बौद्धकालीन शिक्षा के गुण-दोषों का उल्लेख करते हुए बताइए कि इस शिक्षा की भारतीय शिक्षा को क्या देन है ?
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बौद्धकालीन शिक्षा प्रणाली के गुण (Qualities of Buddha Period Education System)
बौद्ध-शिक्षा प्रणाली का अध्ययन कर लेने के बाद हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि इस शिक्षा प्रणाली में ये गुण पाये जाते हैं-
- इस काल की शिक्षा सुसंगठित केन्द्रों में समस्त योजनाओं के साथ विधिवत् प्रदान की जाती थी।
- इस शिक्षा प्रणाली में जाति-पाँति आदि का भेदभाव नहीं था। शिक्षा के द्वार चाण्डालों को छोड़कर सबके लिए खुले रहते थे।
- उस समय शिक्षा का माध्यम पाली लोक भाषायें ही विशेष रूप से थीं।
- उस समय अनेक शिक्षा संस्थाओं अथवा शिक्षा केन्द्रों का जन्म हुआ। ये शिक्षा केन्द्र अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुके थे और इनमें शिक्षा प्राप्त करने के लिए देश-विदेश के छात्र आया करते थे।
- इस काल में विश्वविद्यालयी शिक्षा का विकास उच्च स्तरीय ढंग का था।
- धार्मिक शिक्षा के अतिरिक्त इस काल में व्यावसायिक शिक्षा भी प्रदान की जाती थी, अनेक प्रकार के व्यवसाय अथवा शिल्प थे जिनमें एक का ज्ञान प्राप्त करना शिक्षा के लिए आवश्यक था।
- बौद्धकालीन शिक्षा निःशुल्क थी।
- छात्रों को विद्यालय अर्थात् संघों में नियमित दिनचर्या के साथ सन्तुलित जीवन व्यतीत करना पड़ता था।
- छात्र सदाचार तथा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते थे।
- गुरु-शिष्य का सम्बन्ध अत्यन्त ही आध्यात्मिक था।
- इस काल की शिक्षा में शारीरिक दण्ड का अभाव था।
- बौद्धकालीन शिक्षा ने अन्य देशों में भी अपना प्रभाव जमाया था।
- इस काल में लेखन कला का पर्याप्त विकास हो गया था।
- इस काल में स्त्री शिक्षा का प्रसार भी हुआ।
- छात्रावास प्रथा का भी समुचित विकास हुआ था।
बौद्धकालीन शिक्षा प्रणाली के दोष (Demerits of Buddha Period Education System)
बौद्धकालीन शिक्षा में जहाँ अनेक गुण थे वहीं उसमें कुछ दोष भी थे, जो निम्न हैं-
(1) बौद्धकालीन शिक्षा प्रणाली की यह खराबी थी कि उसमें धार्मिक तत्त्वों को ही अधिक प्रधानता प्रदान की जाती थी। आध्यात्मिक पक्ष के विकास पर अधिक बल दिया जाता था जिसके कारण लौकिक पक्ष प्रायः अविकसित ही रह जाता था अर्थात् इस पक्ष का पूर्ण विकास नहीं हो पाता था।
(2) इस काल की शिक्षा में अहिंसा पर अत्यधिक बल दिया जाता था। हिंसा की मनाही सर्वत्र थी। इसका परिणाम यह हुआ कि देश में सैनिक शिक्षा का ठीक विकास नहीं होने पाया।
(3) चूँकि बौद्ध शिक्षा प्रणाली में जनतान्त्रिक विचारों का समावेश हों गया था, इसलिए स्वेच्छाचारिता का फैलाव हुआ। यह स्वेच्छाचारिता ठीक नहीं थी।
(4) इस काल में स्वज़ीवन की पवित्रता पर तो ध्यान दिया गया परन्तु समाज के विकास की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि इस काल की शिक्षा द्वारा सामाजिक विकास को प्रेरणा नहीं प्राप्त हुई।
(5) यदि ध्यानपूर्वक देखा जाय तो बौद्ध शिक्षा पूर्ण रूप से भगवान बुद्ध के धार्मिक सिद्धान्तों पर आधारित थी। भिक्षु भगवान बुद्ध के धार्मिक उपदेशों का प्रचार करने में लगे रहते थे। इस प्रकार कहा जा सकता है कि बौद्धकालीन शिक्षा बौद्ध धर्म के प्रचार का एक साधन मात्र थी।
