परिवार के प्रकारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
Contents
परिवार के प्रकार (Types of Family)
परिवार को मुख्यतः पाँच आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है। ये आधार निम्न प्रकार हैं-
अधिकार (सत्ता) के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family on the Basis of Authority)
अधिकार के आधार पर परिवार निम्न दो प्रकार के होते हैं-
1. पितृसत्तात्मक परिवार- इसमें परिवार की सत्ता या बागडोर पिता अथवा पुरुष के हाथ में होती है। पितृसत्तात्मक परिवारों में वंशनाम पिता से चलता है। सिन्धु घाटी की सभ्यता तथा दलजा फरात की सभ्यता में भी परिवार का पितृसत्तात्मक स्वरूप प्रचलित था। पितृसत्तात्मक परिवारों के मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं – (i) वंश का नाम पिता के नाम पर चलता है, (ii) विवाह के बाद स्त्री (पत्नी) पति के घर में आकर रहती है, बच्चों का पालन-पोषण भी पति के घर में ही होता है, पिता परिवार का सर्वोच्च कर्त्ता होता है; तथा (iv) सम्मान तथा सम्पत्ति का हस्तान्तरण पिता से उसके पुत्रों को होता है।
2. मातृसत्तात्मक परिवार—जिस परिवार का नियन्त्रण माँ या पत्नी में केन्द्रित होता है, उस परिवार को मातृसत्तात्मक परिवार कहते हैं। ब्रिफाल्ट ने माता के स्थान को अधिक महत्त्वपूर्ण बतलाया है।
मैकाइवर तथा पेज ने मातृसत्तात्मक परिवार की चार विशेषताओं का उल्लेख किया है—
(i) वंश का नाम माता से चलता है पिता से नहीं;
(ii) सामान्यतः बच्चों का लालन-पालन माता के घर होता है। विवाह के बाद पति को पत्नी के निवास स्थान पर रहना पड़ता है और पति का स्थान द्वितीयक होता है;
(iii) पारिवारिक सत्ता स्त्री अथवा पत्नी-पक्ष के किसी पुरुष के हाथ में होती है; तथा
(iv) सम्पत्ति का अधिकार माता द्वारा पुत्रियों को प्राप्त होता है। विशेष पद भी स्त्री की मृत्यु के बाद, स्त्री के भाई के पुत्री को ही मिलेगा, पुत्र को नहीं।
असम के खासी, मालावार के नायर आदि में इस प्रकार के मातृसत्तात्मक परिवार पाए जाते हैं।
विवाह के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family on the Basis of Marriage)
विवाह के आधार पर परिवार के तीन प्रकार हो सकते हैं-
1. एक विवाही परिवार – इस प्रकार के परिवार में एक पुरुष एक स्त्री से विवाह करता है। इसमें दोनों पक्ष बिना तलाक अथवा किसी एक की मृत्यु तक दूसरा विवाह नहीं कर सकते हैं। परिवार का यह स्वरूप आज संसार में सर्वाधिक प्रचलित है।
2. बहुपत्नी विवाही परिवार – ऐसे परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय होते हैं। इनमें एक ही समय में एक पुरुष अनेक स्त्रियों से विवाह करता है। हमारे समाज में हिन्दुओं में वैधानिक रूप से ऐसे परिवारों का संगठन समाप्त किया जा चुका है। मुसलमानों में बहुपत्नी विवाही परिवारों का वैधानिक रूप से आज भी प्रचलन है।
3. बहुपति विवाही परिवार – इस प्रकार के परिवार में स्त्री एक ही समय में अनेक पुरुषों से विवाह करती है। कभी-कभी ये पुरुष आपस में भाई भी होते हैं। अत्यन्त संघर्षपूर्ण एवं निर्धन जीवन के कारण बहुपति विवाही परिवार का जन्म होता है। इस प्रकार के परिवार अधिकतर मातृसत्तात्मक तथा मातृवंशीय होते हैं।
निवास स्थान के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family on the Basis of Residence)
1. पितृस्थानीय परिवार – सामान्यतः विवाह के पश्चात् पत्नी, पति के यहाँ या पति के परिवार में निवास करती है। हिन्दुओं में अधिकतर पितृस्थानीय परिवार ही पाए जाते हैं।
2. मातृस्थानीय परिवार – इस प्रकार के परिवार में विवाह के पश्चात् पति स्थायी रूप से या आवश्यकता पड़ने पर पत्नी के साथ या पत्नी के परिवार के साथ रहता है। ये परिवार खासी, गारो तथा मालाबार के नायरों में प्राय: पाय जाते
3. नवस्थानीय परिवार – इस प्रकार के परिवार में विवाह के पश्चात् नव-दम्पत्ति अपने-अपने परिवारों से पृथक् अपना एक नया परिवार बसा लेते हैं। पश्चिमी देशों में नवस्थानीय परिवारों का अधिक प्रचलन है।
वंश या नामावली के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family on the Basis of Nomenclature)
वंश के आधार पर परिवार दो प्रकार के होते हैं-
1. पितृवंशीय परिवार – इस प्रकार के परिवार में पुरुषों की प्रधानता होती है। वंश का नाम पिता के नाम से चलता है। उत्तराधिकार के नियम एवं वंश परम्पराएँ भी पिता के नाम से चलती हैं। सम्पत्ति का हस्तान्तरण पिता से पुत्र को होता है।
2. मातृवंशीय परिवार- इसके अन्तर्गत वंश का नाम माता के नाम से चलता है। इसमें वंश परम्पराएँ, उत्तराधिकार के नियम आदि भी माता के नाम से ही चलते हैं। सम्पत्ति पर अधिकार माता के पश्चात् पुत्री को प्राप्त होता है।
सदस्यों की संख्या और संरचना के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family on the Basis of Number of Members and Structure)
सदस्यों की संख्या तथा परिवार की संरचना के आधार पर परिवार को निम्नलिखित दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है—
1. संयुक्त परिवार – संयुक्त परिवार उन व्यक्तियों का समूह है, एक ही छत के नीचे रहते हैं तथा एक ही रसोई में पका भोजन करते हैं। वे सामान्य सम्पत्ति के अधिकारी होते हैं, सामान्य पूजा में भाग लेते हैं तथा परस्पर एक-दूसरे से विशिष्ट नातेदारी से सम्बन्धित होते हैं। इस प्रकार के परिवार में अधिकतर सदस्य एक साथ रहते हैं। इस कारण परिवार का आकार बड़ा हो जाता है। संयुक्त परिवार को विस्तृत परिवार (Extended family) की संज्ञा भी दी जाती है।
2. केन्द्रीय (एकाकी) परिवार – इस प्रकार के परिवार में सदस्यों की संख्या कम होती है। परिवार के सदस्यों में पति-पत्नी तथा उनकी अविवाहित सन्तानें ही होती हैं। मरडॉक के अनुसार, एकाकी परिवार विवाहित पुरुष तथा स्त्री व उनकी सन्तानों से बनता है, यद्यपि कुछ व्यक्तिगत स्वरूपों में इसमें एक या अधिक व्यक्ति रह सकते हैं। अमेरीका तथा यूरोप में इस प्रकार के परिवारों का बहुत अधिक प्रचलन है।
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