शिक्षाशास्त्र / Education

प्लेटो के अनुसार शिक्षा का अर्थ तथा शिक्षा के उद्देश्य

प्लेटो के अनुसार शिक्षा का अर्थ तथा शिक्षा के उद्देश्य
प्लेटो के अनुसार शिक्षा का अर्थ तथा शिक्षा के उद्देश्य
प्लेटो के अनुसार शिक्षा को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।

प्लेटो के अनुसार शिक्षा का अर्थ- प्लेटो ने शिक्षा की परिभाषा करते हुए लिखा है— “शिक्षा से मेरा अभिप्राय उस प्रशिक्षण से है जिससे अच्छी आदतों के द्वारा बालकों में नैतिकता का विकास होता है। “

“I mean by education that training which is given by suitable habits to the first instincts of virtue in children.” -Plato

प्लेटो ने शिक्षा को नैतिक शिक्षण की प्रक्रिया के रूप में माना है जिसके द्वारा व्यक्ति की प्रवृत्तियों का सुधार किया जाता है। उसके अनुसार, शिक्षा वह प्रयत्न है जो प्रौढ़ व्यक्ति, बालकों की उन्नति हेतु करते हैं। प्लेटो शिक्षा को सत्यम् शिवम् सुन्दरम् की प्राप्ति का साधन मानता है।

प्लेटो के अनुसार शिक्षा का अभिप्राय प्रत्येक व्यक्ति में सद्गुणों का विकास करना है। ये सद्गुण प्रमुख रूप से चार हैं-

  1. बुद्धिमत्ता (Intelligence)
  2. साहस (Courage)
  3. संयम (Restraint)
  4. न्याय (Justice)

‘लॉज’ में उन्होंने कहा है- “शिक्षा से मेरा अभिप्राय उस पुस्तक से है जो शिशुओं में उचित आदतों के निर्माण के द्वारा सद्गुणों को उत्पन्न करती है।” इस प्रशिक्षण से हममें यह योग्यता उत्पन्न हो जाती है कि हम उस वस्तु घृणा करें जिससे हमें घृणा करनी चाहिए और उस वस्तु से प्रेम करें जिससे हमें वास्तव में प्रेम करना चाहिए।

प्लेटो के मतानुसार संयम और साहस का विकास अभ्यास से होता है तथा ये दोनों गुण आदतजन्य हैं। प्रारम्भिक जीवन के आधार पर बाद में बुद्धि-तत्त्व का विकास होता है तथा इसी बुद्धि तत्त्व पर बुद्धिमत्ता और न्याय के सद्गुण आधारित हैं। शिक्षा द्वारा इन्हीं सद्गुणों का विकास किया जाता है।

शिक्षा के उद्देश्य

प्लेटो ने ‘रिपब्लिक’ में आदर्श राज्य की कल्पना की तथा व्यक्ति को आत्मानुभूति (Self-realization) के आदर्श पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी। वह चाहता था कि राज्य में शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित हो। इसके लिए उसने शिक्षा को ही प्रबल साधना समझा तथा शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताये-

1. ईश्वर को जानना – शिक्षा का यह दायित्व है कि वह बालक को इस योग्य बनाये कि वह ईश्वर के साथ आत्म-साक्षात्कार कर सके। इसके लिए उसने बालकों को जीवन के मूल्यों की शिक्षा देने पर बल दिया। उनका मानना था कि इसके लिए बालकों को संसार के वास्तविक स्वरूप की जानकारी दी जाये। वस्तुतः प्लेटो के ये विचार भारतीय दर्शन से मिलते जुलते हैं, क्योंकि भारतीय शिक्षाशास्त्रियों ने मुक्ति अथवा मोक्ष को शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य स्वीकार किया है।

2. नैतिक विकास नैतिकता उसकी समस्त शिक्षा योजना का मेरुदण्ड है। नैतिक जीवन से प्लेटो का तात्पर्य उस जीवन से है जिसमें सौन्दर्य, न्याय तथा प्रेम का समावेश हो। ‘A life of beauty, a life of justice, a life of love.’ प्लेटो ने सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को तीन भागों में विभक्त किया है-