(6) भिक्षु जब भिक्षुणियों के साथ रहने लगे तो बौद्ध विहारों का त्याग और ब्रह्मचर्य तथा तपस्या का जीवन जाता रहा। साधना की वह दीपशिखा हिलने लगी और उसके स्थान पर विलास का प्रकाश फैल गया।
(7) उस समय श्रम का महत्त्व घट गया । इसलिए शिल्प के कार्यों को बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा गया।
(8) स्त्री शिक्षा केवल उच्च वर्ग तथा व्यावसायिक वर्ग तक ही सीमित रह गयी। बौद्धकालीन शिक्षा द्वारा निम्न वर्ग की स्त्रियों को कोई भी लाभ नहीं प्राप्त हो सका।
(9) बौद्धकालीन शिक्षा मानसिक और हृदयपक्ष के विकास पर अधिक बल देती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि शारीरिक विकास की ओर लोगों का ध्यान नहीं गया जिसके कारण शारीरिक विकास नहीं हो पाया। इस प्रकार बौद्धकालीन शिक्षा के लिए कहा जा सकता है यह शिक्षा बालक के सर्वांगीण विकास पर ध्यान नहीं देती थी।
(10) शनैः-शनैः संघों तथा विहारों में निकम्मे और बेकार किस्म के लोग आने लगे जिसका परिणाम बड़ा भयंकर हुआ। यद्यपि अपराधी तथा समाज-विरोधी व्यक्तियों को बौद्ध धर्म की शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे ऐसे लोग भी आ गये। इसका परिणाम यह हुआ कि बौद्ध शिक्षा-केन्द्रों पर तरह-तरह का अत्याचार और अनाचार फैलने लगा।
बौद्ध शिक्षा की आधुनिक भारतीय शिक्षा को देन (Gift of Buddha Education to Modern Indian Education)
आधुनिक भारतीय शिक्षा को बौद्ध शिक्षा की महान देन है। आधुनिक शिक्षा के क्षेत्र में अनेक ऐसे कार्य किए गए जो बौद्ध शिक्षा के पूर्ण अंग थे। बौद्ध युग में सबसे पहले सामान्य विद्यालयों का आयोजन किया गया। आधुनिक युग के सामान्य विद्यालय बौद्ध शिक्षा की देन हैं। आधुनिक सार्वजनिक प्राथमिक शिक्षा और स्त्रियों हेतु उच्च शिक्षा बौद्ध शिक्षा की देन है। खेल-कूद और शारीरिक व्यायाम भी बौद्ध शिक्षा की देन है। आधुनिक युग में प्राविधिक और वैज्ञानिक शिक्षा को जो बल दिया जा रहा है उसका रूप बौद्ध युग में ही देखने को मिला-
(1) व्यावसायिक एवं लाभप्रद विषय की शिक्षा का आयोजन भी उस युग की देन है।
(2) बहुशिक्षक और सामूहिक शिक्षा की प्रणाली भी सर्वप्रथम बौद्ध युग में ही देखने को मिली।
(3) लौकिक एवं सामान्य विषयों की शिक्षा का प्रावधान भी बौद्ध शिक्षा से लिया गया है।
(4) आधुनिक युग में उच्च स्तर पर सैद्धान्तिक और प्रायोगिक रूप से शिक्षा का आयोजन हो रहा है, उसके बीज भी बौद्ध युग में देखने को मिलते हैं।
(5) उस युग में लोकभाषाओं को प्रोत्साहन दिया गया और उनको शिक्षा का माध्यम बनाया गया।
(6) शिक्षा के विभिन्न स्तर पर अध्ययन की निश्चित अवधि भी बौद्ध युग से ही ली गयी है।
(7) शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश सम्बन्धी, न्यूनतर आयु, नियमों एवं परीक्षाओं का आयोजन भी उस युग की देन है।
(8) माता-पिता एवं अभिभावकों के साथ रहने वाले बच्चों हेतु शिक्षा की सुविधाओं का आयोजन भी बौद्ध शिक्षा की देन है।
(9) बौद्ध युग में सभी धर्मों, वर्गों एवं जातियों के बच्चों को शिक्षा के समान अवसर दिए गए। आधुनिक युग में सभी धर्मों, वर्गों एवं जातियों के बच्चों की समान शिक्षा का जो आयोजन किया गया है वह भी बौद्ध युग की देन है।
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