हिन्दी भाषा शिक्षण में मनोवैज्ञानिक प्रविधियों की विवेचना कीजिए। मातृभाषा हिन्दी शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली प्रमुख शिक्षण विधियों का वर्णन कीजिए।
मातृभाषा हिन्दी शिक्षण विधियाँ
मातृभाषा हिन्दी शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली प्रमुख शिक्षण विधियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) अनुवाद विधि- छात्र को मातृभाषा का काफी कुछ ज्ञान पहले से ही होता है। इस विधि में बालक को उचित ढंग से शुद्ध वाक्यों को बनाना सिखाया जाता है। इस विधि से बालक की लिखने में होने वाली अशुद्धियों को दूर करने का प्रयास किया जाता है। इस विधि को व्याकरण अनुवाद विधि भी कहा जाता है। इस विधि में बालक बोलने का अभ्यास नहीं कर पाता है, इसके साथ ही छात्र भाषा के प्रयोग में भी सक्षम नहीं हो पाता है। इस विधि में व्याकरण के नियमों को रटने की ओर अधिक जोर दिया जाता है। साथ ही भाषा का व्यावहारिक पक्ष उपेक्षित रहता है। इस विधि का अधिकतम प्रयोग प्रायः प्राथमिक स्तर तक ही किया जाता है।
(2) प्रत्यक्ष विधि- प्रत्यक्ष विधि का सूत्रपात पश्चिमी देशों में हुआ है। भारत में इस विधि को सर्वप्रथम बंगाल में श्री टिपिंग को, मद्रास में श्री येट्स को तथा बम्बई में श्री फ्रेजर को अपनाने का श्रेय प्राप्त है। प्रत्यक्ष विधि के अन्तर्गत वार्तालाप, मौखिक कार्य एवं बोलने के अभ्यास की ओर अधिक जोर दिया जाता है। इस पद्धति में भाषा को स्वतन्त्र रूप से पढ़ाया जाता है। इस पद्धति में मातृभाषा के प्रयोग को सीमित कर दिया जाता है। प्रत्यक्ष विधि में आदेश-निर्देश, आदि दिये जाते हैं और उसी में विचारों की अभिव्यक्ति का प्रयास किया जाता है। इस विधि के माध्यम से सीमित शब्दावली का ही ज्ञान दिया जा सकता है। प्रायः कई शब्द ऐसे होते हैं जिनकी प्रत्यक्ष व्याख्या नहीं की जा सकती है। ऐसी स्थिति में न्याय, सौन्दर्य, शोक, लज्जा, श्रद्धा आदि शब्दों को प्रत्यक्ष विधि से समझ पाना आसान नहीं होता है। इस विधि में सुनने और बोलने की तरफ अधिक बल दिये जाने के कारण वाचन और लेखन गौण हो जाते हैं।
(3) संरचनात्मक विधि- संरचनात्मक विधि को काफी उपयुक्त माना जाता है। इस विधि के आधारभूत सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
- मौखिक कार्य को भाषा शिक्षण का आधार बनाया जाये।
- शब्दों की व्याख्या और वाक्यों के गठन को याद करा देना चाहिए।
- वाक्यों की रचनाओं को उनके रूप के आधार पर छाँटा जाना चाहिए। अर्थ के आधार पर नहीं।
- कक्षा में हिन्दी भाषा का प्रयोग अधिक होना चाहिए।
- छात्र को भाषा-अधिगम के लिए स्वतः सक्रिय होना पड़ता है। निष्क्रियता भाषा अधिगम में बाधक है।
- छात्रों की उच्चारण सम्बन्धी, व्याकरण सम्बन्धी एवं अर्थसम्बन्धी कठिनाइयों एवं संरचनाओं को अनुस्तरित कर लेना चाहिए।
- भाषा शिक्षण में संरचनाओं का अभ्यास अति आवश्यक है।
- शब्दावली भी सीमित होना आवश्यक है। उसे नियंत्रित करना अति आवश्यक है।
संरचनात्मक विधि को हिन्दी सिखाने के लिए काफी सीमा तक प्रयोग किया जाता है। इस विधि में शब्द-रचना की तरफ विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है, इस कारण शब्द भण्डार के वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है। इस विधि में मौखिक कार्य की तरफ अधिक जोर दिया जाता है। अतः भाषा के अन्य भाग उपेक्षित रह जाते हैं। संरचनात्मक पाठों में प्रायः नीरसता बनी रहती है। संरचनात्मक वाक्यों के रूप में भाषा का विकृत रूप छात्रों के सामने प्रस्तुत करना उचित प्रतीत नहीं होता है।
वाक्यों की संरचनाओं के रूप में गठन के सामने प्रस्तुत करना उचित प्रतीत नहीं होता है। वाक्यों की संरचनाओं के रूप में गठन की तरफ अधिक ध्यान दिया जाना और अर्थ को उपेक्षित करना एक बड़ी भूल है। संरचनात्मक विधि में प्रत्यक्ष विधि के कई गुण विद्यमान हैं। इसमें अनुवाद विधि का भी मिश्रण है। इसमें मातृभाषा को विशेष महत्त्व दिया जाता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि इन विधियों का प्रयोग करके मातृभाषा को पढ़ने, लिखने और सीखने में निपुण बनाया जा सकता है। इन विधियों के द्वारा छात्रों को मातृभाषा के सम्बन्ध में विशेष कुशलता प्रदान की जा सकती है।
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