शिक्षाशास्त्र / Education

बौद्ध दर्शन शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या, शिक्षण विधियाँ, अनुशासन एवं शिक्षक-शिक्षार्थी सम्बन्ध

बौद्ध दर्शन शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या, शिक्षण विधियाँ, अनुशासन एवं शिक्षक-शिक्षार्थी सम्बन्ध
बौद्ध दर्शन शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या, शिक्षण विधियाँ, अनुशासन एवं शिक्षक-शिक्षार्थी सम्बन्ध

बौद्ध दर्शन शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या, शिक्षण विधियाँ, अनुशासन एवं शिक्षक-शिक्षार्थी सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।

बौद्ध दर्शन और शिक्षा (Budhism and Education )- दर्शन ने हमारे देश की शिक्षा के स्वरूप निर्धारण में बड़ा योगदान दिया है। आज भी यह हमारी शैक्षिक समस्याओं के समाधान में हमारी सहायता करता है। यहाँ उसके शिक्षा पर प्रभाव का वर्णन प्रस्तुत है।

बौद्ध दर्शन और शिक्षा का सम्प्रत्यय

बौद्ध दर्शन लौकिक एवं पारमार्थिक दोनों सत्यों में विश्वास करता है-

द्वे सत्ये समुपाश्रित्य बुद्धानां धर्म देशना ।

लोक संवित्ति सत्यं च सत्यं च परमार्थना।। (माध्यमिककारिका, 24/8)

उसके अनुसार शिक्षा एक ऐसी महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है जो मनुष्य को लौकिक एवं पारमार्थिक दोनों जीवन के योग्य बनाती है। पारमार्थिक जीवन से उसका तात्पर्य निर्वाण से है। उसकी दृष्टि से वास्तविक शिक्षा वह है जो मनुष्य को निर्वाण की प्राप्ति कराए।

बौद्ध दर्शन और शिक्षा के उद्देश्य

बौद्ध दर्शन के अनुसार मनुष्य जीवन के दो पहलू है—एक लौकिक और दूसरा पारमार्थिक। लौकिक दृष्टि से बौद्ध दार्शनिकों ने मनुष्य के शारीरिक, बौद्धिक, चारित्रिक एवं नैतिक तथा आर्थिक विकास पर बल दिया है और पारमार्थिक दृष्टिं से निर्वाण की प्राप्ति के लिए आर्य सत्य, आर्य अष्टांग मार्ग और त्रिरत्न की उपलब्धि आवश्यक मानी है। उनकी दृष्टि से ये लका ना ही शिक्षा के उद्देश्य होने चाहिए। आज की भाषा में हम इन्हें निम्नलिखित रूप में देख-समझ सकते हैं-

1. शारीरिक विकास – भगवान बुद्ध ने शरीर को स्वस्थ रखने पर बल दिया है। उनकी दृष्टि से शरीर स्वस्थ होने पर मनुष्य शरीर के रुग्ण हो जाने से होने वाले दुःखों से मुक्त जाता है। फिर स्वस्थ शरीर के अभाव में कुछ भी सम्भव नहीं, न धर्म और न कर्म ।

2. अज्ञान का अन्त एवं ज्ञान की प्राप्ति- बौद्ध दर्शन के अनुसार मनुष्य के समस्त दुःखों का कारण अज्ञान है। बौद्धों के अनुसार संसार को सुखमय मानना और इन्द्रिय भोग एवं तृष्णा की तृप्ति में सुख की कल्पना करना अज्ञान है। उनके अनुसार चार आर्य सत्यों का ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है।

3. सामाजिक आचरण की शिक्षा- बौद्ध दर्शन समस्त प्राणियों के कल्याण का पक्षधर है, यही कारण है कि इसमें करूणा एवं दया पर सबसे अधिक बल दिया गया है। बिना करूणा भाव के एक मनुष्य दूसरे के दुःखों को नहीं समझ सकता और बिना दया किए एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के दुःखों को दूर नहीं कर सकता। बौद्ध दर्शन इसी प्रकार के सामाजिक विकास का पक्षधर है।

4. मानव संस्कृति का संरक्षण- बौद्ध धर्म को संस्कृति का अंग मानते हैं। उनकी दृष्टि से संस्कृति के संरक्षण से ही धर्म का संरक्षण हो सकता है। पर संस्कृति से उनका तात्पर्य सम्पूर्ण से मानव जाति की संस्कृतियों से है। इनके ज्ञान द्वारा ही मनुष्य वास्तविक ज्ञान की खोज कर सकता है और वास्तविक धर्म का पालन कर सकता है।

