एक आदर्श इतिहास शिक्षक के गुणों का वर्णन कीजिए। समाज में अध्यापक की क्या भूमिका है ?
Contents
आदर्श इतिहास शिक्षक के गुण
अन्य विषयाध्यापकों के समान ही इतिहास का शिक्षक भी शिक्षा जगत् में अपना विशिष्ट में ही स्थान रखता है। चाहे कोई भी विषयाध्यापक क्यों न हो उसे अपने विषय से सम्बन्धित कुछ विशेषताओं को अपने में अवश्य ही लाना होता है। इनमें इतिहास का शिक्षक तो बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसे तो इतिहास के विषय में भी सजीवता, क्रमबद्धता एवं व्यवस्था लानी होती है। उसे विविध प्रकार की सहायक सामग्रियों को एकत्र करना होता है और उन्हीं के माध्यम से अपने विषय को सरस बनाना होता है। शुष्क ढंग से इस विषय को पढ़ाना उचित नहीं। एक आदर्श इतिहास शिक्षण में निम्नलिखित गुणों का समावेश होना चाहिए-
(1) विषय का ज्ञान- हर एक इतिहास शिक्षक को सर्वप्रथम तो अपने विषय का ज्ञाता होना चाहिए। उसे अपने कार्य को पूर्ण रूप से समझते हुए शिक्षण को सार्थक बनाना होता है।
(2) कहानी कहने की कला में निपुण- एक इतिहास शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह कहानी कहने की कला में निपुण हो। इसी के आधार पर वह बालकों में रुचि पैदा कर सकता है। इतिहास शिक्षण में शिक्षक को चाहिए कि वह ठोस एवं नीरस तथ्यों का ज्ञान कराते समय उसकी पृष्ठभूमि के रूप में ऐसी कहानी बच्चों को सुनाए कि वे सभी तथ्य सरस, सरल एवं सजीव हो उठें।
(3) उद्देश्य का ज्ञान- एक इतिहास शिक्षक के लिए यह भी आवश्यक है कि वह अपने उद्देश्य को भली-भाँति समझते हुए उसी के अनुसार शिक्षण करे।
Ghate के अनुसार- “A working knowledge of world history and the fundamental facts of anthropology, the antiquity of man, the evolutionary stages of culture are an important requisite of a successful history teacher.”
(4) सहानुभूति – एक इतिहास शिक्षक को अपने विशद् ज्ञान, विस्तृत सहानुभूति, क्रियात्मक कल्पनाशक्ति एवं अभिनय योग्यता लानी चाहिए। क्रियात्मक कल्पनाशक्ति का आशय यहाँ पर यह है कि उसमें इतनी क्षमता अवश्य होनी चाहिए कि वह तथ्यों को सजीव रूप में बालकों के सम्मुख रख सके। उसके लिए विश्व इतिहास जानना आवश्यक है। उसे अपनी सहृदयता के द्वारा छात्रों की कठिनाइयों को हल करना चाहिए।
(5) आकर्षक व्यक्तित्व- एक इतिहास शिक्षक का व्यक्तित्व भी ऐसा आकर्षक होना चाहिए कि बालक उसके कथन को हृदय से लगायें और उसके प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करें। इसके अतिरिक्त उसे अध्ययनशील भी होना चाहिए। अपने निरन्तर अध्ययन के द्वारा ही वह नये अनुभव ग्रहण कर बालकों को उनसे परिचित करा सकता है।
(6) व्यापक दृष्टिकोण (Broad Outlook)- और रोचक शिक्षण विधि वृहद् दृष्टिकोण एवं तीव्र स्मरण शक्ति ये दोनों ही उसकी विशेषताएँ होनी चाहिए, बिना इनके वह अपने विषय को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त नहीं कर सकता। वास्तव में वही इतिहास शिक्षक अपने विषय के शिक्षण में सफल हो सकता है जो कि पयाप्त भ्रमण कर चुका हो। भ्रमण के आधार पर वह काफी व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर चुका होता है।
उपरोक्त कथन के द्वारा यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इतिहास शिक्षक का दृष्टिकोण वृहद् होना चाहिए उसके पढ़ाने का ढंग भी प्रभावशाली होना चाहिए।
इस प्रकार हम यह देखते हैं कि एक इतिहास शिक्षक के अन्तर्गत बहुत से गुणों का होना आवश्यक है। इनमें बहुत से ऐसे गुण हैं जो कि वह स्वयं अपने में पैदा कर सकता है बस थोड़ी-सी साधना एवं त्याग करना होगा। जहाँ तक व्यक्तित्व का प्रश्न है, वह दैवी प्रदत्त होता है किन्तु व्यक्तित्व के आंतरिक पक्ष को तो वह विकसित कर ही सकता है। वह अपनी सुन्दर आकृति के स्थान पर गुणों द्वारा छात्रों को अपने शिक्षण की ओर आकर्षित कर सकता है। चाहे जिस भी विषय का शिक्षक क्यों न हो, उसका स्वर बड़ा ही प्रभावशाली होना चाहिए। जो चीज कहे प्रभावशाली ढंग से एवं साफ-साफ कहे। ऐसे शिक्षक के विषय में जितना भी कहा जाय, अपर्याप्त ही होगा, किन्तु क्रम से ऊपर वर्णन किये गुण तो एक इतिहास के शिक्षक में होने ही चाहिए।
प्रायः सभी विद्वानों ने जिनकी भी आस्था इतिहास के विषय में रही है, उन्होंने इतिहास के शिक्षक पर बहुत कुछ लिखते हुए उसे एक जिम्मेदार समाजसेवी के रूप में ठहराया है और वास्तव में होता भी है। यदि वह अपने उत्तरदायित्व का पूर्ण निर्वाह करे तो निश्चय ही आने वाली पीढ़ी अपने वर्तमान को सँवारने में काफी सफल हो सकती है, किन्तु खेद की बात है कि भारत जैसे देश में इतिहास – शिक्षक अपना कार्य सबसे सरल समझे हुए हैं। केवल छात्रों को कक्षा में खड़ा करके पढ़ा देना ही पर्याप्त समझते हैं।
इतिहास शिक्षक की समाज में भूमिका
इतिहास शिक्षक में वे सभी भूमिकायें जो अन्य विषयों के शिक्षकों की होती हैं, होनी चाहिए। इन भूमिकाओं में इतिहास का शिक्षक होने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। शिक्षण प्रशासनिक कार्यों में सहयोग पाठ्यक्रम अनुगामी क्रियाओं का संचालन, छात्र संघों का संयोजन, अनुशासन आदि कमेटियों की सदस्यता, अनुसंधान करना समुदाय एवं अभिभावकों से सम्पर्क जैसे क्षेत्र इस वर्ग में सम्मिलित हैं।
(1) शिक्षक की भूमिका- किसी भी विषय के अध्यापक का शिक्षण कार्य उसका प्रथम दायित्व है। इसका निर्वाहन करना उसका नैतिक दायित्व है। विद्यालय में वह पूरी पुरी का एक केन्द्रबिन्दु है। वह विद्यालय के संचालन में मुख्य अध्यापक की मदद करता है। विद्यालय के संचालन की रूपरेखा जमाने में उसका पूर्ण सहयोग रहता है।
(2) प्रशासक की भूमिका- विद्यालयी जीवन में कई ऐसी स्थितियाँ होती हैं जब शिक्षक को एक प्रशासक की भूमिका का निर्वाह करना होता है क्योंकि विद्यालय तथा कक्षा में अनुशासन बनाये रखना उसका दायित्व है।
(3) प्रबन्ध की भूमिका- सर्वप्रथम आई० के० डेविस ने शिक्षक को प्रबन्धक के रूप में प्रस्तुत किया। शिक्षण-अधिगम में सर्वप्रथम उद्देश्यों को सूत्रबद्ध किया जाता है। इसके बाद इनकी सम्प्राप्ति के संस्थितियों का सृजन किया जा सके।
(4) अनुसन्धानकर्त्ता की भूमिका- शिक्षक केवल एक अध्यापक ही नहीं होता है। वरन् उसके लिए कहा जाता है कि मित्र दार्शनिक तथा मार्गदर्शक होता है। वह सदैव नये ज्ञान की खोज करता है जिससे छात्रों को वह नये खोजों एवं ज्ञान से अवगत करा सके जिसका उपयोग वे समाज एवं देश के विकास में कर सके। इसलिए शिक्षक को सदैव जागरूक एवं खोजी प्रवृत्ति का होना चाहिए।
(5) संयोजक की भूमिका- इतिहास शिक्षक को अपने कार्यों के अतिरिक्त भी अन्य कार्य विद्यालय एवं प्रधानाध्यापक द्वारा आवंटित होता है। वह एक शिक्षक के नाते अपने विषय के छात्रों की उन्नति के लिए जिम्मेदार होता है। इसलिए उसको समय-समय पर छात्रों के मूल्यांकन से अभिभावकों को अवगत कराने के लिए अभिभावक समिति का गठन कर उसके सम्पर्क में निरन्तर रहना चाहिए। छात्रों के अन्य विषयों की भी जानकारी इतिहास अध्यापक को रखनी पड़ती है। इसलिए उसको संयोजन की भूमिका भी निभानी पड़ती है।
IMPORTANT LINK
- हिन्दी भाषा का शिक्षण सिद्धान्त एवं शिक्षण सूत्र
- त्रि-भाषा सूत्र किसे कहते हैं? What is called the three-language formula?
- माध्यमिक विद्यालय के पाठ्यक्रम में हिन्दी का क्या स्थान होना चाहिए ?
- मातृभाषा का पाठ्यक्रम में क्या स्थान है ? What is the place of mother tongue in the curriculum?
- मातृभाषा शिक्षण के उद्देश्य | विद्यालयों के विभिन्न स्तरों के अनुसार उद्देश्य | उद्देश्यों की प्राप्ति के माध्यम
- माध्यमिक कक्षाओं के लिए हिन्दी शिक्षण का उद्देश्य एवं आवश्यकता
- विभिन्न स्तरों पर हिन्दी शिक्षण (मातृभाषा शिक्षण) के उद्देश्य
- मातृभाषा का अर्थ | हिन्दी शिक्षण के सामान्य उद्देश्य | उद्देश्यों का वर्गीकरण | सद्वृत्तियों का विकास करने के अर्थ
- हिन्दी शिक्षक के गुण, विशेषताएँ एवं व्यक्तित्व
- भाषा का अर्थ एवं परिभाषा | भाषा की प्रकृति एवं विशेषताएँ
- भाषा अथवा भाषाविज्ञान का अन्य विषयों से सह-सम्बन्ध
- मातृभाषा का उद्भव एवं विकास | हिन्दी- भाषा के इतिहास का काल-विभाजन
- भाषा के विविध रूप क्या हैं ?
- भाषा विकास की प्रकृति एवं विशेषताएँ
- भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता | Unity in Diversity of Indian Culture in Hindi
Disclaimer