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मैस्लो का ‘जरूरतों का श्रेणीयन सिद्धान्त’ | मैस्लो के सिद्धान्त की आलोचना | हर्जबर्ग का द्वि-घटक सिद्धान्त | मैस्लो तथा हर्जबर्ग के सिद्धान्तों की तुलना

मैस्लो का 'जरूरतों का श्रेणीयन सिद्धान्त' | मैस्लो के सिद्धान्त की आलोचना | हर्जबर्ग का द्वि-घटक सिद्धान्त | मैस्लो तथा हर्जबर्ग के सिद्धान्तों की तुलना
मैस्लो का ‘जरूरतों का श्रेणीयन सिद्धान्त’ | मैस्लो के सिद्धान्त की आलोचना | हर्जबर्ग का द्वि-घटक सिद्धान्त | मैस्लो तथा हर्जबर्ग के सिद्धान्तों की तुलना

अभिप्रेरण के मैस्लो के सिद्धान्त तथा हर्जबर्ग सिद्धान्त के आलोचनात्मक वर्णन के लिए सिद्धान्तों की तुलना करो। Explain critically Maslow’s and Herzberg Theory.

मैस्लो का ‘जरूरतों का श्रेणीयन सिद्धान्त’ (Maslow’s Hierarchy of Needs Theory)

वर्तमान युग में अभिप्रेरण का सबसे ज्यादा प्रचलित सिद्धान्त अब्राहम एच० मैस्लो नामक महान वैज्ञानिक द्वारा प्रतिपादित किया गया है। मैस्लो के माता-पिता रुसी थे, परन्तु स्वयं मैस्लो का जन्म न्यूयार्क में हुआ था और उनका पूरा जीवन सं० रा० अमेरिका में बीता। ‘मोटीवेशन और पर्सनैलिटी’ नामक विस्तृत ग्रन्थ में उन्होंने 1954 में जरूरतों के श्रेणीयन का सिद्धान्त प्रतिपादन किया।

मैस्लो ने मनुष्य की बुनियादी जरूरतों का क्रम बढ़ते हुए महत्व के अनुसार इस प्रकार निर्धारित किया-

(1) सामाजिक जरूरतें (Social Needs) – मानव सामाजिक प्राणी है। अतः वह वार्तालाप, विचारों के आदान-प्रदान, पारस्परिक स्नेह और दूसरों के द्वारा स्वीकृत होना चाहता है।

(2) शारीरिक जरूरतें (Physiological Needs) – इन जरूरतों का सम्बन्ध पानी, भोजन, निवास, नींद आदि से है। ये मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताएँ हैं। जरूरतों के श्रेणीयन में इनको सबसे निचले स्तर पर रखा गया है, परन्तु यदि इनकी सन्तुष्टि नहीं हुई, तो ये ही सर्वाधिक उग्र और महत्वपूर्ण बन जाती हैं।

(3) अहं एवं सम्मान जरूरतें (Ego and Esteem Needs ) – सामाजिक जरूरतों की सन्तुष्टि के पश्चात् मनुष्य (i) आत्म सम्मान (Self esteem) अर्थात् हीन भावना का अभाव तथा (iii) दूसरों से सम्मानित होने की प्रबल इच्छा रखता है।

इस जरुरत से सत्ता, हैसियत और आत्मविश्वास की आकांक्षाएँ उत्पन्न होती हैं।

(4) सुरक्षा जरूरतें (Security Needs) – ये जरूरतें दूसरे स्तर पर आती हैं। इनका सम्बन्ध शरीर, सम्पत्ति, नौकरी आदि की सुरक्षा से होता है।

(5) आत्म साक्षात्कार अथवा आत्मपूर्णता की जरूरत (Need of self actualization or self fulfilment ) – मैस्लो के श्रेणीयन में इस जरूरत का स्थान सर्वोपरि है। यह मनुष्य की अपनी सर्वोच्च क्षमता की प्राप्ति की इच्छा है। इसके अन्तर्गत व्यक्ति अपनी उपलब्धियों को अधिकतम कर आत्मपूर्णता की स्थिति को प्राप्त करना चाहता है।

मैस्लों ने इस प्रकार से जरूरतों का श्रेणीयन कर निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले हैं-

(1) जरूरतों का महत्व बढ़ते हुए क्रम में है। सबसे नीचे शारीरिक जरुरतें और सबसे ऊपर आत्म साक्षात्कार की जरूरत है। इन दोनों अतियों के बीच अन्य जरूरतें आती हैं।

(2) उच्चतर स्तर की जरूरतें उसी स्थिति में कार्यशील होंगी, जबकि उसके तुरन्त नीचे के स्तर की जरूरतें लगभग सन्तुष्ट हो जाएगी। शारीरिक जरूरतों की सन्तुष्टि सुरक्षा जरूरतों को प्रबल बनाती है।

