B.Ed Notes

“मैकाले भारतीय शिक्षा का पथ-प्रदर्शक है।” समीक्षा कीजिए।

"मैकाले भारतीय शिक्षा का पथ-प्रदर्शक है।" समीक्षा कीजिए।
“मैकाले भारतीय शिक्षा का पथ-प्रदर्शक है।” समीक्षा कीजिए।

“मैकाले भारतीय शिक्षा का पथ-प्रदर्शक है।” समीक्षा कीजिए। अथवा ‘मैकाले के विवरण पत्र ने भारत में शिक्षा के इतिहास में एक नई दिशा प्रदान की।” आलोचना कीजिए।

उन्नीसवीं शताब्दी के शुरू से ही भारतीयों की शिक्षा के सम्बन्ध में कम्पनी के अधिकारियों में परस्पर मतभेद था और इस प्रश्न को लेकर उनमें प्राच्यवादी (Orientalists) और पाश्चात्यवादी (Occidentalists or Anglicists) नामक दो दल हो गये। प्राच्यवादी दल वाले संस्कृत, अरबी और फारसी के माध्यम से प्राचीन ज्ञान का प्रसार और प्रचार करना चाहते थे जबकि पाश्चात्यवादी अंग्रेजी भाषा के माध्यम से पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान की शिक्षा का समर्थन करते थे। इसलिए सन् 1813 ई० के आज्ञापत्र की 43वीं धारा के अनुसार जो एक लाख रुपया साहित्य के विकास तथा विद्वान् भारतवासियों को प्रोत्साहित करने तथा ब्रिटिश भारत के निवासियों में विज्ञान का प्रचार और प्रसार करने के लिए पृथक् से रखा गया था उसके सम्बन्ध में प्राच्यवादियों का मत था कि साहित्य से अभिप्राय हिन्दू मुसलमानों के साहित्य से है। उनका कहना था कि संस्कृत, अरबी और फारसी में शिक्षा की व्यवस्था हो और अंग्रेजी साहित्य और वैज्ञानिक ग्रन्थों का भी अनुवाद पूर्वी भाषाओं में किया जाये तथा अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम न बनाया जाये।

इस दल में बंगाल के शिक्षा सचिव एच० टी० प्रिन्सेप और लोक शिक्षा समिति के मंत्री एच० एच० विल्सन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, पर इन दोनों में भी पूर्णतः मतैक्य न था क्योंकि प्रिन्सेप का यह दावा था कि भारतीय कभी भी अंग्रेजी भाषा के विद्वान् नहीं हो सकते और विल्स यह नहीं चाहता था कि भारतीय अंग्रेजी पढ़कर उसके देशवासियों के साथ कन्था मिलाकर खड़े हों। कुछ प्राच्यवादियों को यह भी सन्देह था कि पाश्चात्य ज्ञान व विचारों के सम्पर्क में आने से भारतीय संस्कृति नष्ट हो जायेगी अतः वह शिक्षा का माध्यम संस्कृत, अरबी, फारसी को बनाना उचित समझते थे। ठीक इसके विपरीत पाश्चात्यवादी अंग्रेजी भाषा के माध्यम द्वारा पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान का प्रसार करने के पक्ष में थे और उनका कहना था कि शिक्षा के लिए संकलित सम्पूर्ण धनराशि पाश्चात्य शिक्षा पर ही व्यय हो जाये। इस दल में न केवल कम्पनी के नवयुवक अधिकारी और मिशनरी सम्मिलित थे बल्कि कुछ भारतवासी भी थे जो यह मानते थे कि वह भी अंग्रेजी के प्रकाण्ड विद्वान् हो सकते हैं। इस प्रकार यह द पाश्चात्य शिक्षा व अंग्रेजी भाषा का कट्टर समर्थक था।

मैकाले का विवरण-पत्र क्यों? (Why Macaulay’s Minutes ? ) – उक्त पाश्चात्य और प्राच्य विवाद का अन्त करने के लिए ही मैकाले ने एक विवरण-पत्र प्रस्तुत किया। इस विवरण पत्र ने आगे चलकर लक्ष्य की पूर्ति की। नीचे मैकाले के विवरण-पत्र, भारतीय शिक्षा में मैकाले का स्थान, प्राच्य पाश्चात्य विवाद का अन्त आदि बातों पर विस्तार से उल्लेख किया गया है।

मैकाले का विवरण-पत्र, 1835 (Macaulay’s Minutes, 1835)

विवरण पत्र की तैयारी (Preparation of Minutes) – जिस समय भारतीय शिक्षा को लेकर प्राच्य और पाश्चात्य विवाद (Oriental Occidental Controversy) उग्र रूप धारण कर रही थी, उसी समय लार्ड मैकाले 10 जून, 1834 ई० को गवर्नर जनरल की कौंसिल के कानूनी सदस्य के रूप में भारत आया। उस समय तक ‘प्राच्य पाश्चात्य विवाद’ उग्रतम रूप धारण कर चुका था। सन् 1833 के आज्ञापत्र के अनुसार गवर्नर जनरल की कौंसिल में एक कानूनी सदस्य की वृद्धि की बात कही गई थी तथा लार्ड मैकाले इसी पद पर नियुक्त किया गया। वह स्वयं अंग्रेजी का विद्वान् और सफल लेखक एवं अच्छा व्याख्यानदाता था। इसलिये कानूनी सदस्य के रूप में भारत में आते ही उसी समय वह गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक द्वारा बंगाल की लोक शिक्षा समिति का प्रधान नियुक्त कर दिया गया, क्योंकि बैंटिंक का विश्वास था कि मैकाले जैसा प्रकाण्ड विद्वान् ही इस विवाद को समाप्त कर सकता था। अतः कानूनी सदस्य के रूप में उससे सरकार ने दो विषयों पर राय माँगी-

  1. पहली राय यह कि क्या एक लाख रुपये की धनराशि प्राच्य शिक्षाओं के अलावा और भी किसी प्रकार खर्च की जा सकती है ?
  2. दूसरी राय यह कि सन् 1813 ई० के आज्ञापत्र की शिक्षा विषयक धारा की वास्तविक, व्याख्या क्या है?

लार्ड मैकाले से न तो देश के लिए कोई शिक्षा नीति ही स्पष्ट करने के लिए कहा गया और न उसने शिक्षा समिति की बैठकों में ही भाग लिया था क्योंकि वह स्वयं यह नहीं चाहता था कि उसके कानूनी सदस्य होने में किसी को कोई आपत्ति हो लेकिन 6 फरवरी, सन् 1835 ई० को उसने जो विवरण-पत्र गवर्नर जनरल की कौंसिल के सामने पेश किया वही उसकी शिक्षा सम्बन्धी योजना है। भारतीय शिक्षा के इतिहास में इसीलिये उसका विशेष महत्त्व है क्योंकि उसमें प्राच्य साहित्य और शिक्षा का खंडन करके अंग्रेजी माध्यम के द्वारा पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान की शिक्षा का समर्थन किया गया है। उसके विवरण-पत्र के आवश्यक तथ्यों का उल्लेख निम्न प्रकार है-

मैकाले के विवरण-पत्र की मुख्य बातें (Main Things of Macaulay’s Minutes)

मैकाले ने जो विवरण-पत्र प्रस्तुत किया उसकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं-

(1) अंग्रेजी का समर्थन और इसका गुणगान (Vandication and Admiration for English)- मैकाले ने अपने विवरण-पत्र में प्राच्य साहित्य और शिक्षा का खंडन किया तथा अंग्रेजी के माध्यम से पाश्चात्य साहित्य और विद्वानों का निम्न प्रकार से समर्थन किया-

(क) साहित्य शब्द का अभिप्राय (Meaning ‘Literature)-लार्ड मैकाले ने सबसे पहले सन् 1813 में आज्ञा-पत्र में दिये गये साहित्य शब्द की व्याख्या की है और उसका कहना है कि साहित्य शब्द से अभिप्राय संस्कृत, अरबी, फारसी के साहित्य से न होकर अंग्रेजी साहित्य (English Literature) से भी है।

(ख) भारतीय विद्वान् कौन? (Who is Indian Learned Man ?) –लार्ड मैकाले ने 1813 के आज्ञापत्र में उल्लिखित भारतीय विद्वान् शब्द को स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘भारतीय विद्वान्’ से तात्पर्य ऐसे विद्वान् से हैं जो लॉक (Locke) के दर्शन (Philosophy) और मिल्टन (Milton) की कविता से परिचित हो अर्थात् उसकी दृष्टि में भारतीयों का अंग्रेजी साहित्य तथा दर्शन में गहन अध्ययन होना चाहिए। साथ ही उसने यह भी लिखा कि ‘भारतीय विद्वान्’ मुसलमान मौलवी एवं संस्कृत के पण्डित के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा और साहित्य के पंडित को भी भारतीय विद्वान् की गणना में शामिल किया जा सकता है।

