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प्लेटों के दार्शनिक विचार | PLATO’S PHILOSOPHICAL IDEAS IN HINDI

प्लेटों के दार्शनिक विचार | PLATO'S PHILOSOPHICAL IDEAS IN HINDI
प्लेटों के दार्शनिक विचार | PLATO’S PHILOSOPHICAL IDEAS IN HINDI

प्लेटो के दार्शनिक एवं शैक्षिक विचारों का उल्लेख कीजिए।

प्लेटों के दार्शनिक विचार (PLATO’S PHILOSOPHICAL IDEAS)

प्लेटो का दर्शन निम्न चार सिद्धान्तों पर आश्रित है—

1. प्लेटो का आदर्शवाद- प्लेटो आदर्शवाद के प्रमुख प्रवर्तक थे। उन्होंने आदर्शवाद का प्रथम लक्ष्य सत्यं शिवं तथा सुन्दरम् को प्राप्त करना निर्धारित किया और दूसरा उनको जीवन में ढालना। प्लेटो का दर्शन विचारों का विज्ञान है और उसका स्वरूप आदर्शवादी है, जिसमें भौतिकता नाममात्र को भी नहीं है। प्लेटो के विचार से सत्य की खोज मनुष्य जीवन का लक्ष्य और सत्य पदार्थों में नहीं, उनके परे है। भौतिक जगत् तो सत्य की प्राप्ति में बाधक है। उसके शिक्षा सम्बन्धी विचार उसके दार्शनिक विचारों पर आश्रित हैं।

2. दो प्रकार के लोकों में विश्वास– प्लेटो दो प्रकार के जगत् में विश्वास करते हैं।

  • प्रथम है- विचार – लोक या आध्यात्मिक जगतः
  • द्वितीय है- ज्ञानलोक या भौतिक जगत्, जिसे इन्द्रिय जगत् भी कहते हैं।

( i ) आध्यात्मिक जगत् – प्लेटो के अनुसार आध्यात्मिक जगत् ही सत्य है। वह न तो अनादि है और न अपरिवर्तनशील विचारों के जगत् से प्लेटो का अभिप्राय उस महान दैवीय शक्ति के विचारों से है जिनसे अभिप्रेरित होकर उसने इस संसार की रचना की है। प्लेटो मानते थे कि विचार-लोक ही ईश्वर का मानस है तथा विचारों में दैवीय क्रम के अनुसार पारस्परिक सम्बन्ध होता है।

(ii) भौतिक जगत् – मनुष्य की आत्मा भी परमात्मा का अंश है। अतः वह भी अपने विचारों के आधार पर स्थूल पदार्थों को नये रूप देता है और मूर्तियाँ, भवन, वस्त्र, बर्तन आदि वस्तुएँ बनाता है। इस भौतिक जगत् की प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है, क्योंकि यह सत्य की छाया मात्र है। वस्तुओं का अस्तित्व हमारी इन्द्रियों की क्रियाशीलता तक ही सीमित है। प्लेटो कहते हैं कि बाह्य वस्तुएँ जैसी दिखाई देती हैं उनसे वास्तविक ज्ञान नहीं मिलता। हाँ, कुछ सीमा तक इन वस्तुओं से प्राप्त ज्ञान मूल्यवान हो सकता है। इसीलिए मनुष्य के विचारों में ही समस्त संसार निहित है।

3. आत्मा की अमरता – प्लेटो के अनुसार, आत्मा अमर है और शरीर में आने से पूर्व वह ज्ञानयुक्त रहता है। यह आत्मा उस परम विवेक का ही अंश है। शरीर के नष्ट होने पर भी आत्मा का अस्तित्व बना रहता है। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवनकाल में अच्छे कार्य करता है तथा विचारों का ज्ञान प्राप्त करता है तो मरने के उपरान्त आत्मा आनन्दमय स्थान पर जाकर बहुत समय तक वहाँ रहने के बाद पुनः शरीर रूप में इस संसार में आ जाती है, किन्तु नीच कर्म में लीन व्यक्ति मरणोपरान्त बहुत कष्ट भोगने के पश्चात् निम्नतर योनि में पुनर्जन्म लेते हैं। यहां प्लेटो के विचार भारतीय आस्तिक दर्शनों के सिद्धान्तों से मिलते-जुलते हैं।

4. ज्ञान सम्बन्धी दर्शन – प्लेटो ने ज्ञान को आत्मा का गुण माना है तथा मनुष्य को सत्य का अन्वेषक कहा है। उसके अनुसार ज्ञान के तीन रूप हैं-

  1. इन्द्रियजन्य ज्ञान ।
  2. सम्मति द्वारा प्राप्त ज्ञान।
  3. विवेकार्जित ज्ञान ।

प्लेटो के शैक्षिक विचार (EDUCATIONAL THOUGHTS OF PLATO)

प्लेटो के शैक्षिक विचार हमें उसकी ‘Republic’ और ‘The Laws’ नामक पुस्तकों से मिलते हैं। पहले तो प्लेटो भी अपने गुरु सुकरात की तरह मानता था कि ज्ञान ही सद्गुण है, लेकिन बाद में उसने माना कि ज्ञान व सद्गुण अलग-अलग हैं तथा दोनों की शिक्षा दी जा सकती है। सद्गुण ईश्वर द्वारा दिया गया रहस्यात्मक पुरस्कार है। गुण की तरह बुद्धि को प्लेटो ने प्रकृति द्वारा प्रदान की गई वस्तु माना है तथा कहा है कि बुद्धि विभेद के कारण मनुष्य में विभेद होता है। इसी आधार पर उसने समाज का विभाजन तीन वर्गों में किया है—

1. दार्शनिक – जिसके पास ज्ञान (Wisdom) का गुण है।

2. सैनिक – जो साहस व युद्ध कला का गुण रखते हैं।

3. मजदूर – जो उत्पादन व श्रम करते हैं।

प्लेटो ने इनकी तुलना क्रमशः स्वर्ण, रजत व ताम्र धातुओं से की है। प्लेटो के अनुसार, शिक्षा का दायित्व इसी बुद्धि मात्रा का पता लगाना तथा इसका विकास करके व्यक्ति को किसी भी वर्ग में रखना तथा वर्ग के अनुसार गुणों का विकास करना है।

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Anjali Yadav

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