बेरोजगारी के कितने प्रकार हैं ? प्रत्येक से छुटकारे के साधनों की व्याख्या कीजिए।
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बेरोजगारी के प्रकार (Types of Unemployment)
हुक का मत
बेरोजगारी के प्रकारों को भिन्न-भिन्न विद्वानों ने अलग-अलग नाम दिये हैं। एलफ्रेड हुक के अनुसार, बेरोजगारी निम्नलिखित पाँच प्रकार की होती है-
1. वह बेरोजगारी जो आकस्मिक कारीगर रखने वाले व्यापारों में बहुधा दिखाई पड़ती है। उदाहरणार्थ, मिलों में काम घट जाने पर छँटनी होती रहती है।
2. उद्योगों के हास से हुई बेरोजगारी प्रतियोगिता में असफलता या अन्य किसी भी कारण से उद्योगों के ह्रास होने से बहुत से लोग बेरोजगार हो जाते हैं।
3. वह बेरोजगारी जो व्यापार चक्र, लाभ-हानि, भाव के उतार-चढ़ाव आदि के फलस्वरूप होती है। व्यापार में मन्दी आ जाने से हजारों आदमी बेरोजगार हो जाते हैं।
4. मौसमी व्यापार से उत्पन्न बेरोजगारी-मौसमी व्यापार मौसम खत्म हो जाने पर बन्द हो जाते हैं। इससे उनमें काम करने वाले लोग बेरोजगार हो जाते हैं।
5. औद्योगिक व्यापार के असफल होने से उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी–अनेक कारखाने कुछ दिन काम करके बन्द हो जाते हैं और उनके मजदूर बेरोजगार हो जाते हैं।
चैपमैन का मत
चैपमैन ने बेरोजगारी के दो प्रकार बतलाये हैं-
1. वस्तुगत बेरोजगारी (Objective Unemployment)- यह उन कारणों से होती है जो मनुष्य के नियन्त्रण से परे है।
2. आत्मगत बेरोजगारी (Subjective Unemployment)- यह मनुष्य के अपने शारीरिक या मानसिक दोषों के कारण होती है।
वस्तुगत बेरोजगारी के भेद
वस्तुगत बेरोजगारी के निम्नलिखित चार प्रकार हो सकते हैं-
1. चक्रवत बेरोजगारी (Cyclical Unemployment)- यह चक्रवत आर्थिक उतार-चढ़ाव के कारण होती है।
2. साधारण बेरोजगारी (Normal Unemployment) – यह बेरोजगारी लगभग सभी देशों में पाई जाती है। आजकल को जटिल आर्थिक व्यवस्था में सभी लोगों को सभी समय काम पर लगाये रखना कठिन है।
3. मौसमी बेरोजगारी (Seasonal Unemployment)-
4. संरचनात्पक बेरोजगारी (Structural Unemployment)- यह आर्थिक संरचना के दोषों के कारण होती है। उदाहरण के लिये कभी-कभी जब कानपुर में हजारों लोग बेकार होते हैं, तब दिल्ली में मजदूरों की भारी मांग हो सकती है। इस अवस्था में बेरोजगारी, पूर्ति के मांग से अधिक होने के कारण नहीं, बल्कि आर्थिक संरचना के दोषों के कारण है।
बेरोजगारी दूर करने के उपाय
उपर्युक्त सभ, प्रकार की बेरोजगारी को दूर करने के लिए सुआयोजित और सब सूचनायें रखने वाले कामदिलाऊ कार्यालय (Employment Exchanges) होने चाहियें। आत्मगत बेकारी दूर करने के लिये सरकारी की से को विशेष प्रकार का काम दिलाने तथा रोगियों का उपचार करने का प्रबन्ध होना चाहिये। वस्तुगत बेकारी को दूर करने के लिए उसके विभिन्न कारणों को दूर करना होगा। मौसमी बेकारी को दूर करने के लिये स्थायी उद्योगों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। चक्रवत बेरोजगारी एवं संरचनात्मक बेरोजगारी मजदूरों को काम के स्थानों पर भेजने का प्रबन्ध करके दूर की जा सकती है। साधारण बेरोजगारी के लिए किसी उपाय अथवा चिंता की जरूरत नहीं है। व्यापार के उतार-चढ़ाव से हुई बेरोजगारी को रोकने के लिये माँग का स्तर बनाये रखने की जरूरत है। माँग बनाये रखने के लिये उपभोक्ताओं की क्रय-शक्ति बढ़ाई जानी चाहिये। व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक विनियोग (Investment) बढ़ाने से बेरोजगारी घटती है। मजदूरों के काम के घण्टे कम करने से अधिक लोगों को मजदूरी मिलेगी।
बेरोजगारी के कारण (Causes of Unemployment)
औद्योगिक बेरोजगारी के कारण
औद्योगिक बेरोजगारी के कारण निम्नलिखित हैं-
- उद्योगों की स्थान विषयक स्थिति दोषपूर्ण है-कहीं-कहीं अत्यधिक केन्द्रीयकरण हो गया है।
- अपूर्ण औद्योगिक विकास-औद्योगिक क्षेत्र में बेकारी के मुख्य कारण उद्योगों का विकास बहुत कम होना है।
- अन्तर्राष्ट्रीय बाजार का अभाव-इसके कारण उद्योगों का समुचित विकास नहीं हो पाता।
शिक्षितों में बेरोजगारी के कारण
भारतवर्ष में शिक्षितों में बेरोजगारी के निम्नलिखित कारण हैं-