5. नैतिक एवं चारित्रिक विकास- बौद्ध धर्म में आत्म संयम, करुणा और दया पर सबसे अधिक बल दिया गया है। बौद्धों की दृष्टि से शिक्षा के द्वारा मनुष्य में इन सब गुणों का विकास करना चाहिए। इसी को वे चरित्र मानते हैं। इन गुणों के विकास के लिए वे कठोर नियमों के पालन पर बल देते हैं।

6. व्यावसायिक विकास- बौद्ध दर्शन मनुष्यों को संसार से विमुख होने का आदेश नहीं देता, वह तो उन्हें सांसारिक दुःखों से मुक्ति दिलाना चाहता है। तब भूख के दुःख से बचने, कपड़ों के अभाव के दुःख से बचने मकान के अभाव के दुःख से बचने आदि के लिए उसे किसी व्यवसाय (कला-कौशल, उद्योग व व्यापार) में निपुण होना चाहिए। पर वह न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के अतिरिक्त धन अर्जित करने का निषेध करता है। इसकी दृष्टि से तब तो व्यक्ति स्वयं और पूरा समाज और अधिक दुःखों को प्राप्त होगा।

7. निर्वाण की प्राप्ति- बौद्ध मनुष्य जीवन का अन्तिम उद्देश्य सांसारिक दुःखों छुटकारा मानते हैं। इसे वे निर्वाण कहते हैं। निर्वाण की प्राप्ति के लिए बौद्ध मनुष्यों को चार आर्य सत्यों के ज्ञान एवं आर्य अष्टांग मार्ग तथा त्रिरत्न के पालन का उपदेश देते हैं।

बौद्ध दर्शन और शिक्षा की पाठ्यचर्या

बौद्ध दार्शनिकों ने शिक्षा के दो प्रकार के उद्देश्य निश्चित किए हैं-लौकिक और पारमार्थिक लौकिक उद्देश्य हैं- शारीरिक विकास, चारित्रिक एवं नैतिक विकास और आर्थिक विकास। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उन्होंने पाठ्यचर्या में नैतिक जीवन, व्यायाम, भाषा ज्ञान, आयुर्वेद, शल्य चिकित्सा, कृषि, पशुपालन एवं वास्तुकला आदि को सम्मिलित किया है। बौद्ध शिक्षा के पाठ्यक्रम में उन्नीस शिल्पों (सिम्पों) के सम्मिलित होने का उल्लेख है। पारमार्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उन्होंने पाठ्यचर्या में त्रिपिटकों एवं अन्य धर्म दर्शनों के अध्ययन और नैतिक जीवन को सम्मिलित किया है।

बौद्ध शिक्षा दो भागों में विभक्त थी-प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर पर सर्वप्रथम भाषा ज्ञान हेतु सिद्धिरस्तु नामक पुस्तक को पढ़ाया जाता था। उसके साथ सामान्य गणित ज्ञान भी कराया जाता था। उच्च स्तर पर व्याकरण, धर्म, दर्शन, ज्योतिष और आयुर्वेद विज्ञान तथा शल्य चिकित्सा का ज्ञान कराया जाता था। कुशल शिल्पियों द्वारा शिल्पों की शिक्षा का भी विधान था।

बौद्ध दर्शन और शिक्षण विधियाँ

बौद्ध दार्शनिकों के अनुसार सीखने के तीन साधन है—शरीर, मन और चेतना। और चूँकि शरीर, मन तथा चेतना की दृष्टि से सभी बच्चे समान नहीं होते इसलिए उनके लिए शिक्षण विधियाँ भी भिन्न होनी चाहिए। बौद्ध शिक्षण विधियों को हम दो भागों में बाँट सकते हैं- व्यक्तिगत शिक्षण की विधियाँ और सामूहिक शिक्षण की विधियाँ। व्यक्तिगत विधियों में स्वाध्याय, मनन और चिन्तन विधियों का उल्लेख मिलता है और सामूहिक विधियों में व्याख्यान, व्याख्या और चर्चा विधियों का उल्लेख मिलता है। व्याख्यान में शिक्षक विषय का पूर्ण परिपाक करता है और छात्र अपनी-अपनी योग्यता एवं क्षमतानुसार उसे ग्रहण करते हैं। व्याख्या विधि प्रश्नोत्तर विधि का ही दूसरा रूप है। इसमें शिक्षक विषयवस्तु अथवा सूत्रबद्ध ज्ञान की व्याख्या करता है तथा छात्र बीच-बीच में अपनी शंकाओं का समाधान करते हैं। चर्चा विधि में जटिल दार्शनिक सिद्धान्त अथवा अधीत सामग्री पर छात्र परस्पर चर्चा करते हैं। वास्तविक ज्ञान हेतु पर्यटन, सम्मेलन तथा विद्वानों द्वारा शास्त्रार्थ का उल्लेख भी मिलता है।

