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बुनियादी शिक्षा के गुण
(1) बालक की प्रधानता- बुनियादी शिक्षा बालक प्रधान है। इस शिक्षा में बालक “ग्राहक यानि विद्या लेने वाला होता है। अतः उसकी आवश्यकताओं की जानकारी करके उनको करने पूरा का प्रयत्न किया जाता है। इसीलिए बालक विद्यालय के प्रत्येक कार्य तथा प्रयास में पूर्ण रुचि लेता है।
(2) क्रिया की प्रधानता- बुनियादी शिक्षा क्रिया प्रधान है। क्योंकि इसमें सम्पूर्ण ज्ञान का आधार अनुभव माना जाता है। रायबर्न के अनुसार- “बालक हस्तशिल्प के क्षेत्र में सक्रिय रहकर, मानसिक अनुभवों के साथ-साथ अन्य प्रकार के अनुभव भी प्राप्त करता है।” यह सिद्धान्त करो और सीखो के सिद्धान्त पर आधारित है।
(3) आर्थिक आधारशिला- बेसिक शिक्षा का आधार आर्थिक है। इसके पक्ष में दो तर्क है-
(1) बालक शिल्प की शिक्षा पाकर, वस्तुओं को बेचकर आंशिक रूप में विद्यालय और अपनी शिक्षा का व्यय निकाल सकता है।
(2) किसी हस्त शिल्प में प्रवीणता प्राप्त करके स्वतन्त्र रूप से जीविका उपार्जन करता है। डॉ॰ मुकर्जी के अनुसार- “बुनियादी शिक्षा का प्रयोजन, बेरोजगारी की समस्या का समाधान करना है।”
(4) सामाजिक आधारशिला- बुनियादी शिक्षा का आधार सामाजिक है क्योंकि उसमें बालक के सामाजिक गुणों का विकास करने का प्रयास किया जाता है। हस्तशिल्प के द्वारा उनमें आत्म संयम, आज्ञा पालन, सहयोग, सहिष्णुता आदि गुणों का विकास किया जाता है बुनियादी शिक्षा के निर्माताओं ने यह आशा प्रकट की है कि- “व्यावहारिक उत्पादक कार्य शारीरिक और मानसिक कार्यकर्ताओं के मध्य उपस्थित द्वेष की दीवार नष्ट कर देगा।”
(5) हस्तश्रम की महत्ता- बालक को हाथ से कार्य करने की शिक्षा दी जाती है। वह श्रम के महत्व को समझने लगता है। भारत देश में अंग्रेजी शिक्षा ने सबको निकम्मा बना दिया है जो हाथ से काम को नीचा काम समझते हैं।
(6) बालक में आत्मनिर्भरता की भावना का विकास- बुनियादी शिक्षा बालक में आत्मनिर्भरता की भावना को उत्पन्न करती है। यह शिक्षा इस प्रकार की है जिससे बालक उत्पादित वस्तुओं को बेचकर अपना छोटा-छोटा खर्च पूरा कर सकता है और आत्मनिर्भर बन सकता है।
(7) मातृभाषा शिक्षा का माध्यम- बुनियादी शिक्षा का सरल एवं स्वाभाविक माध्यम मातृभाषा ही है। अपने देश में बच्चों का शब्द भण्डार ही मातृभाषा का होता है और उसी के द्वारा वे अपने विचार को सरलता से व्यक्त कर सकते हैं या दूसरों के विचार ग्रहण कर सकते हैं। दुर्भाग्य से हमारे देश में मातृभाषा का स्थान अंग्रेजी ने ले लिया था जो सर्वदा अस्वाभाविक था और बच्चों के ऊपर भार स्वरूप था।
(8) बालक में आध्यात्मिकता का विकास- बेसिक शिक्षा बालक के आध्यात्मिकता के विकास पर पूर्ण ध्यान देती है और उसकी आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूर्ण करती है। यह शिक्षा बालक को अपने और सामाजिक जीवन को पूर्णता के आनन्द का अनुभव कराती है।
(9) शिल्प द्वारा शिक्षा- बुनियादी शिक्षा का माध्यम आधारभूत शिल्प है। सब विषयों का ज्ञान इस शिल्प के द्वारा दिया जाता है। आधुनिक मनोवैज्ञानिक शिक्षा शास्त्रियों द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि बालक को शिक्षा का माध्यम किसी उत्पादक कार्य को बनाना चाहिए।
बुनियादी शिक्षा के दोष
(1) यह योजना विशेष रूप से ग्रामों के लिए ही उचित है नगरों के लिए उचित नहीं है।
(2) इस योजना में उत्पादकता के सिद्धान्त को अधिक महत्व दिया गया है जिससे बुनियादी विद्यालय कुटीर उद्योगों में परिणत हो जायेगे।
(3) यह युग विज्ञान का युग है। ऐसे युग में कताई बुनाई के मध्य कालीन उपदेश देने से भारत की औद्योगिक प्रगति रुक जायेगी।
(4) बेसिक शिक्षा में किसी हस्तकला के द्वारा सब विषयों की शिक्षा प्रदान करना असम्भव है। समन्वय सहज और स्वाभाविक होना चाहिए।
(5) यह शिक्षा आत्म निर्भर नहीं हो सकती क्योंकि इसमें अपव्यय बहुत अधिक होगा। विद्यार्थी अधिक साधनों को बेकार कर देते हैं। इस योजना से विद्यार्थी की फीस और पुस्तकों का भी व्यय पूरा नहीं होता फिर शिक्षकों का वेतन मिलना तो बहुत कठिन बात है।
(6) बेसिक शिक्षा में धार्मिक शिक्षा को कोई स्थान नहीं दिया गया है। बालकों की नैतिक एवं चारित्रिक उन्नति के लिए इस प्रकार की शिक्षा की आजकल बहुत आवश्यकता है।
(7) कुछ लोगों का कहना है कि बेसिक शिक्षा अव्यवहारिक है। बेसिक स्कूलों में हस्तकलाओं की व्यवस्था करना अत्यन्त मुश्किल काम होता है जिसके कारण विद्यार्थियों को उनकी इच्छानुसार शिल्प नहीं मिल पाता। इसके अतिरिक्त यह भी दोष है कि स्कूलों में विद्यार्थी अपना अधिकांश समय हस्तकला के सीखने में ही लगा देते हैं फिर भी वे उसमें निपुण नहीं हो पाते ।
उपरोक्त दोषो के कारण ही वर्धा योजा असफल रही।
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