आदर्शवाद का अर्थ एंव परिभाषा
आदर्शवाद का अर्थ एंव परिभाषा- आदर्शवाद अंग्रेजी भाषा के शब्द Idealism का हिन्दी रूपान्तर है। Idealism अंग्रेजी के दो शब्दों Idea (आइडिया) और Ism (इज्म) से मिलकर बना है। उच्चारण की सुविधा हेतु इसे Idealism (आइडियाइज्म) न कह कर Idealism (आइडियालिज्म) कहा जाने लगा।
आदर्शवाद एक ऐसा दार्शनिक समुदाय है जिसका आरम्भ अतीत में हुआ था। इसे विचारवाद भी कहते हैं। आदर्शवाद वह दर्शन है जो मन और प्रकृति को वास्तविक मानता है दूसरी ओर प्लेटों ने मन एवं तर्क को प्रमुख माना है। अन्य शब्दों में आदर्शवाद वह विचारधारा है जो यह मानती है कि अन्तिम सत्ता आध्यात्मिक अथवा मानसिक है। आदर्शवादी यह मानते हैं कि जो बात सत्य या वास्तविक है वह अवश्य ही आध्यात्मिक अथवा मानसिक है। उनका यह भी विकास है कि भौतिक संसार मन की अभिव्यक्ति का साकार रूप है। इसलिये आदर्शवादियों को मनवादी या आध्यात्मवादी भी कहना अनुपयुक्त नहीं है। आदर्शवाद वह सिद्धान्त है जो अन्तिम सत्ता को आध्यात्मिक मानता है। अन्य शब्दों में, जो विचारधारा मानसिक तत्वों, विचारों, सत्यं, शिव, सुन्दरम आदि शॉत मूल्यों को संसार में सबसे ऊँचा स्थान देती है, उसे आदर्शवाद कहते हैं। जेम्स एस. रास ने लिखी है, “अध्यात्मवाद दर्शन के बहुत से और विभिन्न रूप है। पर सब का आधारभूत तत्व यह है कि संसार का उत्पादन कारण, मन या आत्मा है और वास्तविक सत्य मानसिक स्वरूप का है।
आदर्शवाद का कहना है कि, यदि आप प्रकृति की शक्तियों से सम्बन्धित बातों की खोज करें तो आपको पदार्थ गति और शक्ति में नहीं बल्कि अनुभव-विचार, तर्क-बुद्धि, व्यक्तित्व, मूल्यों और धार्मिक तथा नैतिक आदर्शों में मिलेगी।
आदर्शवाद पाश्चात्य दर्शन की प्राचीन विचारधारा है। ज्ञान की किरण भारत के बाद यदि कहीं सबसे पहले प्रस्फुटित हुई तो वह यूनान (ग्रीस) देश में यूनान पाश्चात्य दर्शन की गुरुस्थली है। ईसा की कई शताब्दी पूर्व वहाँ तत्त्व ज्ञान का विकास होने लगा था। पश्चिमी जगत में यूनानी दार्शनिक थेल्स (640-550 ई. पू.) सबसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस ब्रह्माण्ड की रचना के विषय में अपने तर्क प्रस्तुत किए। उनके बाद इटली के दार्शनिक जैनोफेनीज ने अद्वैतवादी विचार प्रस्तुत किए। ये पश्चिमी जगत के सर्वप्रथम अद्वैतवादी एवं सर्वेश्वरवादी दार्शनिक थे। जैनोफेनीज के बाद पश्चिमी दर्शन के क्षेत्र में यूनान के सुकरात का नाम आता है। सुकरात भी आध्यात्मिक विचारधारा के व्यक्ति थे परन्तु वे अपने इन विचारों को फुटकर रूप में यत्र-तत्र प्रकट करने तक सीमित रहे। उनके बाद पश्चिमी दर्शन के जगत में उनके ही शिष्य प्लेटो (427-347 ई. पू.) का प्रादुर्भाव हुआ। यूं प्लेटो यूनान के राजघराने के वंशज थे, बड़े ठाट-बाट से रहते थे, शरीर सौष्ठव और मान-प्रतिष्ठा के प्रति सचेत थे, परन्तु उनका चिन्तन सुकरात के अध्यात्मवादी दर्शन से प्रभावित था। वे यूनान के पहले दार्शनिक हैं जिन्होंने अपने दार्शनिक चिन्तन को बड़े व्यवस्थित और तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है। प्लेटो आत्मा-परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते थे और यह मानते थे कि परमात्मा इस सृष्टि का नियामक