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भारत में परीक्षा प्रणाली (EXAMNATION SYSTEM IN INDIA)
भारत में वर्तमान परीक्षा प्रणाली का इतिहास लगभग एक सौ पचास वर्ष से अधिक पुराना है। प्राचीन काल में हमारे देश में मौखिक (Oral) परीक्षाओं का प्रचलन था। परीक्षाएँ व्यक्तिगत स्तर एवं सामूहिक स्तर दोनों रूपों में ली जाती थी। इसके लिए बाहर से शिक्षक/गुरु को बुलाया जाता था। वह छात्रों से मौखिक प्रश्न पूछता था और उसके आधार पर छात्र को सुयोग्य एवं अयोग्य घोषित किया जाता था। सन् 1850 तक हमारे देश में लगभग ऐसी ही स्थिति रही। सन् 1854 के वुड के घोषणा-पत्र के अनुसार, देश में वर्तमान परीक्षा प्रणाली की शुरूआत हुई।
पिछले एक सौ पचास वर्षों में परीक्षा के बहुत से पहलुओं में अत्यधिक परिवर्तन हुए हैं जिसका एक कारण सामूहिक परीक्षा प्रणाली (Mass Examination System) भी है। साथ ही, शिक्षा के विस्तार में तीव्र गति से वृद्धि होने के कारण छात्रों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है, जिसके फलस्वरुप परीक्षा प्रणाली में परिवर्तन अवश्य भावी हैं।
राजस्थान शिक्षा बोर्ड ने अपने जर्नल में लिखा है कि परीक्षा प्रणाली उतनी ही प्राचीन है जितना कि मनुष्य का ज्ञान। एक शिक्षक इसके माध्यम से अपने शिक्षण का परिणाम जानना चाहता है, एक विद्यार्थी अपने अधिगम की उपलब्धियों को जानना चाहता है एवं माता-पिता अपने बालकों (छात्रों) की शैक्षिक प्रगति को जानना चाहते हैं।
हमारे देश में परीक्षा प्रणाली में इस प्रकार की स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है कि अधिक से अधिक छात्र परीक्षाओं में सम्मिलित हो सके। इसी के परिणाम स्वरूप हम (छात्र) परीक्षाओं को ही सब कुछ समझने लगे हैं। शिक्षा की सामाजिक उपादेयता इसीलिए गौण हो जाती है। परीक्षाओं का आधिक्य होने की वजह से ही न केवल परीक्षा प्रणाली में दोष उत्पन्न हो गए हैं वरन् इससे हमारे सम्पूर्ण शैक्षिक ढाँचे को जटिल समस्याओं से उबरने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। यद्यपि समय-समय पर विभिन्न आयोगों, समितियों एवं अनुसन्धानों ने भी परीक्षा-प्रणाली के विभिन्न दोषों की ओर इंगित किया है तथा इन्हें दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के सुझाव भी दिए हैं।
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Very Nice post