1. अंग्रेजों ने भारत में जो शिक्षा प्रणाली चलाई, उसका उद्देश्य क्लर्क निर्माण करना था। मे ह्यू (May Hew) ने लिखा है, “मूल रूप से व्यावहारिक और उपयोगितावादी होने के कारण उन्होंने सरकारी कर्मचारियों, वकीलों, डॉक्टर तथा व्यापारिक क्लर्को को उत्पन्न करने का उद्देश्य रखा।” भारत स्वतन्त्र हो जाने के बाद भी इस शिक्षा प्रणाली में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। इससे बाबूगिरी ज्यों की त्यों है और शिक्षित बेरोजगारी बढ़ रही है।
2. विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की भरमार – भारतवर्ष में उच्च शिक्षा की भरमार है, जबकि बुनियादी शिक्षा सबको नहीं मिल पाती। भारत में 33 से अधिक विश्वविद्यालयों और उनसे लगे सैकड़ों कॉलेजों से प्रतिवर्ष इतने स्नातक निकलते हैं कि उन सबको सफेदपोश नौकरियों में खपाना बहुत कठिन है। किसी प्रकार के व्यवसाय अथवा शारीरिक श्रम के काम वे करना नहीं चाहते। इससे बेरोजगारी बढ़ रही है। भारत की शिक्षा प्रणाली के बारे में बंगाल बेरोजगार समिति (Bengal Unemployment Committee) ने लिखा है, “यह एक बॉस के समान है, प्रत्येक जोड़ एक परीक्षा होती है तथा नीचे से लेकर ऊपर तक व्यास एक ही रहता है। इसकी शाखायें नहीं होतीं और ऊपर का स्थान बहुत ही कम क्षेत्र घेरता है। आवश्यकता यह है कि ऐसा वृक्ष हो, जिसकी शाखायें यथासम्भव अधिक दिशाओं में फैली हो न कि सब चोटी पर हों।”
प्लानिंग कमीशन का मत
प्रथम पंचवर्षीय योजना बनाते समय प्लानिंग कमीशन ने भारत की बेरोजगारी के निम्नलिखित चार मुख्य कारण बतलाये थे-
- कुटीर उद्योगों का नाश ।
- देश का विभाजन, जिससे अनेकों उद्योगों, पेशों और व्यवसायों का नाश हो गया।
- जनसंख्या में तीव्रगति से वृद्धि होना ।
- खेती के अतिरिक्त अन्य उद्योगों में सन्तोषजनक उन्नति का न होना।
बेरोजगारी के परिणाम
भारत में इस जबर्दस्त बेरोजगारी के कारण देश में प्राकृतिक साधनों की प्रचुरता होते हुये भी भयंकर निर्धनता फैली हुई है। बेरोजगारी के कारण हजारों नवयुवकों ने आत्मविश्वास खो दिया है। बहुत-से चोरी, डकैती आदि समाज विरोधी कार्यों में लग गये हैं। आत्महत्या के समाचार भी कभी-कभी सुनाई पड़ते हैं। बेकारी से व्यक्तिगत और पारिवारिक तथा सामाजिक विघटन बढ़ रहा है और देश की बहुत-सी मनुष्य शक्ति बेकार जा रही है।
बेरोजगारी दूर करने के उपाय (Remedies of Unemployment)
औद्योगिक बेरोजगारी दूर करने के उपाय उद्योगों का विकास, सार्वजनिक उद्योगों का निर्माण, नये क्षेत्रों में कारखाने खोलना, मजदूरों को माँग की जगह पहुँचाने का प्रबन्ध करना और औद्योगिक प्रशिक्षण आदि हैं। शिक्षितों की बेकारी दूर करने के लिये शिक्षा प्रणाली में आमूल परिवर्तन होना चाहिये। शिक्षितों में श्रम के मान (Dignity of Labour) की भावना बढ़ाने तथा जीवन के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण उत्पन्न करने की जरूरत है। आर्थिक विकास सबसे अधिक आवश्यक है। कामदिलाऊ दफ्तरों की संख्या बढ़नी चाहिये। राधाकृष्णन कमीशन ने यह सुझाव दिया है कि कृषि सम्बन्धी शिक्षा को एक राष्ट्रीय विषय बना देना चाहिए। कीन्स के सिद्धान्त का समर्थन करने वालों ने कर्ज में ब्याज की दर कम करने का सुझाव दिया है, जिससे अधिक रुपया लगाने की सम्भावना बढ़े। विदेशी आर्थिक सहायता के लिये भी कोशिश होनी चाहिये। गर्भ निरोध तथा परिवार नियोजन की योजनाओं के द्वारा आबादी की बाढ़ को रोकने की कोशिश की जानी चाहिये।
प्लानिंग कमीशन के सुझाव
बेरोजगारी दूर करने के लिये प्लानिंग कमीशन ने निम्नलिखित सिफारिशें की हैं-
- शिक्षा का प्रसार ।
- प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों की स्थापना ।
- सड़क यातायात का विकास।
- व्यक्तिगत मकान बनाने के कार्य में सहायता।
- विद्युत शक्ति के विकास की योजनाओं का जोर ।
- व्यक्तियों या छोटे समूहों को छोटे उद्योगों व व्यापार के लिये सहायता ।
- कार्य और प्रशिक्षण (Apprenticeship) कैम्पों की स्थापना।
- सरकार और सार्वजनिक समितियों के द्वारा कुटीर और छोटे उद्योगों के उत्पादन की बिक्री का प्रबन्ध।
- राष्ट्रीय विस्तार सेवा।
- कम वेतन वाले नगर निवासियों को मकान बनाने की सहायता।
- शरणार्थियों को विशेष सहायता।
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