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पाठ्यचर्या के उद्देश्य (Objectives of Curriculum)
पाठ्यचर्या ज्ञान का एक संगठित स्वरूप है जो एक व्यवस्था में ज्ञान एवं सूचनाओं को छात्रों तक पहुँचाता है। इसी पाठ्यचर्या के उद्देश्यों का सम्बन्ध शिक्षा के अतिरिक्त रूप में हमारे समक्ष उपस्थित है। अतः पाठ्यचर्या के उद्देश्यों को दृष्टिगत करते हुए निम्न बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया है-
1) शिक्षा के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना- शिक्षा मानवीय गुणों एवं क्षमताओं को बाहर निकालती है एवं जीवन के लक्ष्यों को निर्धारित करती है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति में अनेक प्रयास छात्र तथा शिक्षक द्वारा किए जाते हैं। इसी प्रकार पाठ्यचर्या एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
2) आवश्यक एवं उपयोगी ज्ञान प्रदान करना- पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों हेतु आवश्यक एवं उपयोगी ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। उदाहरण के लिए – छात्रों को भारत देश की भौगोलिक स्थिति जानना आवश्यक एवं उपयोगी भी है। अतः पाठ्यचर्या में भारत देश की भौगोलिक स्थिति को स्थान दिया जा सकता है तथा इससे सम्बन्धित सामग्री छात्रों हेतु उपयोगी सिद्ध होगी।
3) ज्ञान को क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित रूप में प्रदान करना- पाठ्यचर्या का उद्देश्य ज्ञान को छात्रों तक व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध स्वरूप में पहुँचाना है। क्रमबद्ध से तात्पर्य प्रारम्भिक शिक्षा में यदि बालकों को गणना सिखाना है तो 1 से प्रारम्भ करते हुए 100 तक का ज्ञान दिया जाए। उसी प्रकार भाषा सिखाते समय पहले अक्षरों से, फिर शब्दों से परिचय करवाया जाए। व्यवस्थित रूप में पाठ्यचर्या में पाठ्यवस्तु, सरल से कठिन की ओर रखी जाती है। जैसे- महात्मा के जीवन परिचय में सर्वप्रथम उनका जन्म, जन्म-स्थान, माता-पिता का नाम आदि होगा बाद में उनके जीवन में हो चुकी घटनाओं का विवरण दिया जाएगा।
4) पाठ्यचर्या उपलब्धि का आधार- पाठ्यचर्या एक निश्चित ज्ञान के अध्ययन हेतु शिक्षकों तथा छात्रों को दिया जाता है जिसके आधार पर ही उन्हें उपलब्धि प्राप्त होती है। इसी उपलब्धि के अनुसार ही मूल्यांकन किया जाता है। अतः पाठ्यचर्या का उद्देश्य छात्रों की उपलब्धियों का मूल्यांकन करना है।
5) सामाजिक आवश्यकताओं को पूर्ण करना- पाठ्यचर्या का उद्देश्य मुख्य रूप से सामाजिक आवश्यकताओं को पूर्ण करना है। एक प्रकार से पाठ्यचर्या सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दिशा-निर्देश देता है। पाठ्यचर्या में इस प्रकार की पाठ्यवस्तु सम्मिलित की जाती है जो समाज से सम्बन्ध रखती है जिससे बालकों में सामाजिकता की समझ विकसित होती है एवं बालक एक सामाजिक प्राणी बनता है। इस प्रकार बालक मानवता के गुणों को स्वयं में समाहित कर लेता है।
6) संस्कृति एवं सभ्यता को हस्तान्तरित करना- पाठ्यचर्या वह साधन है जिससे शिक्षक बालकों को भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता से परिचित कराता है। संस्कृति एवं सभ्यता को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने का कार्य भी पाठ्यचर्या की पाठ्यवस्तु के द्वारा ही किया जाता है। पाठ्यचर्या में त्योहारों की जानकारी, त्योहार मनाने के कारण, परम्पराओं की जानकारी, भाषा का ज्ञान, ऐतिहासिक संस्कृतियों का ज्ञान आदि तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है।
7) पर्यावरणीय जागरूकता में वृद्धि करना- पाठ्यचर्या के उद्देश्यों में पर्यावरणीय जागरूकता को सर्वोपरि रखा गया है। बालकों, शिक्षकों एवं अभिभावकों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाना। वर्तमान में पर्यावरण एक वैश्विक समस्या बन गई है। पर्यावरण प्रदूषण व वैश्विकता से सारी दुनिया जूझ रही है। ऐसे में बालकों को शिक्षा द्वारा ही जागरूक किया जा सकता है। पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों को पर्यावरण प्रदूषण व उसके प्रकार, कारण, प्रभाव एवं प्रदूषण को कम करने के उपायों की जानकारी दी जा सकती है।