जब तक सुरक्षा जरूरतें सन्तुष्ट नहीं होती, तब तक सामाजिक और सम्मान जरूरतें बलवती नहीं बनेंगी। आत्म साक्षात्कार अर्थात् आत्मपूर्णता की जरूरत सबसे अन्त में उदित होती है। प्रत्येक व्यक्ति इस जरूरत को महसूस नहीं करता। उच्च स्तरीय चेतना से यह जरूरत जाग्रत होती है।

(3) कोई जरूरत जब सन्तुष्ट हो जाती है, तो फिर वह प्रेरणा प्रदान करने में असमर्थ रहती है। भूखे व्यक्ति के लिए भोजन एक प्रेरणा है, परन्तु पेट भरे व्यक्ति के लिए नहीं ।

(4) एक विशेष समय में एक ही प्रकार की जरूरत कार्यशील होती है। कारण स्पष्ट है, उससे नीचे के स्तर की जरुरतें लगभग सन्तुष्ट हो चुकी हैं, अतः कार्यशील नहीं होती हैं तथा ऊपर के स्तर की जरूरतें तो उदित ही नहीं होंगी। अगले क्रम पर वे उन्नत जरूरतें महसूस होंगी। तब वर्तमान में कार्यशील जरूरतें अकार्यशील बन जाएँगी। इस प्रकार एक खास समय में एक प्रकार की जरूरत ही प्रभावपूर्ण होती है। उदाहरण के लिए, सुरक्षा जरूरतों से पीड़ित व्यक्ति के लिए शारीरिक और सामाजिक (तथा उससे ऊपर की) जरूरतें कार्यशील नहीं रहेंगी।

मैस्लो के सिद्धान्त की आलोचना

जो सिद्धान्त जितना लोकप्रिय होता है, उसकी आलोचना भी उतनी ही अधिक होती है। मैस्लो के अभिप्रेरणा सिद्धान्त की निम्नलिखित आलोचनाएँ की गई हैं-

(1) जरूरतों का यह श्रेणीयन दोषपूर्ण है। वस्तुतः मनुष्य की जरूरतों को इस प्रकार श्रेणीबद्ध करना गलत है। अनेक जरूरतें इस प्रकार की होंगी, जिनकी श्रेणी तय करना बड़ा जटिल कार्य होगा।

(2) यह कहना भी गलत है कि निचली जरूरतों के सन्तुष्ट होने पर ही ऊपर की जरूरतें उत्पन्न होंगी तथा एक समय में एक विशेष प्रकार की जरूरत ही कार्यशील होती है। शारीरिक, सुरक्षा तथा सामाजिक जरूरतें एक साथ उदित तथा कार्यशील होती हुई प्रायः देखी जाती है। भूखा मनुष्य रोटी के साथ ही सुरक्षा और सम्मान चाहता है।

(3) आत्सम्मान सर्वप्रथम – प्रायः यह देखा जाता है कि मनुष्य रोटी से अधिक आत्मसम्मान को महत्व देता है। एक सैनिक सुरक्षा से अधिक सम्मान तथा आत्मपूर्णता (उपलब्धि) की जरूरत को महत्व देता है।

मैस्लो के अभिप्रेरणा सिद्धान्तों में कमियाँ हैं और उसे विद्वानों द्वारा चुनौती दी गई है, परन्तु फिर भी जरूरतों का उसके द्वारा प्रतिपादित श्रेणीयन संसार भर में प्रसिद्ध और प्रशंसित हुआ है। इतनी बात तो तय है कि मनुष्य की सभी जरूरतें समान प्रकृति की नहीं हैं तथा उनकी तीव्रता भी अलग-अलग होती है। निचले स्तर की जरूरतें प्रारम्भ में अधिक प्रेरक होती हैं और बाद में ऊपर के स्तरों की जरूरतें ज्यादा महत्वपूर्ण लगती हैं। अपवाद सभी ओर मिल जाएंगे। मैस्लो के अभिप्रेरणा सिद्धान्त में सत्य का बहुत बड़ा अंश निहित है। इस बात को कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता है।

हर्जबर्ग का द्वि-घटक सिद्धान्त (Herzberg’s Two-factor Theory)

फ्रेडरिक हर्जबर्ग के अभिप्रेरणा सिद्धान्त ने भी काफी लोकप्रियता प्राप्त की है। अनेक सर्वेक्षणों के आधार पर इस महान मनोवैज्ञानिक ने निम्न दो निष्कर्ष निकाले हैं-

(1) कार्य की कुछ दशाएँ ऐसी होती हैं, जिनकी उपस्थिति कर्मचारियों को प्रेरणा नहीं देती, परन्तु जिनकी अनुपस्थिति उन्हें बहुत असन्तुष्ट बनाती है।

ऐसे घटकों को हर्जबर्ग अनुरक्षक घटकों (Maintenance Factors) के नाम से है। प्रमुख पुकारता अनुरक्षक घटक इस प्रकार बताये गये हैं-

