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परिवर्तनशील परिस्थितियों में संगठन की भूमिका | Role of organization in changing circumstances in Hindi

परिवर्तनशील परिस्थितियों में संगठन की भूमिका | Role of organization in changing circumstances in Hindi
परिवर्तनशील परिस्थितियों में संगठन की भूमिका | Role of organization in changing circumstances in Hindi

परिवर्तनशील परिस्थितियों में संगठन की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।

संगठन कार्य एक सतत् एवं परिवर्तनशील समस्या है। प्रारम्भिक संगठन ढांचे का पुनर्गठन बदलती हुई परिस्थितियों, नए विकास और नई आवश्यकताओं की पृष्ठभूमि में करते रहना, संगठन को कुशल बनाए रखने के लिए नितान्त आवश्यक होता है। संगठन स्थिर, सैद्धान्तिक और कुन्द न हो जाए, इसके लिए प्रबन्धक को बड़ी सतर्कता से उस क्षेत्र से सम्बन्धित नए विकासों, व्यवहारों, विचारधाराओं तथा बदलती हुई व्यापार और देश-विदेश की परिस्थितियों का अध्ययन और विश्लेषण करते रहना चाहिए और कभी-कभी इन बदली हुई परिस्थितियों के संदर्भ में वर्तमान संगठन की सक्षमता का मूल्यांकन करना चाहिए।

प्रायः अग्रलिखित घटक प्रारम्भिक संगठन में परिवर्तन की आवश्यता उत्पन्न करते हैं।

(1) संगठन के आकार और स्वभाव में परिवर्तन (Changes in Size and Nature) – व्यापार में परिस्थितियां परिवर्तनशील होती हैं। व्यापार के आकार, उत्पादनों के प्रकार निर्माण एवं विपणन की विधियों और क्षेत्रों में परिवर्तन होने के साथ ही संगठन ढांचे में नई परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन आवश्क हो जाता हैं।

(2) बाह्य नीतियां (External Policies) – संगठन पर बाहरी नीतियों का भी प्रभाव पड़ता है। अतः जब उनमें कोई परिवर्तन होता है, तब संगठन में भी तदानुरूप परिवर्तन आवश्यक हो जाता है। उत्पादन, श्रम, विपणन, कर आयात एवं निर्यात संबन्धी सरकारी नीतियां, श्रम-संघों की नीतियाँ, बैकों की साख नीतियाँ आदि में परिवर्तन होता रहता है और उनके उचित रूप से समायोजन के लिए संगठन ढांचे में भी परिबर्तन अपेक्षित होता है।

(3) आर्थिक प्रवृत्तियां और व्यापारिक वातावरण (Economic Trends and Business’ Climate) – वस्तुओं की मांग में परिवर्तन, प्रतियोगिता की नई दिशाएं प्रशुल्क कर एवं वितरण की नीतियों में परिवर्तन देश में आथिक तेजी (Boom) और मंदी (Recession) तथा राजनैतिक एवं सामाजिक परिवर्तन तथा विदेशी राजनैतिक और आर्थिक दशाओं में परिवर्तनों के कारण भी संगठन में परिवर्तन आवश्यक हो जाता है।

(4) तकनीकी प्रगति (Technological Advances) – विश्व में उत्पादन की तकनीकी तेजी से प्रगति कर रही है। उत्पादन की हर नई विधि नई मशीनों की उपलब्धता, स्वचालिता (Automation) नई शक्ति के स्रोतों की उपलब्धता प्रारम्भिक संगठन ढांचे को अकुशल और अयोग्य बना देते हैं और इनका संगठन में समायोजन आवश्यक हो जाता है। इनके समायोजन में संगठन की नई समस्याएं जैसे पुरानी मशीनों और विधियों का प्रतिस्थापन, नए और अधिक प्रशिक्षित कर्मचारियों का चुनाव, पुराने कर्मचारियों को नई जिम्मेदारियों को निभाने के लिए उचित प्रशिक्षण सुविधाओं का प्रबन्ध और कार्यों, जिम्मेदारियों एवं अधिकारों का पुनर्गठन आदि उत्पन्न होती हैं और इसलिए प्रारम्भिक संगठन ढांचे में परिवर्तन आवश्यक हो जाते हैं।

(5) संगठन की वर्तमान कमियां (Existing Organisational Deficiencies)- प्रारम्भिक संगठन के पुनर्गठन की आवश्यकता इसलिए भी हो सकती है कि उसमें कुछ कमियां विद्यमान हैं। ये कमियां विभागीकरण कार्यों के बंटवारे अधिकारों के प्रतिनिधायन, अधिकार सम्बन्ध नियन्त्रण, समन्वय, संवेशवाहन एवं निर्देशन, निर्णयन, आदि विभिन्न क्षेत्रों में हो सकती हैं और उनको दूर करने के लिए वर्तमान संगठन में परिवर्तन आवश्यक हो सकता है।

(6) अधिकारियों में परिवर्तन (Changes in Executives) – अधिकारियों और विशेषरूप से शीर्षस्थ अधिकारियों में परिवर्तन होने के साथ ही साथ संस्थान के उद्देश्यों नीतियों, संगठन तथा कार्यविधियों में परिवर्तन प्रायः आवश्यक हो जाता है। संस्था के नए शीर्षस्थ अधिकारी के अपने स्वयं के कुछ विचार हो सकते हैं। उसके सोचने का ढंग, मार्ग-निर्देशन की योग्यता, अधीनस्थ अधिकारियों से सम्बन्ध अपने पूर्व अधिकारी से बिल्कुल अलग हो सकते हैं और ऐसी स्थिति में संगठन में बृहत्रूप से परिवर्तन आवश्यक हो जाते हैं।

संगठन को सक्षम बनाये रखने के लिए नये परिवर्तनों का समावेश नितान्त आवश्यक है। इसलिए प्रबन्धक को संगठन एक सतत एवं गतिशील समस्या के रूप में देखना और मानना चाहिए। फिर कोई भी संगठन चाहे कितनी ही कुशलता से प्रारम्भ में संगठित किया गया हो, बहुत लम्बे समय तक एक आदर्श संगठन नहीं बना रह सकता और न ही कोई ऐसा संगठन हो सकता है जो सभी प्रकार की कमियों से रहित हो। ये आरम्भिक कमियां कुछ ही समय बाद स्पष्ट हो जाती हैं और उनका निवारण आवश्यक हो जाता है। एक आदर्श संगठन धीरे-धीरे ही विकसित होता है और इसके लिए निरन्तर समायोजन, पुनर्गठन, संशोधन, परिवर्द्धन और प्रतिस्थापन की आवश्यकता होती है। संगठन में ये परिवतरन विभागीकरण, कार्यों का विभाजन एवं आवंटन, अधिकारी और अधीनस्थ के सम्बन्ध संगठन के स्तर, संगठन की कार्यविधियों, अधिकारों, समितियों प्रपत्रों तथा ऐसी ही अनेक बातों से सम्बन्धित हो सकते हैं। इसी प्रकार परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ-साथ संगठन के स्थान, इमारतों मशीनों, प्रसाधनों एवं उनके अभिन्यास में भौतिकरूप से परिवर्तन की आवश्यकता होती है। इसलिए संगठन को गतिशील एवं लोचपूर्ण बनाये रखना उसकी निरन्तर कुशलता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

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Anjali Yadav

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