भारतीय दर्शन का महत्व एवं शिक्षा पर इसके प्रभाव का वर्णन कीजिए ।
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भारतीय दर्शन का महत्व
भारत में दार्शनिक चिन्तन-मनन की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। भारतीय दर्शन केवल सैद्धान्तिक एवं बौद्धिक ही नहीं है, वह अनुभूत्यात्मक एवं व्यावहारिक भी है। भारतीय दर्शन के महत्व निम्नवत् है-
(1) भारतीय दर्शन मूलतः आध्यात्मिक है। यह आत्मा अस्तित्व को स्वीकारता है और संसार को एक परम शक्ति द्वारा निर्मित मानता है। इसका उद्देश्य व्यक्ति के बौद्धिक एवं भावनात्मक चिन्तन को क्षुद्र तृष्णाओं से मुक्त कराकर परमानन्द की प्राप्ति कराना है। इसका लक्ष्य से मुक्ति है। अतः यह व्यक्ति मुक्ति का मार्ग बताता है ।
(2) भारत में दर्शन को कोरी कल्पना न समझकर उसे व्यावहारिक बनाने का प्रयत्न किया गया है और सत्य का साक्षात् दर्शन करने का प्रयास किया गया है। आध्यात्मिकता भारतीय दर्शन का प्राण है, तो धर्म अथवा आचरण शुद्धि इसका व्यावहारिक स्वरूप है, जो व्यक्ति को सच्चा आचरण करने की ओर प्रेरित करता है।
(3) भारतीय दर्शन समस्त जगत् को सर्वमान्य एकता में बाँधता है और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की कल्पना को साकार करता है।
(4) भारतीय दर्शन में सहिष्णुता की भावना, सत्य और अहिंसा पर बल दिया गया है। भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता ने अनेक सभ्यताओं एवं संस्कृतियों के विचारों एवं परम्पराओं को अपनाया है जिससे वह विविधता में एकता का संदेश देता है।
(5) भारतीय दर्शन में चार पुरुषार्थ माने गये हैं। ये हैं– (1) धर्म, (2) अर्थ, (3) काम, (4) मोक्ष। इन चारों पुरुषार्थों में मोक्ष को सर्वोत्कृष्ट माना गया है। शंकराचार्य के अनुसार ज्ञान द्वारा सम्भव है। जब ज्ञान उत्पन्न हो जायेगा तो मुक्ति हो जायेगी। उन्होंने ब्रह्म की अनुभूति को मोक्ष माना है। मुक्ति की कल्पना में मनुष्य की पूर्णता का विकास निहित है। शिक्षा के द्वारा मनुष्य में हमेशा से विद्यमान पूर्णता का विकास होता है।
(6) भारतीय दर्शन कर्म को महत्त्व देता है। मनुष्य अपने द्वारा किये गये कर्मों के आधार पर ही सुख-दुःख का अनुभव करता है। अच्छे कर्मों के आधार पर व्यक्ति उस परमब्रह्म को प्राप्त करने का मार्ग ढूँढ लेता है व मोक्ष को प्राप्त करता है। गीता में कर्म की प्रधानता को महत्त्व दिया गया है। कर्म के आधार पर ही व्यक्ति सुख व दुःख भोगता है। बुरे कर्मों का फल व्यक्ति को अवश्य ही मिलता है। इस जन्म में भी व्यक्ति अपने कर्मों का फल भोगता है व अपने अगले जन्म भाग्य का निर्माण भी कर्म के आधार पर कर लेता है। व्यक्ति जो करता है। तह कर्म है, किन्तु कर्म वही है जो सामाजिक, नैतिक व मानवीय दृष्टिकोण से करणीय हो, उपयोगी हो; अन्यथा अकर्म है।
( 7 ) भारतीय दर्शन पश्चिमी सभ्यता के आदर्शवादी दर्शन से मिलता है। यथार्थवादी दर्शन के तत्व भी हमें भारतीय दर्शन में देखने को मिलते हैं। गीता का दर्शन आदर्शवादी तथा यथार्थवादी दोनों ही है। मोह को त्यागकर ही मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।
भारतीय दर्शन का शिक्षा पर प्रभाव
प्राचीन भारतीय शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ धर्म पर आधारित हैं। समस्त आचरण को नियमित करने वाली संहिता धर्म के नाम से जानी गयी। प्राचीन काल में शिक्षा जीवन की समस्त प्रक्रियाओं को प्रशिक्षण थी। इस जीवन के परे पारलौकिक विचारधारा का शिक्षा पर पूरा प्रभाव था। प्राचीन काल की शिक्षा प्रणाली का प्रभाव आधुनिक शिक्षा पर भी स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। भारतीय शिक्षा की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं
(1) प्राचीन भारतीय शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य- स्वतन्त्र चिन्तन द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति और आत्मज्ञान था। जीवन का उद्देश्य समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का पालन करते हुए मोक्ष प्राप्ति था। भारतीय ऋषियों ने तीन प्रकार के ऋण की बात सोची है – पितृऋण, गुरु ऋण तथा देव ऋण। गुरु ज्ञान देता है, यह उसका ऋण है। गुरु द्वारा प्रदत्त ज्ञान को बढ़ाकर उसका प्रसार करके व्यक्ति इस ऋण से मुक्त हो जाता है। आज इन आदर्शों का लोप होता जा रहा है। समाज में गुरु को वह सम्मान प्राप्त नहीं जो प्राचीन समय में था। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में गुरु का स्थान अन्य पद्धतियों के कारण लुप्त-सा होता जा रहा है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि प्राचीन शिक्षा व्यवस्था व आधुनिक शिक्षा पद्धतियों में समन्वय स्थापित करके हम उचित शैक्षिक वातावरण का निर्माण करें।
( 2 ) भारतीय शिक्षा की प्रमुख विशेषता है— छात्रों का चरित्र निर्माण भारत में जितने भी दार्शनिक व शिक्षाशास्त्री हुए हैं, सभी ने शिक्षा में चरित्र निर्माण को महत्त्वपूर्ण बताया है। प्राचीन काल में छात्र सदाचारपूर्ण जीवन बिताकर विद्या ग्रहण करते थे। गुरुकुल में रहकर वे गुरु को अपना आदर्श मानते हुए उनके चरित्र से प्रेरणा लेते थे। इस प्रकार भारतीय शिक्षा व्यवस्था इस प्रकार की हो कि जिससे छात्रों में आत्मबल, संयम, शिष्टाचार व नैतिकता के गुणों का विकास हो सके।
( 3 ) भारतीय शिक्षा में छात्रों के मानसिक विकास के साथ-साथ सामाजिक कुशलता विकास पर भी बल दिया जाता है। प्राचीन काल में छात्र गुरु के आश्रम में ही श्रम की महत्ता सीख लेते थे। छात्र गुरुकुल में गायों को चराना व खेतों में अन्न को उपजाना जैसे कार्यों को करके पशुपालन व कृषि विद्या में निपुणता प्राप्त कर लेते थे। गाँधीजी भी बुनियादी शिक्षा द्वारा बालकों को स्वावलम्बी बनाने पर बल देते थे।
( 4 ) भारतीय दर्शन आशावादी है। यह बालकों की सोच को सकारात्मक बनाने पर बल देता है। भारतीय दर्शन व्यक्ति में प्रबल इच्छा-शक्ति, वृहद् विश्वास की प्रेरणा प्रदान करता है। सकारात्मक सोच द्वारा व्यक्ति अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर कर लक्ष्य को प्राप्त कर का सफल प्रयास करता है। भारतीय शिक्षा इस प्रकार के पाठ्यक्रम निर्माण पर बल देती है, जो बालकों को जीवन की चुनौतियों व संघर्षों से लड़ने की शक्ति प्रदान करे। भारतीय दर्शन व्यक्ति को भगवान पर विश्वास करना सिखाता है। ईश्वर हर व्यक्ति के जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करते हैं जो उसके विकास के लिए सर्वोत्तम होती है। ईश्वर किसी व्यक्ति को निराश नहीं करते, ये व्यक्ति को कष्ट में डालकर उसके धैर्य व साहस की परीक्षा लेते हैं।
( 5 ) भारतीय/शिक्षा की अन्य विशेषता है— धार्मिक व सांस्कृतिक स्वतन्त्रता। सभी धर्मों के गुणों का अपने में समावेश कर लेने के कारण ही भारतीय शिक्षा को उच्च स्थान प्राप्त है। वैदिक धर्म में सुधार लाने के लिए भगवान बुद्ध ने जो धर्म चलाया, उसे भी भारतीय दर्शन ने में सम्मानपूर्वक स्थान दिया गया। अन्य धर्मो एवं संस्कृतियों को भारतीय संस्कृति ने अपने में सम्मिलित कर लिया। मुस्लिमों के पीर-पैगम्बरों की पूजा को भी भारतीय संस्कृति में उच्च स्थान प्राप्त है। इस प्रकार भारतीय दर्शन व संस्कृति अपने आप में सभी धर्मों की श्रेष्ठ बातों व शिक्षाओं को समेटे है।
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