(1) नीति एवं प्रशासन, (2) पर्यवेक्षण के तकनीकी पहलू, (3) पर्यवेक्षकों, सहकर्मियों एवं अधीनस्थों के साथ सम्बन्ध, (4) कार्य दशाएँ, (5) वेतन, (6) कार्य की सुरक्षा, (7) संगठन में स्थिति आदि ।

(2) कार्य की दूसरी ऐसी दशाएँ होती हैं जिनकी अनुपस्थिति कर्मचारियों को असन्तुष्ट नहीं बनाती, परन्तु जिनकी उपस्थिति में उन्हें अभिप्रेरित करने की बड़ी क्षमता होती है। हर्जबर्ग ने इन्हें अभिप्रेरक घटकों (Motivational Factors) का नाम दिया है ।

प्रमुख अभिप्रेरक घटक ये हैं-

(1) उपलब्धि, (2) मान्यता (3) उत्तरदायित्व (4) प्रगति तथा विकास के अवसर, (5) चुनौतीपूर्ण कार्य।

अभिप्रेरक घटकों से कर्मचारियों को विशेष प्रोत्साहन मिलता है। मान्यता से उन्हें प्रसन्नता होती है।

उत्तरदायित्व एवं चुनौतीपूर्ण कार्य सौंपने से उन्हें लगता है कि उनकी योग्यताओं को स्वीकार किया गया है। प्रगति एवं विकास के अवसरों के प्रति मनुष्य का आन्तरिक आकर्षण स्वाभाविक है।

इस प्रकार हर्जबर्ग का अभिप्रेरणा सिद्धान्त अनुरक्षक तथा अभिप्रेरक, इन दोनों प्रकार के घटकों पर आधारित है। कर्मचारियों को सन्तुष्ट भी रखना है तथा उन्हें प्रोत्साहित करना , अतः इन दोनों प्रकार के तत्वों की विद्यमानता आवश्यक है।

आलोचना- हर्जबर्ग के सिद्धान्त की प्रमुख कमियाँ इस प्रकार बताई गई हैं-

(1) अनुरक्षक और अभिप्रेरक घटकों का वर्गीकरण अनुचित तथा मनमाना है। जो भी घटक मनुष्य की जरूरतों को पूर्ण करते हैं, वे सभी प्रेरणा प्रदान करने की क्षमता रखते हैं।

(2) कुछ विद्वानों की यह मान्यता है कि सन्तुष्टि तथा उत्पादकता के मध्य प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। उत्तरदायित्व न सौंपने पर कार्यदशाओं से सन्तुष्ट कर्मचारी भी उत्पादकता बढ़ाने हेतु अभिप्रेरित नहीं होते।

(3) हर्जबर्ग की अनुसंधान प्रणाली की भी कटु आलोचना की गई है और उसके वर्गीकरण को गलत सिद्ध करने के प्रयास किये गये हैं।

मैस्लो तथा हर्जबर्ग के सिद्धान्तों की तुलना

मैस्लो और हर्जबर्ग दोनों ही महान वैज्ञानिक हैं। दोनों ने मनुष्य की आधारभूत जरूरतों के माध्यम से अभिप्रेरणा की युक्तियों को प्रतिपादित किया है। दोनों ने लगभग समान जरूरतें गिनाई हैं।

दोनों के सिद्धान्तों का तात्विक अन्तर उनके अलग-अलग वर्गीकरण में निहित है। मैस्लो का वर्गीकरण व्यापक विश्व के सन्दर्भ में है, जबकि हर्जबर्ग का सरल वर्गीकरण संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्रों के सन्दर्भ में अधिक प्रासंगिक है।

यदि ध्यान देकर देखें तो यह भी ज्ञात होगा कि हर्जबर्ग की अभिप्रेरक जरूरतें वे ही हैं, जो मैस्लो के अनुसार उच्च श्रेणी की जरूरतें हैं। मैस्लो की सम्मान जरूरतों में प्रतिष्ठा, प्रशंसा, दायित्व, चुनौती आदि ही तो सम्मिलित हैं।

मैस्लो द्वारा बताई गई शारीरिक तथा सुरक्षा जरूरतें ही हर्जबर्ग के अनुरक्षक घटक हैं।

दोनों के सिद्धान्तों में एक आधारभूत अन्तर यह है कि मैस्लो की मान्यता है कि निचले स्तर की जरूरतों सन्तुष्ट होने पर ही ऊपर के स्तर की जरूरतें कार्यशील होती हैं, जबकि हर्जबर्ग ने ऐसी कोई बात नहीं कही। के हर्जबर्ग तो बड़े सरल शब्दों में यह कहता है कि अनुरक्षक घटकों की अनुपस्थिति असन्तोष उत्पन्न करती है। और अभिप्रेरक घटकों की विद्यमानता प्रेरणा प्रदान करती है। मैस्लो श्रेणीयन के आधार पर सभी जरूरतों को प्रेरक मानता है।

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Anjali Yadav

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