कारण अर्थात् कर्ता है और विचार इसके उपादान कारण अर्थात् आधार हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह भौतिक जगत विचारों के जगत का प्रकटीकरण मात्र है। उनका तर्क है कि भौतिक जगत परिणामशील है इसलिए यह नित्य नहीं हो सकता, सत्य नहीं हो सकता और विचारों का जगत परिणामशील नहीं है इसलिए वह नित्य है, सत्य है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इन विचारों में एक दैवीय और नैतिक व्यवस्था होती है। पश्चिमी जगत में उनकी इस विचारधारा को आदर्शवाद (Idealism) की संज्ञा दी गई। प्लेटो के बाद उनके शिष्य अरस्तू ने उनकी इस विचारधारा को कुछ अपने ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने विचारों के जगत के साथ-साथ वस्तुजगत के अस्तित्व को भी स्वीकार किया। अरस्तू के बाद डेकार्टे, स्पिनोजा, लाइबनीज, बर्कले, कान्ट, फिश्टे, हीगल, शैलिंग और शॉपेनहावर आदि दार्शनिकों ने इस आध्यात्मिक विचारधारा को थोड़े-बहुत अन्तर-से आगे बढ़ाया। अरस्तू को छोड़कर अन्य सभी के विचारों में दो मूलभूत तथ्य समान हैं। पहला यह कि ये सब ईश्वर को अन्तिम सत्य (Ultimate Reality) मानते हैं और उसे ही इस सृष्टि का कर्ता मानते हैं। दूसरा यह कि ये सभी मनुष्य जीवन का अन्तिम उद्देश्य आत्मा परमात्मा के स्वरूप को पहचानना मानते हैं और यह मानते हैं कि यह तभी सम्भव है जब मनुष्य शाश्वत मूल्यों और नैतिक नियमों का पालन करे।
आधुनिक युग में इस विचारधारा को आगे बढ़ाने और शिक्षा के क्षेत्र में इसका प्रयोग करने वाले पाश्चात्य दार्शनिकों में जर्मनी के पैस्टालॉजी, हरबार्ट और फ्रोबेल, इंग्लैण्ड के नन; इटली के जेन्टिले और अमेरिका के हार्न महोदय के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।
आदर्शवाद की परिभाषा
(1) रॉस के अनुसार “आदर्शवादी दर्शन के कई भिन्न रूप हैं किन्तु सभी के पीछे यही प्रमुख विचार है कि मन या आत्मा जगत् की सार वस्तु है और सच्ची वास्तविकता मानसिक होती है।’
(2) प्लेटो का कथन है इस भौतिक जगत के पीछे विचारों का वास्तविक संसार हैं और यह भौतिक संसार उन वैचारिक संसार का प्रकटीकरण मात्र हैं।”
(3) रोजन के अनुसार “आदर्शवादियों का विश्वास है कि ब्रह्माण्ड की अपनी बुद्धि एवं इच्छा है और सब भौतिक वस्तुओं को उनके पीछे विद्यमान, मन द्वारा स्पष्ट किया जा सकता हैं।”
परन्तु यह परिभाषा स्वयं में इतनी गुम्फित है कि इसके प्रत्येक पद (शब्द) की व्याख्या की आवश्यकता है।
आदर्शवाद की तत्त्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा और आचार मीमांसा के आधार पर हम उसे निम्नलिखित रूप में परिभाषित कर सकते हैं-
आदर्शवाद पाश्चात्य दर्शन की वह विचारधारा है जो इस ब्रह्माण्ड को ईश्वर द्वारा निर्मित मानती है और यह मानती है कि इस वस्तु जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक जगत श्रेष्ठ है। यह ईश्वर को अन्तिम सत्य और आत्मा को ईश्वर का अंश मानती है और यह प्रतिपादन करती है कि मनुष्य जीवन का अन्तिम उद्देश्य आत्मानुभूति है जो आध्यात्मिक जीवन जीने अर्थात् शाश्वत मूल्यों और नैतिक नियमों के पालन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
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