बौद्ध दर्शन और अनुशासन

बौद्ध शिक्षा में गुरु और शिष्य दोनों संघ के आश्रित होते थे। संघ की सत्ता सर्वोपरि थी। संघ के लिए शास्त्र सम्मत नियम बनाए जाते थे। प्रत्येक शिक्षक और शिक्षार्थी को इन नियमों का पालन करना होता था। इस संयमी जीवन को अनुशासन माना जाता था। नियमों का उल्लंघन करने पर शारीरिक दण्ड नहीं दिया जाता था, भिक्षुक स्वयं पश्चाताप करते थे।

बौद्ध दर्शन और शिक्षक

बौद्ध शिक्षा में वही व्यक्ति शिक्षक हो सकता था जिसने चार आर्य सत्यों को जान लिया हो और जो अष्टांग मार्ग का अनुसरण करता हो । शिक्षा देने का अधिकार केवल भिक्षुओं को था और वह भी उन भिक्षुओं को जो कम से कम 10 वर्ष भिक्षुक रह चुके हों और जो शुद्ध आचरण, पवित्र विचार, विनम्रता तथा मानसिक क्षमता से परिपूर्ण हो। बौद्ध शिक्षकों को दो वर्गों में बाँटते थे—एक उपाध्याय अर्थात् उद्भट विद्वान, जिनके निकट बैठकर भिक्षुक शिक्षा ग्रहण करते थे और दूसरे आचार्य अर्थात् आचरण की शिक्षा देने वाले, जिनका अनुसरण कर, छात्र उच्च आचरण करते थे। उस समय गुरु शिष्यों को उनके आचरण के प्रति सचेत करते थे और शिष्य गुरुओं को उनके अपने आचरण के प्रति सचेत करते थे।

बौद्ध दर्शन और शिक्षार्थी

बौद्ध दर्शन के अनुसार छात्र का वर्तमान उसके पूर्व जन्म के कर्म तथा उसके जन्म से लेकर अब तक के संस्कारों का परिणाम होता है और उसका भविष्य उसके पूर्व जन्म के कर्म तथा जन्म से अब तक के कर्म के साथ-साथ वर्तमान में किए जाने वाले कर्मों पर निर्भर होता है। अतः सब बच्चे मठ तथा बिहारों में शिक्षा पाने के अधिकारी है। परन्तु माता-पिता की आज्ञा बिना उन्हें प्रवेश नहीं दिया जाता था। इसके अतिरिक्त संक्रामक से पीड़ित, घोर नैतिक अपराधी, अविनम्र, दुराचारी, पलायनकर्ता आदि को भी प्रवेश नहीं दिया जाता था। राज्य कर्मचारियों, सैनिकों तथा दासों को भी प्रवेश नहीं दिया जाता था। 8 वर्ष की आयु पर पब्बज्जा संस्कार होत था। इसमें बालक सिर मुड़ाकर पवित्रता धारण करता था और शरणत्रयी

बुद्धम् शरणं गच्छामी।

धम्मं शरणं गच्छामी।

संघ शरणं गच्छामी।।

से उसका संघ में प्रवेश होता था। इस अवसर पर छात्र को दस आदेश दिए जाते थे। ये दस आदेश ‘दस सिक्खा पदानि’ कहलाते हैं। प्रत्येक छात्र को इनका पालन करना होता था। ये दस आदेश थे—

  1. जीव हिंसा न करना।
  2. किसी की वस्तु न लेना।
  3. अशुद्ध आचरण से दूर रहना ।
  4. असत्य भाषण न करना।
  5. मादक पदार्थों का सेवन न करना।
  6. कुसमय भोजन न करना!
  7. किसी की निन्दा न करना।
  8. नृत्य गायन से दूर रहना ।
  9. सुगन्धित व श्रृंगारिक वस्तुओं का उपयोग न करना ।
  10. सोना-चाँदी बहुमूल्य वस्तुओं का दान न लेना।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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