(1) शारीरिक उन्नयन, (2) विद्या-संस्कार, (3) संगीत की शिक्षा।

प्लेटो का विचार था कि शारीरिक उन्नति के बिना मानसिक उन्नति भी अच्छी प्रकार नहीं हो सकती। अतः उसने व्यायाम को भी महत्वपूर्ण समझा। संगीत द्वारा प्लेटो व्यक्ति के मस्तिष्क को परिष्कृत करना चाहता था। उनके अनुसार संगीत चिन्ताओं से दूर रखता है और इससे मस्तिष्क का विकास होता है। प्लेटो को विश्वास था कि जब शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास हो जाता है तभी व्यक्ति नैतिक जीवन के अनुकूल बन पाता है।

3. सत्यम् शिवम्, सुन्दरम् के प्रति आस्था उत्पन्न करना- प्लेटो ने शिक्षा का प्रारम्भिक उद्देश्य सत्यम् शिवम्, सुन्दरम् की भावना का विकास माना है तथा उसे प्रारम्भिक वर्षों की शिक्षा के द्वारा प्राप्त करने के लिए बल दिया है। प्लेटो के अनुसार, प्रारम्भ में ऐसा शैक्षिक वातावरण उत्पन्न करना चाहिए जिससे बालक में सुन्दरम् के प्रति प्रेम उत्पन्न हो तथा आगे चलकर यह प्रेम सत्यम् एवं शिवम् के रूप में विकसित हो। इस प्रकार सुन्दरम्, सत्यम् शिवम् का ज्ञान कराना शिक्षा का लक्ष्य होना चाहिए।

4. नागरिक क्षमता का विकास करना- नागरिक क्षमता को प्लेटो महान गुण समझता था। इस गुण का विकास युवकों में आत्म-निग्रह, साहस तथा सैनिक गुण की भावनाओं के आधार पर हो सकता था।

5. व्यक्तित्व में साम्य का विकास करना- प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व में साम्य भाव होना आवश्यक है। शरीर तथा मन, अभ्यास तथा विवेकपूर्ण जीवन, व्यक्तिगत हित तथा राज्यभक्ति आदि भावों का समाज रूप से विकास होना चाहिए। उसका विश्वास था कि सामंजस्य की भावना से राज्य के प्रति भक्ति के भाव पैदा होंगे।

6. बालकों को समता से रहना सिखलाना- “सच्ची शिक्षा नागरिकों को सभ्य बनाने तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों में एक-दूसरे को तथा उनके अधीन जो भी व्यक्ति हैं, उनको मानवीय बनाने की अधिकतम प्रवृत्ति रखती है।” प्लेटो विद्यालय को साम्य तथा सामाजिक ऐक्य स्थापित कराने का सबसे बड़ा साधन बनाना चाहता था।

7. मानव जीवन में सन्तुलन स्थापित करना- मानव जीवन में अनेकानेक विरोधी तत्त्व विद्यमान रहते हैं। शिक्षा का लक्ष्य यह होना चाहिए कि बालक इन तत्त्वों को पहचाने तथा इनमें सन्तुलन स्थापित करे। उसमें विरोधी परिस्थितियों में कार्य करने की क्षमता उत्पन्न हो । शिक्षा के द्वारा बालक में पूर्ण आत्मविश्वास का भाव जागृत होना चाहिए।

8. आदर्श समाज का निर्माण- प्लेटो ने एक आदर्श राज्य (Utopia) की कल्पना की। शरीर, मस्तिष्क तथा हृदय के समन्वय स्वरूप प्लेटो के व्यक्तित्व में यूनानी सभ्यता की देन हम निहित पाते हैं। उसने अपनी शिक्षा योजना द्वारा यूनानियों को इन्द्रिय-आश्रित सौन्दर्य – भावना को नैतिकता की ओर विकसित किया। वह कहते हैं कि यदि हमारे नागरिक शिक्षित और बुद्धिमान हैं तो उन्हें अपने कर्तव्य स्पष्ट दिखाई देंगे और वे सभी महत्त्वपूर्ण विषयों पर भली प्रकार विचार करेंगे। इस प्रकार आदर्श नागरिक ही एक नये समाज का निर्माण कर सकेंगे।

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Anjali Yadav

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