहीं तो अपने उच्च अधिकारी को जवावेदेही भी करनी होती है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment