गाँधीजी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
गाँधीजी के शिक्षा दर्शन की मुख्य बातें निम्न है-
(1) गाँधी का शिक्षा दर्शन जीवन के घनिष्ट रूप से सम्बन्धित है। सत्य, अहिंसा, सेवा और त्याग आदि जिन बातों को उन्होंने प्रधानता दी है, उनकी प्राप्ति शिक्षा से ही हो सकती है। वास्तव में गाँधी जी का शिक्षा दर्शन उनके जीवन का गतिशील पक्ष है।
(2) गाँधी शिक्षा को मानव व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास का साधन मानते हैं और कहते हैं कि शिक्षा द्वारा बालक बालिकाओं में सभी प्रकार के गुणों का विकास होता है और योग्य नागरिकों का निर्माण होता है।
(3) गाँधी साक्षरता मात्र को शिक्षा नहीं मानते हैं तथा वह सात वर्ष की अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने की माँग करते हैं।
(4) गाँधी ऐसी शिक्षा की व्यवस्था करते हैं जो आत्म-निर्भरता की भावना उत्पन्न करे । उनका कथन था कि सभी विषयों का हस्तकला का केन्द्र मानकर पढ़ाया जाना चाहिए।
(5) गाँधी विद्यालयों को निष्क्रिय रूप में ज्ञान प्राप्त करने का स्थान नहीं बनाना चाहते हैं। और कहते हैं कि विद्यालयों में प्रयोग एवं कार्य की खोज होनी चाहिए।
(6) गाँधी के अनुसार अध्यापक का कार्य छात्रों को ऐसा वातावरण प्रदान करना है जिसमें उनका स्वमेव विकास हो। जिस समय बालक शिक्षा प्रारम्भ करे उस समय उसे उत्पादन करने योग्य बन जाना चाहिए।
(7) गाँधी ऐसी शिक्षा व्यवस्था को मान्यता प्रदान करते हैं जो बेरोजगारी का अन्त करें और सभी को कार्य करने का अवसर प्रदान करे।
(8) शिक्षा का माध्यम वह मात्र भाषा को बनाना चाहते हैं परन्तु अन्य भाषाओं के विरोधी नहीं हैं।
महात्मा गाँधी अपने समय की शिक्षा व्यवस्था से अत्यन्त ही उदासीन थे। क्योंकि वह शिक्षा मनुष्य को जीवन के लिए तैयार नहीं कर पाती थी। शिक्षा के द्वारा बालक का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता था। उसे जो शिक्षा प्राप्त होती थी वह मौखिक थी, केवल सैद्धान्तिक थी विद्यालय सक्रिय नहीं थे। परीक्षा पास करने के बाद मनुष्य केवल नौकरी करने योग्य हो जाता था। वह अन्य किसी भी कार्य को करने के योग्य नहीं हो पाता था। पढ़ने के बाद वह घर परिवार के ऊपर भार बनकर छा जाता था। घर परिवार वाले उससे तथा उसकी शिक्षा से कोई लाभ नहीं प्राप्त कर पाते थे। इससे उस समय की शिक्षा बड़ी ही महंगी थी। उसे सभी लोग प्राप्त नहीं कर सकते थे। हमारा देश एक गरीब देश है। इसलिए इतनी महंगी शिक्षा प्राप्त कर पाना सबके वश की बात नहीं थी।
ऐसी हालत में गाँधी का ध्यान शिक्षा की ओर गया। वे शिक्षा की एक व्यवस्था का निर्माण करना चाहते थे। जो शिक्षा भारत के लिए उपयोगी हो यहाँ की परिस्थितियों के अनुसार हो, जिससे कि मनुष्य बन सके, उसका सर्वांगीण विकास हो सके और समाज का सक्रिय सदस्य बनकर समाज के कार्यों में हाथ बँटा सके। वे एक ऐसी शिक्षा पद्धति खोज रहे थे जो सस्ती हो तथा हर भारतीय के लिए सुलभ की जा सके।
गाँधी जी के इस शिक्षा विषयक चिन्तन का परिणाम है, उनकी बुनियादी शिक्षा पद्धति जिसे आजकल बेसिक शिक्षा कहा जाता है। इसी शिक्षा विधि द्वारा गाँधी जी के सारे शिक्षा सिद्धान्त क्रियात्मक रूप धारण कर सके हैं।
महात्मा गाँधी शिक्षा के माध्यम से मनुष्य के व्यक्तित्व, उसके शरीर, मन तथा हृदय और आत्मा का सर्वांगीण विकास करना चाहते है। गाँधी जी का कहना था कि “वह शिक्षा एक अच्छी शिक्षा कही जा सकती है जो व्यक्ति को एक आदर्श नागरिक बना सके तथा उसकी शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों का विकास कर सकें।”
महात्मा गाँधी अपनी शिक्षा पद्धति में क्रिया को अधिक महत्त्व प्रदान करते थे। यहाँ तक कि शिक्षा को उन्होंने शिल्प-केन्द्रित कर दिया था। बालक को शिक्षा देने के लिए उससे कोई समाजोपयोगी कार्य करना चाहिए और इसी कार्य के अनुभव के आधार पर बालक को ज्ञान दिया जाना चाहिए। उन्होंने शिक्षा का माध्यम मातृ-भाषा को माना है, तथा कहा है कि 7 से 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
गाँधी जी का कहना था कि विद्यालयों को आत्म निर्भर होना चाहिए। विद्यालय में जो शिल्प रखे जायँ उसी की आय से विद्यालय का सारा काम चलता रहे तभी इस गरीब देश में अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था हो सकती है, अन्यथा नहीं।
हस्तकला द्वारा कार्य करके बालकों में क्रियाशीलता का विकास किया जायेगा। वे शिक्षा प्राप्त करने के बाद समाज में बेकार न रहेंगे। यह शिक्षा उन्हें आत्म-निर्भर बनायेगी तथा वे अहिंसा, सत्य, सहयोग, सहकारिता आदि गुणों को प्राप्त करेंगे।
गाँधी जी का कहना था कि बालक को ऐसी शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए जो उसे आदर्श नागरिक बना सके। शिक्षा में ऐसी विशेषता होनी चाहिए कि उसे प्राप्त करके बालक अपने वातावरण को समझ सके। वह एक आदर्श नागरिक बन सके तथा वह उत्पादन कर सके। इसके लिए विद्यालयों को सक्रिय ढंग से कार्य करने की जरूरत होगी। यहीं गाँधी जी की शिक्षा के प्रमुख सिद्धान्त थे।
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