8) व्यवसायपरक पाठ्य-सामग्री प्रदान करना- पाठ्यचर्या के ही माध्यम से छात्रों को ऐसी पाठ्य सामग्री प्रदान की जा सकती है जो कि छात्रों हेतु भविष्य में उपयोगी हो एवं व्यवसाय के लिए एक ठोस आधार का निर्माण करें। ऐसी शिक्षा छात्रों को उनका व्यवसाय चुनने में सहायता करेगी जिससे छात्रों की व्यावसायिक रुचि को भी पहचाना जा सके तथा जिसके आधार पर छात्रों को उचित निर्देशन प्राप्त होगा।
9) अध्यापक को स्पष्टता प्रदान करना- पाठ्यचर्या के उद्देश्यों के लिए शिक्षक के कार्यों को महत्त्व प्रदान किया गया है। पाठ्यचर्या का उद्देश्य यह भी है कि पाठ्यचर्या में ऐसी पाठ्यवस्तु को सम्मिलित किया जाए जो कि शिक्षक के लिए स्पष्ट हो एवं वह ज्ञान को छात्रों तक पहुँचाती हो। शिक्षक विभिन्न शिक्षण विधियों के माध्यम से निर्धारित पाठ्यवस्तु तथा प्रकरण को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है। इस प्रकार वह नवीनता, रोचकता एवं स्पष्टता के साथ अध्यापन करता है।
10) रुचिकर ज्ञान प्रदान करना- पाठ्यचर्या का उद्देश्य बाल-केन्द्रित शिक्षा प्रदान करना है। इसके अन्तर्गत छात्रों की व्यक्तिगत एवं शैक्षिक रुचियों, योग्यताओं व क्षमताओं को दृष्टिगत रखते हुए छात्रों को शिक्षा प्रदान करना है। इससे लाभ यह है कि सर्वप्रथम तो बालक विद्यालय आने में रुचि लेने लगेगा एवं वह अपनी रुचि अनुसार अध्ययन प्राप्त करेगा।
11) सामाजिक एवं शैक्षिक समस्याओं का निवारण करना- पाठ्यचर्या का यह भी उद्देश्य है कि उसके माध्यम से सामाजिक एवं शैक्षिक समस्याओं का समाधान हो संके। सामाजिक समस्याएँ, जैसे- गरीबी, अशिक्षा, जनसंख्या वृद्धि, भ्रष्टाचार, पर्यावरण क्षति आदि के विषयों से छात्रों को अवगत करवाया जा सकता है। शैक्षिक समस्या जैसे – अध्ययन में अरुचि, अपव्यय एवं अवरोधन, आपसी सामन्जस्य आदि की समस्याओं का समाधान भी विद्यालय में ही पाठ्यचर्या की पाठ्यवस्तु के माध्यम से किया जा सकता है।
12) अधिकारों एवं कर्तव्यों से परिचित कराना- पाठ्यचर्या का उद्देश्य है कि वह छात्रों को अपने जीवन के अधिकारों व कर्तव्यों से भली-भाँति परिचित करवाए जिससे वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होगा एवं अपने परिवार, समाज एवं देश के प्रति कर्त्तव्यों को पहचानेगा एवं उनका पालन कर सकेगा। जैसे- देश के संविधान की जानकारी व मानव अधिकारों की शिक्षा पाठ्यचर्या में सम्मिलित की जा सकती है।
13) लोकतन्त्र की स्थापना करना- पाठ्यचर्या के उद्देश्यों में मुख्य स्थान लोकतन्त्र की स्थापना को दिया जाता है। पाठ्यचर्या का उद्देश्य है कि बालकों की विचारधारा को लोकतन्त्रात्मक बनाना। यही कारण है कि विद्यालय में आने वाला प्रत्येक बालक अलग-अलग वातावरण एवं परिवेश से आता है एवं उसकी विचारधारा भिन्न-भिन्न होती है। इसलिए उसमें लोकतन्त्रात्मक गुण व विचार विकसित करने के लिए पाठ्यचर्या की पाठ्यवस्तु बहुत प्रभावी कारक है।
14) बालक का सर्वांगीण विकास करना- पाठ्यचर्या का मुख्य उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। वे सभी गुण सर्वांगीण विकास के अन्तर्गत आते हैं जो उसके व्यक्तित्व में शामिल होते हैं। सामाजिक, नैतिक, आर्थिक, शारीरिक, भौतिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक, मानसिक, पारिवारिक एवं चारित्रिक गुणों के विकास से ही सर्वांगीण विकास होता है।
15) योग्य नागरिकों का निर्माण- पाठ्यचर्या का उद्देश्य यह भी है कि वह अपनी पाठ्यवस्तु एवं प्रकरणों के माध्यम से छात्रों को देश का उत्तम नागरिक बनाए। पाठ्यचर्या में ऐसे प्रभावी प्रकरणों को सम्मिलित किया जाता है जो कि बालक के जीवन पर अमिट छाप छोड़ें। ऐसी शिक्षा व योग्यता से देश में अच्छे नागरिकों का निर्माण होता है।
16) मानवीय मूल्यों की स्थापना करना- छात्रों में मानवीय मूल्यों की स्थापना पाठ्यचर्या के माध्यम से की जा सकती है। मानवीय मूल्यों में छात्रों की क्षमता एवं उत्तम गुणों को विकसित किया जाता है। छात्रों में भारतीय मूल्य, आध्यात्मिक, नैतिक गुणों को समाहित करना ही पाठ्यचर्या का उद्देश्य है। छात्रों को मानवीयता के गुणों से ओत-प्रोत करना तथा उन्हें इस योग्य बनाना कि वे स्वयं के जीवन के साथ-साथ देश के नाम को भी विश्व पटल पर प्रकाशित करें।
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