(ग) शिक्षा का माध्यम (Medium of Education) –लार्ड मैकाले ने अपने विवरण-पत्र में शिक्षा के माध्यम के सम्बन्ध में भी विस्तार के साथ विचार किया है। उसने शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी को ही स्वीकार किया है। देशी भाषाओं की आलोचना करते हुए उसने कहा कि भारतीयों में प्रचलित देशी भाषा में साहित्य और वैज्ञानिक ज्ञान कोष का सर्वथा ही अभाव है। वह इतनी अविकसित तथा गँवारू है कि जब तक उनको बाह्य भण्डार से विकसित नहीं किया जायेगा उनमें किसी भी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ का अनुवाद नहीं हो सकता। अतएव सर्वमान्य तथ्य तो यही जान पड़ता है कि उच्च स्तर की शिक्षा द्वारा उस वर्ग का बौद्धिक सुधार शिक्षा द्वारा किया जाये जिसके पास इनके लिये साधन हैं, यह कार्य किसी ऐसी भाषा में ही सम्भव है जो इनके बोलचाल की भाषा नहीं है। इस प्रकार मैकाले ने देशी भाषाओं के माध्यम का प्रश्न ही वाद-विवाद से पृथक् कर दिया और संस्कृत तथा अरबी आदि भाषाओं से अनभिज्ञ होते हुये भी दंभपूर्वक कहा कि “एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की एक अलमारी भारत व अरब के सम्पूर्ण साहित्य के बराबर होगी।” यद्यपि लार्ड मैकाले अरबी और संस्कृत भाषाओं के आचार साहित्य का कभी अध्ययन नहीं किया था, लेकिन उसने बिना सोचे विचारे अपना निर्णय दे दिया और संस्कृत साहित्य का मजाक-सा उड़ाते हुए कई भद्दे आरोप लगाये।

उसने कहा था कि “एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की एक अलमारी का भारत और अरब के सम्पूर्ण साहित्य से कम महत्त्व नहीं है।”

उसने यह भी कहा “क्या हम ऐसे साहित्य और विज्ञान को पढ़ायेंगे जो अत्यन्त निम्न कोटि का है जबकि हम सम्पूर्ण इतिहास और दर्शन का अध्ययन करा सकते हैं।”

(घ) अंग्रेजी भाषा की प्रशंसा- मैकाले ने अंग्रेजी भाषा की प्रशंसा में बहुत कुछ कहा है। उन्हीं के शब्दों में, “वह भाषा पाश्चात्य भाषाओं में एक है, और सर्वश्रेष्ठ है, जो इस भाषा को जानता है, वह सुगमतापूर्वक उस विशाल ज्ञान भण्डार को प्राप्त कर सकता है जिसको विश्व की सबसे बुद्धिमान जातियों ने रचा है।”

(2) अंग्रेजी भाषा और साहित्य के पक्ष में तर्क (Arguments of English Language and Literature) – मैकाले अंग्रेजी भाषा और साहित्य का जबरदस्त समर्थक था इसीलिए उसने अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम माना है-

  1. अंग्रेजी शासक की भाषा है और उच्च वर्ग के भारतीय उसे बोलते हैं।
  2. यह भी सम्भव है कि पूर्वीय समुद्रों में अंग्रेजी व्यापार की भाषा भी बन जाये।
  3. आस्ट्रेलिया और अफ्रीका में उन्नतिशील यूरोप भी अंग्रेजी भाषा को ही व्यवहार में लाते हैं और उनका सम्बन्ध भी भारत से दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
  4. जिस प्रकार यूनानी और लैटिन भाषाओं से इंग्लैण्ड में पुनरुत्थान हुआ है उसी प्रकार अंग्रेजी का प्रयोग करके भारत में भी होगा।
  5. स्वयं भारतवासी भी अंग्रेजी पढ़ने के इच्छुक हैं न कि अरबी, फारसी और संस्कृत के।
  6. भारतवासियों को अंग्रेजी भाषा व साहित्य का विद्वान् कहा जा सकता है और इसके लिए प्रयास करना सरकार का कर्त्तव्य है।
  7. प्राच्य शिक्षा संस्थानों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को आर्थिक सहायता देनी पड़ती है पर अंग्रेजी विद्यालयों में पढ़ने के लिए विद्यार्थी स्वयं फीस देने के लिए इच्छुक हैं।

अंग्रेजी संहिता (Code) बनाने का प्रस्ताव- मैकाले ने कानूनों की जानकारी प्राप्त करने के लिये संस्कृत, अरबी और फारसी के शिक्षालयों पर धन व्यय करना मूर्खता माना है और उन सबको बन्द कर देने की सिफारिश करते हुए संस्कृत, अरबी और फारसी में लिखे गये कानून की अंग्रेजी में संहिता (Code) बनवाने की राय दी है।

धर्म के सम्बन्ध में विचार- मैकाले ने धर्म के सम्बन्ध में भी विचार व्यक्त किया है और वह कठोर धार्मिक निरपेक्षता का पक्षपाती होने के कारण भारतीयों के धर्म में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहता था।

निष्कर्ष (Conclusion)- उक्त विवरण से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि मैकाले ने अपने विवरण-पत्र में दृढ़तापवूक अंग्रेजी भाषा के माध्यम से पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान की शिक्षा पर बल दिया और सरकार से सिफारिश की कि वह न केवल तत्कालीन मकतबों व मदरसों को बन्द कर दे अपितु कलकत्ता मदरसा को भी तोड़ दे क्योंकि उसकी प्रगति अत्यन्त मन्द है। उसका कहना था कि सरकार द्वारा जो धनराशि अरबी, फारसी व संस्कृत विद्यालयों पर व्यय होती है वह व्यर्थ ही है अतः इन शिक्षा संस्थाओं को अनुदान देना बन्द कर अंग्रेजी स्कूलों की स्थापना व विकास में उस धनराशि का उपयोग करना चाहिए।

भारतीय शिक्षा के इतिहास में मैकाले का स्थान (Place of Macaulay’s in the History of Indian Education)

भारतीय शिक्षा सम्बन्धी नीति की घोषण लार्ड विलियम बैंटिंक ने की इसलिये कुछ विचारक बैंटिंक को ही वह व्यक्ति मान लेते हैं जिसने कि भारतीय शिक्षा के इतिहास को नया मार्ग दिखाया। पर वास्तव में बैंटिंक का निर्णय मैकाले के ही प्रस्तावों पर हुआ था इसलिये यदि ध्यानपूर्वक देखा जाये तो मैकाले ही शिक्षा को एक नया रास्ता प्रदान करने वाला सुधारक था। इसलिये भारतीय शिक्षा को स्थायी रूप देने का श्रेय मैकाले को ही दिया जाना चाहिए। इसलिये मैकाले को भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रतिष्ठापक का श्रेय दिया जाना चाहिए, अथवा दिया जाता है।

इस बात को मानना चाहिए कि उसके विवरण पत्र के द्वारा शिक्षा क्षेत्र में विवादग्रस्त विषयों का निर्णय हो गया तथा भारत में स्थायी रूप से एक शिक्षा नीति स्थापित हो सकी। पर यह भी सत्य है कि उसकी कटु आलोचना भी की गई है। इसलिये यहाँ उसके विवरण पत्र की समीक्षा करते हुए निश्चित निर्णय पर पहुँचना और भारतीय शिक्षा के इतिहास में उसके स्थान का मूल्यांकन करना भी परमावश्यक है।

इस तरह मैकाले के सम्बन्ध में दो विचार हमारे सामने आते हैं-

  1. मैकाले भारत को दासता की जंजीरों में जकड़ने के लिए उत्तरदायी है-
  2. मैकाले भारतीय शिक्षा का पथ-प्रदर्शक है।

भारतीय शिक्षा को मैकाले की देन (Gift of Macaulay’s in Indian Education )

यदि हम गहराई के साथ विचार करें तो ज्ञात होगा कि मैकाले ने जो भी किया उससे भारतीय शिक्षा को क्षति नहीं हुई, बल्कि लाभ ही हुआ। दादा भाई नौरोजी ने मैकाले की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। उनका कथन है ‘मैकाले द्वारा भारतीय संस्कृति पर लगाये गये आक्षेपों को हमें उदारतापूर्वक भुला देना चाहिए और उसे अपनी अज्ञानता के लिए क्षमा कर देना चाहिए।

(1) शिक्षा की आधुनिक रूपरेखा का शिलान्यास- कुछ लोगों ने मैकाले के बारे में लिखा है ‘मैकाले को उन्नति के मार्ग का पथ-प्रदर्शक कहना नितान्त अतिशयोक्तिपूर्ण है।’ यद्यपि बहुत से भारतीयों ने भी अंग्रेजी पढ़ाये जाने की बात का समर्थन किया है तथा प्राच्य – पाश्चात्य के विवाद को दूर करने का श्रेय उसी को है।

(2) उसने भारत के लिए पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान का द्वार खोला था- मैकाले ने शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी का प्रस्ताव किया था और वह बात स्वीकार भी कर ली गयी थी। इससे विदेशी ज्ञान-विज्ञान का द्वार भारतीयों के लिए सदा के लिए खोल दिया गया। इससे वैज्ञानिक और औद्योगिक ज्ञान का द्वार खुल गया।

(3) भारत में राजनैतिक जागृति उत्पन्न करना- मैकाले के आलोचकों का विचार है कि उसने अंग्रेजी पर विशेष बल राजनैतिक स्वार्थपूर्ति के लिए दिया था लेकिन जहाँ अंग्रेजी शिक्षा ने अंग्रेजी साम्राज्यरूपी वृक्ष को दृढ़ता प्रदान की और उसको मजबूत बनाया वहीं राष्ट्रीय आन्दोलन को भी जन्म दिया। नूरुल्ला तथा नायक ने लिखा है, ‘यदि भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रादुर्भाव न हुआ होता तो कदाचित भारत में स्वतन्त्रता संग्राम ही न छिड़ता।’

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment